“रहीमन धागा प्रेम का, मत तोड़िए चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥”

रहीम के अनेक दोहों में से, अश्विन ने बचपन में यह दोहा भी पढ़ा और सुना था। मगर आज, वह इसका असली मतलब समझ पाया।

रात के समय, अश्विन, नम आँखों से अपने बाबा को ज़िंदगी और मौत के बीच झूलते हुए देख रहा था। उनकी हालत वैसी नहीं थी, जैसी पिछली बार जब अश्विन उन्हें छोड़कर गया था। इस बार, उनकी हालत और भी ज़्यादा खराब हो चुकी थी। अश्विन ने उनके पैरों पर अपना सिर रखा और उन्हें थामकर, सिसकते हुए बोला,

अश्विन (सिसकते हुए): "मला माफ कर दो बाबा, मला माफ कर दो।"

उस कमरे में अश्विन अकेला नहीं था। वहाँ उसकी आई भी मौजूद थीं। लेकिन, उन्हें अब अश्विन के वहाँ होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। वह तो बस एक कुर्सी पर बैठकर, अपने बेहोश पति का हाथ थामे, उन्हें थकी हुई नज़रों से निहार रही थीं।

जैसे ही उन्होंने अश्विन को अपने बाबा के पैर छूते और उनके पैरों पर सिर रखते देखा, तो वे अपनी जगह से उठीं। वह अश्विन का सिर और हाथ झटकते हुए अपने पति के शरीर से हटाने लगीं।

जब अश्विन ने अपनी आई को ऐसा करते देखा, तो वह उनके पैर छूने के लिए नीचे झुका। लेकिन,उसकी आई ने अपने कदम उससे दूर कर लिए। उनका ऐसा बर्ताव देख, अश्विन के चेहरे पर हैरानी छा गई। उसने उदास लहजे में अपनी आई की ओर देखते हुए कहा,

अश्विन (उदासी से): "अब तब तक नहीं आऊँगा, जब तक तुम मुझे नहीं बुलाती, आई।"

वह नम आँखों से अपनी आई की ओर देखता रहा। लेकिन, उन्होंने ने उसकी ओर पीठ कर ली थी। उन दोनों माँ-बेटे के बीच, कुछ ऐसा हुआ था, जिसकी वजह से उनके रिश्ते में दरारें और भी गहरी होती जा रही थीं।

अश्विन जब डाबोलिम एयरपोर्ट जा रहा था, तब उसकी आई ने उसे फोन किया था, जिससे वह काफ़ी परेशान हो गया था। जैसे ही वह एयरपोर्ट पहुँचा, उसके चेहरे पर दुख और चिंता साफ़ झलक रही थी। उसे अपने बाबा की हालत की चिंता थी, और साथ ही उसकी आई की भी, जो उसके दिल-ओ-दिमाग़ पर हावी हो रही थी।

सारे रास्ते, अश्विन यही सोचता रहा कि बाबा तो कोमा में चले गए हैं, लेकिन उनकी हालत देखकर उसकी आई के दिल पर क्या बीत रही होगी? साथ ही, वह यह भी सोच रहा था कि वह कई दिनों बाद अपनी आई से मिलने वाला है। इस ख़याल से उसे काफ़ी उत्साहित होना चाहिए था, लेकिन हालात वैसे नहीं थे।

उसने सोचा था कि जब वह अपनी आई से मिलेगा, तो पिछली बार उनके बीच हुई कहा-सुनी और हाल ही के दिनों में जो मन-मुटाव चल रहे थे, उसके लिए वह उनसे माफ़ी माँगेगा। उसने कल्पना की थी कि जब वह उनकी माफ़ी माँगेगा, तो उनकी आंखों में ममता छलक आएगी, और वह उसे अपने सीने से लगा लेंगी, उसे माफ़ कर देंगी।

अश्विन ने सोचा था कि वह उनकी गोद में सिर रखकर उनसे बहुत सारी बातें करेगा, उनका मन बहलाएगा, ताकि कुछ समय के लिए ही सही, उनका ध्यान बाबा की तबियत से जुड़ी चिंता और दुख से हट जाए। उसने यह भी सोचा था कि वह अपनी कामयाबी के बारे में उनसे बातें करेगा और उन्हें प्राउड फ़ील कराएगा।

इन्हीं उम्मीदों और ख़यालों के साथ, उसने गोवा के Dabolim एयरपोर्ट से मुंबई की फ़्लाइट ली थी।

शाम को, जैसे ही अश्विन मुंबई पहुँचा, वह सीधे एयरपोर्ट से अस्पताल चला गया। वहाँ पहुँचते ही उसने डॉक्टर से मुलाकात की और अपने बाबा की तबियत के बारे में जानकारी हासिल की। इसके बाद, जब वह इमरजेंसी वार्ड के पास पहुँचा, तो वार्ड के बाहर अपनी आई को खड़ा देख उसकी जान में जान आई। उसने अपनी आई से बात करने की कोशिश की, मगर वह शायद सदमे में थीं।

जैसे-जैसे रात होने लगी, अश्विन ने अपनी आई को समझाने की कोशिश की कि वह घर चली जाएँ, लेकिन उनकी ज़िद थी कि वह तब तक वहाँ से नहीं जाएँगी, जब तक उसके बाबा को होश नहीं आ जाता। मजबूर होकर, अश्विन ने अस्पताल में एक प्राइवेट रूम बुक करवाया और अपने बाबा को उसमें शिफ्ट करवा दिया। वह प्राइवेट रूम इसलिए चुना गया था क्योंकि उसमें एक आरामदायक सोफा-कम-बेड भी था, जिससे उसकी आई वहाँ आराम से रह सकें।

हालांकि, अस्पताल के नियमों के अनुसार, उस कमरे में मरीज़ और एक विज़िटर के अलावा किसी और को रुकने की अनुमति नहीं थी। इसलिए अश्विन भी वहाँ रुककर कुछ नहीं कर सकता था। उसने अपनी आई को वहीं छोड़ दिया और खुद अपने मुंबई वाले घर चला गया।

अगली सुबह जब अश्विन फिर से अस्पताल पहुँचा और अपने बाबा के कमरे में गया, तो उसने देखा कि उस वक़्त वहाँ उसकी आई नहीं थीं। कमरे में सिर्फ़ उसके बाबा थे, जो अब एक ज़िंदा लाश की तरह नज़र आ रहे थे। उनकी बची-कुची ज़िंदगी सिर्फ़ मशीनों की आवाज़ और उनकी मदद से चल रही थी।

अश्विन इस बात से काफ़ी हैरान था कि आख़िर उसकी आई गई कहाँ थीं। उसने कमरे में आने-जाने वाले एक-दो नर्सों से जब अपनी आई के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि वह सुबह-सुबह बिना कुछ बताए ही न जाने कहाँ चली गई थीं। जब उसने इस बारे में और जानकारी कि तब उसे पता चला कि पिछली बार भी, जब अश्विन उन्हें अस्पताल में छोड़कर गया था, तब भी उन्होंने ऐसा ही किया था। वह अक्सर सुबह-सुबह कहीं चली जाती थीं और फिर शाम को ही अस्पताल लौटती थीं।

ख़ैर, पहले तो अश्विन को लगा कि उसकी आई शायद मंदिर गई होंगी। लेकिन जब उसे यह बात पता चली कि वह सुबह से ही गायब हैं और शाम को ही लौटेंगी, तो उसे उनकी चिंता सताने लगी। उसने तुरंत ही अपनी आई को कॉल किया, मगर उन्होंने उसका फोन नहीं उठाया।

अश्विन ने गहरी साँस ली और सोफ़े पर बैठकर, अपने बाबा को देखते हुए, अपनी आई के लौटने का इंतज़ार करने लगा। धीरे-धीरे मिनट घंटों में बदल गए। सुबह से शाम हो गई, मगर उनकी कोई ख़बर नहीं थी। अश्विन की चिंता अब डर में बदलने लगी थी।

तभी, अचानक कमरे का दरवाज़ा खुला। उसने अपनी आई को अंदर आते देखा, और उसकी जान में जान आ गई। वह अपनी आई की तरफ़ ऐसे भागा, जैसे कोई छोटा बच्चा अपनी माँ को घंटों बाद देखकर उसके पास दौड़ता हो। उसने तुरंत चिंता जताते हुए पूछा,
अश्विन: (चिंतित स्वर में) - "आई, कहाँ चली गई थीं आप? मुझे आपकी कितनी फ़िक्र हो रही थी। मैं सुबह से यहाँ बैठकर आपका इंतज़ार कर रहा था। ऊपर से आप मेरा फोन भी नहीं उठातीं!"

मगर, उसकी बातों और सवालों से उसकी आई को कोई मतलब नहीं था। वह कमरे में ऐसे खड़ी थीं, जैसे वहाँ उनके और उनके पति के अलावा कोई और मौजूद ही न हो। उन्होंने अश्विन को देखकर भी अनदेखा कर दिया और उसकी बातों को पूरी तरह अनसुना कर दिया।

अश्विन ने फिर से उनसे बात करने की कोशिश करते हुए कहा,
अश्विन: "आई, मैं तुमसे कुछ पूछ रहा हूँ, मुझसे कुछ तो बोलो।"

यह कहते हुए अश्विन ने अपनी शर्ट की जेब से एक लिफ़ाफ़ा निकालकर अपनी आई की तरफ़ बढ़ाया और कहा,

अश्विन: "ये खर्चे के लिए कुछ रुपए हैं, माँ।"

उसकी आई बस कुर्सी पर बैठीं और अपने पति का हाथ थामे, उन्हें देखते हुए, अश्विन को बिना देखे ही कड़क अंदाज़ में बोलीं, (कठोरता से) - "तेरे लिए अब यहाँ रखा ही क्या है? क्यों आया है तू यहाँ? ये देखने के लिए कि तेरे आई-बाबा ज़िंदा भी हैं या मर गए? तू समझ ले, आज से वो तेरे लिए मर गए। तेरा बोझ हल्का हुआ। हम दोनों तेरे लिए बोझ ही तो हैं, न?"- "दूर हो जा मेरी नज़रों से, और चला जा यहाँ से। चला जा। और हाँ, मुझे तेरे रुपए की ज़रूरत नहीं। मेरे पति ने हम दोनों के लिए अपनी मेहनत से बहुत कुछ जमा किया है।"

उसकी माँ ने इतना कहती ही एक गहरी साँस ली। उनके मन की भड़ास अब बाहर निकल चुकी थी। लेकिन, अश्विन को अपनी आई की बातों पर विश्वास ही नहीं हुआ। उसे अब उनकी ममता की जगह नफ़रत दिखने लगी थी। वह पूरी तरह बौखला गया था।

इससे पहले कि वह कुछ कहता, उसकी आई ने फिर कहा, (गुस्से में) - "मुझे दुख इस बात का है कि मैंने तुझे जन्म दिया, तेरे लिए प्रार्थनाएँ करती रही। और अब ऐसा लगने लगा है कि मैं तुझे जानती ही नहीं। शायद तू मेरा वो बेटा नहीं रहा।"

इस बात ने अश्विन को न केवल ठेस पहुँचाई, बल्कि पूरी तरह से उसे झकझोर कर रख दिया। उसके मन, दिल और आत्मा को जैसे छन्नी-छन्नी कर दिया गया हो।

अश्विन कमरे के बाहर निकला, और दरवाज़े पर खड़े रहकर, नज़रें भरकर, एक आख़िरी बार अपने बाबा को देखने लगा। मगर तभी, उसकी आई उसके और उसके बाबा के बीच आ गईं, और उन्होंने कमरे का दरवाज़ा धीरे से बंद कर दिया। दरवाज़े की धीमी आवाज़ भी अश्विन को इतनी तेज़ लगी, मानो किसी ने उसे अंदर तक झकझोर दिया हो। उस वक्त अश्विन को ऐसा महसूस हुआ, जैसे किसी ने उसे 440 वोल्ट का झटका दे दिया हो।

वह दरवाज़े के पास ही खड़ा रहा, अपने शर्ट से अपनी आँखों के कोनों से बहते आँसुओं को पोंछता रहा। उसने अपने चेहरे को हाथों से साफ़ किया और वहाँ से जाने के लिए मुड़ा।

जैसे ही वह आगे बढ़ा, उसकी आई ने फिर से दरवाज़ा खोल दिया। दरवाज़े की आवाज़ सुनकर अश्विन के सीने में कसक उठी, मगर उसने पीछे मुड़कर अपनी आई को नहीं देखा।

अश्विन कैब में बैठा हुआ एयरपोर्ट जा रहा था, क्योंकि मुंबई में रुककर वह करता भी क्या? उसकी आँखें लाल थीं। उसके मन, दिल और दिमाग़ में उसकी आई की कही बातें गूँज रही थीं। तभी अचानक, ड्राइवर ने रेडियो ऑन किया। रेडियो पर एक ऐसा गाना बजने लगा, जिसके बोल सुनते ही अश्विन की आँखों से आँसू बहने लगे। आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। उसने अपने हाथ को मुँह पर रख लिया और बिना कोई आवाज़ किए रोता रहा।

गाने के बोल कुछ थे:

“भेजना, इतना दूर मुझको तू,
कि याद भी तुझको आ न पाऊँ माँ।”

"हमारे साथ उड़ान भरने के लिए धन्यवाद। दिल्ली में आपका स्वागत है। जिन यात्रियों की कनेक्टिंग फ्लाइट्स हैं, वो कृपया जानकारी के लिए स्क्रीन को देखें, या हमारे ग्राउंड स्टाफ से सहायता लें।"

रात के समय, जैसे ही अश्विन दिल्ली पहुँचा, उसके फोन में एक मैसेज आया। मैसेज पढ़ते ही तुरंत एक कॉल आई। उसने फोन उठाया, और कॉल सुनते ही उसके चेहरे पर तनाव की लकीरें उभर आईं। अब कौन था जिसने अश्विन को दोबारा परेशान कर दिया?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

Continue to next

No reviews available for this chapter.