मीरा: थैंक गॉड विद्वान ने हमें बचा लिया, वरना हम आगे नहीं बढ़ पाते।
अर्जुन: हाँ हम विद्वान की वज़ह से आगे बढ़ पाए हैं... लेकिन हम जैसी सिचुएशन में हैं उस हिसाब से किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता।
सम्राट: हम सब एक दूसरे को सालों से जानते हैं, हमें किसी बाहर वाले पर भरोसा नहीं करना चाहिए। हमारी टीम में से कभी कोई धोखा नहीं दे सकता।
आइशा: सच में अगर विद्वान इतना सब जानता था, तो फिर हमें पहले क्यों नहीं बताया? उसने हमसे पूर्वजों वाली बात भी छुपाई और वह हमारे साथ क्यों नहीं आया?
विद्वान ने टीम को मंदिर के गर्भगृह से निकाल दिया था, लेकिन विद्वान के राज़ से सबको उस पर कम भरोसा था। टीम वहाँ से निकल कर मंदिर में आगे बढ़ी और अगले सुराग ढूँढने लगी। विद्वान उनके साथ नहीं था, अब ऐसे में फिर से अर्जुन पर आगे का रास्ता ढूँढने की रिस्पॉन्सिबिलिटी आ गई थी। अर्जुन के मन में अभी तक विद्वान की कही बातें चल रही थी।
दूसरी तरफ़ विद्वान ने राजवीर की टीम के कुछ लोगों को मंदिर के गर्भगृह में ही उलझा दिया और वह वहाँ से दूसरी तरफ़ भाग निकला। राजवीर का आदमी कहता है "सुनो लड़कों हमें यहाँ से बाहर निकलना होगा और उस आदमी को ढूँढना होगा... किसी ने देखा कहाँ गया वह?" सब लोग अलग-अलग दिशा में फैल गए। उधर मानसिंह ने अपने साथ राहुल और स्नेहा को शामिल कर लिया ।वे लोग राजवीर को ठिकाने लगाने के तरीके सोच रहे थे। राजवीर शिखर से उतर कर अपनी टीम के पास गया और उनको मंदिर के अगले हिस्से में घुसने के तरीके समझाने लगा।
राजवीर: हमारे कुछ लोग अंदर हैं, लेकिन अर्जुन का एक भी आदमी नज़र नहीं आ रहा। हमने उन्हें आज नहीं पकड़ा तो, वह लोग हमारे हाथ से निकल जाएँगे। हमें जल्दी ही कुछ करना होगा। मानसिंह तुम मंदिर के हर तरफ़ अपने आदमी लगा दो ...जैसे ही वह बाहर निकले उन्हें हम पकड़ लेंगे।
राजवीर के लोग मंदिर के गर्भगृह में टीम अर्जुन को ढूँढ रहे थे, तभी अचानक काफ़ी देर से खुला गर्भगृह का दरवाज़ा बंद होने लगा। सब तेजी से दरवाज़े की तरफ़ भागने लगे... सबके वहाँ से निकलने से पहले ही दरवाज़ा बंद हो गया और दो लोग वहीं अंदर फँस गए।
बाहर निकल गए लोगों को तीरों का सामना करना पड़ा, जिसमें राजवीर का एक आदमी ज़ख़्मी हो गया। बाहर जाते ही टीम राजवीर फिर से भूल-भूलैया में फँस गयी थी। दूसरी तरफ़ टीम अर्जुन को वापस लौटने की कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी। उन्हें आगे बढ़ते रहना था, लेकिन सब थक चुके थे। उन्हें इस मंदिर में बीस घंटे से ज़्यादा हो गए थे...इस वज़ह से उनके पास पीने का पानी भी ख़त्म हो चुका था।
मीरा: मास्टर अब और नहीं चला जाएगा...हमें पहले पानी ढूँढना होगा।
आइशा: हाँ मास्टर, ऐसे तो हम प्यासे मर जाएंगे, हमें यहीं बैठना चाहिए।
मीरा: मास्टर ये बहुत डेंजरस मिशन है, हमें यहाँ आना ही नहीं चाहिए था। हमें इस ख़ज़ाने को ढूँढने की ज़िद छोड़ देनी चाहिए।
टीम को इतनी निराशा में देखकर अर्जुन ख़ुद को बहुत कमज़ोर महसूस कर रहे थे। किसी भी हालत में उन्हें आगे बढ़ने कोशिश करनी ही थी। विक्रम ने डॉ मीरा का हौसला बढ़ाया और वे आगे बढ़ने लगे। थोड़ी दूर चलने के बाद उन्हें पीछे अंधेरे में किसी के आने की आहट सुनाई दी।
सभी डर से सहम गए क्योंकि इस खुली हुई जगह में उनका बचना मुश्किल था। अब उनकी लड़ाई पक्की थी। कदमों की आवाज़ और भी ज़्यादा क़रीब आती जा रही थी। अर्जुन ने सबको पीछे रहने का कहा और अपनी गन निकाल ली, सब मन ही मन यही सोच रहे थे कि इस मिशन पर आकर उनसे गलती हो गई थी।
अर्जुन का चेहरा लाल हो गया था। उन्होंने गन चलाने के लिए ट्रिगर पर हाथ रखा ही था कि उस अंधेरे से विद्वान निकल आया। सबने राहत की साँस ली।
अर्जुन: विद्वान तुम...हम तो सब डर ही गए थे।
विद्वान उम्मीद की किरण की तरह लौटा था। टीम अर्जुन आगे एक रहस्यमय कक्ष में पहुँच चुकी थी। कक्ष पूरा पवित्र वस्तुओं और इंपोर्टेंट शिलालेखों से भरा था। टीम प्राचीन पहेलियों को सुलझा रही थी, उनके पास जो पांडुलिपि वाली किताब थी, उसी से उन्हें बिखरे हुए उन प्राचीन चिन्हों के मतलब निकालते हुए आगे का नक़्शा समझना था, लेकिन ये पहेलियाँ, टीम के लिए अब सर दर्द बनती जा रही थी।
आइशा: मैं इन सब बातों से तंग आ गयी हूँ, हमें बस पहेलियाँ ही मिल रही है...एक के बाद दूसरी पहेली और उसके बाद एक और पहेली...इन सब बातों का कोई मतलब नहीं निकलता मास्टर...हम शायद कभी उस खज़ाने तक नहीं पहुँच पाएँगे।
अर्जुन: तुम क्या कहना चाहती हो? मैं पागल हूँ जो इतनी दूर तक आया हूँ।
आइशा: मैं ऐसा नहीं कह रही मास्टर...मैं अपना काम कर रही हूँ, लेकिन हमें मुश्किलों से बचाने का काम विक्रम का है जो वह बिल्क़ुल नहीं कर पा रहा है। आपको हमेशा सिर्फ़ मेरी ही काबिलियत पर डाउट होता है... जबकि अभी तक विक्रम हमें बचाने में नाकाम रहा है, उसे आप कुछ नहीं कह रहे।
विक्रम: ये तुम क्या बकवास कर रही हो...मैंने अपनी पूरी कोशिश की है, याद नहीं तुम्हें मैंने ही जंगल में भेड़ियों से बचाया था और मुझे क्या करना चाहिए तुम मुझे मत सिखाओ।
अर्जुन: चुप रहो तुम दोनों...और हाँ आइशा तुम पर मैंने कभी भी डाउट नहीं किया है।
विक्रम और आइशा के इस तरह सोचने और लड़ने से टीम में टेंशन बढ़ गयी थी। अपनी टीम में बढ़ते आपसी तनाव से अर्जुन को भी चिंता होने लगी थी। बिना आराम और पानी के लगातार चलते रहने की वज़ह से सबकी हालत ख़राब होने लगी थी। वे लोग अब अपने इमोशंस और ग़ुस्से पर कंट्रोल नहीं कर पा रहे थे।
इससे पहले अर्जुन की लीडरशिप में टीम कभी नहीं बिखरी थी, लेकिन इस बार सब कंट्रोल से बाहर होता जा रहा था। इन सब बातों से पूरी टीम बिख़र रही थी और सबका भरोसा टूटता नज़र आ रहा था। वे लोग बस जैसे-तैसे आगे के रास्ता ढूँढ रहे थे।
मीरा: मास्टर दीवारों के ऊपर इन चिन्हों को देखिए, मुझे लगता है ये कोई पहेली है।लेकिन जब तक इन चिन्हों का मतलब नहीं समझ पाएंगे तब तक पहेली पता नहीं चलेगी।
विद्वान ने अर्जुन से कहा "मैं इस मंदिर के इतना अंदर पहली बार आया हूँ। इस दीवार पर बने चिन्हों में से कुछ चिह्न चोल राजाओं की सांकेतिक भाषा है, जिनका इस्तेमाल वह जानकारी को गुप्त रखने के लिए करते थे।"
अर्जुन: तुम ये सब इतने यक़ीन से कैसे कह रहे हो?
विद्वान ने अर्जुन की बात का हँसते हुए जवाब दिया "मैंने आपको बताया था ना, मेरे पूर्वज जानकारी को एक पीढ़ी से दूसरी तक पहुँचाते रहे है।"
अर्जुन: ये तो बहुत सीक्रेट इन्फ़र्मेशन थी जो राजा छिपाना चाहते थे। क्या आपके पूर्वज चोल राजा के दरबारी थे?
विद्वान ने अर्जुन को बताया कि " मेरे पूर्वज दरबारी नहीं थे। मैं चोल राजाओं का आखिरी वंशज हूँ।
यह सुनकर पूरी टीम शॉक्ड रह गयी। उस मंदिर की सिक्योरिटी के लिए चोल राजाओं ने उसमें जाल बिछाए थे और उन्हीं महान चोल राजाओं का आखिरी वंशज अर्जुन के सामने खड़ा था। विद्वान के शरीर पर कई ऐसे चिह्न बने थे जो उस दीवार पर भी बने थे। विद्वान ने उन चिन्हों के मतलब समझाएँ, जिससे पहेली को समझने में आसानी हो। आइशा और अर्जुन उसका मतलब जानने में लग गए।
आइशा: मास्टर मुझे लगता है पहेली में बने चिह्न ही नक़्शा है।
अर्जुन: मुझे भी यही लगता है, तुम और क्या बता सकते हो विद्वान।
अर्जुन की मदद करने के लिए विद्वान ने जितना उसे पता था सब बात दिया-मुझे इससे ज़्यादा नहीं पता है, लेकिन पांडुलिपि की किताब में इन चिन्हों के मतलब मिलेंगे।
अर्जुन और आइश बाक़ी चिन्हों का मतलब पांडुलिपियों की किताब में ढूँढने लगे। उस किताब में से एक पन्ना किसी ने फाड़ दिया था। पूरी टीम इस बात से हैरान थी क्योंकि उस फटे पन्ने को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कुछ देर पहले ही इससे पन्ना फाड़ा गया हो।
अर्जुन: हमारे बीच में ही कोई है, जिसने धोखा दिया है। मुझे अभी बता दोगे तो मैं माफ़ कर दूंगा, बाद में मुझे पता चला तो मैं छोड़ूंगा नहीं।
सबको इस बात से हैरानी हो रही थी, क्योंकि उनमें से वह कौन था, जो नहीं चाहता था कि पहेली पूरी हो। किसी को नहीं पता था आख़िर वह है कौन? टीम में कोई तो धोखेबाज़ था। अर्जुन ने सबसे पूछा, लेकिन सबने ख़ुद को ईमानदार बताया।
कुछ देर बाद आइशा और अर्जुन ने उस पहेली को अपने-अपने हिसाब से सुलझा लिया था, उन्हें एक और मंदिर में जाना होगा, जिसके तहख़ाने में खजाना मिलेगा...लेकिन दोनों के हिसाब से इस पहेली का जवाब दो अलग-अलग जगहों पर मिलना था। पहेली का जवाब दो टुकड़ों में मिला था। अर्जुन और आइशा अभी इसी बात पर बहस कर रहे थे।
आइशा: चोल राजाओं की राजधानी तंजौर थी, इसलिए मुझे लगता है हमें तंजौर के आस पास ही कहीं ये जगह मिलेगी।
अर्जुन: मुझे यक़ीन है हमें यहीं इसी जंगल में एक और मंदिर मिलेगा।
दोनों ने पहेली को फिर से समझा और उन्हें ये पता चला कि वह दोनों सही थे। उन दोनों जगहों पर खज़ाने के हिस्से थे। पूरी टीम इस बात से खुश थी, लेकिन सबको पता था कि कोई तो उनके बीच में ग़द्दार था।
एक दूसरे के ऊपर से उठते विश्वास के साथ अर्जुन की टीम जूझ रही थी, लेकिन उनको किसी भी हाल में अब बाहर निकलना था, इसलिए वे लोग साथ मिलकर मंदिर से बाहर निकलने की योजना बनाने लगे। दूसरी तरफ़ राजवीर बाहर अपने आदमियों के साथ उन्हें पकड़ने के लिए तैयार बैठा था।
क्या अर्जुन की टीम राजवीर से बचकर निकाल पाएगी? क्या अर्जुन अपनी टीम में ग़द्दार का पता कर पाएगा? और क्यों बचा हुआ है आज तक चोल साम्राज्य का आख़री वंशज? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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