यह सुनकर ही सबका दिल बैठ गया कि कैसे अमर प्रिया को एक दूसरे के सामने ही महाराजा वर्मा द्वारा प्रताड़ित किया जाता है, जहाँ अमर के ऊपर लाठी-घुसों का प्रयोग किया गया तो वही प्रिया को सैनिकों के हाथों द्वारा पकड़ कर उसके कमरे में भेज दिया गया। जैसे ही उसके कमरे में बंद किया जाता वो दरवाज़े के पास ही बैठकर सैनिकों की बातें सुन लेती है, उसे मालूम चल जाता है की वो जगह काशीवास है, जहाँ अमर को ले जाया गया है। प्रिय चोरी चुपके महल से निकलती है और अमर के पास पहुँचती दोनों बातें कर ही रहे होते है की तभी महाराजा वर्मा वहां आते है और प्रिय को ज़बरदस्ती महल ले जाकर उसके कमरे में फिर बंद कर देते है। इसी के साथ महाराजा वर्मा ऐलान करते है।
महाराजा वर्मा : महामंत्री, सैनिकों से कहकर इन्द्रप्रस्थ राज्य के महाराजा जय सिंह को यह सन्देश भिजवाइये की उनके पुत्र राजा अमर सिंह को आने वाले दो दिनों में फांसी दी जायेगी, साथ उन्हें उनके बेटे के प्रेम प्रसंग की व्याख्या के बारे में सूचित किया जाए, आखिर वे भी तो जाने, उनके पुत्र ने कितना निर्लज कार्य किया है…
महामंत्री ‘जी महाराज” कहते हुए उनकी बात पर हामी भर दी। महाराजा वर्मा ने अपनी बात को आगे बढ़ाया
महाराजा वर्मा : आज हमारे दिल को ठंडक पहुंची है महामंत्री, हमने 20 साल से सिर्फ इसी क्षण की प्रतीक्षा की है। आज वो क्षण आ ही गया, जब महाराजा जय सिंह मेरे पैरों में गिरकर अपने पुत्र की जान की भीख मांगेंगे|
महामंत्री ने बड़ी चालाकी से इस बात पर, उत्साह होना चाहिए, ऐसा प्रस्ताव महाराजा वर्मा के सामने रखा
महाराजा वर्मा : उचित है महामंत्री, राजा अमर की फांसी के बाद काशी को दुल्हन की तरह सजाया जाए, बड़े से बड़े कारीगरों को बुलाया जाए, कवियों का काव्य पाठ कराया जाए, बड़े अंग्रेज़ अफसरों की दावत के साथ साथ उनके मनोरंजन का प्रबंध भी किया जाए ,ताकि चारों ओर इस बात की सूचना फैले कि , जो महाराजा वर्मा से दुश्मनी करता है उसके सुख की मौत भी नसीब नहीं होती.
विनाश काले विपरीत बुद्धि। कहते है न जब किस्मत को किसी को आसमान से धरती पर गिराना होता है, तब उसका गुरूर बढ़ता ही जाता है। बस वो इंसान समझ नहीं पाता.... ठीक वैसे ही महाराजा वर्मा भी नहीं समझ पा रहे थे,
हमारे कर्मों को सुधारने का मौका, किस्मत हमें हर बार देती है, जिनका विवेक जागता है वो सवार लेते है अपना व्यक्तित्व, जो नहीं समझ पाते वो डूबा देते है लुटिया अपनी, एक ओर जहाँ महाराजा वर्मा, अमर को प्रताड़ित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। वहीं दूसरी ओर प्रिया ने भूख, प्यास, नींद त्याग कर अमर की सलामती के लिए इश्वर से प्रार्थना करनी शुरू कर दी.
बच्चे पर जब आती है तब ढाल बनकर माँ सामने आती है, प्रिया की विडंबना उसकी प्रार्थना देखने के बाद तो इश्वर भी पिघल जाए, फिर वो तो माँ है ईश्वर का दूसरा रूप... सही कहते है माँ जब सामने आये तो काल का भी रुख मोड़ दे..... महारानी प्रियंवदा... जिनकी ज़ुबान में मिठास घुली रहती है वो आज 30 सालों में पहली बार महाराजा वर्मा के आगे ऊँची आवाज़ में बात करने वाली है....
महारानी : इसी गद्दी का मोह है आपको महाराजा?
महाराजा वर्मा : महारानी ... ये कैसी बात कर रही है आप?
महारानी : एक घमंड से भरे पुरुष से जैसे बात की जानी चाहिए।
महाराजा वर्मा : आपका तात्पर्य है की हम घमंडी है, लोभी है।
महारानी : जी नहीं आप कायर है!
महाराजा वर्मा : मर्यादा में रहकर बात कीजिये महारानी, भूलिए मत आप जिस छत के नीचे खड़ी है, वो एक महल है और जिनसे आप बात कर रही है वो इसी महल के महाराजा है.
महारानी: महाराजा, जिस ओर से मैं देख रही हूँ मुझको एक असहाय , और कमज़ोर पुरुष दिख रहा है , जिसने अपने हाथों ही अपने पुरुषत्व का क़त्ल किया है, न केवल पुरुषत्व का बल्कि दो मासूम दिलों का भी ।
महाराजा वर्मा : तो आप उन दोनों की हिमायत बनकर आई है?
महारानी : केवल माँ बनकर , जो आप से आग्रह भी कर रही है और आपको महारानी होने के नाते आदेश भी दे रही है, की बरसो की दुश्मनी की सज़ा आप उन दोनों को न दें.
गुरु जगदीश : सच ही तो कह रही है महारानी प्रियंवदा।
गुरु जगदीश की बात आवाज़ सुनते ही महाराजा और महारानी ने अपना तर्क वितर्क रोक दिया, और एक साथ कहां
महाराजा वर्मा : प्रणाम गुरु जगदीश।
महारानी : प्रणाम गुरु जगदीश।
महाराजा वर्मा : आप ऐसे अचानक, आपने कोई सूचना नहीं दी।
गुरु जगदीश : गुरु अपने शिष्य की परीक्षा सदैव बिन बताए लेते है पार्थ।
महाराजा वर्मा : निश्चित तौर पर किन्तु अगर आपने सूचना दी होती तो।
गुरु जगदीश : तो मेरी व्यवस्था में आप कोई कमी नहीं छोड़ते।
गुरु जगदीश और महाराजा वर्मा को बात करता देख, महारानी प्रियंवदा ने राजकक्ष से प्रस्थान किया, जिसके बाद गुरु जगदीश और महाराजा वर्मा ने अपनी बातचीत जारी रखी।
गुरु जगदीश : राज्य में सब कुशल मंगल है न महाराजा वर्मा।
महाराजा वर्मा : जी!
गुरु जगदीश : और राज महल में ?
गुरु जगदीश के सवाल ने महाराजा वर्मा को आश्चर्य चकित कर दिया, महाराजा सोच में पड़ गए की, आखिर किसने ये सूचना गुरु जगदीश को दी . मगर उस वक़्त उन्हें अपने गुरु की बात काटना उचित नहीं लगा, गुरु शिष्य की परंपरा तो सतयुग से चली आ रही है .. गुरु, इंसान के जीवन का सूत्रधार है, मार्ग दर्शक है जो कदम कदम पर गलत का सही से, झूठ का सच से , मोह का परीत्याग से परिचय करते आये है.आज गुरु जगदीश भी महाराजा वर्मा के सामने यही परिचय देंगे ..
गुरु जगदीश : आपने महल का हाल बताया नहीं महाराजा वर्मा।
महाराजा वर्मा : हमें ज्ञात हो गया है गुरु देव की आप से महल की बातें छुपी नहीं है , किन्तु हम अब भी यही सोच रहे है की आप को इस बात की सूचना किसने दी और कैसे ?
गुरु जगदीश: ये आपकी चिंता का विषय नहीं है महाराजा।
महाराजा वर्मा : अब आप से किसी भी विषय में पहेलियाँ बुझाने यानी अपने पाव में कुल्हाड़ी मारने जैसा है।
महाराजा ने शाही महोत्सव से लेकर अब तक घट चुकी सारी घटनाओं को विस्तारपूर्वक गुरु जगदीश को बताया, गुरु जगदीश ने भी शुरू से लेकर अंत तक महाराजा वर्मा की बातों में कोई भी प्रतिक्रिया न देते हुए उनकी बातों को सुनते रहें, और आखिर में जब महाराजा वर्मा ने राजा अमर की सज़ा के बारे में बताया तो उन्होंने बात काटते हुए कहां ...
गुरु जगदीश : आश्चर्य की बात है राजन , आपके जैसा व्यक्ति जिसकी बचपन से हर विषय की तह तक जाने की आदत थी, उसने इतनी बड़ी गलती कर दी
महाराजा वर्मा : कैसी गलती गुरुदेव !
गुरु जगदीश : इंसान पहचानने की।
महाराजा वर्मा : मैं कुछ समझा नहीं?
गुरु जगदीश : 30 साल पहले आप और जय सिंह क्या थे?
महाराजा वर्मा : घनिष्ठ मित्र।
गुरु जगदीश : कितनी घनिष्ठ?
महाराजा वर्मा : इतने की हम साथ युद्ध में इस्तेमाल होने वाली गोली बन्दुक का व्यापार करना चाहते थे।
गुरु जगदीश : इससे सबसे ज्यादा कौन से राज्य के लोगो का हित होता।
महाराजा वर्मा : काशी और इन्द्रप्रस्थ?
गुरु जगदीश : अच्छा तक्षशिला के महाराजा के आपके साथ संबंध कैसे है?
महाराजा वर्मा : बेहतर है उनके राज्य से हमारे राज्य में कपड़े आते है, हमारे राज्य से उनके राज्य में सरसों जौ और मटर जाते है।
गुरु जगदीश : उनके इन्द्रप्रस्थ के महाराजा से कैसे संबंध।
महाराजा वर्मा : दोनों ही राज्य मुनाफे में है।
गुरु जगदीश :काशी और इन्द्रप्रस्थ।
महाराजा वर्मा : इन 25 सालों में बन्दूकों की कमी पड़ी है , हमे और उन्हें गोलियों की, पर हमने तक्षशिला के महाराजा से मदद ले ली थी।
गुरु जगदीश: आँखें खोलो राजन, आपकी मदद नहीं की गई है, आपको छाला गया है... व्यापार में इन्द्रप्रस्थ के महाराजा ने कोई गबन कभी किया ही नहीं था, वो तक्षशिला के महाराजा की चाल थी ताकि वो सत्ता अपने हाथ में ले सकें।
महाराजा वर्मा के होश उड़ गए... उनकी ज़ुबान लड़खड़ा वो, बेचैनी में उन्हें पसीने छूटने लगे उन्होंने कहां,
महाराजा वर्मा : ये आप क्या कह रहे है गुरुदेव ?
गुरु जगदीश : जानता था सत्य को प्रमाण की आवश्यकता पड़ेगी, इसलिए ये दस्तावेज़ साथ लाया हूँ ।
महाराजा वर्मा : मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई है गुरुदेव
गुरु जगदीश : जानना चाहते थे मुझे यहाँ किसने भेजा है, तुम्हारे मित्र ने, तुम्हारे साथ-साथ मैं उसका भी गुरु हूँ.... तुम्हारी मित्रता को संबंध में परिवर्तित होना ही था, प्रिया और अमर से कोई अपराध नहीं हुआ उनका प्रेम तो पवित्र है
महाराजा ने जब गुरु जगदीश की बात सुनी तो उनका घमंड एक बार में पिघल गया, जैसे किसी ने बर्फ की पत्थर के आगे, बड़ा सा अलाव रख दिया हो, महाराजा ने अपनी गलती को सुधारने का निर्णय लिया, अमर के फांसी की सजा रद्द हो इसका आदेश जारी कर दिया..…
जब बात हाथ से निकल जाती है तब हम उसके पीछे भागते चले जाते है, समय रहता कोई नहीं समझ पता किसी इंसान का मोल , महाराजा भी नहीं समझाए उन्होंने जैसे ही अमर की रिहाई का आदेश जारी किया , वैसे ही एक सैनिक ने खबर दी “अत्यंत हर्ष और उल्लास के साथ सूचित किया जाता है की गद्दार अमर को आज फांसी दे दी गई है।"
ये सुनकर महाराजा मूर्ति बन खड़े हो जाते है . प्रिया एक टक आसमान को शून्य में देखती है.. महारानी प्रियंवदा जैसे ही उसके पास जाती है वो प्रिया को देख रो पड़ती है और प्रिया कहती है.. “मेरा प्यार अमर है” माँ और हाथ में राखी अपनी बांसुरी छोड़ देती है।
क्या प्रिया माफ़ कर पाएगी अपने पिता को? क्या वो कर पाएगी अमर की आत्मा के साथ इन्साफ ?क्या वो हो पाएगी खुश? आगे क्या होगा, यह जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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