​​मीरा की आँखों पर सूरज की सुनहरी किरणें पड़ रही थीं। उसने अपना हाथ ऊपर उठाकर किरणों को आँखों तक पहुँचने से रोका और सामने देखा। मैदान के उस पार एक बड़ा-सा पेड़ था। मीरा को वहाँ तक जाना था। हर तरफ़ फूल खिले हुए थे। मीरा उनके बीच से भाग रही थी, उस पेड़ तक जाने की कोशिश कर रही थी। भागते हुए उसके हाथ खिले हुए फूलों से टकरा रहे थे। मीरा के चेहरे पर मुस्कान थी और आँखों में चमक। मीरा खुश थी। ​

 

 

​​तभी उसके फ़ोन की घंटी बजने लगी। मीरा भागते-भागते रुक गई। जहाँ से आवाज़ आ रही थी, उसने उस तरफ़ देखा। झाड़ियों के बीच में उसका फ़ोन पड़ा हुआ था। मीरा फ़ोन के पास पहुँची और फ़ोन ज़मीन से उठाने की कोशिश करने लगी, लेकिन फ़ोन उसके हाथ लग ही नहीं रहा था। बड़ी मशक्कत के बाद मीरा ने फ़ोन हाथ में लिया। फ़ोन की स्क्रीन ब्लैक थी, लेकिन फ़ोन की घंटी तो बज रही थी। ​

​​उसने फ़ोन ज़मीन से उठाकर कान पर लगाया। ​

 

​​निकिता : ​

​​ मीरा! कहाँ हो तुम? मैं तुम्हारे घर के बाहर खड़ी हूँ। ​

 

 

​​निकिता की आवाज़ सुनकर मीरा की आँखें खुल गईं। उसकी नींद टूटी और साथ ही में चल रहा सपना भी। उसने आँखों पर ज़ोर डालकर अपने आसपास देखा। वह रोहन के कमरे में, उसके बिस्तर पर लेटी हुई थी। उसने अपने ऊपर का कंबल हटाकर अंदर झांका और वह एकदम चौंक गई। उसने कपड़े नहीं पहने हुए थे। ​

 

​​निकिता: ​

​​मीरा! सुन भी रही हो? कहाँ हो? हम आज साथ में ब्रेकफास्ट करके अपने-अपने ऑफिस निकलने वाले थे। यही कहा था ना रात को मैसेज करके तुमने मुझसे? ​

 

​​मीरा : ​

​​ अरे यार... नींद तो खुल जाए मेरी। ​

 

​​निकिता: ​

​​ पर तू है कहाँ? ​

 

​​मीरा: ​

​​ मैं... मैं रोहन के घर पर हूँ। ​

 

​​निकिता: ​

​​ क्या? तू अभी तक वहाँ क्या कर रही है? घड़ी देख, वक़्त क्या हो रहा है? ऑफिस भी जाना है, लेट हो जाएगा। ​

 

​​मीरा: ​

​​ एक प्रॉब्लम हो गई है यार... मिलकर बताती हूँ। बस आधा घंटा दे मुझे, मैं पहुँच रही हूँ। ​

 

 

​​मीरा ने फ़ोन रखा और पहले तो उसने जायजा लिया कि रोहन कहाँ पर है। पर रोहन शायद ऑफिस के लिए निकल चुका था। ​

​​मीरा उठकर वॉशरूम में गई और उसने सबसे पहले तो अपने मुँह पर पानी मारा ताकि उसकी नींद अच्छे से खुल जाए और कल रात आख़िर क्या हुआ था, ये वह याद कर पाए। उसे सबसे पहले तो यही नहीं समझ में आ रहा था कि वह रोहन के कमरे में कब और कैसे आई। उसके सारे कपड़े कमरे में बिखरे पड़े थे। उसने अंदाजा लगा लिया था कि कल रात क्या हुआ होगा। ​

 

​​उसने पहनने के लिए गेस्ट रूम वाली अलमारी से कपड़े निकाले और नहा कर वह जल्दी से अपने घर के लिए निकल गई। उसका सिर दर्द से फट रहा था। अब उसे बस एक चाय की ज़रूरत थी। वह घर गई। निकिता उसका वहाँ इंतज़ार ही कर रही थी। वे दोनों वहाँ से निकलकर फिर एक कैफे में जाकर बैठे। ​

 

​​निकिता: ​

​​क्या? तुम पागल तो नहीं हो गई हो? आर यू श्योर? मुझे पता है, तुमने कल ज़्यादा पी ली होगी और अब तुम्हें कुछ याद भी नहीं है। बस अंदाजा लगाने से कुछ नहीं होगा। ​

 

​​मीरा: ​

मैं भी महसूस कर सकती हूँ। 

 

 

​​निकिता: ​

​​फिर तो गड़बड़ हो जाएगी। ​

 

​​मीरा: ​

​​ कैसे होगी? नहीं होगी गड़बड़। कोई इस बात का ज़िक्र ही नहीं करेगा और मुझे पता है, रोहन भी ऐसे ही बर्ताव करेगा जैसे कल रात कुछ हुआ ही नहीं है। ​

 

​​निकिता: ​

​​ हह! आई होप सो... बट आई नो हिम वेल। वह ज़रूर इस बारे में अपने दोस्तों के सामने डींग मारेगा। ​

 

​​मीरा फिलहाल कुछ सोचना नहीं चाहती थी। उसे इस वक़्त बस उसकी चाय शांति से पीनी थी। ​

 

​​राजन: ​

​​ वॉट? क्या बात कर रहा है? नशे में तो नहीं है तू? ​

 

 

​​रोहन, राजन और समीर ऑफिस के नीचे चाय-सुट्टा ब्रेक के लिए खड़े थे। तब रोहन ने उन दोनों को कल जो हुआ उस बारे में बताया और वे दोनों ही सुनकर शॉक्ड थे। ​

 

​​समीर: ​

​​ एक मिनट... मतलब तू ये कहना चाह रहा है कि कल हम सबके घर जाने के बाद मीरा रात को तेरे घर पर ही रुक गई और तुम्हारी कुतिया बर्बरी के मिलने की ख़ुशी में, तुम दोनों ने वाइन और बीयर पी ली और फिर उसके बाद रात को... वाह यार! मान गए तुझे तो! ​

 

​​रोहन: ​

​​ वह कल रात होश में नहीं थी। लेकिन मैं होश में था। पर मैं अपने आप पर कंट्रोल नहीं कर पाया। अब मुझे डर बस इस बात का है कि कहीं वह इमोशनल होकर तलाक लेने से ही इनकार ना कर दे। ​

 

​​राजन: ​

​​नहीं। मैं तो कहता हूँ तू कल वाली बात का अलग तरीके से फायदा ले सकता है। मीरा इमोशनल अगर होती है कल वाली रात को लेकर, तो उसे म्यूचूअल डिवोर्स के लिए फिर एक बार मना ले। ​

 

 

​​रोहन: ​

​​ ये तो उसको मैनिपुलेट करने वाली बात हो जाएगी? ​

 

​​समीर: ​

​​तो वह क्या कर रही है? एक नताशा वाली बात पकड़कर घसीटे जा रही है चीज़ों को। तो हमें भी तो थोड़ा दिमाग़ लगाकर चलना पड़ेगा ना। ​

 

 

​​राजन: ​

​​ वैसे मैं ये सोच रहा था कि अगर मीरा इमोशनल होकर तलाक लेने से ही मना कर देती है, तो उसमें दिक्कत क्या है। देखो, सेक्शुअल अट्रैक्शन तो तुम दोनों में अभी भी है, फिर बाक़ी सारी चीजें भी वापस ठीक नहीं हो सकतीं? ​

 

​​रोहन: ​

​​ पिछली बार की थी ना तुम दोनों ने कोशिश? पार्टी रखी थी? क्या हुआ उस दिन? उसी दिन की वज़ह से आज वह म्युचुअल डिवोर्स के लिए मना कर रही है ना? ​

​​हमारा अब कुछ नहीं होने वाला। वापस साथ भी आएंगे तो, बाद में सब खराब ही होना है। पहले भी कर चुके हैं कोशिश कितनी बार! कुछ ठीक हुआ है आज तक? ​

 

 

​​रोहन की बात से राजन और समीर चुप हो गए और रोहन ने अपनी सिगरेट को पैरों तले कुचल कर बुझा दिया। ​

 

 

​​उस दिन के बाद दो दिन बीत गए। मीरा की उस दिन एडवोकेट नीरज के साथ अपॉइंटमेंट थी। आगे की प्रोसीडिंग्स और उसके केस रिलेटेड बाक़ी सारी चीजें वह उसे बताने वाला था। ​

​​रोहन के घर उस रात जो हुआ, उस बात को लेकर मीरा अभी तक सोच रही थी और बड़ा अजीब-सा महसूस कर रही थी। रोहन के मुताबिक मीरा को उस रात को लेकर इमोशनल हो जाना चाहिए था। लेकिन मीरा इमोशनल से ज़्यादा तो शर्मिंदा महसूस कर रही थी ​​क्योंकि उन दोनों के बीच में अब तक इतने झगड़े, इतनी दूरियाँ आ चुकी थीं, उसके बाद उस रात जो हुआ वो, कहीं से कहीं भी मीरा को सही नहीं लग रहा था। इसलिए उसे उस बात से अब शर्मिंदगी के अलावा और कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था। ​

 

​​नोटिस पीरियड चल रहा था और ऑफिस के काम को वैसे ही मीरा ने अब ज़्यादा सीरियस लेना छोड़ दिया था। ​

 

​​आज उसकी नीरज के साथ मीटिंग थी। दो दिन से उसने उस रात के बारे में सोचने के सिवाय और कुछ भी नहीं किया था। लेकिन आज जब वह नीरज से मिलने की तैयारी कर रही थी, तो उसका ध्यान उस रात की बात से हट चुका था। केस से ज़्यादा, उसे इस बात की ख़ुशी थी कि वह नीरज से मिलने जा रही है। यही वज़ह थी कि वह बहुत अच्छे से तैयार होकर, मेकअप करके मीटिंग के लिए निकल पड़ी। ​

 

​​मीटिंग बाहर एक कैफे में थी, क्योंकि यह कैफे न सिर्फ़ मीरा के ऑफिस से बल्कि नीरज के घर से भी करीब था। मीरा के कहने पर नीरज ने यह मीटिंग यहाँ रखी। ​

​​नीरज के लिए यह सिर्फ़ एक मीटिंग थी, लेकिन मीरा इसे एक डेट की तरह देख रही थी। ​

 

​​जब मीरा कैफे पहुँची, तो उसने देखा कि नीरज पहले से वहाँ आकर उसका इंतज़ार कर रहा था। ​

 

​​मीरा को देखते ही वह अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और मीरा से हाथ मिलाते हुए उसे सामने वाली कुर्सी पर बैठने के लिए कहा। मीरा को वहाँ पहुँचने के बाद ऐसा लगने लगा कि शायद वह कुछ ज़्यादा ही सजधज कर आ गई है और जिस इंसान के लिए वह इतनी तैयार हुई थी, वह बड़ी मुश्किल से एक-दो बार उसे देखकर बात कर रहा था। ​

 

​​निरज वैसे भी दिखने में थोड़ा शर्मीला टाइप का था। तो मीरा ने सोचा कि शायद वह उसे देखना तो चाहता होगा, लेकिन शर्म की वज़ह से देख नहीं पा रहा होगा। ​

 

​​मीरा: ​

​​"तुम्हारी उम्र कितनी है?" ​

 

​​मीरा ने बीच में ही नीरज की बात को रोककर उससे सवाल किया। ​

 

​​दरअसल, मीरा का वैसे भी नीरज केस के बारे में क्या बात कर रहा था, इस पर ध्यान नहीं था। लेकिन मीरा के इस सवाल से नीरज के चेहरे पर अजीब से भाव आ गए। इन भावों को देखकर मीरा को समझ में आ गया कि उसे पहली ही मीटिंग में ऐसे निजी सवाल नहीं पूछने चाहिए थे। इसीलिए अपनी बात को संभालते हुए उसने कहा-​

 

​​मीरा: ​

​​"मैं इसीलिए पूछ रही थी क्योंकि...तुम बहुत कम उम्र के लगते हो। लेकिन तुम्हारे पास नॉलेज काफ़ी है।" ​

 

 

​​मीरा को अब यह सब बोलकर भी अजीब लग रहा था कि बात संभालने के चक्कर में उसने और कुछ उल्टा-सुल्टा तो नहीं बोल दिया। लेकिन नीरज ने माहौल को हल्का रखते हुए कहा-​

 

​​नीरज: ​

​​"मैं दरअसल 32 साल का हूँ। यह सब अर्जुन सर की गाइडेंस है, बाक़ी और कुछ नहीं।" ​

 

 

​​मीरा, ​

​​"ओह्ह! तो नीरज मुझसे उम्र में 6 साल छोटा है। पर आजकल चलता है। सेलिब्रिटीज में तो यही ट्रेंड है।"-मीरा ने मन में सोचा। ​

 

 

​​नीरज अब केस के बारे में आगे बात करने लगा। लेकिन मीरा का ध्यान बस नीरज के सुंदर चेहरे को निहारने में था। बीच-बीच में उसे नीरज की बातें तो सुनाई दे रही थीं, लेकिन उसकी अब केस के बारे में बात करने की या सुनने की ज़रा भी इच्छा नहीं थी। वह इस पल को खराब नहीं करना चाहती थी। ​

 

 

 

​​उधर, रात में रोहन के मम्मी-पापा अचानक से उसके घर आ गए, बिना बताए। ​

​​रोहन तभी पीने के लिए बियर की बोतल बाहर निकाल ही रहा था कि दरवाज़े की घंटी बजी। उसने बोतल वापस फ्रिज में पीछे छिपा दी। ​

 

​​दरवाज़ा खोला और सामने मम्मी-पापा को देखकर वह कंफ्यूज हो गया। ​

 

​​रोहन: ​

​​"मम्मी? पापा? आप लोग इस वक़्त यहाँ? सब ठीक है?" ​

 

​​मम्मी: ​

​​"हाँ, सब ठीक है। हमें क्या होगा?" ​-

​​ मम्मी ने जवाब दिया। ​

 

 

​​रोहन ने उन्हें अंदर बुलाया और दरवाज़ा बंद करके ख़ुद भी अंदर आ गया। ​

 

​​रोहन: ​

​​"बैठिए, पानी लाता हूँ।" ​

 

​​पापा: ​

​​"बेटा, हम यहाँ बैठने नहीं आए हैं।"​

 

​​मम्मी: ​

​​"हम बस यह कहने आए हैं कि एक लड़की देखी है तुम्हारे लिए। तुम भी देख लो। फोटो लाई हूँ साथ में। बताना तुम्हें कैसी लगती है।"

 

​​रोहन की मम्मी ने अपने पर्स में से फ़ोन निकाला और लड़की की फोटो रोहन को दिखाई। ​

​​रोहन ने उस फोटो की तरफ़ देखा तक नहीं। ​

 

​​रोहन: ​

​​"यह सब अचानक से क्यों? क्या हो गया है आप लोगों को?"

 

 

​​मम्मी: ​

​​"अरे बेटा, देख तो ले। अच्छे घर की संस्कारी लड़की है। पहले ही हमारी पसंद से शादी कर लेता तो आज यह नौबत आती ही नहीं। इस बार तो सुन ले हमारी।" ​

 

​​पापा: ​

​​"हमने तो पसंद कर ली है बेटा। अब तू देख कर बता कि तुझे कैसी लगती है, तो हम बात आगे बढ़ाएँ।"​

 

​​रोहन: ​

​​"एक मिनट, एक मिनट। आप लोग सांस तो लीजिए और मेरा तलाक होने वाला है, अभी तक हुआ नहीं है और जब तक डिवोर्स  नहीं होता, मैं दूसरी शादी नहीं कर सकता।"

​​​मम्मी: ​

​​"तो तुझे अभी कौन बोल रहा है शादी करने के लिए? पहले देख ले, मिल ले, पसंद करके रख। शादी हो जाएगी जब होनी होगी। यह कोर्ट-कचहरी तो चलता रहेगा। उस चक्कर में अच्छी लड़की मत गंवा देना।" ​

 

 

​​रोहन उन दोनों की बातों से हैरान था। इतनी रात को वे उसके लिए लड़की का रिश्ता लेकर आए थे। ​

​​रोहन को समझ नहीं आ रहा था कि अब इतनी सारी परेशानियों के बीच में वह इन दोनों से कैसे डील करे? ​

 

​​क्या रोहन के मम्मी-पापा उसकी इस नई लड़की के साथ मीटिंग फिक्स कराकर ही मानेंगे? और अगर रोहन को लड़की पसंद आ जाती है, तो क्या वह शादी के लिए मान जाएगा? ​

​​क्या यह नया ट्विस्ट रोहन और मेहरा के रिश्ते को तोड़ने में और आसानी पैदा कर देगा? ​

 

जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड। 

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