​​दोनों गाड़ी में ही बैठे रहे। मीरा की ज़िद थी कि उसे कुछ देर नीचे गाड़ी में अकेले बैठना है और रोहन उसे गाड़ी में अकेले नहीं छोड़ सकता था, क्योंकि रात बहुत हो चुकी थी। ​

 

​​मीरा-​

​​ तुम ऊपर जाओ, मुझे अकेला छोड़ दो कुछ वक़्त के लिए। ​

 

​​रोहन-​

​​रात हो गई है, ऐसे अकेला नहीं छोड़ सकता मैं तुम्हें। सुबह चली गई थी ना अकेले बिना बताए, अब आधी रात को नहीं। चलो, अभी ऊपर चलो। ​

 

​​मीरा-​

​​ मैंने कहा ना मुझे यहीं पर बैठना है कुछ देर, तुम जाओ। ​

 

​​रोहन-​

​​ठीक है फिर मैं भी यहीं बैठ रहा हूँ। साथ में बैठेंगे। तुम्हारा हो जाए तो बताना, फिर साथ में ऊपर चलेंगे। ​

 

 

​​मीरा गाड़ी में बैठी रही, साथ में रोहन भी बैठा रहा। मीरा को पता था कि वह उसे छोड़कर ऊपर नहीं जाएगा। इसलिए दो मिनट मीरा बैठी रही और फिर अचानक से गाड़ी का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गई और उसके बाद रोहन। ​

 

 

​​मीरा लॉबी से होकर अपने कमरे में चली गई और उसके पीछे-पीछे रोहन भी कमरे के अंदर गया। ​

​​रोहन के हाथ में अभी भी बीयर की बोतल थी। वह एक के बाद एक बीयर की बोतल पी रहा था और अब वह हल्का-सा नशे में भी हो चुका था। ​

 

 

​​कमरे के अंदर आते ही उसने फ्रिज से और एक बोतल निकाल ली। मीरा तो अंदर आते ही कमरे में इधर से उधर चक्कर लगा रही थी। वह गुस्से में थी, बहुत बेचैन थी। रोहन की बातें, उसकी हरकतें वह सहन नहीं कर पा रही थी। उसे कहीं ना कहीं धोखे वाली फीलिंग आ रही थी कि कैसे उसके सामने वह किसी और लड़की के बारे में इस तरीके से बात कर सकता है। ​

​​उसे अब अपनी बेचैनी पर काबू नहीं हो पा रहा था। ​

 

​​मीरा-​

​​तो मतलब तुम अगर मेरे सामने ऐसी बात करने की हिम्मत रखते हो, तो मेरे पीठ पीछे तुम कहीं मुझे धोखा तो नहीं दे रहे? ​

 

​​रोहन-​

​​मीरा बस करो, थक चुका हूँ मैं तुम्हारे रोज़-रोज़ के झगड़ों से। कितना शक करोगी? इंसान हूँ मैं भी, बोल देता हूँ मज़ाक में कुछ। ​

 

​​मीरा-​

​​ मज़ाक? ऐसा भद्दा मज़ाक? कल तुम मुझ पर धोखा करके आओगे और कहोगे, मैंने मज़ाक में धोखा किया है। ​

 

​​रोहन -​

​​ फ़र्क़ है मीरा। दोनों बातों में बहुत फ़र्क़ है। बच्चों जैसी बातें करना बंद करो। ​

 

​​मीरा-​

​​ कोई फ़र्क़ नहीं है। ऐसी ही चीज़ों से बात आगे बढ़ती है और इंसान धोखा करता है और तुम्हारा तो पुराना पैटर्न है ये, धोखा करना। मेरे होते हुए नताशा के साथ संपर्क में रहने की क्या ज़रूरत थी तुम्हें? धोखा ही कहना कहते हैं उस बात को भी। ​

 

​​रोहन-​

​​तुम्हें बस कैसे भी करके नताशा के टॉपिक पर ही आना होता है। बहाने ढूँढती हो तुम उसके लिए। ​

 

​​मीरा-​

​​क्योंकि चुभता है रोहन मुझे वो, तकलीफ होती है। इसलिए बार-बार तुम्हारे सामने उसका ज़िक्र करती हूँ, क्योंकि भावनात्मक रूप से सुरक्षित महसूस नहीं होता है मुझे। हर वक़्त डर लगा रहता है कि तुम झूठ बोल रहे हो, उसके साथ बात कर रहे हो, उससे मिल रहे हो। पूरे समय फ़ोन पर लगे रहते हो। उसी से बातें करते रहते हो ना? सच बताओ। ​

 

​​रोहन  -​

​​ तुमसे ना बात करके कोई फायदा नहीं है। ​

 

 

​​रोहन कुर्सी पर जाकर बैठ गया और बीयर पीने लगा। वह देखकर मीरा और चिढ़ गई। ​

 

​​मीरा-​

​​मैं नीचे जा रही हूँ और भाग नहीं रही, बता कर जा रही हूँ। ​

 

​​रोहन-​

​​फिर शुरू हो गया तुम्हारा? टाइम देख रही हो क्या हो रहा है? तीन बज रहे हैं रात के। ​

 

​​मीरा-​

​​ तो क्या हुआ? कोई खा नहीं जाएगा मुझे और वैसे भी नीचे ही हूँ, लॉबी में। ​

 

​​रोहन-​

​​ कोई ज़रूरत नहीं है, जो करना है यही रह कर करो। ​

 

​​मीरा-​

​​ मुझे अभी तुम्हारे साथ एक कमरे में नहीं रहा जा रहा और मैं बहुत बेचैन हो चुकी हूँ और तुम्हें उससे कोई फ़र्क़ भी नहीं पड़ रहा। तो मुझे अपने आप को शांत करने के लिए कुछ वक़्त तुमसे दूर रहना पड़ेगा। ​

 

 

​​मीरा दरवाज़े के पास जाकर दरवाज़ा खोलने लगी। रोहन झट से उठा और उसने मीरा का हाथ पकड़ कर उसे दरवाज़े से दूर किया लेकिन मीरा अपना पूरा ज़ोर लगाकर अपना हाथ रोहन से छुड़ाने लगी। उसे अपने से दूर धकेलकर दरवाज़ा खोलने की कोशिश करने लगी। रोहन भी अपनी पूरी ताकत लगाकर उसे दरवाज़े से दूर रखने की कोशिश कर रहा था। ​

 

 

​​मीरा मानो जैसे गुस्से से पागल हो चुकी थी। पागलपन में उसने अपने नाखून तक रोहन के हाथ में गाड़ दिए, जिस हाथ से रोहन ने उसे पकड़ा हुआ था। रोहन ने फिर भी उसे नहीं छोड़ा था। मीरा रोने लगी, अपने हाथों से उसकी छाती पर मारने लगी। रोहन ने उसे गले लगा लिया, लेकिन फिर भी मीरा शांत नहीं हुई। रोहन उसे बाहर नहीं जाने दे रहा था, तो वह अपने आप को थप्पड़ मारने लगी। ​

 

 

​​रोहन पहले भी मीरा का ऐसा बर्ताव देख चुका था। इसलिए उसने मीरा के दोनों हाथ कस कर पकड़ लिए ताकि वह ख़ुद को नुक़सान न पहुँचा सके लेकिन मीरा बेचैनी में जब पागल हो जाती थी, तो वह ख़ुद भी नहीं समझ पाती थी कि वह क्या कर रही है। उसे बस उस पल में रिएक्ट करना होता था। उसे इस बात की भी तब फ़िक्र नहीं होती थी कि उसके ऐसे रिएक्शन का नतीजा क्या होगा और कितना बुरा होगा। ​

 

 

​​मीरा का पागलपन अब उसके भी काबू के बाहर हो चुका था। रोहन थक चुका था उसे रोकते-रोकते लेकिन वह ऐसे उसे न बाहर जाने दे सकता था, न ख़ुद को हर्ट करने दे सकता था लेकिन मीरा तो मीरा है। वह सारी ताकत लगाकर रोहन से अपने हाथ छुड़ा रही थी और कह रही थी कि उसे बाहर जाना है। ​

​​फिर क्या, रोहन ने हार मान ली और उसने मीरा के हाथ छोड़ दिए। मीरा दरवाज़े के पास गई, रोहन ने नहीं रोका और मीरा दरवाज़े खोलकर कमरे से बाहर निकल गई। ​

 

 

​​मीरा नीचे नहीं गई। बाहर ही सीढ़ियों पर बैठी रही। इंतज़ार करती रही कि रोहन आएगा, उसे मनाएगा। रोहन हर बार आता था, उसे मना कर वापस ले जाता था लेकिन वह इस बार नहीं आया। मीरा काफ़ी देर तक बैठी रही और फिर गुस्से और बेचैनी में उठकर वह ख़ुद ही कमरे में वापस आ गई। रोहन अंदर कुर्सी पर ही बैठा हुआ था। ​

 

 

​​रोहन-​

​​ हम गोवा में हैं मीरा। गोवा में हैं हम। तुम्हें समझ भी आ रहा है मीरा? तुम्हारे साथ सब कुछ ठीक करने लाया था मैं यहाँ तुम्हें और तुम क्या कर रही हो? ​

 

​​मीरा-​

​​मुझे मुंबई वापस जाना है। अभी। ​

 

​​मीरा झट से जाकर अपना सामान, अपने कपड़े बैग में भरने लगी। ​

 

​​रोहन-​

​​अभी न कोई फ्लाइट मिलेगी, न ट्रेन। कैसे जाओगी? ​

 

​​मीरा-​

​​ बैठी रहूंगी ट्रेन स्टेशन पर मैं। सुबह तक कोई न कोई ट्रेन मिल ही जाएगी। ​

 

 

​​कहकर वह फिर से सामान पैक करने लगी और फिर रोहन का बाँध टूट गया। उसे अब नशा चढ़ चुका था। उसकी आँखों में अब अजीब-सा गुस्सा था। ​

 

 

​​वह बीयर की बोतल लेकर कुर्सी से उठा और बिस्तर से टेक लगाकर नीचे ज़मीन पर बैठ गया। मीरा की तरफ़ पीठ करके। ​

 

​​रोहन-​

​​ठीक है। तुम्हें जाना है न, चली जाना। लेकिन बात ख़त्म करके। आज बात होगी और यह हमारी आखिरी बात होगी। सामने आकर बैठो मेरे। ​

 

​​मीरा सामान पैक करते-करते रुक गई। ​

 

​​मीरा-​

​​आखिरी बात मतलब? कौन-सी बात? ​

 

​​रोहन-​

​​तुम्हें बात करनी थी न? तुम्हें सवाल-जवाब करने थे। आओ, बात करते हैं लेकिन इसके बाद हमारा रिश्ता खत्म। ​

 

​​मीरा-​

​​कहना क्या चाह रहे हो? आखिरी बात से क्या मतलब है? ​

 

​​रोहन-​

​​ पहले मेरे सामने आकर बैठो, फिर बताता हूँ। ​

 

 

​​मीरा के पास अब कोई और विकल्प नहीं था और उसे जानना था कि रोहन कौन-सी बात करना चाह रहा था। वह आई और रोहन के सामने ज़मीन पर ही बैठ गई। ​

 

 

​​रोहन के हाथ में अभी भी बीयर थी। वह उसने नीचे रख दी। उसकी आँखों में नशा था और चेहरे पर एक अजीब-सी मुस्कान। ​

 

​​रोहन-​

​​यह आनंद मेहता कौन है? ​

 

 

​​आनंद मेहता का ज़िक्र सुनकर मीरा एकदम से हड़बड़ा गई लेकिन उसने यह अपने चेहरे पर आने नहीं दिया। ​

 

​​मीरा-​

​​दोस्त है मेरा। ​

 

​​रोहन ज़ोर से हँसने लगा और फिर अचानक से हँसी रोककर उसने कहा। ​

 

​​रोहन-​

​​मीरा, मैं यह सवाल पूछते हुए भी कांप रहा हूँ, लेकिन तुम झूठ बोलते हुए कतराना नहीं। ​

 

​​मीरा ने कुछ नहीं कहा। ​

 

​​रोहन-​

​​मुझे पता है और बहुत पहले से पता है कि आनंद मेहता ही वीरेंद्र है। ​

 

​​मीरा अब एकदम शांत थी। रोहन को पता है आनंद मेहता कौन है, यह जानने के बाद वह हल्के से मुस्कुराई। ​

 

​​मीरा-​

​​ हाँ, वीरेंद्र ही है लेकिन तुम्हें कैसे पता? ​

 

​​रोहन-​

​​उससे फ़र्क़ नहीं पड़ता मीरा। फ़र्क़ इस बात से पड़ता है कि नताशा का नाम लेकर तुम मेरा गला पकड़ती हो लेकिन मेरी पीठ पीछे तुम वही हरकतें करती हो, बल्कि उससे भी ज्यादा। उससे हजारों कॉल्स और मैसेज करके तुम रो रही हो, उसकी सहानुभूति ले रही हो और वह तुम्हें दे भी रहा है। ​

​​क्या बोल रहा था वह मेरे बारे में? कि मुझमें हमेशा तुम्हारे आगे-पीछे भागते रहने की आदत है। तुमसे कभी रिश्ता नहीं तोड़ पाऊँगा? ​

 

​​मीरा-​

​​ फ़ोन चेक किया तुमने मेरा? ​

 

​​रोहन-​

​​ मुझसे सवाल मत करो। तुम्हारा कोई हक़ नहीं बनता मुझसे सवाल करने का। ​

​​सर पर बिठाकर रखा मैंने तुम्हें और तुमने क्या किया? उसके कंधे पर सिर रखकर रोई? और वह निकिता, तुम्हारी मदद कर रही थी उससे बात कराने में। कितना पीछे भागता था मैं तुम्हारे लिए। क्योंकि तुम मुझे अच्छी लगती थी, तुम चाहिए थी मुझे। ​

 

​​मीरा अब घबरा गई। ​

 

​​मीरा-​

​​थी से क्या मतलब है? अभी भी चाहते हो तुम मुझे? बोलो। ​

 

​​रोहन-​

​​नहीं। अब तुम मुझे नहीं चाहिए। मैंने कहा था, यह हमारी आखिरी बात होगी। अब इसके बाद मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता। ​

 

 

​​मीरा अब बहुत घबरा गई थी। रोहन की आँखों में उसे वह आग दिख रही थी, जिसमें वह मीरा को जलाना चाहता था। ​

​​मीरा रोहन के एकदम पास आकर बैठ गई। उसने रोहन के दोनों हाथ पकड़ लिए। ​

 

​​मीरा-​

​​ऐसा मत बोलो। प्लीज रोहन। मेरे पास सफ़ाई नहीं है देने के लिए लेकिन मैंने कुछ ग़लत इरादे से नहीं किया है। ​

 

​​रोहन-​

​​कैसे मीरा? कैसे कर सकती हो तुम ये सब? मेरी गैर-मौजूदगी में तुम उसके पास जाकर रो कैसे सकती हो? तुम मेरे पास आती, मेरे पास रोती, अपने दोस्तों के पास जाकर रोती, उसके पास क्यों? ​

 

​​मीरा-​

​​मैं बहुत बुरी हालत में थी तब रोहन। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैं तुम्हारे न होने से पागल हो चुकी थी। ​

 

​​रोहन-​

​​तो तुम उसका कंधा लेने चली जाओगी? मेरी और नताशा की दोस्ती तो तुम्हारे सामने थी। लेकिन तुमने मेरी पीठ पीछे जाकर उससे मेरी ही बुराई की है। ​

​यह सब पता होते हुए भी मैंने कुछ नहीं कहा, माफ़ कर दिया था तुम्हें लेकिन तुम, तुम नताशा का नाम लेकर कब तक मेरा गला पकड़ोगी। वापस जाना था न तुम्हें। कल ही वापसी के लिए निकल रहे हैं हम और मुंबई वापस जाने के बाद मुझे तुमसे तलाक चाहिए। ​

 

 

​​रोहन के मुँह से निकल रहा एक-एक शब्द तीर की तरह मीरा के दिल में चुभ रहा था। तलाक का नाम सुनकर उसके पैरों तले की ज़मीन खिसक गई। ​
​​मीरा-​

​​ नहीं रोहन, प्लीज... अभी तुम गुस्से में यह सब बोल रहे हो। लेकिन तुम्हें पता है न, हम नहीं रह पाते एक-दूसरे के बिना। मैं आइंदा कोई तमाशा नहीं करूँगी। नताशा का नाम भी नहीं निकलेगा मेरे मुँह से। लेकिन प्लीज ऐसी बातें मत करो। ​

 

 

​​मीरा ने उसका चेहरा अपने हाथों में पकड़ लिया और वह रोने लगी। उसे समझाने लगी। लेकिन रोहन ने ठान लिया था कि अब वह मीरा से तलाक लेकर ही मानेगा। ​

 

 

​​मीरा को भी कहीं न कहीं अंदाजा आ चुका था कि रोहन पर अब उसकी किसी भी बात का कोई असर नहीं होगा और तलाक की बात पर वह अड़ा रहेगा। ​

 

​​आखिर कोर्ट में इनकी लड़ाई कितनी आगे जाएगी? क्या मीरा रोहन से बदला लेगी? क्या मीरा रोहन पर लगाए केस वापस लेगी? ​

 

जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड। 

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