वो कहते हैं ना, नकल के लिए भी अक्ल की ज़रूरत होती है, फिर चाहे वो नकल एग्ज़ाम्स में आगे वाले बच्चे की कॉपी देखना हो, या कंपनी का सीईओ बनने के लिए गूगल और यूट्यूब का सहारा लेना (हँसते हुए)। और अभी तक ये बात तो तय हो ही चुकी थी, कि अगर मेरे पास अक्ल थी भी तो वो कब की घास चरने जा चुकी थी। इसलिए हटा सावन की घटा करके बस की-नोट ही देखता हूँ आने वाली मीटिंग के लिए। लेकिन उससे पहले…

अय्यर: सर, आपने बुलाया।

रवि: हाँ अय्यर सर, आपसे कुछ पूछना था।

अय्यर: पूछिए।

रवि: ये आज की मीटिंग किस बारे में है?

अय्यर: सर हमारी कंपनी ने एक नया प्रोडक्ट लॉन्च किया है, ये एक ऐसी AI टेक है जो किसी भी नए प्रोडक्ट को बनाने के लिए परफेक्ट शेप, साइज, वेट और मटेरियल बता सकती है।

रवि: तो इसमें क्या प्रॉब्लम आ रही है?

अय्यर: सर हमारे साइंटिस्ट्स ने जो सर्किट बनाया है, उसका सक्सेस रेट 70% ही है। कभी-कभी वो सर्किट काम करना बंद कर देता है, और कुछ अजीब से रिजल्ट्स शो करता है। जैसे अगर किसी को लोटा बनाना है तो वो प्रोग्राम कभी बैट का एनालिसिस दिखा देता है तो कभी बॉल का।

यार ये कैसा डिफेक्ट है, लोटे के बदले में बैट या बॉल, कोई मैच ही नहीं है दोनों में। कोई सेंस है इस बात का? नहीं ना? इन साइंटिस्ट्स को भी क्या मेरी तरह ही प्रमोशन मिला है? भाई, अगर कुछ और दिखाना है तो उस फील्ड का तो दिखाओ। जैसे लोटे की जगह मटका दिखा दो, या ग्लास, कटोरी। अरे चम्मच भी चलेगी पर सीधा बैट और बॉल। सबने कसम खाई है कि मुझे चैन से 7 दिन भी नहीं काटने देंगे ये सब। कुछ देर बाद मीटिंग है, उनसे क्या बोलूँ? सर अगर आपको लोटा बनाना है तो लोटा मत बनाओ बैट बना लो? मेरे मुँह पर गाली देकर चले जाएँगे सब, और वो संजय तो इसे भी एंजॉय ही करेगा। ये ठीक है, अगर इनसे गलती हो तो मुझे आगे कर देते हैं और अगर कोई अच्छा काम हो जाए तो सब कूद-कूद कर आगे आएँगे। अब तो बस अपने सिर को बचाने का तरीका ढूँढ लूँ वो ही काफी है। शायद इस नेट पर ही कुछ ढंग का मिल जाए। तभी सनी अंदर आकर बोला, ‘’सर, इलेक्ट्रिशियन आया है। आपके ऑफिस की लाइट खराब हो गई थी उसको सही करने के लिए।''

रवि: हाँ, ठीक है, भेज दो उसको।

ऑफिस की तो लाइट ये सही कर जाएगा पर मेरी किस्मत में लगे ग्रहण को कौन सही करेगा? कहाँ मिलेगा ऐसा इलेक्ट्रिशियन जो मेरी फ्यूज्ड किस्मत को सही कर दे। न जाने कौन सा राहु, मेरी कुंडली में कुंडली डाल कर बैठा हुआ है? जो मेरी कुंडली के सारे सितारे बुझ चुके हैं। चलो जब तक ये काम कर रहा है मैं कहीं और बैठ कर कुछ सोचता हूँ।

मैं अपने पुराने केबिन... मेरा मतलब पेंट्री में चला गया तो वहाँ बैठा ऑफिस बॉय खड़ा होकर बोला, सर, आप यहाँ? पेंट्री में? कुछ चाहिए था तो मुझे बता देते? मैंने उससे बोला नहीं, नहीं कुछ नहीं, मेरे नए ऑफिस में काम हो रहा था तो सोचा अपने पिछले ऑफिस में ही बैठ जाऊँ। इस पर ऑफिस बॉय ने जो बोला मेरी आँखें भर आईं। पूरा ऑफिस ही आपका है जहाँ मन हो बैठिए। मैं बस ये कॉफी दे आऊँ। बस कर पगले अब रुलाएगा क्या?

रवि: हाँ हाँ, तुम अपना काम करो, मैं भी कुछ काम ढूँढता हूँ करने के लिए।

यार यहाँ की लाइफ ही ठीक थी, बस लोगों की चाय और कॉफी याद रख लो, सब इसमें ही खुश हो जाते थे। लेकिन जबसे मैं इस रूम से निकला हूँ सब हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ चुके हैं। किसी को मेरी कॉफी और चाय का कर्ज चुकाना ही नहीं है। चलो अब सनी तो गया। अब थोड़ा रेडी हो जाऊँ मीटिंग के लिए।

शालिनी (फोन पर): सनी, मीटिंग रूम में 3 कप कॉफी ले आओ अर्जेंट। और आते-आते रवि सर को भी इन्फॉर्म कर देना।

(कॉल डिस्कनेक्ट)

रवि: हेलो... हेलो मैडम...

अरे यार ये सनी कहाँ चला गया? शालिनी मैडम ने अर्जेंट तो ऐसे बोला है जैसे अगर मीटिंग रूम में जो भी है उसको तुरंत कॉफी ना मिली तो उसकी ऑक्सीजन की नली ही बंद हो जाएगी। उसकी आँतें सिकुड़ जाएँगी और मुँह से खून की उल्टी हो जाएगी। नहीं, नहीं, इस ऑफिस में एक की डेथ से तो मेरी ज़िंदगी खुद फाइनल डेस्टिनेशन की मूवी जितनी भयानक हो गई है अब ये 3 डेथ मैं नहीं झेल पाऊँगा। पता नहीं उसके बाद मेरा क्या ही होगा? एक काम करता हूँ मैं ही बना कर ले जाता हूँ। नो ऑफेंस सनी पर तुम यार कॉफी बनाने में मुझसे अच्छे कभी नहीं हो पाओगे। वैसे भी शायद कुछ दिनों बाद यही करना पड़े, तो चलो, ये भी देख ही लेता हूँ कि आज भी मेरे हाथ में वो जादू है या नहीं। बस यही सोचते हुए मैंने बहुत दिनों बाद किसी के लिए कॉफी बनाई और मीटिंग रूम के लिए चल दिया।

रवि: ये लीजिए मैडम, कॉफी।

मेरे हाथ में ट्रे देखकर शालिनी मैडम के मुह से उनका कलेजा ही बाहर आ चुका था जिसे उन्होंने अपनी थूक के साथ वापस निगल लिया। उन्होंने मुझे अलग कोने में ले जाकर डांटकर पूछा कि मैं ये ट्रे के साथ क्यों हूँ। तो मैंने उन्हें पूरी बात बता दी। यार कम से कम कंपनी के सीईओ को तो बता ही दो कि क्लाइंट आ चुका है या नहीं। या अब से इन लोगों ने मान लिया कि मैं जा ही चुका हूँ? जब तक हूँ, तब तक तो थोड़ा सा फील दे दो यार सीईओ वाला।

रवि (कवरिंग अप): मिस्टर ओबेरॉय, मैं पर्सनली आपका वेलकम करना चाहता था। और ये मेरा तरीका है वेलकम करने का। ये गेस्ट को रेस्पेक्ट देने का मेरा सबसे खास तरीका है। मीटिंग तो दो घंटे बाद थी ना?

वाह भगवान वाह, मतलब मेरी विशेज़ उल्टी होकर पहुँच रही हैं क्या आपके पास? मुझे ये समझाओ कि ये जो कम्युनिकेशन गैप इतना बढ़ गया है हमारे बीच, कि मैं बोल कुछ रहा हूँ और आपको सुनाई बिल्कुल उसका उल्टा आ रहा है, उसका कारण क्या है? मैंने माना, मैं नीच, पापी, दुष्ट इंसान हूँ पर इतना भी नहीं जो ये फल मिल रहे हैं। I mean seriously भगवान जी, ये जो भी आप तक डाक पहुँचा रहा है उसे बदलो, कुछ गड़बड़ कर रहा है वो। मेरी वाली विशेज़ किसी और से रिप्लेस कर रहा है वो। थोड़ा सा समय माँगा था बस... बस थोड़ा सा समय, खुद को मेंटली रेडी करने के लिए, ताकि सब कुछ टॉलरेट कर सकूँ, सबके सामने न निकले आँसू। वॉशरूम में पहुँचने तक का इंतजार कर लूँ रोने के लिए। पर आपने क्या सुना, मैं मीटिंग के लिए क्लाइंट को तुरंत भेजने के लिए प्रे कर रहा हूँ? सच बताओ, ये सब जानबूझ कर कर रहे हो क्या?

रवि: हाँ, हाँ, इसमें प्रॉब्लम क्या होगी? हम तो रेडी ही हैं, बस कुछ तैयारी होनी बाकी थी। वो मैं अभी कर देता हूँ... मेरा मतलब करवा देता हूँ। आप तब तक शालिनी मैडम के ऑफिस में वेट करिए, असल में मेरे ऑफिस में कुछ काम चल रहा है।

कोई मेरी लाइफ का ग्राफ देख ले तो चक्कर खा कर ही गिर जाएगा। इतने कर्व्स तो रोलर कोस्टर की राइड में नहीं होते, जितने मेरी ज़िंदगी में हैं। जैनीटर से सीधा सीईओ, निकम्मे से घर का सबसे मेहनती आदमी। अब सीईओ से बिल्कुल बेरोज़गार। मेहनती से एकदम निकम्मा। इस कंपनी में तो काम मिलने से रहा, और अगर मिल भी गया तो ये संजय और अनीता मैडम मिलकर, मेरी आत्मा को भी मार देंगे। बाकी कंपनी में कोई काम देगा नहीं, सबको लगेगा कि मैं उस कंपनी के सीईओ की कुर्सी हड़पने आया हूँ। और अगर मैं बेरोज़गार होकर घर चला गया तो सुमन तो खाने में मुझे ही भून देगी और नमक मिर्च लगाकर खा भी जाएगी। शायद, शायद यही था मेरी कहानी का अंत, ऐसे ही होना था मेरा THE END।
 

(To be continued…)

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