आज मेरी ज़िंदगी उस मोड़ पर खड़ी है, जहाँ आगे कुआँ और पीछे खाई है। क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा? भाग जाऊँ? वैसे भी बस 2 दिन ही तो और बचे हैं मेरे इस कंपनी में। अगर भाग गया तो कम से कम इस ज़िल्लत से तो बच जाऊँगा। हाँ यही ठीक है, इस खिड़की से कूद कर पीछे वाले रास्ते से बिना किसी के पता चले निकल जाता हूँ। नहीं रवि, नहीं, उससे भी कोई फायदा नहीं होने वाला, अगर मैं भाग भी गया तो ये संजय कंपनी के हर कर्मचारी को साथ लेकर, मेरा घर ढूँढ कर मुझे बेइज़्ज़त करने आएगा। ऐसे ही नहीं जाने देगा ये मुझे। अभी संजय इतना तो सोच ही रहा है कि मेरी... फेयरवेल में केक चॉकलेट वाला कटवाएं या पाइनएप्पल वाला, लेकिन अगर मैं भाग गया तो केक की जगह मुझे ही हलाल करने को दौड़ेंगे सब। मतलब भागने का ऑप्शन तो कैंसल ही समझो। अब तो बस एक ही रास्ता है, अपना सामान पैक करना शुरू कर देता हूँ। वरना जाते समय सब कुछ समेटना थोड़ा मुश्किल हो जाएगा। वो एक कहावत है ना, “जब भाग्य ही होगा खोटा, तो क्या करेगा लोटा।” अय्यर तब भी आकर बोल देगा कि रवि सर ये प्रोग्राम लोटा तो नहीं बना पा रहा, लोटा की जगह बैट चलेगा। ये वेंकटेश मीटिंग के लिए नहीं, इस कंपनी में मेरी अर्थी पर आखिरी फूल चढ़ाने आया है। लेकिन इस बेचारे को क्या ही मालूम है कुछ भी कि यहाँ मेरे साथ क्या-क्या हुआ है। अगर इसे थोड़ा सा भी अंदाजा होता तो शायद ये खुद ही मीटिंग कैंसल कर देता। मेरी ज़िंदगी पक्का राम गोपाल वर्मा जी ने ही लिखी है। इतनी हॉरर हो चुकी है कि अब तो एनेबेल भी मुझे आकर सलाम ठोंक कर चली जाएगी। इंटरस्टेलर से ज्यादा बवाल मची हुई है बीते इन 4 महीनों में। मैं जब तक अपनी लाइफ के सारे पॉसिबल आउटकम सोच रहा था तब तक सनी और बाकी ऑफिस बॉयज़ मेरी अंतिम यात्रा की तैयारी कर रहे थे, मतलब मीटिंग रूम को मीटिंग के लिए तैयार। उन्होंने सबके सामने पानी की बॉटल्स रखी, नाश्ता रखा और यहाँ तक कि रूम फ्रेशनर भी छिड़क दिया।

फिर सनी मेरे ऑफिस में आया और मुझसे बोला, सर मीटिंग रूम रेडी हो गया है। ये बोलकर वो वापस चला गया। मैंने मन ही मन में सोचा कि मीटिंग रूम तो मीटिंग के लिए रेडी हो गया है, पर मैं रेडी हूँ या नहीं ये तो कोई पूछे। मैंने मीटिंग रूम में चलने का सोचा तो मेरे पैरों में जैसे लकवा मार गया, मेरा दिल इतनी जोर से धड़कने लगा जैसे अभी मेरी पसलियाँ तोड़ कर जमीन पर आकर गिर जाएगा। मैं जैसे-तैसे खुद को संभालते हुए मीटिंग रूम तक पहुँचा। उस दिन मुझे एक थ्योरी समझ आई, जिसका नाम है ग्रेजुएशन गॉगल्स। जिस ऑफिस के सब लोग मेरे डरावने सपनों में आते थे, उस ऑफिस की सारी दीवारें भी मुझे आज प्यारी लगने लगी थीं। क्योंकि मैं उन्हें शायद आखिरी बार देख रहा था। मैं हर छोटी से छोटी चीज़ को नोटिस करते हुए जब मीटिंग रूम में एंटर हुआ, तो सबके चेहरे एकदम गंभीर थे, पर संजय के चेहरे पर एक भयानक हँसी दबी हुई दिख रही थी। ये जरूर पिछले जन्म...

मैं रावण ही होगा। लेकिन इस ग्रेजुएशन goggles की वजह से मुझे आज वो ईविल लाफ भी अच्छी लग रही थी । मैं अपनी कुर्सी पर बैठा, सबके आगे बिसलेरी की बॉटल थी और मेरे आगे गंगाजल। मीटिंग शुरू होते ही मेरी आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा। मुझे लगा जैसे मीटिंग रूम से सब गायब हो गए हैं, और अतुल सर संजय से उसकी ईविल लाफ उधार लेकर हँसते हुए मुझसे बोल रहे हैं, “क्यों भाई, कैसी लगी? आ गए स्वाद?”। मैं हिम्मत करके खड़ा हुआ, जो कुछ भी मेरे मन में आया मैंने बोल दिया।

रवि: अंधेरा ... बल्ब... रोशनी।

मेरे मुँह से ये तीन शब्द सुनकर जैसे शालिनी मैडम और अय्यर सर के तीनों लोक ही डोल गए। संजय की स्माइल अब और ज़्यादा बड़ी हो गई। शालिनी मैडम ने बात को संभालते हुए कहा…

शालिनी: रवि, तुम क्या कहना चाह रहे हो? साफ-साफ बताओ।

मैं क्या कहना चाह रहा हूँ? ये बताना थोड़ा मुश्किल था, क्योंकि अभी तक मुझे ही नहीं मालूम था कि मैंने ये सब क्यों बोला है लेकिन अगर बोल दिया है तो कुछ न कुछ मतलब तो निकालना ही होगा। इसलिए मैंने बातों से बातों को कनेक्ट करने की कोशिश की।

रवि: मेरे कहने का मतलब है, कि जब-जब अंधेरा होता है तो हम सब बल्ब जलाकर रोशनी करते हैं… (अजीब सा विराम)। कितनी कमाल की चीज़ है ना ये बल्ब? लेकिन आपको मालूम है, थॉमस एडिसन जिन्होंने बल्ब का आविष्कार किया। उससे पहले उन्होंने 1000 बार बल्ब बनाने की कोशिश की, लेकिन नहीं बना पाए। एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बोला मैं फेल नहीं हुआ हूँ मैंने बस 1000 तरीके ढूंढे हैं जिससे बल्ब नहीं जल सकता।

रूम में बैठा हर इंसान अचानक हुई इस बात का कनेक्शन हमारी मीटिंग से ढूँढने लगा। मैं भी इसी खोज में था कि मैंने ये कहानी क्यों सुनाई है? वेंकटेश की माथे की लकीरें इतनी ज़्यादा बढ़ गई थीं कि बच्चे उस पर साँप-सीढ़ी खेल सकते थे। जब उसे कुछ समझ नहीं आया, तो वो बोला, “Mr. Ravi, this is indeed an interesting fact, अब हम थोड़ा काम की बात करते हैं।” मैं क्या ही काम की बात करता, मेरा तो खुद काम तमाम होने में कुछ ही समय बचा था। लेकिन वेंकटेश हमारी कंपनी में अभी मेहमान की तरह था, और मेहमान भगवान की तरह होता है, इसलिए उसकी बात तो माननी ही थी। वैसे अभी भगवान मेरे साथ जैसी हरकतें कर रहा है, उसे देखते हुए उनकी बात मानना तो नहीं बनता। फिर भी, मेहमान नहीं तो क्लाइंट की बात तो माननी ही थी। मैं फिर बोला।

रवि: Mr. Venktesh आज की मीटिंग इसलिए है ताकि हम अपनी होने वाली डील को डिस्कस कर सकें। आपने हमसे एक AI प्रोग्राम की डिमांड करी थी जो प्रोडक्ट के बेस्ट मटेरियल को अनालाइज करके उस प्रोडक्ट का सही अमाउंट हमें बता सके। मेरी कंपनी के सभी लोग पिछले काफी समय से इस प्रोजेक्ट पर ही काम कर रहे हैं।

मेरी बात को हमारी मीटिंग पर आते देख वेंकटेश थोड़ा खुश हुआ, उसने हमसे प्रोडक्ट के बारे में काफी कुछ पूछा, AI प्रोग्राम से उन्हें क्या एक्सपेक्टेशंस हैं ये भी बताया। सारे टेक्निकल सवालों का जवाब अय्यर सर ने दिया, सारी मार्केटिंग स्ट्रैटेजीज का जाल अनीता मैडम की अनुपस्थिति में विकास ने बुना, सारा बजट का सिलसिला संजय की बातों से हुआ, और सारी फंडिंग की बातों की बागडोर शालिनी मैडम ने संभाली। और समय-समय पर बीच में हाँ, हूँ, हम्म करने का काम मैंने किया। 3 घंटे की मीटिंग के बाद जब वेंकटेश की टीम ने प्रोग्राम को चेक करने की डिमांड की तो सबकी बोलती बंद हो गई, और सब मुझे ऐसे देखने लगे, जैसे सब अंधेरे के मारे हों और मैं बल्ब का इन्वेंटर थॉमस एडिसन। अब सब कुछ मेरे ऊपर ही था। मैं फिर खड़ा होकर बोला।

रवि: आपने थॉमस एडिसन का नाम सुना है…

मेरी बात को काट कर वेंकटेश बोलने लगा, “Yes Mr. Ravi हम सब ने थॉमस एडिसन और उनके बल्ब इन्वेंशन की कहानी सुनी है। अभी-अभी आपने ही तो सुनाई थी, पर इसका हमारी डील से कोई लेना-देना तो है नहीं ना?” उसने जिस तरह से मुझसे बोला, मैं समझ गया कि अब एक बार और अगर मैंने कोई कहानी सुनाई तो ये वेंकटेश अभी की अभी मुझे ही एक कहानी बना देगा।

रवि: बिल्कुल, तो मैं यही बोलना चाहता था कि मैं बहुत खुश हूँ कि मेरी टीम ने एक ऐसा रास्ता ढूँढ लिया है, जिससे ये प्रोग्राम नहीं बन सकता। इसका मतलब है कि हम आधा रास्ता पार कर चुके हैं। अब जैसे ही हमारा प्रोग्राम तैयार होगा, हम आपको उसका डेमो दे देंगे।

मेरी बात का असर वेंकटेश और उसकी टीम पर बिल्कुल ऐसे हुआ जैसे फैट मैन और लिटिल बॉय का हिरोशिमा और नागासाकी पर हुआ था। उनकी तो जैसे दुनिया ही डोल गई थी। उन्होंने पूरा मन बना लिया था कि अब ये डील नहीं हो सकती, वो किसी और कंपनी से बिजनेस करने को तैयार हो गए। उन्होंने अपने इमोशंस पर प्रोफेशनलिज्म की चादर चढ़ा कर मुझसे डील खत्म करने का बोला। और अपनी जगह से उठने लगे। उनको रोकते हुए मैं बोला...

रवि: Mr. Venktesh पहले पूरी बात तो सुन लीजिए, उसके बाद आप जो फैसला लें वो सही होगा। हाँ हमारी कंपनी से प्रोग्राम बनाने में कहीं कोई गड़बड़ हुई है। वो कभी-कभी किसी पूरी तरह से दूसरे प्रोडक्ट को एनालाइज कर देता है। जैसे अगर लोटा बनाना है तो… (अजीब सा विराम) पर एक उस ग्लिच को हटा कर हमारा प्रोग्राम बिल्कुल रेडी है। अगर आप किसी और कंपनी से डील करेंगे भी तब भी आपका ही नुकसान होगा। क्योंकि वो कंपनी सारा काम शुरू से करेगी। आपका पैसा, समय, मेहनत सब एक्स्ट्रा खर्च होगा। लेकिन हमारा तो पहले से ही 70% काम हो चुका है। हमें बस थोड़ा और समय चाहिए। And I am sure किसी भी दूसरी कंपनी से पहले हम ये काम कर सकते हैं।

मेरी इतनी हीरोइक स्पीच के बाद मैंने सोचा था कि वेंकटेश ताली बजाता हुआ मुझे गले से लगाकर मेरे हाथ चूम लेगा। लेकिन इसके बिल्कुल उल्टा उसने बहुत रूखी आवाज़ में बोला, “I don’t know Mr. Ravi. We have to think about this deal now. मैं वापस जाकर अपनी कंपनी से डिस्कस करके ही आपको कुछ इंफॉर्म कर सकता हूँ। तब तक इस प्रोजेक्ट को होल्ड पर ही रखिए।” इतना बोलकर वेंकटेश अपने दोनों बंदों के साथ निकल गया। मैं उसकी तरफ देखता रहा, थोड़ी देर बाद संजय की खाँस से मेरा ध्यान मीटिंग की तरफ गया और मैंने मीटिंग डिसमिस कर दी। सब उठकर मीटिंग से निकलने लगे। शालिनी मैडम और अय्यर सर ने मेरे कंधे को थपथपाते हुए मुझसे बोला…

शालिनी: Good try रवि,! इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है।

शालिनी मैडम के बाद संजय सर मेरे पास आए और हल्के से मेरे कान में बोले, “सर अब केक का ऑर्डर दे दूँ? बजट की चिंता मत करिए, मैं मैनेज कर लूंगा।” आज संजय के लिए मेरे पास कोई जवाब नहीं था, मुझे बस इंतजार था अनीता मैडम के आने का और उनके सामने अपनी हार स्वीकार करके इस ऑफिस से निकल जाने का।

 

(To be continued…)

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