कहते हैं जिन्दगी उम्मीद के सहारे कट जाती है… बड़े बड़े दर्द इंसान नई उम्मीद लगाकर भुला देता है, मगर जब मुश्किलों से कोई उम्मीद बनी हो और वह भी अधूरी रह जाए तो इंसान जीना भूल जाता है… रिया की जिन्दगी में जैसे तैसे अजय ने एक आशा जगाई थी जीने के लिए और वह खुद को उसके लिए तैयार ही कर रही थी कि उसके रास्ते के अंधेरे फिर उसके सामने आकर खड़े थे। वह अपने डैड की आहट सुनकर दरवाजा खोलने गई थी लेकिन सामने थी पुलिस। उन्होंने रिया को कहा, आप को हमारे साथ चलना होगा, कबीर के केस में आपसे फिर पूछताछ करनी है। सामने पुलिस को देखकर उसकी सारी उम्मीदें वहीं ढेर हो गईं और सर झुकाकर रिया उनके साथ चल दी। घर के बाहर खड़ी गाड़ी में रिया को बिठाकर इधर पुलिस निकलती है और उधर विक्रम की गाडी आकर रुकती है। रिया इंस्पेक्टर से कहती है
रिया : बहुत गलत वक्त पर आई हैं आज आप ऑफिसर, मेरी ही नहीं, मेरे डैड की भी उम्मीदें तोड़ दीं आपने।
कितनी मुश्किल से रिया ने थोड़ा सा सुकून पाया था, आज उसने उस इंसान को माफ़ करने का फ़ैसला किया था जिससे वह अब तक नफरत ही करती रही थी, उसके डैड… । गाड़ी आगे बढ़ रही थी और रिया का मन वहीं पीछे कहीं छूट गया था। मन में सवाल भी उठ रहा था,जब डैड घर आएंगे उनको क्या फील होगा। रिया मन ही मन ख़ुद से कहती है,
रिया: अगर मुझे पता होता कि यह हालात मेरा इंतजार कर रहे हैं तो मैं कभी डैड को कॉल करके नहीं बुलाती, मुझसे ज्यादा आज वह टूट जाएंगे। मुझे उनको अधूरी उम्मीद नहीं देनी चाहिए थी।
रिया जो सोच रही थी, वही सच था, एक अधूरी उम्मीद के सहारे रह गए विक्रम। इससे पहले तो उनकी बेटी ने शायद ही कभी कॉल करके यह पूछा हो कि वह कहाँ है और आज उसने साथ खाना खाने को कहा था। विक्रम गाड़ी से उतरते हैं और सामने जाती police की गाड़ी देखते हैं, पर समझ नहीं पाते। एक मिनट के लिए मन में ख्याल भी आया कहीं फिर से रिया को तो नहीं ले जा रहे, मगर अगले ही पल याद आया, रिया ने तो उन्हेंं घर बुलाया है।
विक्रम: कहीं रिया ने फिर कोई बचपना न किया हो, उफ्फ यह पुलिस कहीं हमारे घर ही न आई हो। रिया...
घबराए हुए विक्रम रिया को आवाज़ लगाते अंदर गए तो अंदर खड़ी मेड ने उन्हें बताया कि रिया को पुलिस ले गई पूछताछ के लिए। भीगी आंखें उसने आगे बताया, “आज ख़ुद किचन में आकर रिया उनके लिए खाना लगवा रही थी और पता नहीं कहां से, यह पुलिस वाले आ गए। जब से बड़ी मालकिन गई हैं पता नहीं क्यों, इस घर में कुछ अच्छा हो ही नहीं पाता।”
विक्रम उदास नजर लिए उसको देखते रहे। उन्हें लगता था कि अनन्या के व्यवहार की वजह से शायद कोई उसे पसंद नहीं करता होगा, मगर आज घर में काम करने वाली maid उसे याद करके रो रही थी। फिर रिया की तो मां थी अनन्या , वह कैसे भूल जाएगी? मन में दुःख और पछतावा लिए विक्रम खुद से कहते हैं,
विक्रम: काश तुम ठीक हो जाती अनन्या। आज यह हालात तुम्हारे ना होने के कारण बने हैं। रिया फिर जेल चली गई और मैं कुछ नहीं कर पा रहा। सच यही है कि मैं कुछ नहीं कर पाता।
इधर विक्रम को खुद से शिकायत थी, उधर jail में रिया एक बार फिर उसी अंधकार में थी। रिया अपने आंसू रोकने की कोशिश करती रहती है और जेल के उस छोटे से कमरे को ही अपनी जिन्दगी का हिस्सा समझ कर खुद को तसल्ली देने लगती है।
रिया: कितनी बार तो भागी हूँ मगर कभी भी मुकाम पर नहीं पहुंच सकी। अपनी रफ्तार बढ़ाने की चाहत में, जो था, वह भी बर्बाद कर लिया। अब शायद यही जेल है मेरी क़िस्मत में।
कबीर के साथ मिलकर रिया सारी दुनिया मुठ्ठी में करना चाहती थी और उसी कबीर की मौत के लिए उसे कटघरे में खड़ा किया जा रहा है… उसे पता है कि कबीर की मौत किसी की गलती नहीं, बल्कि वही भटकाव था जो रिया के साथ भी रहा है। हालात से मिले दर्द से बचने के लिए रोज नए रास्ते की तलाश ही इंसान को वहां ले जाती है जहां सब रास्ते बंद हो जाते हैं।
रिया : कितने गलत थे हम कबीर। कुछ नया करते हैं, कुछ बड़ा करते हैं, चलो अब कुछ अलग करते हैं। हमने कभी नहीं कहा कि चलो आज कुछ अच्छा करते हैं। अगर एक बार भी हम यह सोचकर निकलते कि अब कुछ अच्छा करना है तो आज हालात कुछ और होते।
अपने साथ होती हर गलत घटना का जिम्मेदार रिया आज तक विक्रम को ही ठहराती थी। आज जब खुद से सवाल किया तब पता चला अपनी गलतियां किसी के सर थोपने से वह सही नहीं हो सकतीं। अपनी गलतियों की सजा इंसान खुद ही उठाता है, मगर यह बात रिया को तब समझ आ रही थी जब बहुत कुछ बर्बाद हो चुका था। वहां विक्रम भी रिया के हर गलत फैसले के लिए खुद को ही दोषी मान रहे थे, अनन्या के जाने के बाद उन्हें रिया को संभालना था, मगर उन्होंने उसे अपने हाल पर छोड़ दिया, इसीलिए आज वह इस हाल में है। अपने कमरे में अकेले बैठे विक्रम अपने ही सवालों से घबराने लगे थे, जवाब ढूंढने के लिए वह बाहर निकलते हैं और गाड़ी लेकर शनाया के घर की तरफ चल देते हैं। अगले ही पल विक्रम शनाया के घर पर थे।
शनाया : फिर कुछ हुआ क्या??रिया ने फिर कुछ किया??
विक्रम : नहीं , मैंने बहुत कुछ नहीं किया जो मुझे करना चाहिए था, और वही आज रिया के ज़िंदगी तबाह कर रहा है। रिया को दुबारा जेल ले गए हैं , कबीर की मौत के लिए उससे फिर पूछताछ होगी।
विक्रम यह सोचकर और निराश हो रहे थे कि रिया में कुछ बदलाव आने शुरू ही हुए थे और उसी वक़्त पुलिस का घर आकर उसे ले जाना, कहीं उसे फिर उसी नफरत की तरफ न धकेल दे। विक्रम का दिल बैठा जा रहा था मगर क्या करें समझ नहीं आ रहा था।
विक्रम : मैं रिया को अकेला लड़ने के लिए नहीं छोड़ सकता। शनाया, प्लीज़! मुझे बताओ कि मैं क्या करूं, मेरा दिमाग़ काम नहीं कर रहा अब।
शनाया : तुम जरूरत से ज्यादा सोच रहे हो, कुछ चीजें अपने आप ही ठीक होती हैं। रिया अब हालात समझने लगी है उसे खुद संभलने दो। तुम उसे बांध नहीं सकते, अगर कोशिश की तो उसे और खो दोगे।
विक्रम शनाया की बात से सहमत नहीं थे। परिस्थितियों की शिकार रिया को वह हालात के भरोसे नहीं छोड़ सकते थे, मगर किस तरह रिया को हेल्प करें, समझ भी नहीं पा रहे। शनाया उन्हें फिर से समझाने की कोशिश करती है,
शनाया : बात को समझो विक्रम। रिया बच्ची नहीं रही, और यह जो उम्र है यहां बच्चे अपने फैसले खुद लेना चाहते हैं, तुम रिया से कुछ भी जोर जबरदस्ती से नहीं करवा सकते।
विक्रम : पर वह जो करना चाहती है, मैं वह तो जान सकता हूँ। उसे किसी भी तरह अपने से दूर जाने से तो बचा सकता हूं।
रिया की नफरत की कल्पना भी विक्रम अब नहीं करना चाहते थे, किसी भी तरह वह उस उम्मीद को जिंदा रखना चाहते थे जो रिया ने बनाई थी। वह साथ खाना खाते हुए क्या कहना चाहती थी, यह तो वही जानती थी मगर वह अपने डैड के साथ खाना खाने वाली थी, यह अपने आप में कम नहीं था।
विक्रम: जो भी हो शनाया पर मुझे रिया को जेल से जल्द ही बाहर निकालना होगा। उसके मन में फिर से कोई कड़वाहट न भर जाए, परिस्थितियों को उस पर हावी होने से अब रोककर रहूंगा मैं।
शनाया: तुम ओवर रिएक्ट कर रहे हो विक्रम। माना रिया से तुम्हें एक उम्मीद मिली है, तुम रिया से बात करो, उसका अकेला पन बांटो मगर परिस्थिति से उसे लड़ने दो, अपने रास्ते खुद निकालने दो।
उधर जेल में रिया ने सोचना बंद कर दिया था कि अब क्या होगा। उसने सब समय पर छोड़ दिया था ।
रिया: अपने हिसाब से अपनी जिन्दगी हमेशा कौन जी सकता है भला? कुछ न कुछ ऐसा होकर ही रहता है जो हमारी सोच से अलग होता है। मैं अपने आप में सही थी, डैड अपने हिसाब से सही थे और मम्मा, वह कहां गलत थी पता नहीं, मगर फिर भी हमारी जिन्दगी में सब कुछ गलत ही होता रहा।
मुश्किलों के सामने कमज़ोर पड़ती रिया अब हर बात को गहराई से सोचने लगी थी, एक के बाद एक हुए हादसों ने उसकी बची हुई मासूमियत भी छीन ली थी। उधर विक्रम शनाया की बात सुन तो लेते हैं लेकिन मानते नहीं। वह रिया की रिहाई की उधेड़बुन में लग जाते हैं और शनाया की बातों को इग्नोर कर जाने लगते हैं, तभी शनाया उनको रोकती है,
शनाया: सोच समझ कर आगे कदम बढ़ाना विक्रम। तुम्हारी एक गलती रिया को तुमसे बहुत दूर कर सकती है।
विक्रम; मैं जानता हूँ, मुझे अब क्या करना है।
विक्रम वहां से चले जाते हैं। रास्ते में उनके पास फोन आता है रिया जेल से छूट गई है। विक्रम खुश होते हुए गाड़ी सीधे थाने ले लेते हैं। उधर थाने में रिया को जेल से बाहर लाते हुए इंस्पैक्टर उसे वॉर्न करती है कि उसकी मुश्किलें कम नहीं हुई हैं। जब तक इस केस की जांच पूरी नहीं हो जाती वह शक के घेरे में ही है क्योंकि पुलिस को पूरा विश्वास है कबीर को मौत से उसका कोई तो कनेक्शन है
रिया: पूरी कोशिश कर लीजिए। मैं भी चाहती हूं सब क्लीयर हो जाए, हर राज से पर्दा उठ जाए ।
रिया को पूरा विश्वास था कि कबीर की मौत में ऐसा कुछ नहीं मिलने वाला जो उसके लिए मुश्किलें बढ़ा दे, उसके हिसाब से तो कबीर अपने अकेले पन से ही मारा गया। मगर अपनी बात रखने के लिए उसे सबूत चाहिए थे जो उसके पास नहीं थे।
अपनी उधेड़ बुन में लगी रिया चुपचाप थाने के बाहर आ गई थी, आज पहली बार वह रोड पर खड़ी थी और उसके पास कोई गाड़ी नहीं थी। रिया ने एक ऑटो रिक्शा रोका और निकल गई। यहां विक्रम पुलिस स्टेशन पहुंचे तो पता चला कि रिया निकल चुकी है। विक्रम की घबराहट और बढ़ गई…
कहां गई होगी आखिर रिया???
क्या वह सीधे घर जाएगी या कहीं और?
क्या कहना चाहती थी विक्रम से रिया?
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