जो होना होता है, वो होकर ही रहता है।  हम लाख कोशिशें कर ले, पर होनी को नहीं रोक पाते। रोहन को एयरपोर्ट जाना था, लेकिन वो काव्या को साथ लेकर जाना नहीं चाहता था। पहली बात तो काव्या का अड़ियल रवैया, और दूसरी बात मां के तमाम सवालों का जवाब वो क्या देगा?  काफ़ी लंबे अरसे के बाद रोहन की मां उससे मिलने आ रही थी। मां के आने की खुशी तो रोहन को थी पर कहीं न कहीं उसे यह बात परेशान कर रही थी कि कहीं उसकी माँ को उसकी ज़िंदगी की उलझनों का पता न लग जाए। दूसरी तरफ काव्या उसका पीछा छोड़ने को तैयार नहीं थी। दोनों का मिलना शायद क़िस्मत का खेल था। दोनों क्यूँ मिले थे, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। रास्ते भर काव्या ने रोहन को परेशान करने का एक भी मौका नहीं छोड़ा। रोहन ये सब क्यूं सह रहा था ये तो उसे भी नहीं मालूम था। रोहन और काव्या एयरपोर्ट पहुँच चुके थे। उधर रोहन की मां और कंचन दोनों रोहन का वेट कर रहे थे। रोहन को डर था कि कहीं काव्या को उसके साथ देख कर वो पूछ न ले “ कौन है ये लड़की??? कब से जानता है इसे??? मुझे बताया क्यूं नहीं??”  

तभी काव्या ने कहा…  

काव्या - थैंक यू सो मच, मुझे एयरपोर्ट पहुँचाने के लिए। इस बोरिंग जर्नी को शायद मैं कभी भी नहीं भूलूंगी और तुम्हें कभी याद नहीं करूंगी।  

रोहन - अगर तुम्हारी बकवास ख़त्म हो गयी हो तो जल्दी करो..  

काव्या - व्हाट डू यू मीन जल्दी करो?? मुझे एयरपोर्ट ड्राप करके तुमने कोई एहसान नही किया है!  वैसे भी मैं किसे समझाने की कोशिश कर रही हूँ…  

बात करते-करते काव्या कार से बाहर निकली और रोहन की नजर कंचन और उसकी माँ पर पड़ी। दूर से कंचन ने रोहन को एक अनजान लड़की के साथ देख लिया था। यह बात रोहन ने भी नोटिस की, हालांकि उस वक्त उसकी मां कहीं और ही देख रही थी फिर भी रोहन अंदर से घबराया हुआ, धीरे-धीरे कंचन और अपनी मां की तरफ़ बढ़ने लगा। यह सोचकर शायद कोई गड़बड़ न हुई हो। काव्या को जाते देख रोहन ने मन ही मन सोचा , अच्छा हुआ बला टली। रोहन भी कर से निकल कर अपनी माँ की और बढ़ा    

पास पहुंचते ही रोहन ने अपनी मां को गले लगा लिया।  अचानक से रोहन का यूं गले लगना हेमलता जी को ख्यालों से बाहर ले आया…

मां (हेमलता) - कहां रह गया था? मैं तो कब से कंचन को कह रही हूं कैब बुक कर ले, तो कहने लगी , रोहन काम में फंस गया होगा तभी नहीं आ पा रहा है।  कभी कभी ये लड़की मेरी बात ही नहीं सुनती! तेरे पास कितना काम रहता है क्या मैं नहीं जानती? दूर रहती हूं तो क्या हुआ? मां हूं! बिना कहे बच्चों की सारी बातें समझ जाती हूं…  

कंचन - सॉरी आंटी! मैं कान पकड़ती हूं आगे से ऐसी गलती नहीं होगी…

मां (हेमलता) - डोन्ट बी सॉरी बेटा, हम बूढ़े हो गए हैं लेकिन हमें जीवन का अनुभव है कि किस वक्त क्या करना चाहिए और क्या नहीं…

रोहन अपनी मां का हाथ पकड़े किसी छोटे बच्चे की तरह उन दोनों की बातें सुन रहा था जैसे उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि यहां ये क्या हो रहा है..

कंचन - चलें  रोहन सर? आई थिंक आंटी काफी थक चुकी हैं.... उन्हें अब रेस्ट करना चाहिए…

रोहन - हाँ-हाँ चलो। कैसी तबियत है मां तुम्हारी?? डॉक्टर को दिखाया??

मां ( हेमलता)- मैं तुझसे बहुत नाराज़ हूं और तेरे सवालों का मेरे पास कोई जवाब नहीं है, जिस बेटे को अपनी मां से बात करने का टाइम ना हो उससे क्या ही उम्मीद कर सकते हैं

रोहन - तुम तो जानती हो मां..

मां ( हेमलता)- हाँ हाँ, मैं सब जानती हूं इसलिए तो कह रही हूं तू शादी कर ले  कब तक कंचन मेरा खयाल रखेगी???

रोहन की मां लगातार बोले जा रही थी और बात करते-करते सभी कार में बैठ भी गए। मां पीछे की सीट पर बैठ गई,और सामने की सीट पर कंचन बैठ चुकी थी। जैसे ही कार आगे बढ़ी तभी सामने एक कार अचानक से आ गई, रोहन ने ज़ोर से ब्रेक लगाया, जिससे सब घबरा गए

रोहन -अबे!! अंधे दिखता नहीं है क्या ?

रोहन गुस्से में आकार गाड़ी से निकलने वाला था कि तभी कंचन ने आंखों से उसे उतरने से मना किया।

मां (हेमलता)- कैसे ड्राइव कर रहा है?? आने का मन नहीं था, तो बबलू को भेज देता…

रोहन - क्या करूं मां सामने से ये अंधा…

मां (हेमलता)- चल आराम से कार चला…

रोहन - ओके मां…

रोहन कम स्पीड में कार ड्राइव करने लगा। कुछ देर तक कार के अन्दर ख़ामोशी छाई रही। फिर हेमलता जी ने कहा…

मां (हेमलता)- बेटा गाड़ी साइड में तो लगा…

रोहन - क्या हुआ मां?? एनी प्रॉब्लम??

मां (हेमलता)- नो प्रॉब्लम एटऑल , गाड़ी साइड में तो लगाओ…इट्स माय आर्डर.

रोहन को कुछ समझ में नहीं आया आख़िर उसकी मां को हो क्या गया है??  गाड़ी क्यूं रुकवा रही हैं.. तभी उसकी नज़र रोड के किनारे सामने मंदिर पर गई । रोहन की मां को मंदिर जाने का बहुत शौक था…हेमलता उसके  बर्थडे पर उसे साथ लेकर मंदिर जाती थी, रोहन के हाथों से मन्दिर में दान करवा कर मन्दिर के पूजारी से आशीर्वाद दिलवाती थी। वक्त बदला और उसके मां की सारी आदतें पीछे छूटती चली गई।  

मां (हेमलता)- नीचे उतरेगा?? या इनविटेशन देना होगा..

रोहन - मां तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है और तुम्हें अभी मन्दिर जाना है..मैं फिर कभी मन्दिर ले आऊंगा

मां (हेमलता) - फिर कभी नहीं आज ही मुझे मंदिर जाना है वो भी अपने बेटे को साथ लेकर , मैं कैसे भूल सकती हूं… आज तेरा बर्थडे है

यह कहते हुए हेमलता जी की आंखे भर आईं।  रोहन को भी अपना जन्मदिन कहां याद था। हेमलता जी भी तबियत ख़राब होने के बावजूद इसीलिए आईं थी ,  ये सुनते ही कंचन ने कहा…

कंचन - हैप्पी बर्थडे रोहन सर, आंटी ने मुझे कुछ बताया ही नहीं वरना आपके लिए कुछ ले आती…

रोहन - थैंक यू कंचन वैसे भी तुम मेरी मां को मेरे पास ले आई हो इससे बड़ा गिफ्ट और क्या हो सकता है…

यह कहते हुए रोहन ने अपनी मां को गले लगा लिया…

रोहन - तुम क्यूं आई? मुझे बुला लिया होता। देखो तो कितनी कमज़ोर हो गई हो…

काफ़ी दिनों के बाद रोहन की आंखों में आंसू थे , हेमलता जी ने उसके आंसू पोछे और कहा…

मां (हेमलता) - जन्मदिन पर नहीं रोते… तुझे क्या चाहिए बता…और कंचन, तुम यहां क्यूं खड़ी हो? जाओ पूजा की थाली ले आओ….

रोहन - कंचन रुको.. साथ ही चलते हैं…

रोहन, उसकी माँ और कंचन, तीनों पूजा की थाली लेकर मंदिर में पहुँचते हैं। मां ने पूजा करवाई। रोहन ने दान किया। पूजारी ने रोहन को लंबी उम्र का आशीर्वाद दिया और उसके बाद तीनों वापस गाड़ी में आ गए। एक बार फिर कार तेज़ी से बढ़ रही थी कि तभी रोहन के फ़ोन की घंटी बजी। फ़ोन विवेक का था।  

फ़ोन कट करने के बाद विवेक कभी दुबारा फ़ोन नहीं करता, लेकिन ये पहली बार था जब विवेक बैक-टु-बैक कॉल कर रहा था, यह बात रोहन को भी अजीब लगी कि तभी रोहन की मां ने कहा…

मां (हेमलता) - फ़ोन उठा क्यूं नहीं लेता…कोई ज़रूरी काम होगा तभी बार बार फ़ोन आ रहा है..

रोहन - हाँ माँ विवेक का फोन है, घर पहुँच कर कॉल बैक कर लूँगा  

तभी एक बार फिर से फ़ोन की घंटी बजती है, लेकिन इस बार विवेक का फ़ोन नहीं था, कोई अननोन नंबर था। रोहन ने गाड़ी साइड में रोकी और फ़ोन उठा लिया….

रोहन - हेलो! हु इज़ स्पीकिंग ???

एसएचओ- मैं एसएचओ कर्मवीर सिंह बोल रहा हूं, आपको पूछताछ के लिए सदरपुर थाने आना होगा…

रोहन - थाने? बात क्या है??

एसएचओ- वो हम आपको थाने आने पर बताएंगे…

आखिर किस लिए आया था एसएचओ कर्मवीर का फ़ोन ?  

क्या एसएचओ का फोन रोहन की परेशानियाँ बढ़ाने वाला था?  

               

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