उस रात काव्या रोहन के साथ क्यों आई, यह बात उसको समझ नहीं आ रही थी। काव्या पहली लड़की नहीं थी जो रोहन के साथ, उसके घर पर रुकी थी। कई आईं और चली गईं .. न किसी के बारे में रोहन ने पूछा और न ही जानना चाहा, लेकिन आज जब काव्या ने रोहन का हाथ पकड़ा, तो वह अपने अतीत की यादों में खो गया। वो अतीत जहां वो जाना नहीं चाहता था, वह गली-कूचे जो कई साल पहले रोहन छोड़ आया था। वैसे रोहन के लिए यह कोई तकलीफ़ देने वाली बात नहीं थी, ये तो वो खूबसूरत एहसास थे जिसे रोहन चाह कर भी भूल नहीं पाया था। एक नाम जो उसकी ज़िंदगी थी.. माया! न जाने कब माया रोहन की ज़िंदगी में चली आई, उसे पता ही नहीं चला। रोहन को आज भी याद है वह दिन जब वह बस स्टॉप पर वेट कर रहा था। उसने एक लड़की को देखा जिसके खुले बाल, बड़ी बड़ी आंखें, नाक पर चश्मा और कान में ईयरफोन था। उसका दुपट्टा नीचे गिरा हुआ था लेकिन वो लडकी मस्त हो कर मूंगफली खा रही थी…सर्दी के दिन थे…सड़क पर गिने चुने लोग ही नज़र आ रहे थे… तभी उस लड़की ने कान से ईयरफोन निकाल कर पूछा…
माया - ओ हैलो! इधर उधर क्यूं भटक रहे हो ? चुपचाप एक जगह पर बैठ जाओ. बस अभी नहीं आने वाली है और हां मुझे घूरना बंद करो समझे?…
पता नहीं कब उस लड़की ने रोहन को चोर निग़ाओं से उसकी और देखते हुए पकड़ लिया था। वैसे रोहन शरीफ़ लड़का था.. किसी गलत इरादे से उसने उस लड़की को नहीं देखा था। बस, उसका मगन होकर मूंगफली खाना, रोहन को बहुत दिलचस्प लग रहा था!
रोहन - इक्स्क्यूज़ मी! आपको ऐसा क्यूँ लगा कि मैं आपको ही देख रहा हूं? इतनी भी ख़ूबसूरत नहीं हैं आप…
माया - ख़ूबसूरत तो मैं हूं, लेकिन लगता है तुमको किसी ने ये नहीं सिखाया कि एक लड़की से बात कैसे करते हैं। बाइ द वे तुम होते कौन हो यह कहने वाले कि मैं ख़ूबसूरत नहीं हूं…
रोहन - अरे! मैं “आप-आप” कह के बात कर रहा हूं और आप , मुझे तुम कह कर पुकार रही हो ? वाह!.. वैसे भी तुम मुझसे बहुत छोटी हो…
माया - जब तुम्हें मेरे बारे में ये पता चल गया कि मैं तुमसे छोटी हुं...तो शायद मेरा बर्थ सर्टिफिकेट तुम्ही ने चुराया होगा... तभी मुझे मिल नहीं रहा……
रोहन - देखो! तुम हद से आगे बढ़ रही हो...तुम मुझे चोर कैसे कह सकती हो.. वैसे भी अभी तो हम मिले हैं….
माया - हम अभी मिले जरूर हैं ...पर मंजिल अभी मंज़िल अभी बहुत दूर है बच्चू…तुम्हारा पाला माया से पड़ा है!! क्या समझे मिस्टर टुकटुक?
रोहन - मेरा नाम रोहन है, टुकटुक नहीं
माया - अपना नाम बताकर मुझे इम्प्रेस करना चाह रहे हो, या कोई और ही इरादा है?
रोहन - मेरा कोई इरादा- विरादा नहीं है, मेरी माँ ! प्लीज,मुझे अकेला छोड़ दो
माया - ओह ! अब मैं समझी , तुम्हारा ब्रैकप हुआ है, तभी इतने सैड हो और आज ही मैं तुम्हें मिल गई!
सूरज डूब रहा था और सर्दी थोड़ी सी बढ़ गई थी। अपनी बस के इंतज़ार में रोहन न जाने क्यूं माया से उलझता जा रहा था। माया से बातें करते - करते रोहन का गुस्सा कब छूमंतर हो गया, उसे पता ही नहीं चला। अब तो बस रोहन, माया की बातें सुन रहा था क्यूंकि वो अच्छी तरह जान चुका था कि, माया को समझाना उसके बस की बात नहीं थी। रोहन के ज़ेहन से यह ख्याल भी चला गया कि उसे कहीं जाना था.…
माया - सर्दी है और तुमने जैकेट भी नहीं पहनी ! देखो जिम -विम अपनी जगह है, अगर ठंड लग गई तो सारी अकड़ ढीली पड़ जाएगी, क्या समझे मिस्टर टुकटुक?
रोहन - बड़ी अजीब लड़की हो...न जान, न पहचान बोले जा रही हो. मैं जैकिट पहनूं या ना पहनूं इससे तुम्हें क्या?? तुम अपने काम से मतलब रखो प्लीज लीव मी अलोन।
यह सुनते ही माया थोड़ी देर के लिए चुप हो गयी। रोहन को भी लगा शायद उसे ऐसे नहीं बोलना चाहिए था.... बात ही तो कर रही थी .
रोहन - सॉरी ...मेरे कहने का मतलब यह नहीं था, तुम मुझसे बातें कर सकती हो… नो प्रॉब्लेम
माया - ए हैलो । मुझे किसी बात का बुरा नहीं लगता. मूंगफली खाओगे???
यह कहते हुए माया ने अपना हाथ रोहन की तरफ़ बढ़ा दिया। मूंगफली की वजह से ही दोनों थोड़ा करीब आए। रोहन को थोड़ा अजीब लग रहा था लेकिन माया वैसे ही थी जैसे थोड़ी देर पहले रोहन ने उसे देखा था - बच्चे की तरह मासूम, अल्हड़, दुनिया से बेपरवाह अपनी मस्ती में गुम! हां माया, जो पहली बार रोहन को इस तरह मिली थी, एक बस स्टैंड पर। तभी बस आती हुई दिखाई दी। माया ने कसकर रोहन का हाथ पकड़ा, जो रोहन को बिलकुल अजीब नहीं लगा...उसे तो यूँ लगा जैसेा वो बरसों बाद माया से दोबारा मिल रहा हो
माया - थैंक्स ! मेरा साथ देने के लिए..
“मेरा साथ देने के लिए” रोहन मन ही मन सोचने लगा कि माया जान बूझकर उससे बातें कर रही थी... जो लड़की रोहन से थोड़ी देर पहले मिली थी, उसने कब और कैसे रोहन के दिल में जगह बना ली, पता ही नहीं चला। ठंढ की वजह से बस में कम ही लोग थे... कंडक्टर ने टिकट के लिए कहा.
माया - दो टिकट, एक सेक्टर 48 और तुम कहां जाओगे??
रोहन - तुम क्यूं टिकट ले रही हो, मैं लेता हूं...सर दो टिकट दे दीजिए एक शांतिपुरी और एक...
यह कहते हुए रोहन रुका, शायद वो सुन नहीं पाया था कि माया ने सेक्टर 48 कहा था तभी कंडक्टर बोला - जल्दी कीजिए.. बाकी लोगों को भी टिकट देना है...तब तक माया ने पर्स से पैसे निकाल कर कंडक्टर को दे दिए थे और कंडक्टर दो टिकट देकर आगे बढ़ गया। जाते-जाते उसने अजीब निगाहों से रोहन को देखा... शायद उसे भी रोहन की तरह समझ नहीं आ रहा था, आख़िर हो क्या रहा है। दोनों चुपचाप बस में बैठे रहे, किसी ने कुछ भी नहीं कहा।
माया खिड़की से बाहर देख रही थी और रोहन नजरें बचाकर, कभी-कभी माया को देख रहा था। जब भी वो माया को देखता, माया उसे देखते हुए देख लेती और मुस्कुरा देती। अब रोहन की जगह अगर कोई दूसरा लड़का होता, तो उसके मन में तो खुशी के लड्डू फूट रहे होते। पर रोहन, पता नहीं क्यों, उदास था। क्या माया के आने से रोहन की यह उदासी खत्म होने वाली थी?
अपने ख्यालों में खोया रोहन तब जागा जब कंडक्टर ऊंची आवाज़ में कहा “सेक्टर 48” ये सुनते ही माया अपनी सीट से उठी और रोहन ने बाहर निकलने का रास्ता दिया। उठते वक़्त माया का दुपट्टा रोहन के हाथ में उलझ गया, जिसे रोहन ने ख़ुद से अलग किया
माया - थैंक्स रोहन !
रोहन - नाइस टू मीट यू !
माया - मुझे भी!
बाए बोलकर माया बस स्टॉप पर उतर गई। माया ने रोहन को मुस्कुरा कर देखा... रोहन ने हाथ हिलाकर उसे बाए कहा। माया को बाय करते वक़्त रोहन को बुरा तो लग रहा था लेकिन मन ही मन उसे ऐसा लग रहा था मानो ज़िन्दगी उसका बाहें फैलाये स्वागत कर रही थी। आज माया से मिलकर उसे बहुत सालों बाद ख़ुशी मेहसूस हो रही थी... बस धीरे - धीरे आगे बढ़ने लगी। रोहन खिड़की से, दूर जाते हुए माया को देख रहा था कि तभी काव्या की चीखती आवाज़ उसके अतीत से उसे आज में घसीटती हुई ले आती है...
काव्या - हेलो ! कार थोड़ा स्पीड में चलाओ!! कहां खोये हो भाई?? चलो एक काम करो, गाड़ी रोको...आई सेड स्टॉप द कार राइट नाउ!!
काव्या ने चिल्लाते हुए रोहन से कहा, जो अपनी ही धुन में ड्राइव कर रहा था। रोहन के कार न रोकने पर काव्या ने कार का हैंड ब्रेक खींचा…
रोहन - आर यू मैड !!
कार के रुकते ही काव्या बाहर निकली जैसे कुछ हुआ ही न हो और रोहन की साइड आकर बोली…
काव्या - बाहर निकलो…मैं ड्राइव करूंगी…
रोहन - आर यू मैड ! चुप चाप गाड़ी में बैठो, वरना मैं यहीं छोड़ कर चला जाऊंगा
काव्या को समझ आ गया था कि रोहन उसकी बात सुनने वाला नहीं है. वो गुस्से में आकर गाड़ी में बैठ गई, और तभी रोहन के फ़ोन की घंटी बजी
कंचन का फ़ोन था…
रोहन - हैलो! हां कंचन…
कंचन - सर, हमलोग आ गए हैं??? ये लीजिए आंटी से बात कीजिए…
इससे पहले कि रोहन कुछ कह पाता, काव्या ने फ़ोन उसके हाथ से छीन कर, कॉल काट दी...
रोहन - आर यू क्रेजी ! तुमने फोन कैसे काटा ??
काव्या - मैं और भी बहुत कुछ कर सकती हूं, मेरा दिमाग मत ख़राब करो …. प्लीज़ ड्राइव फॉर गॉड सेक!
रोहन को बहुत तेज़ गुस्सा आ रहा था, वो जानता था कि उसकी मां एयरपोर्ट पर उसका इंतज़ार कर रही है इसलिए वो और लेट नहीं होना चाहता था। एयरपोर् अब भी 15 किलोमीटर दूर था।
क्या रोहन टाइम पर एयरपोर्ट पहुँच पायेगा?
रोहन की माँ उससे मिलने क्यों आयीं थीं?
क्या रिश्ता बनने वाला था काव्या और रोहन का ?
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