इधर अर्जुन और उसकी पूरी टीम पर लगातार हमले हो रहे थे। टीम के अंदर धीरे-धीरे मनमुटाव बढ़ता जा रहा था। अर्जुन का मिशन अब कमज़ोर पड़ने लगा था। जबकि उधर राजवीर अपनी ताक़त लगातार बढ़ाता ही जा रहा था। देश के कई बड़े और ऊपर तक पहुँच रखने वाले लोगों के साथ उसका बैठना था।

राजवीर की ताकत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता था कि जंगल में मोबाइल का नेटवर्क नहीं मिलने के बाद भी वह D-टू-M टेक्निक से शहर में बैठे आला अफसरों से कनेक्टेड रहता था। ख़जाने की इनफार्मेशन लीक न हो, इसलिए इस मेटर को वह ख़ुद ही देख रहा था और इसीलिए वह ख़ुद इस ख़तरनाक जंगल में आया था।

ख़जाने की ख़ोज में उसके कई लोग मारे गये थे, लेकिन अभी तक उसके हाथ कुछ ख़ास नहीं लगा था, इसलिए राजवीर थोड़ा निराश हो गया था। एक शाम वह अकेला ही जंगल में घूमते हुए कुछ सोच रहा था, तभी उसके पास कर्नल आदित्य ठाकुर का काल आया।

राजवीर: कर्नल… आई मस्ट से, इट्स माय लकी डे टूडे... जो देश का एक सच्चा जनसेवक, मुझ जैसे छोटे-मोटे इंसान को फ़ोन कर रहा हैं...और बताओ कैसी चल रहीं हैं आपकी जनसेवा. 

"सो काइन्ड ऑफ यू! बस देश की जनता की...जब-तक जनता महरबान, तब-तक नेता पहलवान" , कर्नल ने उसकी बात का जवाब दिया। कर्नल की इस बात पर दोनों बहुत देर तक ठहाके मारकर हँसते रहे... "और बताइये क्या चल रहा हैं आजकल" , राजवीर ने पूछा। "कुछ ख़ास नहीं। अगले साल चुनाव की तैयारी चल रही हैं और इसके लिए पार्टी को फण्ड की ज़रूरत हैं। बस उसी को पूरा करने में लगे हैं... अब पार्टी को फंड देंगे, तभी तो पार्टी टिकट देगी न राजवीर बाबू" , कर्नल ने कहा।

राजवीर: आपके फंड की जुगाड़ हम कर देते हैं कर्नल साहब, आ जाइये केरल के जंगल में और जितना फंड चाहिए, ले जाइए।

जंगल में? आजकल पैसे जंगल में रखने लगे हैं क्या? कर्नल ने चौंक कर राजवीर से पूछा। राजवीर ने कर्नल को उसके जंगल में होने के पीछे का कारण बताया। कर्नल को राजवीर की बातों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था। उसको लग रहा था, राजवीर उसके साथ कोई मज़ाक कर रहा हैं, लेकिन जब राजवीर ने उसको अपने और मंदिर के वीडियो भेजे तक उसको यक़ीन हुआ।

"मैं इस ख़जाने के लिए केरल के जंगल में तो क्या, मैं कहीं भी जाकर खुदाई कर सकता हूँ। बताओं फिर क्या प्लान हैं?" कर्नल ने राजवीर से पूछा।

कर्नल की हाँ के साथ ही राजवीर खुश हो गया। वह समझ गया था, अर्जुन और उसकी टीम से निपटने में उसके आदमी सक्षम नहीं हैं। कर्नल के पास ट्रैंड आदमी और हथियारों की कमी नहीं थी।

कर्नल, बम रखकर मंदिर के चीथड़े उड़ा सकता था और कुछ प्रॉब्लम होने पर मीडिया-प्रशासन को भी मैनेज़ कर सकता था, इसलिए राजवीर ने कर्नल को जल्दी से जल्दी वहाँ पहुँचने के लिए कहा।

उधर मानसिंह, राहुल और स्नेहा एक गुप्त जग़ह पर बैठकर राजवीर को मारने की तरकीबें सोच रहे थे। उनको डर था कि अगर राजवीर ज़िंदा बच गया, तो हम तीनों मारें जायेंगे। इसलिए एक फूल प्रूफ प्लान बनाना बहुत ज़रूरी था।

राहुल गहरी सोच में डूबा हुआ था। तभी उसको मानसिंह के लोग बलवीर और संजय आते हुए दिखाई दिए। उनको देखकर राहुल और स्नेहा दोनों छुप गए। मानसिंह वहीं बैठा रहा, लेकिन उन दोनों को मानसिंह दिखाई नहीं दिया। वे दोनों किसी कर्नल के आने की बात करते हुए जा रहे थे।

बलवीर ने कहा, "संजय, मैंने तो ये भी सुना है कि राजवीर का कोई दोस्त हैं कर्नल... वह अपने आदमी और हथियार लेकर आ रहा है।" क्या बात कर रहा हैं भाई... संजय ने चौंकते हुए कहा। बलवीर ने फिर कहा, "मानसिंह की वज़ह से राजवीर ने अपने बहुत से लोग खो दिए हैं। इसलिए वह अब मानसिंह पर भरोसा नहीं करता। अब कोई तो चाहिए न राजवीर को ख़जाना ढूँढने में साथ देने वाला।"

मानसिंह तो बेवकूफ़ आदमी हैं, उससे गली के कुत्ते नहीं डरते, फिर अर्जुन और उसकी टीम तो क्या ही डरेगी। राजवीर ने पता नहीं क्या सोचकर मानसिंह को हमारी टीम का लीडर बना दिया था, संजय ने कहा और दोनों हँसते हुए वहाँ से चले गए।

मानसिंह, अपने ही आदमियों से अपने बारें में ऐसी बातें सुनकर, जल-भूनकर रह गया था। इधर राहुल की हसीं नहीं रुक रहीं थी। वह बहुत देर तक पेट-पकड़कर बहुत देर तक हँसता रहा और मानसिंह उसको बुरा भला कहता रहा।

इधर राजवीर की टीम अर्जुन और उसके साथियों का बाहर निकलने का इंतज़ार करते हुए थकने लगी थी। उनको लगने लगा था, कहीं ये लोग अंदर ही फँसकर मारें तो नहीं गए? जबकि उन्हें चक्र-व्यूह में अंदर गए, अपने ही साथियों की परवाह नहीं थी, क्योंकि राजवीर कह चुका था "उनका मरना तय हैं, उनका कुछ नहीं किया जा सकता।"

उधर विद्वान, अर्जुन और उसकी पूरी टीम को एक ऐसे गुप्त रास्तें से लेकर आगे बढ़ रहा था, जो मंदिर से बहुत दूर जाकर निकलता था। लगभग आधा दिन चलने के बाद उनको सुरंग में बाहर से आती हुई थोड़ी रोशनी दिखाई दी। रोशनी देखकर टीम खुश हो गयी। टीम ख़ुशी से चिल्लाने लगी लेकिन विद्वान के कुछ कहने के बाद सब सावधान हो गए थे।

विक्रम ने अपना चेहरा निकालकर सुरंग से बाहर देखा, वहाँ 2 छोटे खरगोशों के अलावा कोई नहीं था। इसके बाद पूरी टीम, एक-एक कर बाहर निकली।

आइशा बाहर निकलकर बहुत देर तक खुले आसमान और हरियाली को निहारती रही। डॉ मीरा की आँखों से ख़ुशी के आंसू बह रहे थे। उन सबने विद्वान को थैंक्स कहा और अपने अगले ठिकाने की तरफ़ आगे बढ़ गए।

हेलीकॉप्टर की आवाज़ से मंदिर के आसपास का पूरा आसमान गूंज उठा था। राजवीर अपने दोस्त का वेलकम करने के लिए लेंडिंग साइड पर ही खड़ा था। कर्नल अपने साथ लगभग 50 गनर और भारी-भरकम हथियार लेकर आया था। एक प्लैन में सामान आया था और हेलीकॉप्टर में वह ख़ुद आया था। आते ही राजवीर ने गले लगकर उसका स्वागत किया।

राजवीर: वेलकम टू जंगल माय फ्रेंड। 

कर्नल ने राजवीर को गले लगते हुए कहा-"क्या बात हैं राजवीर...मैंने कभी सोचा नहीं था कि यहाँ इतनी वीरान जग़ह पर भी इतना बड़ा मंदिर हो सकता हैं, अगर मुझे पता होता कि यहाँ इतना बड़ा ख़जाना छुपा पड़ा हैं, तो मैं तुमसे पहले ही उड़ा ले जाता।"

कर्नल की इस बात पर ठहाके गूँज उठे। राजवीर ने कर्नल को मंदिर की हिस्ट्री, जियोलॉजी और उस समय की सिचुएशन बहुत डीप में जाकर समझाई। राजवीर की बात सुनकर कर्नल शॉक्ड रह गया।

कर्नल ने कहा "मतलब, तुम ये कहना चाहते हो कि तुम्हारे कुछ आदमी एक चक्र-व्यूह में घूम रहे हैं और बाहर निकल ही नहीं पा रहे हैं। उनको निकालने का कोई भी रास्ता नहीं हैं? और कुछ रिसर्चरों की एक टीम भी अंदर ही फँसी हुई हैं?"

राजवीर: मैंने उन रिसर्चर्स को मंदिर के शिखर से चक्रव्यूह में घूमते देखा हैं, लेकिन बाद में वे लोग कहीं गायब हो गए और उसके बाद से आज तक बाहर नहीं आये। हो सकता हैं कि उन लोगों को कोई गुप्त रास्ता मिल गया हो और वे लोग जंगल में दूर निकल गए हो।

राजवीर की बात सुनकर, कर्नल सोच में पड़ गया था। वह थोड़ी देर सोचने के बाद बोला, " लेकिन हमें तो ख़जाने से मतलब हैं न? वो... क्या नाम बताया तुमने? अर्जुन, हाँ... उस टीम और उनके लोगों से हमें क्या करना?

राजवीर: यहीं तो प्रॉब्लम हैं न ... मेरे भाई, उन लोगों के पास ही ख़जाने की जानकारी हैं, उनके बिना हम खज़ाने तक पहुँच ही नहीं सकते, इसलिए उनको ढूँढना बहुत ज़रूरी हैं।

राजवीर की बात सुनकर कर्नल ने अपना माथा पकड़ लिया और मन में कहा कि किस चिरकुट मंडली में फँस गया यार। कर्नल ने राजवीर से आगे का प्लान पूछा।

उधर अर्जुन और उसकी टीम को काफ़ी टाइम बाद खुली हवा में चैन की नींद सोने का मौका मिला था, इसलिए वे अपनी थकान मिटाने के लिए घोड़े बेचकर सोये हुए थे, तभी बहुत सारे कदमों की आहाट एक साथ आई। सम्राट ने उठकर देखा, कुछ दूरी पर लगभग 20-30 हथियारबंद लोग खड़े थे।

सम्राट समझ गया, उन-पर हमला हुआ हैं। उसने जल्दी से अपनी टीम को उठाया। वे लोग नींद में कुछ समझ पाते, उससे पहले ही उन-पर फायरिंग शुरू हो गयी। टीम के लोगों ने गिरते-पड़ते हुए इधर-उधर भागना शुरू कर दिया। वे लोग बंदूक की गोली का सामना करने की हालत में नहीं थे, इसलिए वे चट्टान के पीछे छुपने के लिए भागे, तभी विद्वान ने उनको आवाज़ लगाई, "इस तरफ़... जल्दी करो..."

विद्वान ने टीम को एक ऐसी सुरंग में जाने का इशारा किया, जो आगे चलकर कई पार्ट्स में डिवाइड हो जाती थी। टीम उस सुरंग से होकर भागने लगी। आगे चलकर उनको लगभग 10-15 रास्ते दिखाई दिए। टीम डिवाइड हो चुकी थी, कोई किसी रास्तें से भाग रहा था तो कोई किसी रास्ते से।

विद्वान को पता था, राजवीर के लोग उनके पीछे ज़रूर आएंगे, इसलिए उसने इस सुरंग को आगे चलकर बंद कर दिया था। विद्वान के साथ सम्राट भी था। वे दोनों भागते-भागते सुरंग के दूसरे छोर तक पहुँच चुके थे और बाकि लोग दूसरी सुरंगो में थे।

विद्वान और विक्रम सुरंग से बाहर निकले। उनको कुछ हथियार-बंद लोग उनकी तरफ़ ही आते हुए दिखाई दिए। वह दोनों अपनी पूरी ताकत लगाकर दौड़े और पास की नदी में कूद कर गायब हो गए। नदी की तेज़ धार उनको बहुत दूर बहा-कर ले गयी थी।

इधर विक्रम का भी कुछ ऐसा ही हाल था। वह सुरंग से निकलकर, एक सूखे पड़े पुराने कुएँ में जाकर छुप गया था। आइशा और मीरा, सुरंग से निकलकर एक घने जंगल में कहीं गायब हो गयी थी और अर्जुन भागता हुआ एक पुराने मंदिर में जा छुपा था।

अर्जुन का मिशन, विज़न और टीम, सब-कुछ एक ताश के पत्तों की तरह बिखर चुके थे। वह मंदिर के दिवार से टिककर बैठ गया। उसकी आँखों से कई सालों का सपना, अब आंसू बनकर बह रहा था।

क्या अर्जुन फिर से अपनी टीम खड़ी कर पायेगा? या फिर अपना सपना छोड़कर वापस लौट जायेगा? जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

 

 

Continue to next

No reviews available for this chapter.