​​मीरा ने घड़ी में देखा। आठ बज चुके थे, उसका ऑफिस से निकलने का समय हो चुका था। उसने अपना कंप्यूटर बंद किया और वह अपना फ़ोन और बैग उठा ही रही थी कि तभी निकिता उसके डेस्क के पीछे आकर खड़ी हो गई। ​

​​ऑफिस में उस वक़्त शांति थी और निकिता को पीछे खड़ा देख मीरा थोड़ी हड़बड़ा गई। ​

 

​​मीरा: ​

​​ तुमसे कितनी बार कहा है मैंने, ऐसे एकदम से यहाँ मत आया करो। ऑफिस है यार ये मेरा! ​

 

​​निकिता जाकर मीरा की कुर्सी पर आराम से बैठ गई। ​

 

​​निकिता: ​

​​तो क्या हुआ? सब जानते हैं मुझे यहाँ और वैसे भी, मैं तुम्हें लेने आई हूँ यहाँ से आज। ​

 

​​मीरा: ​

​​क्यों? कहाँ जा रहे हैं हम? ​

 

​​निकिता: ​

​​बहुत दिन से हम दोनों कॉफी डेट पर नहीं गए, तो मैंने सोचा आज चल ही लेते हैं। ​

 

​​मीरा: ​

​​ अच्छा? तो मतलब मेरी मम्मी ने नहीं भेजा है तुम्हें मेरा मन परिवर्तन करने के लिए? ​

 

​​निकिता: ​

​​हाँ, मतलब, वैसा भी होने के चांस हो सकते हैं। ​

 

​​मीरा : ​

​​चल फिर। अब कॉफी का नाम तुमने ले ही लिया है, तो मुझे अब कॉफी पीने की इच्छा हो गई है। ​

 

​​कॉफी शॉप में मीरा और निकिता की कॉफी वेटर ने लाकर उनके सामने रख दी। मीरा ने कॉफी का पहला घूंट लेते हुए कहा: ​

 

​​मीरा: ​

​​ चलो, बोलो, जो भी मम्मी ने तुम्हें मुझे समझाने के लिए भेजा है, बोलो। ​

 

​​निकिता: ​

​​भेजा तो मुझे तुम्हारी मम्मी ने है, लेकिन मैं जो कहने वाली हूँ, वह दरअसल मेरी ख़ुद की भी राय है। तुम्हें मेरी बात सुननी है या नहीं, ये तुम्हारा फ़ैसला है। ​

 

​​मीरा: ​

​​मुझे पता है तुम क्या कहने वाली हो। यही कि म्यूचूअल डिवोर्स  कर लो। तो मेरा फ़ैसला तुम भी एक बार सुन ही लो और अपने दिमाग़ में फिट कर लो। मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाली और तुम्हें तो मेरा इस मैटर में साथ देना चाहिए। सबसे ज़्यादा नज़दीक से तुमने देखा है कि रोहन ने क्या नहीं किया है मेरे साथ। इतना तो मम्मी-पापा भी नहीं जानते जितना तुम जानती हो। ​

 

​​निकिता: ​

​​मैं तुम्हारे साथ हूँ मीरा। . पर... उस चक्कर में, मैं तुम्हारा नुक़सान होते हुए नहीं देख सकती। रोहन ने तुम्हारे साथ जो किया, वह किया। अब उसका बदला लेने के चक्कर में, मुझे लग रहा है, तुम अपनी सोचने की क्षमता ही खो चुकी हो। क्यों तुम्हें अपना वक्त, पैसा और एनर्जी बर्बाद करना है? शांति से ख़त्म करते हैं ना, आगे भी तो बढ़ना है। ​

 

​​मीरा: ​

​​क्या है आगे? कहाँ बढ़ना है? कुछ समझ नहीं आ रहा। ये किस्सा पूरी तरीके से ख़त्म करूं, तभी आगे का सोच पाऊंगी मैं। ​

 

​​निकिता ने अपना हाथ मीरा के हाथ पर रखा। ​

 

​​निकिता  : ​

​​तो ख़त्म ही करने को कह रही हूँ मैं। म्यूचूअल डिवोर्स लेकर फट से ख़त्म कर दे। ​

 

​​मीरा: ​

​​नहीं, ये ऐसे इतने आसानी से ख़त्म नहीं होगा और आसानी से ख़त्म करके मुझे चैन नहीं आएगा। रोहन को उसकी गलतियों की भरपाई करनी ही पड़ेगी।

 

​​निकिता: ​

​​इस सब में तुम्हें भी उतनी ही तकलीफ होगी। ​

 

​​मीरा: ​

​​अब तक की तकलीफ क्या कम थी, जो अब मुझे फ़र्क़ पड़ेगा? हंह... अब तो आदत हो गई है। ​

 

 

​​मीरा की आंखों में गुस्सा भरा हुआ था। निकिता वह देख पा रही थी। मीरा की आदत और स्वभाव सब अच्छे से जानती थी। जब वह कुछ ठान लेती थी, वह किसी की नहीं सुनती थी। 

​​पर... मीरा इस बारे में हिरन से एक बार बात करना चाह रही थी। लेकिन पास्ट में मीरा को बार-बार रोहन की चिकनी-चुपड़ी बातों में फंसता हुआ देख, हिरन अब तंग आ चुका था। उसने उसके कॉल्स उठाना बंद कर दिया था। ​

 

​​मीरा: ​

​​विरन से बात हो रही है तुम्हारी? ​

 

​​निकिता: ​

​​हाँ! क्यों? ​

 

​​मीरा: ​

​​मेरे बारे में कुछ बात होती है? कभी कुछ पूछता है वो? ​

 

​​निकिता: ​

​​नहीं और मैं भी जानबूझकर तुम्हारा ज़िक्र उसके सामने नहीं करती। क्योंकि तुम्हारी ज़िन्दगी की बसर में, वह बेचारा बिना मतलब के फंस जाता है। ​

 

​​मीरा: ​

​​ओके! लेकिन क्या वह सच में मेरे बारे में कभी कुछ कहता या पूछता नहीं है? ​

 

​​निकिता: ​

​​नहीं... क्यों? कहीं तुम वापस से उसे कॉल करने के बारे में तो नहीं सोच रही ना? सोच रही हो तो सोचना भी मत। वह बड़ी मुश्किल से अपने आपको संभालने की कोशिश कर रहा होता है कि तुम हो कि उसे कॉल करके उसका सुख-चैन उजाड़ देती हो। इस बार उसे इस सब से दूर रखो। उस बेचारे का कोई कसूर नहीं है जो वह तुमसे प्यार कर बैठा है और अभी भी करता है। अपनी फीलिंग्स का नहीं तो कम से कम उसकी फीलिंग्स का भी ख़्याल कर लो। ​

 

​​मीरा: ​

​​ठीक है। नहीं कर रही मैं उसको कॉल। टेंशन मत ले। ​

 

​​निकिता: ​

​​ठीक है फिर। मैं निकल रही हूँ। मुझे पता है तुम्हें कुछ देर यहाँ अकेले वक़्त बिताना है। तो तुम यहाँ रुको। मैं तुम्हें कल सुबह कॉल करती हूँ। ​

 

 

​​निकिता चली गई और मीरा ने दूसरी कॉफी ऑर्डर की। कॉफी आने का इंतज़ार करते-करते वह किसी सोच में डूबी हुई थी। वेटर ने जब कॉफी लाकर उसके सामने रख दी, तब वह अपने ख्यालों से बाहर आई। ​

​​उसने एक पल के लिए मन में कुछ सोचा और एकदम से अपना फ़ोन पर्स में से बाहर निकालकर विरन का नंबर डायल कर दिया। ​

 

 

​​रिंग बजती रही लेकिन विरन ने कॉल नहीं उठाया। विरन की ये आदत मीरा को पता थी। वह उसके कॉल कभी नहीं उठाता था। लेकिन मीरा ने फिर भी दूसरी बार उसका नंबर डायल किया। जाहिर-सी बात थी, विरन ने उसका ये वाला कॉल भी नहीं उठाया। ​

​​उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह विरन से कैसे संपर्क करे। विरन किसी और शहर में रहता था। मीरा सीधे उसके घर जाकर भी उससे बात नहीं कर सकती थी और जाकर वह बात करती भी क्या। उसके पास कुछ था ही नहीं कहने के लिए, वह क्या कहती? कि वह रोहन से तलाक ले रही है? और कोर्ट में उससे लड़ना चाहती है, रोहन से हर एक बात का बदला लेना चाहती है? ​

 

 

​​ उसे पता था कि वीरेन को भी उसका ये म्यूचुअल डिवोर्स न लेने का फ़ैसला पसंद नहीं आएगा। लेकिन वह बस विरें से बात करना चाह रही थी, उसकी आवाज़ सुनना चाह रही थी। ऐसे में, जब सब उसके फैसले का विरोध कर रहे थे, विरें की बस आवाज़ सुनने से, उससे बात करने से ही मीरा के मन को काफ़ी शांति मिल जाती और आगे लड़ने की हिम्मत भी। ​

 

 

​​वीरेन ने दूसरा भी कॉल न उठाने पर मीरा ने अपनी कॉफी ख़त्म की और वह वहाँ से निकलकर घर के लिए चली गई। ​

 

 

​​उस दिन के दो दिन बाद उसकी एडवोकेट अर्जुन के साथ मीटिंग थी। उन्होंने मीटिंग में सिर्फ़ मीरा को बुलाया था, रोहन को नहीं। उन्हें मीरा से कुछ बातें अकेले में डिस्कस करनी थी। ​

 

 

​​मीरा दिए वक़्त पर उनके ऑफिस आकर बैठी थी और उनका इंतज़ार कर रही थी। दरअसल, अर्जुन जी, मीरा के पापा के ख़ास दोस्त थे। इसलिए वह मीरा को और उसके जिद्दी स्वभाव को उसके बचपन से जानते थे और इसलिए वह आज मीरा को क्लाइंट की तरह नहीं, अपनी बेटी की तरह समझाना चाहते थे कि उसकी भलाई किस चीज़ में है। ​

 

 

​​थोड़ी ही देर बाद अर्जुन जी आ गए। पर आज उनके हाथ में न फाइल्स थी, न आँखों पर चश्मा। वह आकर मीरा के सामने बैठ गए। उन्होंने एडवोकेट अदिति को भी एक काम देकर बाहर भेज दिया। ​

 

 

​​अर्जुन: ​

​​तुम्हें देखकर तो लग रहा है कि तुम अभी भी अपने फैसले पर अटल हो। ​

 

 

​​मीरा ने उनकी बात पर कोई जवाब नहीं दिया। माना वह भी उन्हें बचपन से जानती थी, लेकिन वह ठहरे वकील। उनसे इस केस के मामले में बहस करना मीरा के बस की बात नहीं थी। ​

 

​​अर्जुन: ​

​​क्यों ये सब करना चाहती हो तुम? इस केस का मुद्दा थोड़ी देर के लिए साइड में रख देते हैं और सिर्फ़ ये सोचते हैं कि एक वक़्त था जब रोहन से तुमने प्यार किया था, उसके साथ शादी भी की थी। उन चीज़ों को याद करके इस मामले को शांति से ख़त्म कर दो। मैं ये बिल्कुल भी नहीं कह रहा कि तुम रोहन को माफ़ कर दो। तुम्हारा गुस्सा जायज है, तुम उसे जिंदगीभर माफ़ मत करो, मुझे उससे कोई दिक्कत नहीं है। मैं बस चाहता हूँ, उसकी गलतियों के लिए ख़ुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारकर, ख़ुद को सज़ा मत दो। ​

 

 

​​अर्जुन जी की बात सुनकर मीरा ने कुछ देर कुछ नहीं कहा। वह एकदम शांत थी। इतना कि उसकी शांति से अर्जुन जी को टेंशन होने लगी और फिर अचानक मीरा ने कहा। ​

 

​​मीरा: ​

​​क्या आप को भी मेरे मम्मी-पापा ने मुझे मेरी भलाई के चार शब्द समझाने के लिए कहा है? ​

 

 

​​मीरा के सवाल से अर्जुन जी अपने हमेशा के अंदाज़ में ज़ोर से हँस पड़े लेकिन आज वह मज़ाक के बिल्कुल भी मूड में नहीं थे। ​

 

​​अर्जुन: ​

​​देखो मीरा, मैं कोई तुम्हारा दोस्त नहीं हूँ, जो तुम्हारे माँ-बाप मुझे तुम्हें समझाने के लिए भेज देंगे। तुम्हें मैं तब से जानता हूँ, जब तुमने बोलना-चलना भी नहीं सीखा था। तुम्हारे लिए चॉकलेट्स और खिलौने लेकर आता था मैं। इसलिए आज जो भी मैं तुमसे कह रहा हूँ, तुम्हें समझा रहा हूँ, वह तुम्हारे अंकल के नाते कर रहा हूँ। ​

 

 

​​मीरा शर्मिंदा हो गई कि अपने ही गुस्से में उसने कहीं न कहीं अर्जुन जी से बहुत बदतमीज़ी से बात कर दी थी। ​

 

 

​​मीरा: ​

​​ मेरे बर्ताव के लिए आई एम सॉरी अर्जुन अंकल। पर मैं बस चाहती हूँ कि सब मुझे समझे कि मेरे गुस्से के अंदर भी झाँककर देखे। ​

​​ये सिर्फ़ रोहन के ऊपर का गुस्सा नहीं है, इस गुस्से के साथ बहुत सारी चीजें जुड़ी हुई हैं। ​

​​मैंने अपना वक़्त तो खोया ही है, लेकिन सबसे इम्पॉर्टेंट मैंने अपने आप को खोया है और वह चीज़ मुझे और ज़्यादा तकलीफ में डाल देती है। मुझे ये लड़ाई लड़नी है क्योंकि मैं ख़ुद को वापस लाना चाहती हूँ। उस अपने अस्तित्व को खोई हुई मीरा को वापस लाना चाहती हूँ। ​

 

​​अर्जुन: ​

​​मैं सब समझ रहा हूँ। कोई समझे न समझे, पर मैं तुम्हारी हर एक बात समझ रहा हूँ। मैं पूरी तरह से सहमत हूँ कि तुम्हें अपने आप के लिए लड़ना चाहिए लेकिन ये कोई मज़ाक नहीं है। ये कोर्ट-कचहरी है। इसकी एक क़ीमत भी होती है और वह चुकानी पड़ती है। तुम अगर पहले से तकलीफ में हो, तो ये डिवोर्स की लड़ाई तुम्हें और कमजोर बना देगी। ​

 

​​मीरा: ​

​​ आप बस कह रहे हैं कि आप समझते हैं, पर असल में, कोई नहीं समझ पा रहा कि मैं आख़िर ये सब क्यों करना चाहती हूँ और कोई समझ नहीं पा रहा इसमें किसी की गलती भी नहीं है। मुझे किसी से ये उम्मीद भी नहीं है कि कोई समझे कि मैं ये क्यों कर रही हूँ। ​

 

 

​​अर्जुन जी शांति से मीरा की बातें सुन रहे थे। वह मन ही मन समझ चुके थे कि मीरा उनकी भी बात नहीं मानने वाली थी। इसलिए उन्होंने अपना चश्मा पहना और मीरा और रोहन की फाइल्स खोलते हुए कहा। ​

 

​​अर्जुन: ​

​​ठीक है फिर। अब तुमने ठान ही ली है तो इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता। तो फिर अब आगे क्या होगा, कैसे होगा, ये भी सुन लो। तुम्हारा केस कोर्ट तक जाएगा। तुमने जो केस रोहन पर लगाए हैं और जो रोहन ने तुम पर लगाए हैं, उसमें से क्या कितना सही है, ये तो कोर्ट ही तय करेगा। लेकिन... सबसे ज़रूरी बात। तुम्हारी डिमांड्स कितनी पूरी होंगी, या पूरी होंगी भी या नहीं, इस पर मुझे आशंका है। क्योंकि तुम एक इंडिपेंडेंट लड़की हो। एक बड़े से फर्म में जॉब करके अच्छा-खासा पैसा कमा लेती हो। तो इस वज़ह से तुम्हारी माँगें शायद कोर्ट को सही न लगें। ये सब ध्यान में रखकर अब तुम्हें और मुझे ये केस लड़ना है। ​

 

​​मीरा सोच में पड़ गई। उसने तो ये सब सोचा ही नहीं था कि केस बस लड़ना नहीं है, जीतना भी है। ​

 

 

​​तो अब वह क्या करेगी? जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड। 

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