कक्षा सात में मैंने एक मुहावरा पढ़ा था, अक्ल पर पत्थर पड़ना, जिसका मतलब है बुद्धि भ्रष्ट होना और अपने ही ऑफिस के इन लोगों की बातों को सुनकर मुझे लगने लगा कि ये सभी एक दूसरे की अक्ल पर पत्थर क्यों फेंक रहे हैं? 

मतलब मेरी फिक्र किसी को नहीं समझ आता है, लेकिन क्या कंपनी के भविष्य की भी किसी को चिंता नहीं? खुद अतुल सिंघानिया भी जैसे-तैसे कंपनी किसी को भी संभालने को देकर चलते बने। जैसे कंपनी न हो गई सोन पापड़ी का डब्बा हो गया, कि किसी को तो देना ही पड़ेगा। 

ऑफिस के एक कोने में इस उधेड़-बुन में खड़ा… मैं यह खबर पकाने की कोशिश कर रहा था कि क्या वाकई अब मैं इस कंपनी का सीईओ हुआ करूंगा कि तभी मुझे याद आया कि पैंट्री में जूठे बर्तन धुलने को पड़े हैं।
तभी मुझे रमेश अय्यर दिखा, मुझे लगा फंसाद की जड़ तो यही है… क्योंकि यही वह बंदा है जिसने सबको वह मेल भेजा था। मैं भागकर उसके पास पहुंचा और कहा कि रमेश सर, एक बार फिर से चेक कर लीजिए, उस बुड्ढे के पैर कब्र में लटके हैं, पक्का उससे कोई गलती हुई है वरना नए सीईओ के लिए… मेरा नाम कोई क्यों भेजेगा। लेकिन रमेश अय्यर ने मुझे दिखाया कि अतुल सिंघानिया ने आज सुबह ही रमेश को ईमेल कर के रवि सिंह यानी मेरा ही नाम सीईओ के लिए भेजा है। ऑफिस आईडी पर जो नंबर है वो भी मेरा ही था। इससे यह तो क्लियर हो गया कि भाई अब इस कंपनी में… अपनीच भगवान है। हालांकि अभी-अभी आया हुआ यह मेल मेरे लिए परेशानी का कारण हो सकता था लेकिन कुछ लोगों के लिए यह एक मजाक से ज्यादा कुछ नहीं था। मैंने संजय राव को कहते सुना।

संजय राव: तो अब हमारे ऑर्डर्स बॉस के केबिन से नहीं, बल्कि पैंट्री एरिया से आया करेंगे। (हंसते हुए)

 यह सुनकर मैंने मन ही मन बुड्ढे को भर भर के कोसना शुरू कर दिया। हालांकि मैं समझता रहा कि यह बस एक क्लरिकल एरर से ज्यादा कुछ नहीं है। और आज नहीं तो कल इस गलती को सुधार लिया जाएगा। और कंपनी को उसका एलिजिबल सीईओ ज़रूर मिलेगा।

 

लेकिन फिर मेरे लिए जो बातें मैं सुन रहा था, उसके बाद मैंने यह भी सोचा कि आखिर क्या सच में बुड्ढा पूरा सठिया गया था क्या, जो उसने इतना बड़ा डिसीजन अकेले ले लिया।अरे कम से कम मुझे तो बताया होता। इस बेज्जती को झेलने से तो अच्छा मुझे कंपनी से धक्के मारकर निकाल दिया होता। अपनी बिरादरी में भी आज तक इतनी फजीहत नहीं हुई। जितना ऑफिस का सीईओ बनकर हो रही थी। तभी इतने में खबर आई कि अतुल सिंघानिया को अपनी गाड़ी में घर जाते हुए हार्ट अटैक आया है। मुझे लगा इतनी काली जुबान है क्या मेरी! उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया है। मिसेज शालिनी कपूर समेत ऑफिस के सभी लोग देखने अस्पताल पहुंचे। शालिनी कपूर ने मुझे भी साथ चलने को कहा था, तो मैं भी वहां पहुंचा। 

अतुल सिंघानिया अभी भी क्रिटिकल थे। सब उनके लिए परेशान थे, तभी डॉक्टर ने आकर बताया कि उनकी हालत ठीक नहीं है, वो कभी भी अल्लाह को प्यारे हो सकते हैं। साथ ही डॉक्टर ने पूछा (नैरेटर की आवाज में) वैसे आप में से रवि कौन है?


मैंने बोला "मैं हूं डॉक्टर साहब, क्या हुआ" डॉक्टर ने मुझे ऊपर से लेकर नीचे तक स्कैन किया। और पूछा (नैरेटर की आवाज में) आप!? आप मिस्टर सिंघानिया के क्या लगते हैं?

 

 मैं कुछ बोलता उससे पहले ही मिसेज शालिनी कपूर बोल पड़ी।

 

शालिनी कपूर: आ... एक्चुअली, हे'स द न्यू सीईओ ऑफ ऑवर कंपनी। जिसे अब तक मिस्टर अतुल सिंघानिया संभालते थे। मिस्टर सिंघानिया ने आज ही रवि को कंपनी का नया सीईओ अपॉइंट किया है।

 

यह सुनने के बाद तो डॉक्टर ने मेरा सीटी स्कैन, एमआरआई, एंडोस्कोपी सब अपनी आंखों से ही कर दिया। लेकिन फिर मुंह सिकोड़ते हुए मुझसे बोला।

 

लकी यू हाँ, मिस्टर सिंघानिया अपने आखिरी पलों में भी आपका नाम ही ले रहे हैं।

 

मैंने सोचा यह बुड्ढा मरते समय भी मेरा ही नाम ले रहा है, कहीं इसकी वसीयत में भी मेरा ही नाम तो नहीं! इसके वकील से पता करना पड़ेगा। हम सबने शीशे के पार आईसीयू बेड पर लेटे सिंघानिया साहब को देखा। अंदर से सिंघानिया साहब भी बड़ी-बड़ी आँखों से सबको देखने की कोशिश करने लगे, लेकिन जैसे ही उनकी नज़र मुझ पर पड़ी, उनकी हार्ट बीट तेज हो गई। आईसीयू में सारी मशीन एक साथ बजने लगी। ऐसा लगा कि आईसीयू के सारे उपकरण सिंघानिया साहब के साथ मिलकर मुझसे चीख-चीखकर कह रहे हो…. आई सी यू!


ऑक्सीजन मास्क हटाने की कोशिश करते हुए सिंघानिया साहब ने अपनी उंगली से मेरी तरफ इशारा किया। वो कुछ कहना चाहते थे। मुझसे इतना प्यार वो भी एक ही दिन में, मेरी तो आंखों में आंसू ही आ गए भाई। (नकली रोने की आवाज)

 

तभी उधर से मिसेज शालिनी कपूर ने कहा

 

 शालिनी कपूर: मुझे लगता है कि सिंघानिया साहब अलविदा कहने से पहले ज़रूर अपने नए सीईओ से मिलना चाहते हैं।

 

 संजय राव, अनीता वर्मा और रमेश अय्यर के साथ-साथ ऑफिस के कई बड़े लोग वहां मौजूद थे। मुझे लगा कि इनमें से कोई तो सिंघानिया को डिकोड करेगा। आखिर क्यों मिस्टर सिंघानिया अपनी उंगली से मेरी तरफ इशारा कर रहे थे। लेकिन नहीं, कोई कुछ समझ पाता उससे पहले ही सिंघानिया साहब गुजर भी गए।

 

ऑफिस के कई लोग दुखी थे, लेकिन मैं कुछ ज्यादा ही दुखी था। आज का पूरा दिन जिस तरह बीता, मैं बार-बार खुद से कह रहा था कि बेटा रवि भाग ले यहां से, वरना कहीं जाने लायक नहीं बचेगा। फिर सोचा कि मेरे जाने के बाद इन ससुरों को कहीं ऐसा न लगे कि सिंघानिया की मौत का जिम्मेदार भी मैं ही हूं। एक तो पहले ही बुड्ढा अपने आखिरी मोमेंट में, सिर्फ मुझे ही उंगली करके गया है। क्या पता मेरे न होने पर ये लोग और क्या-क्या कहानियां बनाने लगें।

 तभी मेरी नजर सीएफओ संजय राव पर पड़ी। उसने मेरे पास आकर कहा

 

Sanjay Rao (Taunting):: So now, the one who used to go around serving coffee to everyone at their desks, who will he ask to bring coffee for himself?” 

 

 मुझे लगा कॉफी मांग रहा है तो मैंने भी कह दिया "सर, अभी-अभी सिंघानिया साहब की डेथ हुई है, और आपको कॉफी की पड़ी है।" यह कहकर मैं वहां से चल दिया।

 

अतुल सिंघानिया के गुजर जाने के बाद ऑफिस में एक दिन की छुट्टी दी गई। इसके बाद जिस दिन ऑफिस खुलना था, उस दिन की सुबह मेरी आंख गाड़ी के जोरदार हॉर्न से खुली। तब ही मेरी बीवी ने आकर मुझसे गुस्सा करते हुए कहा 

 

Suman (चिल्लाते हुए): एक तो घर के बाहर ठीक से खड़े होने की जगह नहीं है, ऊपर से किसी ने उतने में भी एक लंबी सी गाड़ी लाकर घर के दरवाजे पर लगा दी है। जाओ हटाओ उसे।

 

मैंने बाहर जाकर गाड़ी देखी तो तुरंत ही पहचान गया कि यह तो वही गाड़ी है जिससे सिंघानिया साहब ऑफिस आते थे। मैं भी आदत से मजबूर... संडो बनियान पहने पहने ही कूदते हुए सीधा पहुंचा गाड़ी के पास और गाड़ी के पीछले गेट को खोलकर सलाम बजा दिया।

 

आएं!! यह क्या ! गाड़ी में तो कोई भी नहीं है... कि तब ही ड्राइविंग सीट पर बैठे ड्राइवर हैप्पी पाजी ने गाड़ी से बाहर निकलते हुए कहा, "अरे सर जी तुस्सी दरवाजा क्यों खोलते हो। त्वाड़े वास्ते ही तो मैं अइथे आया हूं। मैं खोलूंगा दरवाजा। अस्सी आज से सिंघानिया साहब के नई, त्वाड़े ड्राइवर हांगे।"

मैंने कहा अबे हैप्पी पागल हो गया है क्या, मेरे लिए गाड़ी का दरवाजा... एक मिनट क्या कहा तूने? तू मेरे लिए गाड़ी का दरवाजा खोलने उतरेगा!? इसके बाद हैप्पी ने मुझे बताया कि वो मुझे ही लेने आया है, आज ऑफिस का पहला दिन जो है। उसे स्पेशल ऑर्डर्स हैं कि आज से वो मेरे लिए ड्राइव करेगा और साहब को यानी मुझे जहां भी जाना होगा, लेकर जाएगा।

 

मैंने हैप्पी को देखा, फिर हैप्पी के सामने खड़ी उस लंबी सी लक्जरी कार को देखा, फिर उस कार के शीशे में संडो बनियान पहने हुए खुद को देखा और सोचा कि हे प्रभु हे हरिराम जग्गनाथम यह कैसे हुआ। मैं आज इस महंगी गाड़ी में ऑफिस जाऊंगा। मोहल्ले वाले भी ये सब देखकर हैरान थे। लेकिन मैं और हैप्पी दोनों बहुत खुश थे। इतने खुश कि कोई आज मुझसे कोई दोनों किडनी भी मांग लेता, तो हंसते हंसते दे देता।

मैंने तैयार होने के लिए अपनी शादी का सूट प्रेस कराया और नज़र से बचने के लिए बीवी ने काला तीका लगाया। इस तरह मैं तैयार था अपनी ज़िंदगी के एक... नए सफर के लिए... सUFFER वाला सफर!

 

मुझे मर्सिडीज़ में ऑफिस जाते देख मेरी बीवी के चेहरे पर बड़ी सी स्माइल और मम्मी की आंखों में आंसू थे। पूरा मोहल्ला मुझे टाटा बाय-बाय कर रहा था। गली के बच्चे नुक्कड़ तक तो गाड़ी के अंदर और ऊपर बैठकर मुझे छोड़ने आए... फिर मैंने भी खिड़की से अपना आधा शरीर बाहर निकालकर उन्हें तब तक टाटा किया जब तक वो दिखना बंद नहीं हो गए।

इसके बाद मैं गाड़ी में ठीक से बैठा और हैप्पी ने एसी बढ़ा दिया। तब ही मेरे टूटे हुए मोबाइल स्क्रीन पर एक अनजान नंबर से कॉल आया। नंबर भी अजीब था। यह फोन अतुल सिंघानिया के बेटे का था। उसने मुझे बताया कि उसका नाम भी रवि है !! रवि सिंघानिया !
 

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