रोहन का गुज़रा हुआ अतीत लौट आया था, उसे परेशान करने के लिए। उसकी मां का आना और फिर एसएचओ का फ़ोन आना खतरे की घंटी थी। आख़िर रोहन ने ऐसा क्या किया था, जिससे एसएचओ का कॉल आ गया था?? रोहन अंदर ही अंदर घबरा रहा था। इसका मतलब बिल्कुल साफ था कि दाल में कुछ न कुछ काला ज़रूर था, या फिर पूरी की पूरी दाल ही काली थी। एसएचओ का रोहन के पास फ़ोन आना इस बात की ओर इशारा था, कि रोहन गुनाह के रास्ते पर चल रहा था या फिर उसे किसी ने गुनाह के रास्ते पर धकेलने की कोशिश की थी। ऐसी कौन सी मजबूरी थी रोहन की जो उसे यह रास्ता चुनना पड़ा? रास्ते भर रोहन चुप ही रहा और किसी ने कुछ नहीं कहा। उस वक्त बड़ी बेचैनी होती है, जब आप कहना तो बहुत कुछ चाहते हैं, लेकिन कुछ कह नहीं पाते । अब सवाल यह था कि रोहन को पुलिस स्टेशन क्यों बुलाया जा रहा था? उसी वक्त रोहन ने विवेक को कॉल किया…

रोहन - हैलो! विवेक फ़ोन क्यूं कर रहा था मुझे??

विवेक  - रोहन सर, पवन चौहान की डेथ हो गई…

रोहन - व्हॉट! क्या कह रहा है !! पवन चौहान की डेथ...पर कैसे?

विवेक  -  सर ये तो मैं भी नहीं जानता...  जैसे ही यह ख़बर मिली मैंने आपको कॉल किया, लेकिन आप फ़ोन उठा ही नहीं रहे थे…

रोहन - फ़ोन कैसे उठाता ईडियट, मेरे साथ मां और कंचन दोनों थी। उन्हीं को लेने एयरपोर्ट गया था..

विवेक  - आंटी आई हैं? मैं अभी आता हूं उनसे मिलने…

रोहन - अभी नहीं एक प्रॉब्लेम है

विवेक - क्या प्रॉब्लेम ?

रोहन - पुलिस स्टेशन से एसएचओ का फ़ोन आया है…मुझे बुलाया है थाने…

विवेक - थाने…किसलिए??? कहीं उन्हें शक तो नहीं हो गया…

रोहन - कुछ भी बोलत है तू यार…सोच समझकर बोला कर। मैं ऐसा कोई भी काम अधूरा नहीं छोड़ता जिसमें फंसने की गुंजाइश हो… क्या समझे..

विवेक - आई नो सर , पर कुछ भी इधर उधर हुआ तो कहीं पुलिस को कोई शक न हो जाए और आप अच्छी तरह से जानते हैं पुलिस को शक हुआ तो फिर फंसना तय है…

रोहन - तू मुझे समझा रहा है या डरा रहा है...

कंचन - रोहन सर को कौन डरा रहा है???

रोहन - ठीक है.. फ़ोन रखता हूं.. बाद में कॉल करता हूँ …

कंचन ने रोहन को फ़ोन पर ये कहते हुए सुन लिया था कि कोई पुलिस का मामला है। विवेक ने तब तक फ़ोन काट दिया था।  कंचन वहीं खड़ी रोहन को देख रही थी। उसका घबराया हुआ चेहरा साफ़-साफ़ नज़र आ रहा था। कंचन को समझने में देर नहीं लगी कि कोई तो बात थी जो रोहन छुपा रहा था।

कंचन - क्या हुआ रोहन सर? आप इतने परेशान क्यूं हैं??

रोहन - कोई परेशानी नहीं है बस यूं ही..

कंचन - देखिए रोहन सर, पुलिस स्टेशन वाली बात मैंने सुन ली है… कुछ तो ऐसा है, जिसे आप बताना नहीं चाहते..

रोहन के पास कंचन से बातें छुपाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था और यहां सवाल ये भी है कि पवन चौहान की मौत से रोहन का क्या कनेक्शन था???  विवेक क्यूं रोहन से कह रहा था पुलिस स्टेशन में जो भी कहना है बहुत सोच समझकर वरना रोहन फंस सकता है। रोहन के कोई जवाब न देने पर कंचन ने कहा  

कंचन - खैर कोई बात नहीं, अगर आप मुझसे अपनी बातें शेयर नहीं करना चाहते तो कोई बात नहीं… बाई द वे मैं आपसे पूछना भूल गई, जिस काम के लिए आंटी ने मुझे भेजा था..

रोहन -कैसा काम?  मां ने कुछ कहा क्या…

कंचन - आज आपका बर्थडे है इसलिए आंटी चाहती हैं आप अपने दोस्तों को घर बुलाए..

रोहन - आज नहीं फिर कभी देखते हैं..

कंचन - मैं समझ सकती हूं लेकिन वो आपकी मां हैं... और उन्हें मना करना वो भी आज के दिन, मेरे हिसाब से ठीक नहीं होगा। वैसे आप जो ठीक समझे.. अब मैं अंदर जाती हूँ... आंटी को मेडिसिन देने का वक्त हो गया है…

कंचन वहां से चली गई। रोहन की मां, बबलू और कंचन पार्टी की तैयारी में जुट गए। रोहन के दिमाग में कई तरह की बातें चल रही थी। उसने  मन ही मन तय कर लिया था कि उसे एसएचओ के सामने क्या कहना है। बार-बार रोहन ख़ुद से सवाल करता और ख़ुद ही उनके जवाब देता। जब अपने ही दिए हुए जवाब से वो संतुष्ट नहीं होता, तो फिर से जवाब देने की कोशिश करता..   उस वक्त सवाल और जवाब इस कदर उलझ गए थे कि न ही सामने कोई सवाल दिखाई दे रहा था और न ही कोई जवाब। थोड़ी देर के बाद उसने बबलू को आवाज़ दी…

रोहन - बबलू… इधर सुनना…

बबलू - हां भईया अभी आया…

रोहन - मैं अभी बाहर जा रहा हूं.. मां से कहना मैं थोड़ी देर में आऊंगा…और हां अपनी ज़ुबान पर कंट्रोल रखना वरना तेरी सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा..

बबलू - इसका मतलब अब आप फिर सुबह आएंगे…फिर मां जी जो तैयारी कर रही हैं उसका क्या…

रोहन - मैंने कहा न, अपनी ज़ुबान बंद रखना। मैं आ जाऊंगा और हां, मां  कुछ भी पूछे तो कल रात वाली बात का जिक्र नहीं करना। समझ में आई बात ? मैं जानता हूं, तुझे लाख समझा लूं, लेकिन तू वही करेगा , जो तेरा दिल करेगा… याद रखना एक भी बात मां या कंचन तक पहुंची, तो तेरी ख़ैर नहीं… 

रोहन के दिल-ओ-दिमाग़ में बहुत सी बातें चल रही थी और सामने नई मुसीबत, पुलिस स्टेशन में एसएचओ के सवालों का सामना करना। वैसे भी हम अपनी ज़िंदगी में सवालों से कहां बच पाते हैं…चाहे वो सवाल आपको अच्छे लगे या फिर उन सवालों से बचना आपकी मजबूरी हो। इतने सालों में रोहन ने यह जरूर सीख लिया था कि सवालों से कैसे बचकर निकलना है। आज उसके इसी बात की टेस्टिंग होने वाली थी। रोहन सदरपुर पुलिस स्टेशन पहुंच चुका था।  

रोहन - एसएचओ कर्मवीर से मिलना है मुझे…

कांस्टेबल ने शक़ की निगाहों से देखते हुए रोहन से पूछा, क्या काम है साहब से???

रोहन - मुझे कोई काम नहीं है, उन्होंने कॉल करके मुझे बुलाया है…

कांस्टेबल ने मज़े लेते हुए कहा कि कोई वीरता का काम तो किया नहीं होगा तुमने... ज़रूर कोई झोल किया होगा, तभी तो एसएचओ साहब ने तुम्हें कॉल किया है…बैठ जाओ.. बाहर गए हैं.. आते ही होंगे…

सामने बेंच पर बैठने का इशारा करके कांस्टेबल चला गया। अब रोहन को एसएचओ कर्मवीर का इंतज़ार करना था। एक पल के लिए उसने सोच कि क्या इंतज़ार करना, निकल लेते हैं यहाँ से। अगले ही पल उसे लगा कि कहीं एसएचओ ने फिर से कॉल किया तो उसे दुबारा यहां आना होगा जो उसे कतई पसंद नहीं। उसे आज ही इस झमेले को ख़त्म करना था। ये सब सोचता हुआ रोहन थोड़ी देर तक खामोश रहा और फिर अपने ख़यालों में खो गया जहां उसका इंतज़ार कर रही थी माया।  

ऐसे ही किसी बेंच पर बैठी थी माया और उसके सामने खड़ा था रोहन जो काफ़ी दिनों के बाद आज माया से मिलने आया था।  माया ने उसे कितने फ़ोन किए…कई मेसेजेस भी भेजे लेकिन रोहन ने किसी का कोई जवाब नहीं दिया। माया का गुस्सा होना बिल्कुल जायज़ था… वो करती भी तो क्या...  जिससे वो  बेइंतहा प्यार करती है उसके पास उसे देने के लिए वक्त ही नहीं था!! आख़िर क्या मांगा था माया ने रोहन से???  

माया  - क्या करते हो? कहां रहते हो? कुछ बताओगे मुझे…मैं तुमसे पूछ रही हूं रोहन…मेरे सवालों का प्लीज जवाब दो..

रोहन - जैसा तुम समझ रही हो वैसी कोई बात नहीं है.. काम की वजह से मिल नहीं पाया..सॉरी.

माया  - मेरे पास भी बैठोगे या खड़े-खड़े ही वापस जाने का इरादा करके आए हो??

रोहन चुपचाप किसी मुजरिम की तरह बेंच पर बैठ गया, ठीक वैसे ही जैसे आज एसएचओ के इंतज़ार में बैठा था। उसके खयालों में माया ने कहा…

माया  - मेरे पास भी बैठ सकते हो...  मैं तुम्हें खा नहीं जाऊंगी…

रोहन - कहा न सॉरी माया ... नहीं होगा अब ऐसा  

अपनी गलतियों पर पर्दा डालने के लिए बहुत आसान शब्द है सॉरी। सॉरी बोलो और सामने वाले से चाहो कि वो तुरंत माफ़ कर दे…चाहे उसका नुकसान कितना बड़ा ही क्यों न हो। जब पहली बार दोनो मिले थे…उस दिन भी माया ने बिना सोचे एक पल में रोहन पर विश्वास कर लिया था। विश्वास!  हां विश्वास.. जिसके सहारे हम बिना सोचे पुरी ज़िंदगी गुज़ार देते हैं…अगर वही न रहें तो??? रोहन माया के खयालों में डूबा हुआ था कि तभी कांस्टेबल ने कहा…

जाओ अन्दर... एसएचओ साहब आ गए हैं... बुला रहे हैं…

रोहन एक बार फिर माया को अपनी यादों में छोड़कर वापस लौट आया था अपनी रीऐलिटी में। एसएचओ के सवालों का सामना करने कि तैयारी करते हुए, रोहन उनके ऑफिस की तरफ़ बढ़ने लगा।  

क्या एसएचओ के सवालों का सामना कर पाएगा रोहन ?  

क्या उसकी मुश्किलें बढ़ने वाली थी?  

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