मीरा अपनी डायरी लिखने के बाद अपने बेड पर सोई थी, लेकिन जब उसकी आँखें खुली तो अचानक उसने अपने-आप को सुनसान रेलवे ट्रैक पर खड़ा पाया। आसमान में अंधेरा छाया हुआ है, और बारिश के बाद की ठंडी हवा उसे कंपकंपी दे रही थी। चारों ओर खामोशी थी, जैसे दुनिया थम गई हो। लेकिन इस खामोशी में मीरा को अपनी धड़कनें जोर-जोर से सुनाई दे रही थीं। वो ट्रेन की पटरियों के पास खड़ी थी, और सामने से एक ट्रेन उसकी तरफ तेज़ी से बढ़ रही थी। पर अजीब बात थी कि उसे ट्रेन की आवाज़ बिल्कुल भी सुनाई नहीं दे रही थी। सिर्फ अंधेरे में ट्रेन की हेडलाइट्स की रोशनी उसकी आँखों में चमक रही थी। मीरा की साँसे तेज़ थी, उसने जैसे ही समझा कि वो रेल्वे ट्रैक पर खड़ी थी, तो उसने खुद को वहाँ से हटाना चाहा। लेकिन तभी अचानक किसी ने जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ लिया और उसे वापस ट्रैक पर खींच लिया, मीरा ने जैसे ही रोशनी में उस आदमी का चेहरा देखा तो चौंक गई, उसने अर्जुन के सामने डरते हुए कहा
मीरा - मुझे छोड़ दो अर्जुन ... प्लीज... छोड़ दो!... ट्रेन आ रही है।
मीरा अर्जुन के सामने गिड़गिड़ा रही थी, पर अर्जुन उसकी बात का कोई जवाब ही नहीं दे रहा था। मानों वो खुद मीरा को यहाँ लेकर आया था। उसकी आँखों में एक अजीब सी सनक थी, मानो उसपर खून सवार हो। उसकी पकड़ और कसती जा रही थी, और मीरा बेबस थी। उसकी हर कोशिश नाकाम हो रही थी। मीरा को रोते देख अर्जुन बहुत ज़ोर से हंसा फिर अचानक गुस्से में आकर बोला
अर्जुन- मैं तुमसे प्यार करता हूँ मीरा, पर तुम मुझ पर शक करती हो... तुमने मेरा पूरा खेल बिगाड़ दिया। अब मैं तुम्हें छोड़ने वाला नहीं हूँ।
अर्जुन के होंठों से निकली बातें मीरा के कानों में गूंजने लगीं, जैसे वह सीधे उसके दिल को चीर रही हों।मीरा की आँखों में आँसू थे, लेकिन उसकी चीखें सुनाई नहीं दे रही थीं। ट्रेन और नज़दीक आ गई, और उसकी रोशनी और तेज़ होती जा रही थी। अचानक, अर्जुन ने उसे धक्का दे दिया। वो ट्रेन के सामने गिरने वाली थी, लेकिन अगले ही पल मीरा ट्रेन के सामने नहीं बल्कि उस वॉशरूम में पहुँच गई जहाँ वो अपने कपड़े साफ करने गई थी। वो घबराकर चीखने लगी, उसकी साँसे तेज़ हो रही थीं, चेहरे पर पसीना था, और हाथ-पाँव काँप रहे थे। वो दरवाज़ा खोलने की कोशिश करनी थी, लेकिन दरवाज़ा नहीं खुल रहा था। वो दरवाजे पर ज़ोर-ज़ोर से हाथ मारने लगी, उसकी आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी, लेकिन वो चीख रही थी, मीरा ने बहुत कोशिश करने के बाद चिल्लाते हुए कहा
मीरा - कोई है? कोई मेरी मदद करो!
मीरा की आवाज़ किसी ने नहीं सुनी। उसकी आँखों के सामने सब कुछ धुंधला हो रहा था। हर आवाज़ जैसे गूंज बनकर उसके कानों में बज रही थी,
अर्जुन- मुझे बारिश पसंद है... तुम ना होती तो मैं ज़रूर भीगता।
अनिका- अमन, बहुत अच्छा है, उसने मुझे वो नीले रंग की साड़ी दी थी
अर्जुन की बातें, अनिका की आवाज़, उसकी माँ की फिक्र भरी आवाज़ और प्रोफेसर का पढ़ाया हुआ सब मिलकर मीरा पर हावी हो रहे थे। उसे लग रहा था जैसे वो एक घेरे में फंसी है और चारों तरफ लोग खड़े होकर उसे बातें सुना रहे हैं। मीरा ने अपने कानों पर हाथ रख लिए, मीरा की चीखें और तेज़ हो गईं, लेकिन उसकी आवाज़ कहीं गुम हो रही थी। हर चीज़ इतनी धुँधली हो चुकी थी कि उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वो कहाँ है? किसके साथ है? तभी, अचानक वहाँ एकदम सन्नाटा हो गया। और उसके बाद मीरा के कानों में दरवाज़े के खटखटाने की आवाज़ पड़ी, इसके साथ ही मीरा के कानों में अनिका की आवाज़ आई
अनिका - "मीरा... उठो, मीरा, मीरा, मीरा.....
मीरा ने एक झटके में अपनी आँखें खोलीं। उसका शरीर पसीने से भीगा हुआ था, दिल ज़ोर से धड़क रहा था, और उसकी साँसें तेज़ थीं। उसने देखा कि अनिका उसके बेड के पास खड़ी थी। मीरा को कुछ पल तक समझ नहीं आया कि वह सपना था या हकीकत। उसकी नजरें अनिका पर टिक गईं, और वो एकदम घबरा कर बेड से उठ बैठी। उसकी सांसें अभी भी तेज़ थीं, और वो पूरी तरह पसीने में तर थी। अनिका ने मीरा को घबराया देखकर पूछा
अनिका- मीरा, मीरा... क्या हुआ तू कोई सपना देख रही थी क्या?
मीरा- सपना नहीं, एक बुरा सपना.... पर तुम यहाँ कैसे?
मीरा के सवाल पर अनिका ने उसे पानी दिया और फिर उसके पास बैठकर बोली
अनिका- मैंने तुझे बहुत सारे फोन किये, पर तूने कोई जवाब नहीं दिया। उसके बाद मैंने आंटी को फोन किया तो उन्होंने बताया कि तुझे बुखार है, और तू अपने कमरे में आराम कर रही है, इसलिए मैं तुझसे मिलने आ गई।
मीरा ने अनिका की बात सुनकर हैरान होकर उसे देखा, अनिका ने मीरा को समझाते हुए कहा
अनिका (नरम आवाज़ में)- मैंने दरवाज़ा खटखटाया, पर तुम नहीं जागी, पर दरवाज़ा खुला हुआ था। थैंक गॉड, दरवाज़ा बंद नहीं था, वरना तुम बाथरूम की ही तरह यहाँ भी फंसी रहती। चलो अब उठो, फ्रेश हो जाओ, मैं तुम्हारे लिए नाश्ता लेकर आती हूँ...
अनिका के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, लेकिन आँखों में चिंता साफ झलक रही थी। अनिका मीरा को कमरे में छोड़कर बाहर चली गई। मीरा ने एक गहरी साँस ली और सिर झुका लिया। उसे अभी भी वो सपना साफ-साफ याद था, हर एक पल, हर एक शब्द। उसके दिल की धड़कनें धीरे-धीरे शांत हो रही थीं, लेकिन उसका दिमाग अब भी उस भयानक सपने की गिरफ्त में था। मीरा ने अपने कमरे को देखा, फिर मेज़ पर रखी अपनी डायरी को देखते हुए बोली
मीरा-...शायद ये बस एक सपना था... पर इतना अजीब और डरावना।
मीरा अपनी आँखें मलती हुई बाथरूम में गई। बाथरूम में जाकर उसने नल चलाया, उसके कानों में पानी की गिरती बूँदों की आवाज़ गूँज रही थी, जैसे हर ख्याल को ठिठका रही हो। बाहर का कोई भी शोर उसे सुनाई नहीं दे रहा था। वॉशरूम की ठंडी दीवारों के बीच वह कुछ देर के लिए पूरी तरह दुनिया से कट गई थी। इस बीच, मीरा के कमरे का दरवाज़ा हल्के से खुला और वहाँ से कोई आदमी अंदर आया। उसने बिना कोई आवाज़ किए, चुपचाप कमरे का दरवाजा बंद कर दिया। मीरा इस बात से बिलकुल अनजान थी। कुछ देर बाद नल बंद कर, जब वो बाहर निकली, तो उसे कमरे का माहौल कुछ अजीब लगा। जैसे सब कुछ वैसा नहीं था जैसा उसने छोड़ा था। उसने इधर-उधर देखा लेकिन कोई खास बदलाव नज़र नहीं आया। यही बात सोचते हुए मीरा ने खुद से कहा
मीरा- क्या हो गया है तुझे मीरा, हर जगह अजीब महसूस कर रही है।
मीरा बाथरूम से निकलकर अपनी अलमारी के पास आई और वहाँ से अपने कपड़े निकालते हुए वापस बाथरूम में चली गई। मीरा ने इस बात पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया कि उसके कमरे का दरवाज़ा बंद है। कुछ देर बाद अनिका कमरे के बाहर आई, लेकिन कमरे का दरवाजा बंद देखकर वो घबरा गई
अनिका (दरवाजा खटखटाते हुए, हल्के तनाव में)- मीरा! मीरा, दरवाजा खोलो।
कोई जवाब नहीं आया। अनिका की घबराहट बढ़ने लगी। उसने और ज़ोर से दरवाजा खटखटाया। फिर अचानक दरवाजा खुला और मीरा सामने खड़ी थी। उसकी आँखों में थोड़ी उलझन थी, जैसे उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा हो। मीरा को अपने सामने देखकर अनिका उसे एकतरफ करते हुए अंदर आई और नाश्ता बेड पर रखते हुए बोली
अनिका - तूने दरवाजा क्यों बंद किया?
मीरा ने अनिका की ओर देखा, फिर कुछ पल के लिए पीछे मुड़ी। उसे खुद याद नहीं था कि उसने दरवाजा बंद किया हो।
मीरा- मैंने दरवाजा बंद नहीं किया। मैं तो नहा रही थी...
मीरा की बात सुनकर अनिका चौंक गई, उसने आँखों में एक डर के साथ एक दूसरे को देखा। कमरे के अंदर अजीब सा सन्नाटा छा गया। ऐसा लग रहा था जैसे हवा भी उनकी घबराहट को महसूस कर रही हो। अनिका ने थोड़ी देर के लिए मीरा के चेहरे को पढ़ने की कोशिश की, लेकिन कुछ समझ नहीं आया। फिर मीरा ने अपने माथे को हाथ से सहलाते हुए सोचा, फिर खुद को शांत करने की कोशिश की और कहा
मीरा (थोड़ा हँसते हुए)- अरे, तू मत घबरा। शायद मुझे याद नहीं, मैंने ही दरवाजा बंद कर दिया होगा। वैसे भी सब इतना अजीब हो चुका है कि क्या ही बोलूँ। चल नाश्ता करते हैं...
मीरा की आवाज़ में एक हँसी थी, पर उसमें आत्मविश्वास की कमी साफ झलक रही थी। अनिका ने मुस्कुराते हुए उसकी बात मान ली, लेकिन उसके चेहरे पर अभी भी चिंता साफ दिख रही थी। उसने मीरा के बेड पर बैठते ही नाश्ते की प्लेट उसकी तरफ खिसका दी और एक बार फिर चिंता भरे लहज़े में पूछा
अनिका - तू ठीक तो है ना? कल जो भी कुछ हुआ कॉलेज में उसके बाद....
मीरा(एक गहरी सांस लेकर)- हाँ, मैं ठीक हूँ, और सोच रही हूँ कि हमें अपने शक को यहीं रोक देना चाहिए, क्योंकि चाहे ये सब महज़ इत्तेफाक हो लेकिन हम इसे साजिश समझ लेंगे....हमें विश्वास रखना चाहिए, हो सकता है जैसा हम सोच रहे हों वैसा कुछ हो ही ना।
मीरा एक मुस्कान के साथ अनिका को आश्वस्त करने की कोशिश की, लेकिन उसके चेहरे पर कुछ छिपा हुआ था—एक चिंता, एक डर, जो वो खुद भी समझ नहीं पा रही थी। दोनों कुछ समय तक खामोश रहीं। तभी अनिका की नज़र टेबल पर पड़ी, जहाँ एक गुलाब का फूल रखा हुआ था, और उसके साथ एक छोटा सा खत भी। उसकी आँखों में हैरानी के भाव आ गए, उसने मीरा को चौंक कर देखा और कहा
अनिका- ये फूल यहाँ कैसे आया? मैं जब आई तब तो यहाँ कुछ नहीं था....
अनिका के कहने पर मीरा ने भी अनिका के साथ टेबल की तरफ देखा, उसे भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वो उठकर धीरे से फूल के पास गई, और उसके साथ रखा हुआ खत उठाया। उसने काँपते हाथों से वो खत उठाया और फिर धीरे-धीरे उसे खोला। मीरा ने जैसे ही खत में लिखे शब्दों को पढ़ा उसकी आँखें फटी की फटी रह गई...
मीरा (धीरे से खुद से)- ये... कौन भेज सकता है?
मीरा ने एक बार अनिका को देखा फिर खत में लिखी बात को पढ़ते हुए कहा
मीरा- अनिका, तुम्हें पहली बार देखकर ही मैं तुम्हें अपना दिल दे बैठा था, पर तुम किसी और से प्यार करती हो, पर मेरे होते तुम कभी किसी और की नहीं हो पाओगी। इसलिए कहता हूँ, उसे छोड़ दो, वो बस एक छलावा है। तुमसे सच्चा प्यार बस मैंने किया है मीरा, बस मैंने।
खत में अजीबोगरीब बातें लिखी थीं, जिनसे मीरा और अनिका दोनों का चेहरा सफेद पड़ गया। मीरा ने खत पढ़ने के बाद अनिका को दिया, अनिका को समझ ही नहीं आ रहा था कि कोई उसके नाम का खत मीरा के कमरे में क्यों रखकर जाएगा। दोनों की साँसें तेज़ हो गईं। वे समझ नहीं पा रही थीं कि ये सब क्या हो रहा है। कमरे में एक डरावनी खामोशी छा गई थी, जैसे कोई अनजाना साया उनके इर्द-गिर्द घूम रहा हो।
अनिका(डरते हुए)- ये कैसे हो सकता है मीरा? ये कौन है? जो मेरे लिए खत छोड़कर गया... क्या तू इस हैंड राइटिंग को पहचानती है।
मीरा ने अनिका के सवाल पर ना में सिर हिलाया, लेकिन उसकी आँखें अब भी खत पर टिकी थीं। अनिका डर के मारे कांपने लगी थी। वहीं मीरा उसे संभालने की कोशिश कर रही थी। फिर मीरा को कुछ ध्यान आया और उसने खुद में बड़बड़ाते हुए कहा
मीरा- मैंने दरवाज़ा बंद नहीं किया था अनिका, दरवाज़ा किसी और ने बंद किया था, यानि कोई यहाँ आया था। किसी ने उस दिन तुम्हारी तस्वीर मुझे भेजी थी, यानी कोई तुम्हारा पीछा कर रहा था, लेकिन आज यहाँ आया था तो उसकी तस्वीर मगन चाचा की दुकान पर लगे सीसीटीवी में ज़रूर आई होगी। तू अभी चल मेरे साथ... ये जो कोई भी है बच नहीं पाएगा।
मीरा अनिका को साथ लेकर अपने घर के मोड पर बनी एक इलेक्ट्रिक सामानों की दुकान पर गई, जहां जाकर मीरा ने दुकान के मालिक से रीक्वेस्ट करते हुए कहा
मीरा- चाचा हमें अभी आधे घंटे पहले का सीसीटीवी फुटेज देखना है, ये मेरी दोस्त है अनिका, इसकी बिल्ली कहीं गुम हो गई है। आप मदद करेंगे तो हमें ढूँढने में आसानी होगी।
मगन ने मीरा की बात पर मुस्कुराते हुए कहा अरे बिटिया, ये भी कोई पूछने की बात है। जाओ-जाओ, अंदर कंप्युटर लगा है, उसमें जाकर देख लो। वहाँ लड़का बैठा होगा।
मीरा और अनिका मगन को शुक्रिया कहते हुए दुकान के अंदर दाखिल हुई और फुटेज चेक करने लगी। मीरा ने वहाँ बैठे लड़के से आधे से 1 घंटे के बीच की फुटेज दिखाने को कहा, और आखिरकार मीरा ने जैसा सोचा था वैसा ही हुआ, एक जाना-पहचाना चेहरा नज़र आया, जिसे देखकर मीरा के पाँव तले से ज़मीन खिसक गई, उसने अपने मुंह पर हाथ रख लिया और फिर अनिका की तरफ देखकर बोली
मीरा- ये तो वही लड़का है, जो कल मुझे क्लास में बुलाने आया था, लेकिन ये यहाँ?
आखिर कौन है ये लड़का और क्यों कर रहा है अनिका का पीछा? क्या ये लड़का भी अर्जुन और अमन के प्लान का हिस्सा है? क्या होगा मीरा और अनिका का अगला कदम?
जानने के लिए पढ़ें अगला चैप्टर
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