गोवा,
ट्रिप का तीसरा दिन था। मीरा बहुत उत्साहित थी। सुबह उठते ही वह तैयार हो गई। अपना मेकअप लगाते हुए उसने रोहन को तैयार होने के लिए कहा लेकिन रोहन, जब से नींद से उठा था, तब से बिस्तर पर ही पड़ा-पड़ा अपने फ़ोन में लगा हुआ था। रोहन की यही आदत थी। मीरा ने पहले तो ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब वह तैयार हो गई और बाहर जाने के लिए देर होने लगी, तब वह चिढ़ने लगी।
मीरा:
"रोहन, तुम उठ रहे हो या नहीं? पूरा दिन यहीं कमरे में बर्बाद कर देंगे, तो बाहर कब जाएंगे?"
रोहन:
"रुक जाओ ना, क्या परेशानी है? दस मिनट लगेंगे मुझे तैयार होने में बस और तुम भी कहाँ तैयार हो? मेकअप चल रहा है तुम्हारा अभी तक।"
मीरा:
"मैं तैयार बैठी हूँ, अब चलो भी उठो।"
रोहन ने मीरा की बात को सीधे-सीधे नजरअंदाज कर दिया और वह अपने फ़ोन में लगा रहा। मीरा हैरानी से उसकी ओर देखती रही।
मीरा:
"तुमने कहा था हम यहाँ हमारे बीच की दूरियाँ मिटाने आए हैं। ऐसे मिटाएंगे दूरियाँ? ऐसे आएंगे एक-दूसरे के करीब? सारा-सारा दिन फ़ोन से चिपके रहते हो, मुझसे बात तक नहीं करते, ऐसे ठीक करेंगे सब?"
रोहन:
"फोन ही तो चला रहा हूँ। उसमें भी तुम्हें लड़ाई करनी है। कभी तो खुश रहा करो। हर वक़्त लड़ना क्यों है?"
मीरा:
"लड़ाई नहीं कर रही हूँ मैं, बात कर रही हूँ तुमसे।"
रोहन बिस्तर से उठा और वॉशरूम के अंदर चला गया। वॉशरूम का दरवाज़ा भी उसने ज़ोर से बंद किया। मीरा हैरानी से उसको देखती रही कि कैसे वह इतनी आसानी से उससे कुछ भी कह देता है।
मीरा को बहुत बुरा लगा और साथ ही साथ रोहन पर बहुत गुस्सा भी आया।
वह उठी, उसने कमरे का दरवाज़ा खोला और बाहर चली गई।
थोड़ी देर बाद नहा के रोहन वॉशरूम से बाहर आया। उसने देखा कि मीरा कमरे में नहीं थी। उसने तुरंत फ़ोन उठाकर उसको कॉल किया तो मीरा का फ़ोन बजने लगा। फ़ोन वहीं कमरे में ही पड़ा हुआ था।
रोहन ने जल्दी से कपड़े पहने और वह मीरा को देखने नीचे होटल की लॉबी में गया। वहाँ भी मीरा न दिखने पर उसने लॉबी से बाहर निकलकर थोड़ा आसपास भी देखा, लेकिन मीरा वहाँ कहीं नहीं थी।
रोहन कमरे में वापस आ गया। उसने अपने आप से कहा कि यह तो मीरा का हमेशा का नाटक है। कुछ होता नहीं है कि घर से निकल जाती है और उसे यह भी यक़ीन था कि कुछ देर बाद वह ख़ुद ही वापस लौटकर आ जाएगी। इसलिए वह बिस्तर पर लेटकर वापस फ़ोन चलाने लगा।
बाहर धुआंधार बारिश हो रही थी। मीरा छाता लेकर निकली थी। जहाँ रास्ता मिले वह वहाँ के लिए पैदल ही निकल गई। गोवा की खूबसूरती और उसमें बारिश, सब कुछ बहुत सुंदर लग रहा था। इतने गुस्से में भी वह बाहर का हसीन नज़ारा देखकर अंदर से शांत हो गई। आराम से गोवा की गलियों में एक घंटे तक घूमने के बाद, मीरा होटल पर वापस आ गई।
वापस आने के बाद उसने देखा कि रोहन आराम से बिस्तर पर पैर फैला कर बैठा था और टीवी देख रहा था। मीरा को आते देख उसने उससे पूछा।
रोहन:
"कहाँ गई थी?"
मीरा:
"घूमने।"
रोहन:
"अकेले और बिना बताए?"
मीरा:
"तो क्या करती? तुम फ़ोन में बिजी थे, मुझे लगा तुम्हें नहीं आना घूमने।"
रोहन को अभी मीरा से झगड़ना नहीं था। इसलिए उसने टॉपिक को ज़्यादा आगे बढ़ाया नहीं।
रोहन:
"ठीक है अब चलो चलते हैं। आज हमें वह नई जगह घूमने जाना है।"
रोहन उठा, उसने कार की चाबी ली और वह कमरे से बाहर निकला। मीरा भी गोवा का ट्रिप और आज का दिन खराब नहीं करना चाहती थी। इसलिए वह भी उसके साथ निकल गई।
उन्होंने पहले से प्लान करके रखा था कि आज उन्हें किन-किन जगहों पर घूमना है। वह वैसे ही एक-एक कर हर जगह जा रहे थे लेकिन पूरे दिन दोनों ने एक-दूसरे से बिल्कुल बात नहीं की। रोहन बीच-बीच में मीरा से बात करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मीरा उसकी एक भी बात का कोई जवाब नहीं दे रही थी।
मीरा बिल्कुल ही बात नहीं कर रही, यह देखकर रोहन को अंदर से बहुत गुस्सा आ रहा था। इसलिए वह सिगरेट पर सिगरेट पीए जा रहा था क्योंकि मीरा पर गुस्सा निकालकर वह बात को और बढ़ाना भी नहीं चाहता था। उस चक्कर में उन दोनों ने उस दिन खाना तक नहीं खाया। बस देर रात तक वे बाहर घूमते रहे और वापस आ गए।
आते वक़्त रोहन ने बहुत सारी बीयर की बॉटल्स खरीद लीं। वापस आते ही मीरा नहाने चली गई और रोहन बीयर की बॉटल्स खोलकर टीवी के सामने बैठ गया।
मीरा वॉशरूम से बाहर आई, तब उसने देखा कि रोहन अभी भी टीवी और बीयर में बिजी था और उसे मनाने की कोशिश तक नहीं कर रहा था।
इसलिए वह आई और रोहन की तरफ़ पीठ करके लेट गई। कंबल उसने अपने सिर पर ओढ़ रखा था।
रोहन ने मीरा की ओर देखा, अपनी बीयर की बॉटल साइड में रख दी और धीरे से वह उसके करीब जाकर, उससे लिपटकर लेट गया। मीरा का गुस्सा एक पल में पिघल गया। वह पलटी और रोहन से लिपटकर रोने लगी।
रोहन:
"मत लड़ा करो ना मुझसे। क्यों लड़ती हो इतना?"
मीरा:
"तो तुम मना नहीं सकते? सुबह से फ़ोन में लगे हुए थे। मेरी तरफ़ ध्यान ही नहीं रहता तुम्हारा।"
रोहन:
"सारा ध्यान तुम्हारी तरफ़ ही तो रहता है। तुम्हारे लिए ही तो आया हूँ ना यहाँ। ज़रा-सा फ़ोन में था, तो तुम इतना गुस्सा करोगी?"
मीरा ने कोई जवाब नहीं दिया। बस वह रोहन से लिपटी रही।
रोहन:
"अच्छा सुनो, सुबह से कुछ नहीं खाया है हम दोनों ने। भूख लग रही है। बाहर चलकर कुछ खाकर आएँ क्या? फिर वापस आकर बीयर पिएंगे।"
मीरा :
"हाँ और मुझे पास्ता खाना है।"
दोनों आधी रात को खाने के लिए बाहर निकल गए। बाहर तूफानी बारिश चल रही थी और सारे रेस्टोरेंट्स बंद हो चुके थे। पूरे शहर में ढूँढने के बाद उन्हें एक लेट नाइट कैफे खुला मिला और लकीली वहाँ पास्ता भी मिल रहा था।
उन्होंने पास्ता का ऑर्डर दिया और वह वेट करने लगे। उनके अलावा वहाँ और कोई कस्टमर नहीं था। तभी एकदम से वहाँ दो लड़कियाँ आकर बैठ गईं। उन्होंने अपना खाने का ऑर्डर दिया और वह एक-दूसरे से बातों में लग गईं। रोहन और मीरा, दोनों ने उनकी तरफ़ देखा और एकदम से रोहन ने कुछ ऐसा कह दिया जो बहुत अजीब था और जिसे मीरा बर्दाश्त नहीं कर पाई।
रोहन:
"अगर आज मैं यहाँ अकेला होता, मतलब सिंगल होता, तो इन दोनों लड़कियों में से एक को पटा लेता।"
मीरा रोहन की इस बात से शॉक्ड थी।
मीरा:
"मतलब? पटा लेता से क्या मतलब है? अगर आज यहाँ मैं नहीं होती, तो तुम उनमें से किसी एक को पटा लेते?"
रोहन हंस रहा था और माहौल को हल्का करने की कोशिश कर रहा था।
रोहन:
"अरे, मेरा मतलब है, अगर मैं सिंगल होता तो..."
मीरा:
"सिंगल भी होते तो ऐसे ही किसी को भी, कहीं भी पटा लेते, बिना जाने-पहचाने?"
रोहन:
"मैं किसी को पटा नहीं रहा, मैं बस अपने पोटेंशियल की बात कर रहा हूँ कि मैं ऐसा कर सकता हूँ। यहाँ गोवा में टाइमपास के लिए, उससे ज़्यादा कुछ नहीं।"
मीरा उसकी इस बात से और भी हैरान थी कि रोहन इतनी आसानी से ऐसी बातें कैसे कर सकता है। तभी वेटर उनके सामने गर्मागर्म पास्ता लाकर परोसने लगा। वेटर के जाने तक मीरा शांत बैठी रही, लेकिन उसके जाते ही उसका गुस्सा फूट पड़ा।
मीरा:
"इतना आसान है तुम्हारे लिए, वन नाइट स्टैंड करना?"
रोहन:
"अरे, मैं बस ऐसे ही बोल रहा था, इतना सीरियस क्यों हो रही हो?"
मीरा:
"तुम कह रहे हो कि अगर तुम यहाँ अकेले होते तो किसी भी लड़की को सिर्फ़ टाइमपास करने के इरादे से पटा लेते? और तुम्हें ये बात सीरियसली न लेने को कह रहे हो? सच में, रोहन?"
रोहन:
"मीरा, अब इस टॉपिक को खींचते नहीं हैं। मैंने बस ऐसे ही बोल दिया, बिना सोचे-समझे।"
मीरा:
"यही तो दिक्कत है। कोई भी बात तुम बिना सोचे-समझे ही करते हो। नताशा के साथ कॉन्टैक्ट में रहना, उसे हमारे रिश्ते से ऊपर रखना—ये सब भी शायद तुमने बिना सोचे-समझे ही किया होगा।"
रोहन:
"अभी उस टॉपिक पर नहीं जाएंगे। पास्ता आ चुका है, ठंडा हो रहा है, खाना शुरू करो।"
मीरा:
"मुझे नहीं खाना।"
मीरा ने अपनी प्लेट अपने से दूर खिसका दी। लेकिन रोहन धीरे-धीरे आराम से अपना पास्ता खा रहा था।
मीरा:
"हमारी शादी से पहले भी यही सब करते थे न तुम? लड़कियाँ घुमाना, वन नाइट स्टैंड्स वगैरह? और अब, तुम अपनी पत्नी के सामने ये बात बोल रहे हो कि तुम सामने बैठी लड़कियों को आसानी से पटा लोगे और तुम्हें अपने पोटेंशियल पर नाज़ भी हो रहा है?"
रोहन:
"बस कर दो, मीरा। सुबह से लड़ रहे हैं, अब और नहीं।"
मीरा:
"तो तुमने ऐसा कहा ही क्यों?"
रोहन:
"गलती हो गई मुझसे। माफ़ कर दो मुझे।"
मीरा:
"बताओ, ऐसे ही और कितनों को पटाया है तुमने? कॉलेज में वह मॉडल थी न, बड़ी अच्छी लगती थी तुम्हें? उसके साथ भी तो चक्कर चल रहा था तुम्हारा? उसे भी ऐसे ही पटा लिया था, टाइमपास के लिए? और मुझे? टाइमपास के लिए ही शादी कर ली तुमने मुझसे?"
अब रोहन का गुस्सा उफान पर था, जिसे वह देर से दबाए बैठा था। उसने गुस्से में ज़ोर से टेबल पर हाथ पटका। तभी वेटर उनके पास बिल लेकर आ गया। पास बैठी दोनों लड़कियाँ चौंककर रोहन की तरफ़ देखने लगीं। रोहन को भी अचानक एहसास हुआ कि वह कहाँ है और क्या कर रहा है। उसने ख़ुद को शांत किया, चेहरे पर एक नकली मुस्कान लाई और वेटर के हाथ से बिल ले लिया। मीरा रोहन की इस हरकत से हैरान और शर्मिंदा दोनों थी।
रोहन ने मीरा का न खाया हुआ पास्ता वेटर से पैक करवाने को कहा। मीरा ने पास्ता को हाथ तक नहीं लगाया था।
फिर रोहन ने दो बीयर की बोतलें लीं, बिल चुकाया और मीरा का हाथ पकड़कर उसे कार तक ले गया।
रोहन :
"बैठो अंदर।"
मीरा:
"नहीं। पहले तुम मेरे सवालों का जवाब दो।"
रोहन:
"कौन से सवाल? कब से सुन रहा हूँ, कुछ भी बोले जा रही हो। किसी सवाल का जवाब नहीं देने वाला मैं तुम्हें।"
रोहन ने बीयर की बोतल खोली और दूसरी ओर सिगरेट जला ली। यह उसके गुस्से को काबू में करने का तरीक़ा था। वह एक हाथ से बीयर पी रहा था तो दूसरे से स्मोक कर रहा था। मीरा उसकी इस आदत से वाक़िफ़ थी।
रोहन:
"कब तक मुझ पर ही सारे इल्ज़ाम लगाती रहोगी? तुम्हारी कोई गलती नहीं है? यहाँ सब करप्ट हैं। कोई दूध का धुला नहीं है।"
मीरा:
"मैंने क्या कर दिया? मैं नहीं हूँ करप्ट? मैं यहीं बैठी हूँ तुम्हारे साथ। किसी और के साथ जाने की बातें नहीं कर रही।"
रोहन:
"अच्छा? रिवर्स साइकोलॉजी यूज़ नहीं करती तुम मुझ पर?"
मीरा:
"ये सारी क्या बातें कर रहे हो तुम?"
रोहन :
"एकदम चुप। अब तुम कुछ नहीं बोलोगी, बस सुनोगी।"
मीरा:
"मुझे बस होटल वापस जाना है। मुझे छोड़ दो। उसके बाद तुम रातभर बाहर घूमना है तो घूमो। टाइमपास के लिए किसी को भी पटा लो।"
रोहन:
"ठीक है।"
मीरा जाकर कार में बैठ गई। रोहन भी कार में बैठा और उसने होटल के रास्ते पर कार घुमा दी। बिना कुछ बोले वह गाड़ी चलाने लगा। मीरा अंदर ही अंदर गुस्से से बेचैन थी।
होटल की पार्किंग में रोहन ने गाड़ी पार्क की, लेकिन मीरा ज़िद पर अड़ गई कि वह थोड़ी देर कार में ही बैठना चाहती है। रोहन उसे वहाँ अकेले छोड़ने को तैयार नहीं था।
अब इस लड़ाई का अंजाम क्या होगा? क्या यह लड़ाई किसी बड़े मुद्दे का रूप ले लेगी?
जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड।
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