जैसे जैसे राकेश आगे बढ़ते जा रहा था वैसे वैसे उसके कानों में इंस्पेक्टर की आवाज धीमी होती जा रही थी। कुछ देर वही रुक कर उसने, पुलिस स्टेशन को देखा और फिर अपने बेटे का चेहरा याद करने लगा। राकेश ने भीगी हुई आंखों के साथ कहा”

राकेश : मैं तुम्हें हारने नहीं दूंगा अंशुल। तुम्हें इंसाफ मिलेगा जरूर मिलेगा।” 

राकेश अपनी गाड़ी में बैठा और गाड़ी स्टार्ट करके अंशुल के स्कूल की तरफ मोड़ दी ताकि वहां से उसे कोई सबूत मिल सके। लगभग आधे घंटे बाद जैसे ही राकेश की गाड़ी अंशुल की स्कूल के आगे रुकी तो उसने, गाड़ी से बाहर आकर आसपास ध्यान से देखा। एक्सीडेंट होने वाली जगह को पुलिस ने मार्क किया हुआ था। आसपास बहुत सारे लोग थे पर सब अपने काम में लगे हुए थे कुछ दूरी पर कुछ बड़ी-बड़ी दुकान थी जिनके बाहर कैमरे लगे हुए थे। सबसे पहले राकेश स्कूल के गार्ड की तरफ गया जो अभी भी स्कूल के बाहर ही अपनी ड्यूटी दे रहा था। राकेश को देखते ही गार्ड हड़बड़ी से खड़ा हो गया और राकेश के बोलने का इंतजार करने लगा। वह जानता था कि अंशुल राकेश का ही बेटा है क्योंकि, अक्सर राकेश उसे अपनी गाड़ी से छोड़ने स्कूल आया करता था।

गार्ड को देखकर राकेश ने उससे पूछा” 

राकेश : जब मेरे बेटे को उस गाड़ी ने टक्कर मारी थी तो तुम यही पर थे ना ? तुम बताओ मुझे क्या  हुआ था , डिटेल में बताओ !”

राकेश की बातों में एक हड़बड़ी थी जैसे वह जल्द से जल्द सच तक पहुंचाना चाहता हो। राकेश की बात सुनकर गार्ड ने  उससे कहा”  सर पौने  2:00 बजे एक गाड़ी स्पीड से वहां आई और उसने अंशुल  बाबा को टक्कर मार दी। “

गार्ड की बात सुनकर राकेश ने झुंझलाते में कहा” 

राकेश :वह मुझे भी पता है। उस गाड़ी को कौन चला रहा था ये बताओ ?”

राकेश का सवाल सुनकर वो गार्ड इधर-उधर देखने लगा और फिर राकेश से बोला” साहब  उस…. उस गाड़ी को तो ड्राइवर ही चल रहा था।”

गार्ड के झूठ बोलने पर राकेश ने गुस्से से उसकी कॉलर पकड़ते हुए कहा” 

राकेश : तुम झूठ बोल रहे हो उस गाड़ी को एक बच्चा चला रहा था। मेरी वाइफ ने देखा था उसे। चंद पैसों के लिए तुम भी बिक गए, पर मैं सच सबके सामने लाकर रहूंगा। “

इतना कहकर राकेश ने गार्ड को धक्का दिया और वहां से चला गया। वो जितना हो सकता था आस पास की दुकानों पर जाकर उनमें लगे सीसीटीवी फुटेज खंगालने लगा पर, उस वक्त की सभी फोटोज को मिटा दिया गया था। हर दुकान पर से सबूत गायब थे।  राकेश को समझ नही आ रहा था की वो क्या करे? गुस्से में आकर उसने अपनी गाड़ी के टायर को लात मारी और उसमे बैठ कर वहा से कही चला गया। रात भर सड़क पर खड़े होकर राकेश ड्रिंक पर ड्रिंक किए जा रहा था। पर उसे कोई होश ही नहीं था। बार बार उसका फोन बज रहा था, पर जैसे राकेश के कानो में तो उस फोन की आवाज ही नहीं आ रही थी। इधर घर पर मीनाक्षी की हालत खराब थी। उसे ना होश था ना ही कुछ और। बड़ी मुश्किल से वो राकेश को फोन लगा रही थी, उसे इस वक्त अपने पति की सबसे ज्यादा जरूरत थी, जब वो इतने बड़े दर्द में थी, पर राकेश तो जैसे फोन ही नहीं उठा रहा था। थक हार कर बेसुध सी, मीनाक्षी वहीं गिर पड़ी। वक्त बीतता जा रहा था मगर, राकेश को अभी तक ना कोई सबूत मिला था और ना ही उसके बेटे के कातिल को सजा। करीब 1 सप्ताह बाद, 

कोर्ट में,  ये केस पहुंचा तो वहा मीनाक्षी और राकेश दोनो मौजूद थे। एक तरफ मंत्री का ड्राइवर बैठा था और दूसरी तरफ राकेश का वकील था। जैसे जैसे सुनवाई आगे बढ़ती जा रही थी, वैसे वैसे राकेश को समझ आ गया था की, उसका अपना वकील और सामने बैठा जज दोनो बिक चुके हैं। और अब इस कोर्ट में मंत्री और उसके बेटे के हक में ही फैसला होगा। मंत्री ने अपने पावर और पैसे के दम पर ना सिर्फ झूठे गवाह खरीदे थे बल्कि राकेश के वकील को भी पैसे खिलाकर उसे इस केस को कमजोर करने को कह दिया था। तभी तो राकेश के वकील ने एक भी बार किसी भी बात पर ऑब्जेक्शन नही किया। अब राकेश की हिम्मत जवाब देती जा रही थी। उसे समझ नही आ रहा था की आखिर, उससे कहा गलती हो रही थी ? आखिर, उसने किसी का क्या बिगाड़ा था? ईमानदारी से सारे टैक्स पे करता था । जीएसटी देता था। सोशली एक अच्छा और नेक इंसान था। कभी किसी का कुछ नही बिगड़ा था, तो फिर ये दुनिया उसे इस तरह ट्रीट क्यों कर रही थी?

कहने को तो राकेश एक अच्छा और बड़ा बिजनेसमैन था पर, उसकी पहुंच इतनी भी नही थी की वो, एक मंत्री से लड़ सके। अगर बात किसी छोटे-मोटे आदमी की होती तो शायद वह अपने पावर और पैसे के दम पर अपने बेटे के साथ इंसाफ कर लेता। इतने बड़े मंत्री के साथ वो कैसे लड़ता ?, जो पूरे सिस्टम और पावर को अपनी जेब में लेकर घूमता है।

कोर्ट की सुनवाई पूरी हुई और जैसा राकेश को पहले की पता था, जज ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा” सबूतों और गवाहों की कमी की वजह से कोर्ट ये फैसला करता है कि जिस गाड़ी से राकेश माधवानी के बेटे अंशुल माधवानी की मौत हुई है उसे गाड़ी को मंत्री जी का बेटा आर्यन नहीं बल्कि, उनका ड्राइवर चला रहा था। यह एक मशीन गलती थी इसलिए, कोर्ट मंत्री जी को आदेश देता है कि वह परिवादी को उनके नुकसान की भरपाई के लिए 10 लाख रुपए दे। “ इतना कहकर कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया और कोर्ट को स्थगित कर दिया। सभी लोग वहां से चले गए पर राकेश और मंत्री दोनों वही  बैठे हुए थे। मंत्री जी के साथ उनका बेटा भी वहां बैठा हुआ था। राकेश और मीनाक्षी  को इस तरह लाचारी देखकर मंत्री जी के चेहरे पर मुस्कान आ गई और उन्होंने राकेश के पास आते हुए कहा” अरे इसमें इतना परेशान होने वाली क्या बात है ? 10 नहीं मैं तुम्हें 20 लाख रुपए दूंगा! अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? देखो, इस बात को यही भूल जाओ। अगर तुम चाहोगे और को ऑपरेट करोगे तो, तुम्हारी कंपनी को भी मैं बहुत फायदा दे सकता हूं अगले 5 साल सत्ता में होने का यही तो फायदा हैं।” इतना कहकर मंत्री ने अपने बेटे आर्यन की तरफ देखा जो अपने फोन में गेम खेल रहा था। और उसके बाद उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा” क्यों बेटा आर्यन मैंने सही कहा ना?” अपने पापा की बात सुनकर आर्यन ने एक नज़र उनकी तरफ देखा और एक नजर राकेश माधवनी की तरफ देखा। और उसके बाद वापस अपने फोन में गेम खेलने लगा। उसे देखकर बिल्कुल नहीं लग रहा था कि जैसे उसने किसी मासूम की जान ले ली हो। 

आंखों ही आंखों से राकेश को वार्निंग देने के बाद मंत्री जी अपने लोगों के साथ वहां से जाने लगे तभी आर्यन ने अपने पापा से कहा” पापा गाड़ी की चाबी मुझे दीजिए, गाड़ी में चलाऊंगा  !” अपने बेटे की बात सुनकर मंत्री ने चाबी उसे पकड़ा दी और उसका कंधा थपथपाते हुए बोला” मेरा बेटा अब बड़ा हो गया है। तू आराम से गाड़ी चला बेटा, कुछ भी हुआ तो मैं देख लूंगा। तेरा बाप अभी जिंदा है।” 

राकेश खड़े होकर जैसे ही जाने लगा तो उसने अपनी वाइफ मीनाक्षी से कहा” 

राकेश : चलो मीनाक्षी घर चलते हैं।” 

अपनी बात कह कर जैसे ही राकेश कुछ कदम आगे बढ़ा तो, उसने देखा कि मीनाक्षी अभी भी अपनी जगह पर बैठी हुई है कोई जवाब नहीं दे रही है। राकेश ने एक बार फिर से हिम्मत जुटाते हुए मीनाक्षी से कहा” 

राकेश : मीनाक्षी चलो घर चलते हैं सुनवाई पूरी हो गई है।” 

इतना कहकर जैसे ही राकेश जैसे ही मीनाक्षी का हाथ पकड़ कर उसे उठाने लगा तो मीनाक्षी ने गुस्से से उसका हाथ झड़क दिया और अपनी आंखो में आंसु लाते हुए बोली” कैसे पीता हो तुम अपने 10 साल के मासूम बच्चे को इंसाफ तक नहीं दिल पाए। यहां खड़े-खड़े वह मंत्री बकवास करता रहा और तुम्हें इतनी हिम्मत भी नहीं हुई कि तुम उसे पलट कर जवाब दे सको? शर्म आनी चाहिए तुम्हे खुद को बाप कहते हुए।….. मैंने डिसाइड कर लिया है राकेश।”

मीनाक्षी की बात सुनकर राकेश हैरान होते हुए बोला” 

राकेश : डिसाइड कर लिया है ?......क्या डिसाइड कर लिया है मीनाक्षी?”

राकेश का सवाल सुनकर मीनाक्षी गुस्से से उसकी आंखों में देखते हुए बोली” मैंने डिसाइड कर लिया है, मैं अपने पापा के घर जा रही हु। मैं तुम जैसे बुझदिल इंसान के साथ नहीं रह सकती हूं राकेश !”

मीनाक्षी के पास सुनकर राकेश पूरी तरह टूट गया उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी पत्नी उससे इस तरह बात करेगी। राकेश ने गुस्से से मीनाक्षी से कहा” 

राकेश : तुम मुझे बुझदील कह रही हो..? मैं जो कर सकता था वह मैंने किया। पूरे इंडिया में सिस्टम बिक चुका है और यह सिस्टम इन मंत्रियों के हाथों में है या उसके हाथ में है जो इस सिस्टम का हिस्सा है। हम जैसे लोग सिर्फ उनके हाथों की कठपुतली है। जब तक इनका मन भरेगा तब तक यह खेलेंगे और उसके बाद उठाकर या कुचलकर चले जाएंगे। और उनके बच्चे यह इस राजनीति को इस सिस्टम को अपनी जागीर समझते हैं।”

राकेश की बात सुनकर मीनाक्षी ने उससे कहा” तुम इतने बड़े बिजनेसमैन थे क्या बिगाड़ पाए तुम इस सिस्टम का इन लोगों का? कुछ भी नहीं और शायद मैं भी कुछ ना बिगड़ पाओ। इसीलिए ना मैं इस सिस्टम का हिस्सा रहना चाहती हूं और इस देश का। मैं अपने पापा के पास जा रही हूं अमेरिका।   मैं चाहती हूं कि तुम भी मेरे साथ चलो यहां इस देश में कुछ नहीं रखा।”

मीनाक्षी की ऐसी बातें सुनकर राकेश कुछ समझ नहीं पा रहा था उसने हैरान होते हुए कहा” 

राकेश : तुम्हारा दिमाग खराब हो गया क्या अपने देश को छोड़कर जाएंगे? मान हमारा बेटा हमारे साथ नहीं है आज पर उसकी यादें तो है।”

बार-बार समझाने पर भी जब मीनाक्षी नहीं मानी तो राकेश ने उसे आगे कुछ नहीं कहा और राकेश की खामोशी को उसकी सहमति समझ कर मीनाक्षी हमेशा हमेशा के लिए अपने पापा के घर चली गई। 

राकेश को विश्वास नहीं हो रहा था कि कुछ ही पल में उसकी पूरी जिंदगी पूरी दुनिया उजड़ गई थी। कहां तो एक हफ्ते पहले तक वो खुशी खुशी ऑफिस जा रहा था। अपनी वाइफ और बेटे के साथ डिनर करने की प्लानिंग कर रहा था और कहां कुछ ही मिनट में उसकी पूरी दुनिया ही बदल गई थी। उसका बेटा हमेशा के लिए उसे छोड़ कर चला गया था और उसकी पत्नी मीनाक्षी इन सबसे तंग आकर अपने पापा के पास चली गई थी। 

आज राकेश को उसका ही घर काटने को दौड़ रहा था। अपने कमरे में जाकर राकेश, बेड पर लेट गया और कब रात से सुबह हो गई उसे पता भी नहीं चला। उसकी आंखों में एक सेकंड के लिए भी नींद नहीं थी। कुछ सोचते हुए ही वह अपनी जगह से खड़ा हुआ और स्टोर रूम में रखी अपनी लॉ की किताबों को निकलने लगा। आज उसे एहसास हो रहा था कि जब तक वह इस सिस्टम का हिस्सा नहीं बनेगा तब तक वह अपने बेटे अंशुल और बाकी लोगों को कभी भी इंसाफ नहीं दिला पाएगा। अपनी कंपनी की भाग दौड़ को अपने काबिल एम्प्लाइज के हाथों में देकर राकेश ने काले कोट को अपने हाथों में पकड़ लिया था। राकेश ने लॉ की पढ़ाई तो की थी पर प्रेक्टिस नहीं की थी। उसने अपने ही एक दोस्त के पापा के साथ प्रैक्टिस शुरू की और धीरे-धीरे वक्त वक्त बीतता चला गया। आज पूरे 10 साल हो गए थे राकेश को लोगो और इंसाफ के लिए लड़ते हुए। न जाने कितने ही लोगों को उसने इंसाफ दिलाया था। ना जाने कितने ही लोग उसकी वजह से आज अच्छी जिंदगी जी रहे थे। पर खुद राकेश आज भी रोशनी के बीच अंधेरों में ही अपनी जिंदगी काट रहा था। 

आज 10 साल बाद अपने बेड पर लेटे हुए राकेश अपने बेटे की तस्वीर को ध्यान से देख रहा था। अगर आज अंशुल जिंदा होता तो, पूरे 20 साल का होता। आज उसका बेटा कॉलेज जाने लगता।  हमेशा की तरह वो ज़िद करता की पापा मुझे भी कॉलेज जाने के लिए बाइक चाहिए। मुझे दोस्तो के साथ घूमने जाना है। मुझे ये करना हैं मुझे वो करना हैं।…… आज वो और मीनाक्षी साथ में बूढ़े हो रहे होते। आज भी उसका एक हंसता खेलता परिवार होता। उसकी भी एक दुनिया होती। वो अपने बच्चो और अपने फ्यूचर के बारे में सोच रहा होता। यही सब सोचते सोचते ना जाने कब राकेश की आंखो से आंसू बहने लगे और ना जाने कब उसकी आंखो में नींद आ गई, उसे पता ही नही चला। 

अगली सुबह उसकी नींद उसके फोन कॉल से खुली।  क्या हुआ आगे?जानने के लिए पढ़ते रहिए 

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