डॉ. राहुल का बेजान शरीर 'नवजीवन' के पिछले अँधेरे कमरे में पड़ा था, उसके लालच का अंतिम हिसाब। 'नवजीवन' के तस्कर, राहत की साँस लेकर अपने धंधे को फिर से 'सुरक्षित' मान चुके थे। उन्हें लगा कि राहुल का खेल खत्म होने से उनका राज़ दफन हो गया है। लेकिन उन्हें क्या पता था कि एक कहानी के कई पहलु होते हैं। जीवन में एक सिरे के ख़त्म हो जाने के बाद भी ऐसा ज़रूरी नहीं होता कि उससे जुडी सभी बातें भी वैसे ही दफन हो जाएँ…. उनका अगला निशाना, मेल्विन, अब किसी और के संरक्षण में आ चुका था, और यह टकराव उनके लिए कहीं ज़्यादा घातक साबित होने वाला था, जिसकी उन्हें ज़रा भी उम्मीद नहीं थी।
मेल्विन अपने पॉश अपार्टमेंट के लिविंग रूम में बैठा था, जहाँ शहर की जगमगाती रोशनी खिड़की से अंदर आ रही थी। राहुल के आखिरी फोन कॉल का इंतजार करते हुए, वह एक महंगी व्हिस्की का घूँट ले रहा था। राहुल का काम हो चुका था, अब जल्द ही उसे डेटा मिपने थे, अब वो बड़ी डील करीब थी। तभी, उसके एन्क्रिप्टेड फोन पर एक अजीबोगरीब मैसेज आया: "डॉक्टर राहुल का खेल खत्म हो चुका है मेल्विन। अब अगला निशाना तू है।" मेल्विन के माथे पर पसीना आ गया। राहुल का 'खेल खत्म' होने का मतलब था कि 'अजीवन' के उन लोगों को उसके और डेटा के बारे में पता चल गया था। उसने राहुल को परदे के पीछे रखने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन लगता है राहुल ने कहीं कोई गलती कर दी थी। मेल्विन जानता था कि 'नवजीवन' के वे लोग कितने खतरनाक हो सकते हैं, खासकर जब उनके राज़ खुलने का खतरा हो।
उसने तुरंत अपने सारे डिजिटल निशान मिटाने शुरू कर दिए। लैपटॉप से फाइल्स डिलीट कीं, क्लाउड स्टोरेज खाली किया, और अपने सभी सुरक्षित ठिकानों के लिए तैयारी शुरू कर दी। मेल्विन को पता था कि अब उसे छिपना होगा। वह जानता था कि 'नवजीवन' के लोग उसे ढूँढ निकालेंगे, और वे दया नहीं करेंगे। उसकी रातों की नींद उड़ गई। हर परछाई में उसे दुश्मन दिख रहा था। वह जानता था कि वे लोग किसी भी वक़्त उसे मारने आ सकते हैं इसलिए वह सतर्कता में कोई कमी नहीं छोड़ सकता था।
अगले कुछ दिन मेल्विन के लिए किसी भयानक सपने से कम नहीं थे। वह अपने ही अपार्टमेंट में छिपा रहा, जहाँ उसे लगा कि वह सबसे सुरक्षित है। उसने अपनी पहचान बदलने की भी योजना बना ली थी। रात के गहरे सन्नाटे में, जब वह अपनी अगली चाल के बारे में सोच रहा था, तभी उसके दरवाज़े पर ज़ोरदार दस्तक हुई। मेल्विन की साँसें अटक गईं। उसने सोचा, "यही वो 'नवजीवन' के लोग हैं!" उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
इससे पहले कि वह कुछ कर पाता, एक जोरदार आवाज़ गूंजी। दरवाज़ा टूट गया, और अँधेरे में कुछ परछाइयाँ अंदर घुसने लगीं। मेल्विन अपने सोफे के पीछे दुबक गया, उसकी आँखें दहशत से फैली हुई थीं। 'अजीवन' के बंदूकधारी अँधेरे में ही अंदर घुस आए थे, यह सोचकर कि वे उसे अकेला और बेखबर पाएंगे, ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने राहुल को घेरा था। वे कमरे में फैले, टॉर्च की रोशनी से मेल्विन को ढूँढने लगे। "मेल्विन! बाहर आ! तुम्हारा खेल खत्म हो गया है!" एक भारी आवाज़ गूँजी। उनलोगों के थोड़े से छानबीन के बाद ही उन्हें मेलविन मिल गया जो किसी सोफे के पीछे छिपा था पर अफसोस इस बात की खबर मेलविन को अभी तक नहीं थी। उन्होंने मेलविन की तरफ अपना बंदूक तान दिया। लेकिन इससे पहले कि 'नवजीवन' के लोग मेल्विन पर निशाना साध पाते, अपार्टमेंट के दूसरे छोर से, जहाँ मेल्विन के सहयोगी रघु के आदमी अंधेरे में छिपे हुए थे (जिनके बारे में 'अजीवन' वालों को कोई जानकारी नहीं थी), उन्होंने उसी आदमी पर गोली चला दी, गोलियों की पहली बौछार शुरू हुई। 'नवजीवन' के लोग सकते में आ गए। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि यहाँ कोई और भी होगा।
"क्या... क्या हुआ?" एक आदमी चीखा, जब उसका साथी बगल में गिरा।
एक भयावह शूटआउट शुरू हो गया। गोलियों की आवाज़ें, काँच टूटने की आवाज़ें, और आदमियों की चीखें उस अपार्टमेंट में गूँजने लगीं। 'नवजीवन' के लोग अब सिर्फ़ हमलावर नहीं थे, वे अचानक शिकार बन गए थे। रघु के आदमी, अनुभवी और क्रूर, पूरी तैयारी से हमलावरों का सामना कर रहे थे। वे अँधेरे का फायदा उठा रहे थे, और हर गोली सटीक निशाना साध रही थी। मेल्विन, अपने सोफे के पीछे दुबका हुआ, कानों को बंद करके सिर्फ़ मौत का तांडव देख रहा था। उसके सामने गोलियां चल रही थीं, लोगों के शरीर गिर रहे थे, और खून की गंध हवा में फैल रही थी। यह सब उसके पाले गए जाल का ही नतीजा था।
उसी अराजकता माहौल के बीच, मेल्विन के फोन पर एक इनकमिंग कॉल फ्लैश हुई। स्क्रीन पर नाम था: रीबेका। मेल्विन का दिमाग भ्रमित था, लेकिन इस माहौल में भी रीबेका का फोन आना उसे चौंका गया। उसे पता था कि रीबेका इस धंधे से दूर है, और वह सिर्फ़ एक रोमांटिक मुलाकात की उम्मीद में कॉल कर रही होगी। यह स्थिति इतनी विडंबनापूर्ण थी कि मेल्विन का गला सूख गया। उसने काँपते हाथों से फोन उठाया, जबकि उसके ठीक सामने गोलियों की बारिश हो रही थी।
"हलो... रीबेका?" मेल्विन की आवाज़ लड़खड़ा रही थी, उसे अपने ही आसपास की गोलीबारी की आवाज़ मुश्किल से सुनाई दे रही थी।
दूसरी तरफ से रीबेका की चुलबुली, मीठी आवाज़ आई, जिसमें ज़रा भी तनाव नहीं था। "हे, मेल्विन! क्या कर रहे हो? मैंने सोचा कि तुम्हें परेशान करूँ। तुम्हारी आवाज़ थोड़ी अजीब लग रही है... क्या तुम बिजी हो?"
मेल्विन ने एक गोली को अपने सिर के पास से गुज़रते हुए महसूस किया। एक 'नवजीवन' का आदमी उसके ठीक सामने गिरा। "मैं... मैं ठीक हूँ, रीबेका। बस थोड़ा... हाँ थोड़ा बिजी हूँ।" वह झूठ बोल रहा था, उसके चेहरे पर डर साफ झलक रहा था। “यहाँ... यहाँ कुछ काम चल रहा है।”
"काम?" रीबेका हँसी। “रात के इस समय? मुझे लगा तुम मुझे मिस कर रहे होगे। मैंने आज एक नई ड्रेस खरीदी है। सोच रही थी कि कब मिलोगे और उसे देखोगे?”
मेल्विन का दिमाग दो दुनियाओं के बीच फँस गया था। एक तरफ रीबेका की मासूमियत भरी बातें और दूसरी तरफ गोलियों और चीखों की भयानक हकीकत। "हाँ... हाँ, रीबेका। ज़रूर। बहुत जल्द। बस यह... यह काम खत्म हो जाए।" उसे लगा जैसे उसकी आवाज़ भी उसके डर के मारे काँप रही थी। रघु के आदमी अब 'नवजीवन' के अंतिम बचे हुए लोगों को घेर रहे थे।
"क्या हुआ है मेल्विन? तुम्हारी आवाज़ इतनी अजीब क्यों हो गयी है? क्या तुम... कहीं बाहर हो?" रीबेका ने सवाल किया, उसकी आवाज़ में हल्की चिंता थी, लेकिन शूटआउट के बारे में उसे कोई अंदाज़ा नहीं था।
"नहीं... नहीं, मैं घर पर हूँ," मेल्विन ने कहा, जबकि एक बंदूक की गोली सोफे के ठीक ऊपर की दीवार से टकराई।
"फिर ये आवाजें, ऐसा लग रहा मानो पटाखे फुट रहे हो।"- रेबेका ने पूछा।
"पटाखे? हां! बस... कुछ पटाखों का शोर है। तुम्हें पता ही है, की दिल्ली में कभी शांति नहीं रहती, हर वक़्त कुछ न कुछ चलता रहता है अभी तुम्हारा फोन आ ही रह की इनलोगों ने पटाखें फोड़ना शुरू कर दिया।।" उसने अपनी आवाज़ को सामान्य रखने की पूरी कोशिश की, लेकिन उसके माथे पर पसीना बह रहा था। ठीक उसी समय एक गोली उसके ठीक सर के पास से गुजरा जिसे देखकर रघु चीख पड़ा-
"अबे रोमियों। रोमान्स बाद में करना अभी पहले अपनी जान बचा।"
"अरे। यह कैसी आवाज है?"- रेबेका ने पूछा।
"आवाज?"- मेलविन ने अपना सर बचाते हुए कहा-" कैसी आवाज? ओह, अच्छा। असल में एक बच्चा अभी यहाँ गिरते गिरते बचा तो आस पास के आदमी उसे चिल्ला रहे हैं।"
"ओह अच्छा। वैसे अगर तुम अभी फ्री हो तो मेरा एक काम कर दोगे?"- रेबेका ने कहा।
"अरे कहो न कौन सा काम। तुंम्हारे लिए तो जान भी हाजिर है, बस फरमा कर देखो।"- मेल्विन ने रोमांटिक होते हुए कहा।
"क्या तुम मेरे लिए एक स्केच बना दोगे। मेरी एक बेहद खूबसूरत सी तस्वीर?"- रेबेका ने कहा।
"हाँ बना दूँगा। बस कुछ वक्त का इंतज़ार करो। जरूर बना दूँगा।"- मेल्विन ने टालते हुए कहा।
"क्या मतलब इंतज़ार करो? क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करते? मैंने कहा अभी बनाना है मतलब बनाना है। वरना मुझे कभी दोबारा फोन मत करना।"- रेबेका ने गुस्से से कहा। यह सुनकर मेल्विन भौचक्का रह गया। वहीं उसी NGO के और आदमी आ गए। गोली बारी और तीव्र हो गईं। पर मेल्विन के पास भी और कोई चारा नहीं था। उसने रघु के किसी आदमी की तरफ अपने हाथों से इशारा करते हुए कागज़ और पेन मांगा। उस आदमी को ऐसी परिस्थिति में कुछ समझ नहीं आया, उसे लगा मेलविन ने उससे बंदूक मांगा है ताकि वह भी गोलीबारी में उनकी मदद कर सके इसलिए उसने उन्हें बंदूक ही दे दिया। मेल्विन ने अपना माथा पकड़ लिया।
"क्या हुआ मेल्विन? बनाना शुरू किये?"- रेबेका ने प्यार से पूछा।
"अरे बना रहा हूँ, बस कागज़ पेन मिल जाए।"- मेल्विन ने झल्लाते हुए कहा और वह अब खुद ही कागज़ पेन ढूंढने लगा जिससे वह NGO के आदमियों के लिए आसान निशाना बना गया। अगर रघु के आदमी उसे प्रोटेक्ट न कर रहे होते तो मेल्विन के तस्वीर पर कब का हार चढ़ गया होता। मेलविन कि परेशानी अभी और ज्यादा बढ़ती पर तभी रेबेका ने कहा-
"अच्छा चलो, ठीक है। मैंने सोचा कि तुम किसी और के साथ हो इसलिए परीक्षा लेने के लिए ऐसा कहा। तुम बाद में भी बनाकर दे सकते हो। ," रेबेका ने थोड़ी निराशा से कहा।
“कोई बात नहीं। बस मुझे कॉल करना जब तुम फ्री हो जाओ। मैं तुम्हारा इंतजार करूँगी।”
कॉल कट गई। मेल्विन ने फोन को नीचे रखा। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं। 'नवजीवन' के तस्करों की चीखें अब पूरी तरह से बंद हो चुकी थीं। रघु के आदमी, अँधेरे में ही, अपना काम खत्म कर चुके थे। मेल्विन को पता था कि वह अभी सुरक्षित है, रघु ने उसे बचा लिया था। लेकिन रेबेका से यह बातचीत, मौत और रोमांस का यह भयानक मिश्रण, उसे अंदर तक हिला गया था। राहुल के साथ शुरू हुआ यह काला धंधा अब एक नए, अधिक जटिल और खूनी मोड़ पर आ चुका था, जहाँ मेल्विन एक मोहरा नहीं, बल्कि एक प्यादा बन चुका था, जिसके धागे कोई और ही खींच रहा था, और उसकी अपनी निजी जिंदगी भी अब इस अँधेरे खेल के बीच फँस चुकी थी।
"सब खत्म हो गए।" इस एक आवाज के साथ रघु के आदमी बाहर आए और उन्होंने मेल्विन को घेरते हुए बोला-
"मुझे नहीं पता था कि उस NGO के पास इतनी बड़ी सेना है। पार्टी बड़ी मालदार लगती है। अब हमें क्या करना है बॉस।"
"वो तो ये बताएगा।"- रघु ने मेल्विन की और इशारा करते हुए कहा।
"'मी'। हमें 'मी' को ढूंढना है।"- मेल्विन ने कहा।
"मी कोई मालदार पार्टी है क्या? पैसे उसके पास हैं?"- रघु ने पूछा।
"नहीं। 'मी' असल में एक बच्ची है।"- मेल्विन ने कहा।
"तब हम उसे नजरअंदाज कर सकते हैं।"- रघु ने कहा।
"नहीं। मेरी बात सुनो। 'मी' वो अहम कड़ी है जिससे हम पैसे तक पहुँच सकते हैं।"- मेल्विन ने कहा- "तुम्हें मुझे 'मी' को बचाने में मेरी मदद करनी ही होगी। वरना तुम्हें वे पैसे नहीं मिलेंगे।"- मेल्विन ने गुस्से से कहा।
इतना सुनते ही रघु ने अपनी बंदूक मेल्विन पर तान दी-
"जरा जुबान सम्भाल कर बात करो। मत भूल की इस वक़्त बंदूक किसके हाथ में है। हम यहाँ तेरे को हीरो बनाने नहीं आए हैं। अपने पैसे लेने आए हैं और इसलिए अब हम तेरे हिसाब से नहीं, तू हमारे हिसाब से काम करेगा। हम जैसा कहते हैं तो वैसा कर, वरना अगर हमें तू उतना जरूरी नहीं लगा तो सबसे पहले हम ही तेरे भेजे में अपनी गोली घुसा देंगे। तो समझा न?"- रघु ने दम भरते हुए कहा।
मेलविन के पास इस बार कोई चारा नहीं था। वह अब कुछ नहीं कर सकता था। शायद इस काम को पूरा करने के लिए 'मी' की बलि चढ़नी ही थी। मेलविन ने भी ऐसा मन में मान लिया था।
"अब हमें किसके पास जाना है।"- रघु ने अपने उसी खास आदमी से पूछा जिसने अपना जासूस तैनात किया हुआ था।
"बॉस। वो यहीं रहता है। यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है। पैसों की खबर उसको चल चुकी है। अगर अभी चले तो उससे मिल भी ले।"- उसने कहा।
"तो अभी हम उससे मिलने चलेंगे। तू हमारे साथ चल रहा है?"- रघु ने पूछा।
"हां।"-मेल्विन ने भी दुखी मन से कहा। शायद उसके पास अब उनकी बात मानने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं था।
अब आगे क्या होगा? क्या 'मी' बच पाएगी? या उसकी भी बलि चढ़ जाएगी। आखिर मेल्विन रघु को उसको बचाने के लिए कैसे कन्विन्स कर पाएगा। आखिर कौन था वो खुफिया जासूस जो छिप छिप कर उनपर नजर गड़ाए हुए था।
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