एक अँधेरा, तहखाने जैसा कमरा। हवा में नमी, सड़े हुए माँस और रसायनों की भयानक गंध घुली हुई है, जो दिल दहला देती है। एक पुरानी, जंग लगी धातु की मेज पर, मी नाम की एक दुबली-पतली, नाजुक बच्ची बेहोश पड़ी है। उसके होंठ नीले पड़ चुके हैं, चेहरा किसी सूखे पत्ते सा पीला। उसकी छाती मुश्किल से ऊपर-नीचे हो रही है, जैसे ज़िंदगी की डोर पतले धागे पर टिकी हो। दो नकाबपोश आदमी, जिनके चेहरे पर क्रूरता और लालच साफ झलक रहा है, उसे घेरे हुए हैं। उनके हाथों में ठंडे, चमचमाते सर्जिकल औज़ार हैं, जो मी के मासूम शरीर के ऊपर मंडरा रहे हैं। उनकी फुसफुसाहट कमरे की खामोशी को चीर रही है, जैसे मौत का गीत गाया जा रहा हो।

आदमी 1 (एक तेज, क्रूर मुस्कान के साथ): “देखो तो! यह बच्ची, बिल्कुल सोने की खान है। कोई दाग नहीं, कोई खराबी नहीं। इसके अंग... उफ्फ! डिकॉस्टा इसे देखकर खुशी से पागल हो जाएगा।”

आदमी 2 (मी की कलाई पर एक मोटी सुई चुभोते हुए): “हाँ, भाई। 'हाई क्वालिटी' से भी ऊपर। इसके हर अंग की कीमत चुकाई जाएगी। आज तक ऐसा 'माल' नहीं मिला हमें।”

तभी, लोहे के भारी दरवाजे पर एक धीमी, लेकिन भयानक आहट होती है। डिकॉस्टा, एक विशालकाय, भेड़ियों जैसी आँखों वाला आदमी, जो अभी हाल ही में मुंबई से आया था, धीरे-धीरे अंदर आता है। उसकी चाल में अजीब सी गंभीरता है, जैसे वह किसी शिकार को देख रहा हो। उसकी निगाहें सीधे मी पर पड़ती हैं, और उसकी आँखों में एक बर्फीली चमक तैर जाती है – वो चमक जो सिर्फ अमानवीय लालच और दरिंदगी में होती है।

डिकॉस्टा (एक ठंडी, भारी आवाज़ में): “तो, क्या हाल है इस नए 'नमूने' का? मैंने सुना यह किसी खजाने से कम नहीं।”

आदमी 1 (लगभग काँपते हुए, पर उत्साहित): “सर! यह सिर्फ 'नमूना' नहीं, यह 'अद्भुत' है! सारे टेस्ट हो चुके हैं। इसके अंग, सर... बिल्कुल ताज़े, पूरी तरह से स्वस्थ! हमें यकीन है कि इससे हम इतिहास रच देंगे, इतना मुनाफा होगा कि आप सोच भी नहीं सकते!”

डिकॉस्टा (मी के पास झुकते हुए, उसकी साँसों को महसूस करते हुए, एक भयानक हंसी): “कितनी मासूम है... शायद इसे पता भी नहीं कि इसकी किस्मत कितनी 'उज्ज्वल' होने वाली है।”

आदमी 2 (बेसब्री से): “सर, हमें इसे जल्द से जल्द 'तैयार' करना होगा। इसकी उम्र बहुत कम है, 'ताजगी' बनी रहेगी। ये हमारी सबसे बड़ी डील हो सकती है।”

अचानक, एक आंतरिक पुकार, एक याद का झोंका मी के मन में उठता है। मेल्विन का चेहरा उसकी बंद आँखों के सामने घूम जाता है। उसकी आवाज़, उसकी हँसी, उसका स्पर्श... सब कुछ एक साथ मी के ज़हन में कौंध जाता है।

मी की पलकें धीरे से फड़फड़ाती हैं। एक क्षण के लिए, उसकी धुंधली आँखें खुलती हैं। पहली बार, उसने उन आदमियों के नकाबपोश, क्रूर चेहरों को देखा, और डिकॉस्टा की बर्फीली मुस्कान को। उसकी मासूम आँखों में पहले भयानक डर आता है, फिर अजीब सा कन्फ्यूजन और फिर... एक पल की पहचान। उसे मेल्विन की याद आती है, जैसे उसकी आत्मा उसे पुकार रही हो। उसके सूखे होंठों से एक धीमी, अस्पष्ट सी आवाज़ निकली, “मेल्विन... मुझे बचाओ...”

डिकॉस्टा (मी की आँखें खुलते देख, उसकी आँखों में गुस्सा): “यह होश में आ रही है? इसे तुरंत बेहोश करो! मुझे कोई ड्रामा नहीं चाहिए! जल्दी!”

आदमी 1 बिना देर किए एक बड़ी, मोटी सुई को मी की बांह में उतार देता है। मी का छोटा सा शरीर काँप उठता है। उसकी आँखों में बेबसी के आँसू भर आते हैं, लेकिन वह इतनी कमजोर है कि विरोध नहीं कर पाती। उसकी नज़रें उन दरिंदों पर टिकी हैं, जो उसे सिर्फ एक बेजान वस्तु मान रहे हैं। उसकी आँखों में बसी वो आशा अब धुंधली पड़ रही है, लेकिन पूरी तरह बुझी नहीं है। उसकी पलकें फिर से भारी होने लगती हैं, लेकिन इस बार डर के साथ-साथ एक बेताब पुकार भी है – मेल्विन के लिए, एक मूक गुहार कि कोई उसे इन दरिंदों से बचा ले।

डिकॉस्टा (अपने आदमियों की ओर मुड़ते हुए, उसकी आवाज़ में जीत की क्रूरता): “काम जारी रखो। मुझे कोई गड़बड़ नहीं चाहिए। यह हमारा अगला बड़ा प्रोजेक्ट है। 'हाई क्वालिटी' का ऐसा 'माल', जिसका कोई सानी नहीं।”

कमरे में फिर से एक भयानक सन्नाटा छा जाता है, केवल उपकरणों की धीमी, भयावह गूँज और उन आदमियों की नीच फुसफुसाहट सुनाई देती है। मी वहीं, उस ठंडी मेज पर बेहोश पड़ी है, उसका छोटा सा शरीर उन अमानवीय इरादों के बीच फंसा हुआ है। उसकी अंदरूनी पुकार गूँज रही है, क्या कोई उसे सुन पाएगा?

खैर कोई उसे अभी कैसे सुन पाएगा। क्योंकि जो उसे सुन सकता था, उसे बचा सकता था वो अभी दिल्ली के झोपड़पट्टी में भटक रहा था। 

"यह जगह, यह जगह तो मैं पहले आया हुआ हूँ। वो अभी यहाँ है?" -मेल्विन ने मन ही मन खुद से कहा। 

"अबे और कितनी देर चलाएगा। यहाँ तो मेरा व्हील चेयर भी सही से काम नहीं कर रहा है।"- रघु ने झल्लाते हुए कहा। 

"बस कुछ ही देर और बस बॉस!"- उसने कहा। 

वे देखते ही देखते एक घर की तरफ पहुँच गए। वो घर बिल्कुल खाली था। वे सभी वहाँ बैठकर उसका इंतजार करने लगे। कुछ ही देर में वो खुफिया आदमी उनके सामने आया जिसे देखते ही मेल्विन भौचक्का रह गया। 

"कैसे हैं आप सभी।"- उस आदमी ने कहा। 

"तुम!"- मेल्विन ने हैरानी के साथ कहा। 

"वाह यानी तुम इसे जानते हो। बढ़िया है यानी मुझे जान पहचान करने में ज्यादा समय बर्बाद नहीं करना होगा।"- रघु के उस आदमी ने कहा- "तो मिस्टर मेल्विन। इससे मिलो, यह है नितिन। हमारा खुफिया जासूस।" 

हाँ वो नितिन ही था जो उस रात शराब के नशे में कुछ भी बड़बड़ाए जा रहा था। आज वो शांत और सभ्य था और समझदारी वाली बातें कर रहा था। 

"कैसे मिस्टर मेल्विन"- नितिन ने उसकी और हाथ बढाते हुए कहा। जबकि मेल्विन ने उसे हैरानी से बड़ी हो चुकी आंखें और खुले मुँह से ही स्वागत किया। पर मेल्विन को नितिन के समझदार वाले रूप से मिलकर उतनी ज्यादा नहीं थी, उसे हैरानी थी क्योंकि- 

"तुम अभी जिंदा हो। पर मैंने उस दिन तुम्हारी लाश देखी थी" -मेल्विन ने कहा। 

"हाँ। आपने बिल्कुल सही देखा था। ऐसा करना पड़ता है। वरना उस 'नवजीवन' NGO के आदमी मुझे भी मार डालते। इसलिए मैंने खुद ही मरने का नाटक किया।"- नितिन ने कहा। 

यह सुनकर रघु और उसके आदमी एकदम से हँस पड़े। 

"ओह नितिन तुम भी न। तुम और तुंम्हारे अजीब से करतब। पहले तुम माल रिकवर करने के लिए उस NGO में वेश बदलकर गए फिर पकड़े जाने के डर से बाहर निकल गए और शराबी का नाटक करने लगे।" -उनलोगों ने कहा।

"तो अब आगे क्या करना है। मुझे मेरे पैसे कैसे मिलेंगे? वो 500 करोड़ रुपये जो इसके बाप ने कमा कर छिपाए थे"- रघु ने कहा। 

"आप जिन 500 करोड़ की बात कर रहे हैं वो 1972 की बात है। अभी वे पैसे किसी न किसी एसेट के रूप में किसी के नाम होंगे। ऐसा नहीं है कि मैं आपको कह दूँ की किसी सेंट सेबेस्टियन चर्च में बने डब्लू के नीचे आपको कोई गड़ा खजाना मिलेगा और आप सभी फावड़ा लेकर वहाँ चले जाओ।"- नितिन ने कहा- "पर ऐसा नहीं है कि वे पैसे रिकवर नहीं हो सकते। बस हमें अपनी उँगली टेढ़ी करनी होगी। सिर्फ तभी हम इतना सारा पैसा रिकवर कर सकते हैं।" 

"तुमको जो ठीक लगे करो। उँगली टेढ़ी करो या फिर उँगली निकालकर फेंक दो। बस मुझे वे पैसे चाहिए।"- रघु ने कहा। 

इतना सुनकर नितिन कुछ देर के लिए सोच में पड़ गया। पर तभी मेल्विन बोल पड़ा। 

"मैंने पापा की डायरी में पढा था कि उनके मरते ही उन पैसों पर कोई और दावा कर लेगा। जब वे मानव अंगों की तस्करी करते थे तो एक ऐसी संस्था के साथ करते थे जो अपने आप में बहुत ज्यादा ताकतवर थे। शायद वे पैसे अभी भी उन्हीं के पास हो। अगर हम उनसे ही सीधा मांग ले तो?"- मेल्विन ने कहा। 

"हाँ, हाँ। सभी हम कटोरा लेकर उनके पास जाकर बोलेंगे की हमें हमारे 500 करोड़ रुपये दे दो और वे लोग अपना तिजोरी खोल देंगे। है न?"- रघु ने कहा- "हमको तो यह तक नहीं पता कि वे लोग कौन थे और इस वक़्त कहाँ होंगे।" 

"शायद मैं जानता हूँ। पापा की डायरी के आखरी पेजेस मुझे डिकोस्टा के अगला वाले हवेली में मिले थे तो हो सकता है कि उसका उन लोगों से कोई जुड़ाव हो।"- मेल्विन ने कहा। इतना सुनते ही नितिन कह उठा। 

"यह सही कह रहा है। इसके पिताजी जिस संस्था को ऑर्गन्स बेचते थे वो यह काम करीब 150 सालों से कर रही है और ये डिकोस्टा जिस 'नवजीवन' संस्था का देख रेख कर रहा है। वे लोग भी उसी आर्गेनाईजेशन के शाखा हैं। तो शायद हम उनसे अपने पैसे रिकवर कर सकते हैं।" -नितिन ने कहा। 

"लेकिन हम ऐसा करेंगे कैसे?"- रघु ने पूछा। 

"वो सब मुझ पर छोड़ दो। लेकिन हमें अभी तुरन्त उसी वर्मा के पास जाना होगा।"- नितिन ने कहा। 

और इसी के साथ वे लोग उसी नवजीवन संस्था की और बढ़ चले। लेकिन इस बार उन्होंने कुछ नहीं छिपाया। अपनी ताकत की प्रदर्शनी करते हुए उस संस्था में फिर घुसे, वही संस्था जो मेल्विन को देखते साथ ही उसे मारने को उतारू थे। उनको एक साथ देखकर पीछे हट गए। वहीं संस्था के कर्मचारी भी यह दृश्य देखकर हैरान थे। एक ही बार में 3-4 बुलेरो का वहाँ आना। उसमें से 10-50 आदमियों के बाहर निकलना और उनसब का हथियारबंद होना। सबसे ज्यादा तो उन्हें इस बात की भी थी कि मेल्विन और नितिन भी उनके साथ था। किसी के समझ में कुछ नहीं आ रहा था। वे आदमी सीधा मिस्टर वर्मा के केबिन में घुसे। 

"मेल्विन? नितिन? तुम दोनों? क्या चाहिए तुमलोगों को?"- मिस्टर वर्मा ने पूछा। 

"पैसा। पूरे 500 करोड़।" -रघु ने बीच में ही काटते हुए बोला।

"यह बच्चों की रख रखाव वाली शांति प्रिय संस्था है और ऐसे जगह में हमारे पास इतने पैसे कहाँ से आएंगे। हम तो परोपकार करने वाले लोग हैं।"- मिस्टर वर्मा ने कहा। 

जिसे सुनते ही रघु ने अपनी बंदूक मिस्टर वर्मा की तरफ तुरन्त तान दिया जिससे मिस्टर वर्मा की हालत पतली हो गयी। 

"अबे तू और तेरा परोपकार। तू कितना परोपकारी है वो यहाँ खड़ा हर इंसान जानता है। संस्था के नाम पर तु इन नन्हे मुंह बच्चों के साथ क्या करता है हम लोग नहीं जानते क्या? बस बता पैसे कहाँ है।"- रघु ने ताव के साथ कहा। 

"ऐसे बंदूक दिखा कर मुझे मत डरा।"- मिस्टर वर्मा ने तुरन्त अपना रंग बदल लिया- "शायद तुमको पता नहीं पर बंदूक मेरे पास भी है। आदमी मेरे पास भी है। वे क्या कर सकते हैं शायद इस बात का अंदाज़ा तुम्हें नहीं है।" 

"अबे तेरे आदमियों की ताकत कितनी है वो तुम खुद जाकर हमारे अपार्टमेंट में देख लेना। अभी सिर्फ इतना बता की वे पैसे कहाँ है वरना हम यही सवाल तेरी लाश से पूछेंगे।"- रघु ने फिर जोर देते हुए कहा। 

"एक मिनट बॉस। शायद ऐसे यह कुछ नहीं बताएगा। आप मुझे बात करने दीजिए।"- नितिन ने कहा। इतना सुनते ही रघु शांत हो गया। फिर नितिन ने वर्मा के पास एक प्रस्ताव रखा। 

"तुम जिस संस्था के लिए काम कर रहे हो तुम उनके नियम कानून से तो वाकिफ होंगे।"- नितिन ने वर्मा से पूछा। जिसे सुनकर वर्मा हँस पड़ा। 

"हुँह। यह बात मुझे इस संस्था का एक मामूली कर्मचारी बता रहा है।"- मिस्टर वर्मा ने मुँह फेरते हुए कहा।

"तो अगर तुम्हें याद है कि इस संस्था, यह नवजीवन नहीं, इसकी मूल संस्था का एक कानून है कि वो अपने ग्राहक और पार्टनर को कभी निराश नहीं करती। और हमेशा उसके पैसे का ख्याल रखती है।"- नितिन ने कहा। 

"तुम कहना क्या चाहते हो?"- मिस्टर वर्मा ने कहा। 

जिसके जवाब में नितिन ने उसे एज बेहद ही पुरानी सील दिखाई जिसका इस्तेमाल ट्रांजेक्शन के लिए किया जाता था। उसने आगे कहा- "यह आदमी जो इस वक़्त तुंम्हारे खड़ा है, 'मेल्विन' इसके पापा इस संस्था के पुराने पार्टनर रह चुके हैं। यह रहा उसका सबूत। और उस पार्टनर की हैसियत से हम अपने पुराने पैसे वापिस लेना चाहते हैं।"- नितिन ने कहा। 

इतना सुनते ही वह वर्मा सोच में पड़ गया। उसने आगे कहा-  

"तुम्हारी बात बिल्कुल सही है। लेकिन अगर तुम्हें नियम याद हो तो उसी नियम के अनुसार अगर कोई बहुत पुराना पार्टनर अपनी डील को दुबारा जारी रखना है तो उसे बोहनी के नाम पर हमसे कुछ खरीददारी करनी होती है। तुम्हें हमसे कुछ खरीदना होगा। बोलो, तुम्हें मंजूर है?"- वर्मा ने आगे पूछा। 

जिसे सुनते ही नितिन रघु की तरफ देखा। रघु ने भी तुरन्त जवाब दिया। 

"हमें मंजूर है।" 

रघु जानता था कि वो किसकी खरीददारी की बात कर रहा था पर उसे सिर्फ बड़ा फायदा ही दिख रहा था और उसके आगे उसे सारी चीज़ बेबुनियाद लग रही थी। इसलिए उसने डील मान ली थी।

यह सुनते ही मिस्टर वर्मा ने मिस्टर डिकोस्टा को फोन लगाया- 

"बॉस। हमें हमारा ग्राहक मिल गया। माल रेडी रखो।"  

मिस्टर डिकोस्टा ने इतना सुनते ही अपने आदमियों को 'मी' को मारने का आदेश दे दिया। 

 

अब क्या होगा आगे? वो मेल्विन जो अब तक 'मी' को बचाने  निकल रहा था अब वो खुद ही उसका भक्षक बनने जा रहा था। क्या मेल्विन अभी भी कुछ कर पाएगा? क्या वो 'मी' को बचा पाएगा? जानने के लिए पढिए कहानी का अगला भाग। 

Continue to next

No reviews available for this chapter.