कोर्ट में बैठा राकेश माधवानी एक बार फिर अपने अतीत में गोते लगा रहा था। कितनी खुशहाल जिंदगी थी उसकी कुछ सालो पहले तक। आज भी बिजनेस की बुलंदियों को छूते हुए लगातार राकेश अपनी कंपनी को सक्सेस दिला रहा था। राकेश, मीनाक्षी और अंशुल इन तीनों का ये परिवार था तो छोटा पर खुश था। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद राकेश ने अपनी मेहनत और टैलेंट के दम पर एक कंपनी स्टार्ट की जिसमें उसे अपनी पत्नी मीनाक्षी का पूरा साथ मिला। ये कंपनी हर दिन नई ऊंचाई को छू हो रही थी।  धीरे-धीरे उनका ये परिवार बढ़ता गया और राकेश मीनाक्षी को एक प्यारा सा बेटा हुआ जिसका नाम, उन्होंने अंशुल रखा। रोज़  जल्दी तैयार होकर ऑफिस जाना और शाम को पूरा वक्त अपने परिवार को देना बस यही, एक छोटी सी जिंदगी राकेश माधवनी जी रहा था। धीरे-धीरे अंशुल बड़ा होने लगा और स्कूल जाने लगा। कहते हैं बेटा जैसे बड़ा होता जाता है एक पिता का सीना उतना ही मज़बूत  होता जाता है। 8th क्लास में अंशुल आज अपने फाइनल रिजल्ट को देखने के लिए स्कूल जा रहा था। हमेशा की तरह नाश्ते में नखरा करने के बाद अंशुल ने अपने पापा की तरफ देखते हुए कहा” डैड फाइनली  आज मेरा रिजल्ट आ रहा हैं। अपने प्रॉमिस किया था कि अगर आज मुझे अच्छे मार्क्स आए तो, आप मुझे जो मैं मांगूंगा, वो देंगे। आपको अपना प्रॉमिस याद तो हैं ना?”

अंशुल की बात सुनकर मीनाक्षी जो किचन में अंशुल के लिए टिफिन पैक कर रही थी उसने, बाहर आते हुए कहा” कोई जरूरत नहीं है इसे बिगड़ने की राकेश। दिन ब दिन इसकी बदमाशीयां बढ़ती जा रही है और डिमांड भी। कभी यह चाहिए कभी वह चाहिए।…. कुछ नहीं मिलेगा । चुपचाप स्कूल जाओ और रिजल्ट मिलते ही सीधे घर आओगे। ड्राइवर अंकल को  परेशान मत करना समझे तुम !”

अपनी मम्मी की डांट सुनकर अंशुल ने प्यार से क्यूट सा फेस बनाते हुए अपने पापा को देखा और आंखों में हलके आंसू लाते हुए बोला” डैडी देखा आपने मम्मा हमेशा मुझे डांटती है। स्कूल से रिजल्ट लेने  के बाद मैं घर ही नहीं आऊंगा फिर देखता हूं मम्मा किसे डाटेंगी ?”

अंशुल की बात सुनकर मीनाक्षी ने उसके सर पर हल्की सी टपली मारते हुए कहा” अच्छा जी अगर घर नहीं जाओगे तो कहां जाओगे? अब बातें बंद करो और जल्दी से अपना टिफिन लेकर स्कूल जाओ।” इतना कहकर मीनाक्षी ने प्यार से अंशुल के माथे पर किस किया और उसे गाड़ी में बैठाने चली गई। 

वहीं दूसरी तरफ राकेश भी ऑफिस के लिए लेट हो रहा था। उसने अपना टिफिन लिया और मीनाक्षी को हग करते हुए  बोला” शाम को तैयार रहना फ़ैमिली डिनर पर चलेंगे।” इतना कहकर राकेश भी ऑफिस के लिए निकल गया।

धीरे-धीरे वक्त बीतता गया। सुबह से दोपहर हो गई थी और लगभग 2:00 बजे, अचानक राकेश के फोन की घंटी बजी। फोन किसी अननोन नंबर से आ रहा था यह देखकर राकेश ने फोन नहीं उठाया और उसे साइलेंट करके रख दिया। 2 मिनट बाद फिर से जब फोन बजा राकेश ने फोन उठाते हुए कुछ बोलना चाहा पर तभी, सामने से जो आवाज़  आई उसे सुनकर राकेश का फोन उसके हाथ से वही छूट गया और वो बदहवास सा वही अपनी चेयर पर बैठ गया।

एक बड़े से प्राइवेट हॉस्पिटल में राकेश भागता हुआ रिसेप्शन पर आया और कुछ बोलने लगा। उसका पूरा माथा और शरीर पसीने में भीगा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे बहुत मुश्किल से अपने पैरों पर खड़ा हो पा रहा है। बार-बार उसके पैर लड़खड़ा रहे थे पर फिर भी हिम्मत कर कर राकेश आगे बढ़ रहा था। जैसे ही वो  तीसरी मंजिल पर पहुंचा तो, उसकी नजर सामने चेयर पर बैठी मीनाक्षी पर गई जिसका रो-रोकर बुरा हाल हो गया था। जैसे ही उसने राकेश को देखा तो, वह भागती हुई उसके पास आई और उसके सीने से लेकर रोने लगी।” राकेश यह क्या हो गया मेरा अंशु ठीक तो हो जाएगा ना?”

मीनाक्षी को रोता हुआ देखकर राकेश ने हिम्मत कर कर उसे पास की ही चेयर पर बिठाते हुए कहा” 

राकेश : डॉन्ट वरी कुछ नहीं होगा हमारे अंशु को बिल्कुल ठीक हो जाएगा।…. पर यह सब कुछ हुआ कैसे?”

राकेश का सवाल सुनकर मीनाक्षी ने रोते हुए पर सुबकते हुए कहा” आज मैं जल्दी फ्री हो गई थी तो सोचा खुद ही अंशु को ले आऊं  और उसकी टीचर से बात भी कर लूंगी। दोपहर के  जब 1:30 बजे मैं स्कूल पहुंची तो, मैं बाहर ही उसका इंतजार करने लगी। 5 मिनट बाद अंशुल खुश होते बाहर आया और बोला कि उसने क्लास में सेकंड पोजीशन जीती है, मैं बहुत ज्यादा खुश हो गई। तभी उसने कहा कि उसे अभी इसी वक्त आइसक्रीम खानी है। मैं उसकी ज़िद के  आगे उसे मना नहीं कर पाई और आइसक्रीम लेने के लिए जैसे ही रोड क्रॉस करके दूसरी तरफ गई तो मैंने देखा कि एक लग्जरी गाड़ी डिसबैलेंस  हो रही है। सब लोग इधर-उधर भाग रहे थे। अंशुल का ध्यान नहीं था। इसलिए मैं भागते हुए उसे बचाने के लिए उसके पास दौड़ी। जल्द बाजी में मेरा पैर बैलेंस नहीं कर पाया और मैं वहीं गिर गई। मुझे ऐसे देखकर अंशुल घबरा गया और भागते हुए मेरे पास आने लगा…तभी कदम चलते ही वह तेज गाड़ी आई और उसने अंशुल को…..” इतना कहकर मीनाक्षी जोर-जोर से रोने लगी।  राकेश मीनाक्षी की हालत नहीं देख पा रहा था। इसलिए उसने बहुत मुश्किल से उसकी हिम्मत बढ़ाई और कुछ कहने ही  वाला था कि तभी उसे ऑपरेशन थिएटर के बाहर एक नर्स  दिखी जो काफी हड़बड़ी में थी।

राकेश और मीनाक्षी ने जल्दी से उसे रोकते हुए पूछा” नर्स…..मेरा बेटा कैसा हैं प्लीज कुछ तो बताओ?”

राकेश और मीनाक्षी को परेशान देखकर नर्स ने उनसे  कहा” सर आपके बेटे की  कंडीशन क्रिटिकल। डॉक्टर अपना काम कर रहे हैं पर अभी कुछ भी कह पाना मुश्किल हैं। इससे ज्यादा मैं अभी आप को कुछ नहीं बता सकती।” इतना कहकर वो नर्स भी अंदर चली गई। धीरे-धीरे वक्त बीतता  है बाहर राकेश और मीनाक्षी लगातार भगवान से दुआ कर रहे थे कि उनका बेटा ठीक हो जाए तो वहीं ऑपरेशन थिएटर के अंदर अंशुल लगातार जिंदगी और मौत से लड़ रहा था। 

ऑपरेशन करीब 5 घंटे चलो तब तक ना राकेश और ना  मीनाक्षी अपनी जगह से खड़े हुए थे और ना हीं उन्होंने एक घूंट पानी भी पिया था। अचानक ही ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा खुला और एक सीनियर डॉक्टर बाहर आते हुए बोला ” वी आर वेरी सॉरी मिस्टर माधवानी, पर हम आपके बेटे को नहीं बचा पाए।” राकेश और मीनाक्षी तो धम से उसी जगह बैठ गए। ऐसा लग रहा था जैसे उनके शरीर में जान ही ना हो दोनों बेसुध  से अपनी जगह पर बैठे रहे। वक्त बीतता गया पर उन्हें होश ही नहीं था। आधे घंटे बाद मीनाक्षी ने राकेश को कंधे से हिलाते हुए कहा” राकेश हमारा सब कुछ खत्म हो गया। हम अपने बेटे अपने अंशु को नहीं बचा पाए। क्या फायदा हमारे इतने पैसों का, इतने नाम का जब हम अपने इकलौते बेटे को ही नहीं बचा पाए।”

मीनाक्षी के पास सुनकर राकेश ने अपनी आंखों से आंसू पोंछे  और अपनी लाल हो चुकी आंखों में गुस्सा लेकर मीनाक्षी से बोला” 

राकेश : मैं अपने बेटे को तो नहीं बचा पाया पर उसे इंसान को हरगिज़  नहीं छोडूंगा जिसने मेरे बेटे की जान ली है मैं उसे सजा जरूर दिलवाकर रहूंगा मीनाक्षी!” 

इतना कहकर राकेश अपनी जगह से खड़ा हुआ और तुरंत वहां से अपनी गाड़ी लेकर कहीं चला गया। मीनाक्षी वहीं बैठी रह गई थी। आज उसे शादी के इतने सालों में पहली बार, राकेश की आंखों में एक अलग ही जुनून एक अलग ही पागलपन दिखाई दे रहा था, जैसे वह अपने इसी जुनून में, पागलपन में, अपने इस गुस्से से पूरी दुनिया को खाक कर देगा।

जवान बेटे को इस तरह मरता देखना किसी भी मां बाप के लिए बड़े  सदमे से कम नही था। उनकी तो बसी बसाई पूरी दुनिया ही कुछ सेकंड में उजड़ गई थी।

सड़क पर राकेश की गाड़ी हवा से बातें करते हुए जा रही थी। उसकी आंखों में एक खालीपन था और चेहरे पर एक गुस्सा जिसे, खुद राकेश भी शांत नहीं कर पा रहा था। उसकी गाड़ी लगभग 15 मिनट बाद मुंबई के ही एक पुलिस स्टेशन में पहुंची। जैसे ही राकेश पुलिस स्टेशन के अंदर पहुंचा तो, एक नजर घुमा कर पूरे पुलिस स्टेशन पर डाली। पुलिस स्टेशन में कुछ लोग बैठकर तो कुछ लेडिस कांस्टेबल अपना मेकअप कर रही थी। और वहां का एस आई ( S.I.) तलपड़े  फोन पर किसी से बात कर रहा था। कुछ पीड़ित गरीब से दिखने वाले लोग हाथ बांधकर एक तरफ खड़े थे पर उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। पुलिस स्टेशन का ऐसा हाल देखकर राकेश समझ गया था कि यहां काम करने वाले लोग सिर्फ मुफ्त की सैलरी लेते हैं पर अपना काम नहीं करते। पुलिस स्टेशन का ऐसा  हाल देखकर कहीं ना कहीं इंसाफ पाने की राकेश की हिम्मत डगमगा गई थी पर फिर भी उसने खुद को हौसला दिया और सीनियर ऑफिसर तलपड़े  के केबिन में जाकर बोला” 

राकेश : सर, मुझे कंप्लेंट करवानी है किसी ने बहुत ही बेरहमी से मेरे बेटे का गाड़ी से एक्सीडेंट कर दिया, जिससे उसकी मौत हो गई। प्लीज आप मेरी कंप्लेंट लिखिए।”

राकेश माधवानी की बात सुनकर सामने बैठा पुलिस वाला अपना फोन रखते हुए ध्यान से राकेश को देखते हुए बोला” अरे, आप तो वही हैं ना माधवानी ग्रुप के मालिक…? आपके बेटे के बारे में सुनकर बहुत बुरा लगा।”

राकेश को तलपड़े  की बातों में सहानुभूति कम और मज़ाक  ज्यादा लग रहा था जैसे उसे किसी के मरने या जीने से कोई फर्क ही ना पड़ता हो। राकेश ने एक बार फिर से हिम्मत करते हुए तलपड़े  से कहा”

राकेश :  सर आज मेरा बेटा जब स्कूल से आ रहा था तो एक बड़ी गाड़ी ने उसे टक्कर मार दी। आसपास के लोगों से मुझे पता चला था कि उस गाड़ी को एक बच्चा चला रहा था। आप प्लीज उसे गिरफ्तार कीजिए।”

राकेश की बात सुनकर रघुवीर ने अपने सामने रखी हुई चाय की चुस्की लेते हुए कहा” आपको गलतफहमी हो रही है माधवानी  साहब गाड़ी को बच्चा नहीं ड्राइवर चला रहा था। सबको पता है यह बात। हमने उस ड्राइवर को गिरफ्तार भी कर लिया है। उसने हमें बताया कि अचानक से गाड़ी के ब्रेक फेल होने की वजह से यह सब हुआ। बिचारे की बात भी सही है। अब गाड़ी की गलती की वजह से उसे तो हम जिंदगी भर जेल में नहीं डाल सकते ना। इसीलिए उसके मालिक के कहने पर उसकी बेल हो गई है। “ यह सब बात करते वक्त तलपड़े  की आंखों में एक अलग ही चमक और चेहरे पर धोखेबाजी और फरेब की मुस्कान थी।

राकेश ने गुस्से से खड़े होते हुए कहा” 

राकेश : तुम्हें शर्म आनी चाहिए। उन अमीर ज़ादों  की वजह से मेरे बेटे ने अपनी जान गवा  दी और तुम उसे गिरफ्तार करने की वजह यहां बहाने  दे रहे हो।”

राकेश को चिल्लाता  हुआ देखकर आसपास बैठे हुए बाकी सभी पुलिस वाले अपना काम छोड़कर उन दोनों को ही देखने लगे जिससे तलपड़े  को अपने इंसल्ट महसूस हुई और उसने खड़े होते हुए गुस्से से कहा” अपनी आवाज के पिच को धीमा रख माधवानी। तू जिसकी बात कर रहा है वह मंत्री जी का बेटा है। उसके खिलाफ जाने के बारे में सोचेगा तो जो बचा है वह भी खो देगा। अगर तुझ में हिम्मत है तो तू खुद सबूत लेकर आ की गाड़ी को मंत्री जी का बेटा चला रहा था।  क्यू की, हमारी इन्वेस्टिगेशन  कहती है की गाड़ी ड्राइवर चला रहा था।” इतना कहकर उसने पास में खड़े एक कांस्टेबल को गुस्से से आवाज देते हुए कहा” शिंदे, जा और जाकर दूसरी चाय लेकर आ। पता नहीं सुबह-सुबह कहां से आ जाते हैं ये लोग। आज का तो दिन ही मनहूस है। मैं यहां लोगों की भलाई की बातें कर रहा हूं। और यह लोग मेरे ही सिर पर चढ़े जा रहे हैं।”

इंस्पेक्टर का रवैया देखकर राकेश माधवनी की हिम्मत टूट गई थी। उसे समझ आ गया था कि सिस्टम बिक चुका है। अब जो करना है उसे ही करना होगा। अपने बेजान पैरों से चलकर जैसे ही राकेश बाहर तक गया तो उसके कानो में धीर धीरे एक आवाज पड़ी। यह आवाज किसी और कि नहीं बल्कि उसी पुलिस वाले तलपड़े  की थी। जो फोन पर किसी से कह रहा था” हेलो, अरे मंत्री जी आपका काम हो गया है। आपके बेटे से कहिए कि आराम से घूमे फिरे। डरने की कोई जरूरत नहीं है। वह तो बेचारा  गाड़ी ही चला  रहा था अब अगर कोई बीच सड़क पर आ जाएगा तो उसकी क्या गलती? हां हां वह माधवानी आया था आर्यन बाबा के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने, पर मैंने उसे ऐसा सुनाया कि दोबारा वो यहां कदम नहीं रखेगा।…” जैसे-जैसे राकेश आगे बढ़ते जा रहा था वैसे-वैसे उसके कानो में इंस्पेक्टर के हसने  की आवाज धीमी पड़ती जा रही थी। 

अब क्या करेगा राकेश क्या वह अपने बेटे को इंसाफ दिला पाएगा ? 

जानने के लिए पढ़ते रहिए ये कहानी।

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