कभी घुड़सवारी की है... घुड़सवारी... नहीं? चलो एक टिप देता हूं। कभी न चाहते हुए भी घोड़े पर बैठना पड़े तो उसकी लगाम संभाल लेना। घोड़ा खुद ब खुद काबू में आने लगता है। ऐसे ही मैं न चाहते हुए भी इन घोड़ों पर सवार हो ही चुका था तो मैं भी इनकी लगाम पकड़ने की कोशिश करने लगा ताकि अगर ये किसी दिन बिदक जाएं तो मुझे औंधे मुंह ज़मीन पर गिरना न पड़े..... लेकिन इनकी मीटिंग्स, डिस्कशन्स और कॉनवर्सेशन में मैं एक उबले हुए अंडे जैसा लगता था जिसे न तो इनकी बातें समझ आती थीं, न इनका तरीका और न ही इनका कोई जोक। पी.एस. अगर इनके जोक का मुद्दा मैं न हूं तो। अभी कुछ दिन पहले तक जो लोग मुझसे ट्रे में चाय और कॉफी मंगवाते थे वो लोग किसी फाइल को ट्रे की तरह पकड़कर मेरे पास आते हैं।
निपुन: सर इस फाइल पर आपके साइन चाहिए।
मेरे साइन... साइन के नाम पर मैं बस अपना नाम ही लिख लेता हूं और इन्हें मेरे साइन चाहिए। (इरिटेटेड) अब मुझे कोई फैंसी सा साइन भी सोचना पड़ेगा। क्योंकि अगर नाम लिख दिया तो इन सबको एक और नया रास्ता मिल जाएगा मुझ पर ताने कसने का... अगर संजय को ये मालूम पड़ गया तो मेरा जीना हराम कर देगा। पता नहीं रोज़ सुबह-सुबह अपनी बीवी से किस बात पर लड़कर आता है जिसका बदला ये मुझसे लेता है।
रवि: रख दो, बाद में करता हूं।
निपुन: क्या हुआ सर? परेशान लग रहे हो।
रवि: नहीं, कुछ नहीं। बस ऐसे ही।
निपुन: सर छोटे मुँह बड़ी बात होगी, ये मत समझिएगा मैं आपको खुश करने के लिए ऐसा बोल रहा लेकिन आप चाहे तो अपना दोस्त समझ कर मुझसे कह सकते हैं. अगर आपको एक छोटे से एम्प्लॉयी से दोस्ती रखने में कोई प्रॉब्लम न हो तो।
पहले तो मैंने इस इंसान को ऊपर से लेकर नीचे तक स्कैन किया। आखिर कौन है जिसके दिल में मेरे जैसे तुच्छ लेकिन सीईओ के लिए इतनी हमदर्दी है. निपुन इस कंपनी का कोई पुराना एम्प्लॉई नहीं था. अतुल सर के टाइम पर ही उसने यहाँ ज्वाइन किया था. उन दिनों मैं इन्हे चाय-कॉफी सर्व करता था. और निपुन उस वक़्त मुझसे ऐसे मिलता था जैसे वो मेरा दोस्त हो. मेरे सीईओ बनने के बाद मुझसे आज पहली बार मिला। अपने साथ के एम्प्लॉईज़ में उसने किसी को आज तक नहीं बताया कि मैं सीईओ बनने से पहले एक ऑफिस बॉय ही था. बाकी लोगों को ये बात पता भी कैसे होती क्योंकि ऑफिस बॉय पर कोई ध्यान देता भी कहाँ है. लेकिन निपुन इंसान अच्छा है ये मुझे पहले ही पता चल चुका था. उम्र में मुझसे बड़ा भले हो लेकिन दोस्त बनाना इसे अच्छे से आता है.
इस कंपनी में मुझे इतने दिनों से बस गंवार, अनपढ़, जाहिल जैसे वर्ड ही सुनने को मिले थे अपने लिए। यह अचानक से मुझे दोस्त कहने वाला निपुन तो इस टाइम भगवान का भेजा हुआ कोई फरिश्ता लग रहा था। मैंने जब उसकी तरफ देखा तो मेरे मन में वायलिन बजने लगा, मद्धम मद्धम हवा चलने लगी जिसमें उसके लंबे घने बाल धीरे धीरे उड़ रहे थे। क्या कहूं एक अजीब सा मोमेंट सा बन गया था उस टाइम मेरे लिए। फिर उसकी आवाज ने मुझे इन ख्यालों से बाहर खींचा।
निपुन: माफ करना अगर आप मुझसे शेयर नहीं करना चाहते तो कोई बात नहीं।
निपुन जा रहा था, सच बताऊं तो वो निपुन नहीं जा रहा था, इस कंपनी में सर्वाइव करने की मेरी आखिरी होप जा रही थी, इसलिए मैंने लपककर उसे रोका और गले लगा लिया। उस दिन मैं जो फटा तो ऐसा फटा कि अगर बिल्डिंग का ड्रेनिंग सिस्टम अच्छा नहीं होता तो सुनामी नहीं पर बाढ़ तो आ ही जाती।
रवि (नकली सुबकते हुए): दोस्त… तुमने मुझे दोस्त कहा? क्या बताऊं दोस्त इन सब ने मिलकर मेरी जिंदगी को नर्क बना दिया है। नहीं, नहीं नर्क का टॉर्चर तो इसके आगे खेल लगेगा इसके लिए तो भगवान को एक अलग ही लोक बनाना पड़ेगा। अरे मुझे तो सपने भी 2 हजार रुपये से ज्यादा की नहीं आते और इन लोगों ने मुझे इस 2 हजार करोड़ की कंपनी का सीईओ बनाकर बिठा दिया... और तो और अब इसके लिए गालियां भी मुझे ही सुननी पड़ती हैं। ये तो वही बात हुई न कि चित भी अपनी पट्ट भी अपनी।
मैंने अपनी जिंदगी का सारा दुख एक सांस में उसके सामने उगल दिया और बदले में निपुन ने किसी राक्षस के जैसा ठहाका लगाया।
मैं सोच में पड़ गया कि भगवान ये कैसा फरिश्ता भेजा है मेरे लिए जो मेरी प्रॉब्लम्स पर ऐसे हंस रहा है जैसे मैंने चींटी हाथी का कोई चुटकुला सुना दिया हो। दुख दर्द कष्ट पीड़ा। हंसने के बाद निपुन बोला।
निपुन (हंसते हुए): आपको यह किसने कहा कि आप एक टेक्निकल एरर की वजह से सीईओ बने हो?
अरे यार एक तो पूरी रामायण खत्म होने के बाद यह पूछ रहा है कि सीता किस का बाप था। एक मिनट… कहीं मेरे दुखों ने इसे तो पागल नहीं कर दिया? (गर्व से) मतलब मैं तो बहुत स्ट्रॉन्ग हूं यार जो यह सब झेलने के बाद भी ठीक हूं। तब्ही उसने फिर बोला।
निपुन: यह कहानी तो इसलिए बनाई गई है जिससे आप यही सोचते रहें और कुछ लोग आपके इस भोलेपन का फायदा उठा सकें। भला कभी कोई टेक्निकल एरर की वजह से इतनी बड़ी कंपनी का मालिक बन सकता है क्या? वरना एक मेल की गलती सुधारने में कितना टाइम लगता है।
रवि (समझते हुए): बात तो सही है।
निपुन: हां… सच तो यह है कि अतुल सर ने आपके अंदर छुपे एक जीनियस को पहचान लिया था... इसलिए उन्होंने इस कंपनी की बागडोर आपके हाथों में दी थी।
इसकी बात मुझे सही भी लगी क्योंकि बचपन में स्कूल की टीचर हमेशा मम्मी से कहती थी कि इसमें दिमाग तो बहुत है बस उसे use नहीं करता। शायद वो सच ही बोलती थी, वरना क्यों अतुल सर को भी मेरे अंदर वो पोटेंशियल दिखा?
रवि: पर अब मैं क्या करूँ?
निपुन: आपको ज़रूरत है एक अच्छे एडवाइज़र की।
रवि (जल्दी से): कौन?
निपुन (इरिटेटेड): अर्रे मैं... (पोलाइट और रिस्पेक्टफुल टोन में बदलकर) मेरा मतलब मैं हूँ ना... आपका अपना दोस्त, जिगरी, लंगोटिया यार।
एक मिनट, एक मिनट, एक मिनट, पिछले आधे घंटे पहले हमारी बात हुई और ये मेरा लंगोटिया बन गया? पर कहते हैं न डूबते को तिनके का सहारा बस इसलिए मैं भी मान गया।
रवि: तो लंगोटी... मेरा मतलब लंगोटिये मैं क्या करूँ ऐसा जिससे ये लोग मुझे बेवकूफ समझना बंद कर दें?
निपुन: देखिए सबसे पहले आपको अतुल सर के कुछ अधूरे काम पूरे करने होंगे। एक कंपनी है क्रोनियस नाम की, उसके साथ हमारी 37 करोड़ की डील कंपनी को दिखाई गई है... लेकिन अतुल सर ने मुझे बताया था कि उन्हें पता चला है कि यह डील 55 करोड़ की हो रही है और कुछ लोग बीच में पैसा खा रहे हैं। आप सबसे पहले उस कंपनी से बात करें और उनसे बोलें कि 55 करोड़ से कम में यह डील नहीं होगी।
रवि (परेशान): पर इससे क्या होगा?
निपुन: जो लोग आपको बेवकूफ मानकर यह समझते हैं कि वो कंपनी के नाम पर घोटाले कर सकते हैं, उन्हें समझ आ जाएगा कि हमारे नए बॉस कितने दिमाग वाले और स्ट्रिक्ट हैं... और बाकी सब के सामने आप एक हीरो बन जाएंगे। (हीरोइक टोन) आप कंपनी में जहां से निकलोगे आपके नाम की जय-जयकार लगेगी। आपके फोटो हर डेस्क पर होंगे। सब एम्प्लॉयीज अपने अपने बच्चों को आपका उदाहरण देंगे। समझे?
रवि (गर्व से): नहीं, पर सुनकर अच्छा लगा... पर एक बात और कंपनी में बात तुम ही कर लो न, मेरा करना ज़रूरी है क्या?
निपुन: इस कंपनी के सीईओ आप हैं मैं नहीं इसलिए आपको ही बात करनी होगी। अच्छा सर मैं चलता हूं, बहुत काम है। कभी ज़रूरत हो तो बुला लेना... लेकिन सर, किसी को बताना मत कि यह आइडिया मैंने दिया है। क्या है कि मुझे तो उन्ही लोगों के बीच बैठना है।
रवि: अर्रे मैं पागल नहीं हूं कि उसी डाल को काट दूं जिस पर बैठा हूं।
निपुन: देखा!! जीनियस हैं आप।
एक बार फिर मेरे केबिन में ठहाका गूंजा और इस बार इस ठहाके में मेरी भी हंसी शामिल थी। निपुन के जाने के बाद मैंने क्रोनियस कंपनी के हेड को फोन किया और सीधा उसे खरी खोटी सुना दी। उस बेचारे को तो शायद यह भी नहीं मालूम था कि उसे गालियां क्यों पड़ रही हैं। अंत में मैंने कहा अगर 55 करोड़ रुपये में डील करने में इंटरेस्टेड हो तो ही कॉन्टैक्ट करना वरना अपना मनहूस चेहरा दिखाने की कोई जरूरत नहीं है, स्विफ्टेक के पास क्लाइंट्स की कोई कमी नहीं है। यह बोलकर उसका जवाब सुने बिना ही मैंने फोन रख दिया, वैसे भी अब मेरी गाली खाने का कोटा पूरा हो गया था अब बारी थी मेरे बोलने की... और अब तो मेरे साथ निपुन भी था. बहुत शांति सी महसूस होने लगी। जब इतने तूफानों के बाद अचानक शांति मिले तो दिल में डर बना रहता है कि यह शांति है या किसी नए तूफान के आने से पहले का सन्नाटा। पर अब जो भी हो हर चीज के लिए रेडी थे... मेरा लँगोटिया यार निपुन और मैं..
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