भगवान से मुझे बस एक सवाल पूछना था, हे भगवान विद ऑल ड्यू रिस्पेक्ट किस कंपनी के पेन से मेरी किस्मत लिख रहे हो आप। जो भी पेन हो तोड़कर फेंक दो, अरे मेरी जिंदगी न हुई कोई फाइनल डेस्टिनेशन मूवी हो गई। जहां भी देखूं मौत ही दिखती है। अब तो अगर कोई नाम भी ले तो पहला थॉट यही होता था कि अब क्या कर दिया मैंने। अब कौन सी नई आफत को मेरा एड्रेस मिल गया। मैं शपथ लेता हूं, इतनी टेंशन यूपीएससी में बैठे जनरल कास्ट के बच्चे को नहीं होगी जितनी दो दिन में इन लोगों ने मुझे दे दी थी। इतने बम तो तालिबान और अलकायदा के पास नहीं होंगे जितने इन्होंने मेरे सिर पर फोड़ दिए थे। एक तो उस बुड्ढे को मेरा ही नाम मिला था अपने बेटे को देने के लिए? रवि? अरे इतना कॉमन नेम कौन रखता है। न जाने किस जन्म का बदला निकाला है उस बुड्ढे ने मुझसे। लेकिन अब सच्चाई तो यही थी कि जब तक रवि सिंघानिया लंदन से नहीं आ जाता तब तक यही मेरी लाइफ है और इस पूरे समय बस यही कोशिश करनी है कि जिंदा रहूं। और जब वो आ जाएगा तब पता नहीं अपने साथ कौन सा तूफान लाए मेरी जिंदगी में। लेकिन मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हम तो फकीर आदमी हैं झोला उठाकर चल देंगे। मैं सुबह-सुबह घर से ऑफिस जाते हुए यही सोच रहा था कि शायद तभी भगवान ने मुझे तत्थास्तु कह दिया। ऑफिस में अपने केबिन में पहुंचते ही मेरा सामना इस कंपनी के पिछले सीईओ अतुल सिंघानिया के बेटे रवि सिंघानिया से हुआ. वो वहां शालिनी कपूर, संजय राव और अनीता वर्मा के सामने खड़ा हो कर तमाशा कर रहा था.

 

रवि सिंघानिया (गुस्से में): तो तू ही है रवि सिंह? 

 

सोचा बोल दूं कि लैंग्वेज भाई साहब आपकी बहुत खराब है सुधारिए इसको थोड़ा... लेकिन जवाब में मैंने बस हां बोला और बदले में उन सज्जन से उनकी तारीफ पूछ ली। 

 

रवि सिंघानिया (गुस्से में): मैं हूं रवि सिंघानिया...असली रवि सिंघानिया। 

 

जितने कॉन्फिडेंस से उसने असली बोला था अगर वो उसके बाद खुद को शाहरुख खान बता देता तो शायद… शायद मैं उसे भी सच मान लेता। मैं कुछ भी बोलता उससे पहले ही शालिनी मैम बीच में बोल पड़ीं।

 

शालिनी : We are dealing with enough right now. So, let’s not create any scene here. हम सब शांति से बात करेंगे.

 

शालिनी मैम मेरे और रवि सिंघानिया के साथ-साथ अय्यर, अनीता, संजय और एक-दो ऑफिस के और लोगों को भी एक अलग रूम में लेकर गई। जिस स्पीड से रवि सिंघानिया चल रहा था, मुझे लगा कि अगर इसके ब्रेक टाइम पर नहीं लगे तो यह रूम की वॉल को तोड़कर पड़ोस की बिल्डिंग में जाकर उनसे भी यही कहेगा (रवि सिंघानिया की नकल करते हुए) मैं रवि सिंघानिया हूं... असली रवि सिंघानिया। रूम में घुसते ही वह फिर से बोल पड़ा। 

 

रवि सिंघानिया (गुस्से में): अतुल सिंघानिया मेरे पिता थे। वो मुझे इस कंपनी का सीईओ बनाना चाहते थे। यही उनकी लास्ट विश थी। मुझे नहीं पता कि तूने यह सब कैसे किया है... लेकिन अभी भी तूने मुझे मेरी पोजीशन वापस कर दी तो मैं तुझे माफ कर दूंगा। 

 

रवि: पर मैंने तो कुछ किया ही नहीं है और बिलीव मी अगर मैं कुछ करना चाहता भी तो इतनी प्रॉब्लम्स नहीं होती। 

 

रवि सिंघानिया (गुस्से में): अच्छा तो तेरा मतलब है कि मेरे फादर ने अपने मन से तुझे इस कंपनी का सीईओ बना दिया। एक ऑफिस बॉय को। क्या लगता था तू उनका? रिश्ता क्या था तेरा उनसे?

 

 तीन दिन से सब लोग मुझसे आप-आप कर के बात करने लगे थे, इसलिए शायद अब इसके मुह से तू सुनकर मुझे गुस्सा आ गया... मैंने तुरंत ऐसा जवाब दिया जिससे सबका मुह बंद हो गया। 

 

रवि (ओवर ड्रामेटिक): सल्यूट का, सल्यूट का रिश्ता था मेरा उनसे। और कॉफी का रिश्ता था मेरा उनसे। 

 

 कमरे में एक ऑकवर्ड साइलेंस .... वैसे भी एक कप कॉफी की कीमत तुम क्या जानो रवि बाबू? सुबह मिल जाए तो बिल्कुल फ्रेश कर देती है एक कप कॉफी। शाम में मिल जाए तो सारी थकान मिटा देती है एक कप कॉफी। कितना कुछ बोलना था मुझे पर कुछ नहीं बोल पाया। 

 

संजय: मैम अगर ये सच बोल रहा है तो हमें सच में कुछ करना   चाहिए। Because we all know mr. Ravi Singh doesn’t have enough experience and knowledge to be the CEO of this company. अभी तक इसके तुक्के सही बैठे हैं पर इसका मतलब ये नहीं है कि आगे भी सब ठीक रहेगा।

 

अनीता: मैम लेकिन ये हमारे किसी कंपिटिशन की कोई चाल हुई तो? हमारी कंपनी के सीक्रेट पता लगाने की। This can be too risky for us. 

 

एक तो अनीता मैम का समझ नहीं आता कि वो किस की टीम में है। अजीब दल बदलू औरत हैं। संजय का कम से कम ये भरोसा तो है कि मेरे अपोजिट साइड में है। 

 

शालिनी: यू आर राइट अनीता, यह एक टफ सिचुएशन है। 

 

रवि सिंघानिया (गुस्से में): मैं अतुल सिंघानिया का असली बीटा हूँ. तुम लोगों मेरी बात पर भरोसा नहीं है !?

 

भरोसा नहीं इसीलिए तो ये सब बाते हो रही हैं वरना तुम ही मेरी जगह न बैठे होते भरोसेलाल!

 

अय्यर (हिचकिचाहट से): Shalini मैम, अगर ये सच में अतुल सिंघानिया के बेटे रवि सिंघानिया ही हैं तो हम उसके डॉक्यूमेंट्स चेक कर सकते हैं। उससे हमें कन्फर्म हो जाएगा कि यह अतुल सर के ही बेटे हैं या नहीं। कंपनी में केवल दो ही लोग रवि सिंघानिया को जानते थे और दोनों ही टपक चुके हैं। आई मीन डोनो की डेथ हो चुकी है। 

 

शालिनी: गुड आइडिया अय्यर। रवि…

 

दोनों रवि: Yes

 

शालिनी: रवि सिंघानिया। 

 

रवि सिंघानिया: हाँ 

 

शालिनी: हमें अपना आईडी प्रूफ दिखाइए जिससे हम यह कंफर्म कर सकें कि आप अतुल सिंघानिया के बेटे हैं.

 न जाने क्यों आईडी प्रूफ दिखाने की बात सुनकर उसकी बोलती ऐसे बंद हो गई जैसे किसी ने उसकी विंड पाइप को खींचकर उसमें गांठ मार दी हो। देखा चोर की दाढ़ी में तिनका … अभी तक यह आदमी ऐसे चपड़ चपड़ बोल रहा था जैसे इसकी जुबान बुर्ज खलीफा से भी बड़ी हो और प्रूफ दिखाने की बात सुनकर कैसे भीगी बिल्ली की तरह सकपकाने लगा। 

 

रवि सिंघानिया (गुस्से में): वो… वो किसी ने एयरपोर्ट से मेरा बैग चोरी कर लिया। सारे डॉक्यूमेंट्स उसी बैग में थे। अब मेरे पास कोई प्रूफ नहीं है। 

मुझे न जाने कितने समय बाद थोड़ा सुकून मिला, रवि सिंघानिया के साथ बुरा हुआ यह सोचकर नहीं बल्कि यह जानकर कि चलो अकेला मैं ही नहीं हूं जिसके भगवान मजे ले रहे हैं। देखो हम कितने भी अच्छे बनें पर एक बात तो माननी पड़ेगी कि जब अपना घर जले और उस आग की लपटें पड़ोसी के घर को भी लपेट में ले लें तो थोड़ा सुकून तो मिलता ही है। बस कुछ-कुछ ऐसी ही फीलिंग थी मेरी। 

 

अय्यर (फुसफुसाते हुए): मैम मुझे तो ये कोई फ्रॉड लग रहा है। आप कहो तो पुलिस को बुलाऊं। 

 

रवि सिंघानिया: ए.. ए.. क्या पुलिस हाँ। मैं कह रहा हूं न अतुल सिंघानिया मेरे फादर हैं देखो मेरे पास उनकी मेरे साथ फोटो हैं मेरे फोन में। 

 

अय्यर:  अतुल सर इस सेक्टर के शार्क थे.. बहुत लोग उनके साथ फोटो खिंचवाते थे। हम इन फोटोज से ये पता नहीं लगा सकते कि ये अतुल सर का बेटा है। 

 

बहुत देर तक यही स्विफ्टेक की अदालत में असली रवि सिंघानिया का केस चलता रहा और आखिर कोई पुख्ता सुबूत न मिलने पर इन जीनियस जजेस को ये केस खारिज ही करना पड़ा...  लेकिन किसी ने मुझसे ये पूछने की जरूरत तब भी नहीं समझी कि मैं ये केस लड़ना चाहता भी हूं या नहीं। ऐसा मेरे साथ जिंदगी में पहली बार हो रहा था कि मैं किसी गेम में पार्ट भी नहीं ले रहा था पर हर गेम का विनर मुझे ही बनाया जा रहा था... और मैंने भी खुद से कुछ भी बोलना ठीक नहीं समझा उसके भी तीन रीजन्स हैं। 

 

पहला: ये शक सही हो सकता है कि ये किसी राइवल कंपनी का प्लान हो। दूसरा: (ड्रामेटिक टोन) ब्रिटिश से आकर पहले भी 100 साल इन लोगों ने हम पर रूल किया है और एक आजाद भारतीय होने के नाते अब मैं ब्रिटिश से आए हुए किसी भी इंसान को हम पर रूल नहीं करने  दे सकता। तीसरा: ये जो कुछ भी हुआ था भले ही ये शुरू मजबूरी में हुआ हो पर अब हमको मजा आने लगा था।

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