श्रेया और संकेत दोनों ही सपनों और जिम्मेदारियों के ऐसे दोराहे पर खड़े थे। उनके दिलों में प्यार था, लेकिन उनके कंधों पर वो जिम्मेदारियों का बोझ भी था, जो उन्हें अपने रास्ते से भटकने नहीं दे रहा था।  

श्रेया के घर की हालत दिन-ब-दिन और भी गंभीर होती जा रही थी। उसके पापा, जो पहले से ही बीमार थे, अब और ज्यादा कमजोर दिखने लगे थे। उनकी आंखों में गहरी थकान थी, और उनके चेहरे पर झलकता दर्द पूरे घर में एक अजीब सी उदासी भर देता था।  

  

श्रेया की मॉम :  

"श्रेया, डॉक्टर ने कहा है कि पापा की नई दवाइयाँ तुरंत शुरू करनी होंगी। लेकिन उनका खर्चा..."  

श्रेया : 

"माँ, मैं कुछ और ट्यूशन क्लासेज़ लेने की कोशिश करूंगी। हम कोई रास्ता निकाल लेंगे।"  

  

श्रेया का भाई स्कूल के लिए तैयार होकर उसके सामने आ गया। श्रेय ने अपने छोटे भाई को हल्की मुस्कान के साथ स्कूल भेजा, लेकिन जैसे ही दरवाजा बंद होता है, उसकी मुस्कान फीकी पड़ गई...  

श्रेया के मन में एक गहरी बेचैनी थी। वो जानती थी कि उसकी माँ हर रोज़ खुद को थका रही हैं, और उसके पापा की हालत हर दिन बिगड़ती जा रही थी।  

अगले दिन श्रेया फिर से संजना से मिली।  

  

संजना : 

"मैंने सुना है कि इस बार कॉलेज की तरफ से एक बहुत ही प्रेस्टिजियस फेलोशिप ऑफर हो रही है। अगर तुम उसे हासिल कर लेती हो, तो तुम्हें एक अच्छी स्कॉलरशिप मिलेगी। और ये फेलोशिप न सिर्फ तुम्हारी पढ़ाई का खर्च उठाएगी, बल्कि तुम्हें हर महीने स्टाइपेंड भी मिलेगा। इससे तुम्हारे फाइनेंशियल प्रॉब्लम्स बहुत हद तक हल हो सकते हैं।"  

  

श्रेया : 

"लेकिन अगर मैं इस फेलोशिप के लिए अप्लाई करती हूँ, और उसे हासिल कर लेती हूँ, तो मुझे अपने परिवार से दूर जाना होगा। ऐसे वक्त में, जब उन्हें मेरी सबसे ज्यादा जरूरत है, मैं कैसे जा सकती हूँ?"  

  

संजना : 

"श्रेया, मैं समझती हूँ कि अपने परिवार से दूर जाने का ख्याल तुम्हारे लिए कितना मुश्किल है। लेकिन कभी-कभी, हमें ये समझना पड़ता है कि हमारे अपने फैसले ही हमारे परिवार के लिए सही मायने में मददगार साबित होते हैं।"  

  

श्रेया :  

"पर माँ और पापा... वो लोग अकेले कैसे मैनेज करेंगे?"  

  

संजना : 

 

  

"श्रेया, अभी जो चीज़ उन्हें सबसे ज्यादा चाहिए, वो है फाइनेंशियल सपोर्ट। और ये फेलोशिप तुम्हें वही मौका दे सकती है। ये तुम्हें अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए, अपने परिवार की आर्थिक मदद करने का एक मजबूत आधार देगी।"  

 

संजना की बातों में एक गहरी सच्चाई थी। वो जानती थी कि श्रेया के माता-पिता एक-दूसरे का सहारा बनकर मुश्किलें झेल रहे हैं। लेकिन उनके लिए भी इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरी था कि उनके बच्चे का भविष्य सुरक्षित हो।  

  

श्रेया : 

"संजना, लेकिन... क्या ये सही होगा? क्या मैं अपने परिवार से इतनी दूर रहकर उनकी मदद कर पाऊंगी?"  

  

संजना : 

"श्रेया, तुम्हारा परिवार ये कभी नहीं चाहेगा कि तुम अपनी पढ़ाई या अपने सपनों से समझौता करो। अगर तुमने अभी हार मान ली, तो ये तुम्हारे और उनके लिए एक बड़ा नुकसान होगा। और याद रखो, ये फेलोशिप तुम्हें अपनी पढ़ाई पूरी करने के साथ-साथ इंडिपेंडेंट  बनने का मौका देगी।"   

  

श्रेया : 

"तो तुम्हारा मतलब है कि मैं पढ़ाई और फेलोशिप के ज़रिये अपने परिवार को ज्यादा बेहतर तरीके से सपोर्ट कर सकती हूँ?"  

  

संजना : 

"बिल्कुल। तुम ये समझो कि ये तुम्हारे लिए एक मौका है। और एक बार जब तुम अपने पैरों पर खड़ी हो जाओगी, तब तुम अपने परिवार को और भी बेहतर जिंदगी दे सकोगी।"  

  

श्रेया के दिल और दिमाग में चल रही इस जंग में संजना की बातों ने एक नई उम्मीद की किरण जगा दी। उसने महसूस किया कि उसका फैसला सिर्फ उसके लिए नहीं, बल्कि उसके पूरे परिवार के लिए एक नई राह खोल सकता है।  

  

श्रेया : 

"तुम्हारी बातें सही हैं, संजना। मुझे इस फेलोशिप के लिए अप्लाई करना चाहिए।"  

  

संजना :  

"यही तो मैं सुनना चाहती थी! अब देखना, श्रेया, ये फेलोशिप तुम्हारी जिंदगी बदल देगी।"  

  

 

संजना से बात करने के बाद श्रेया की आंखों में एक नई चमक आ गई। वह अपने डर को थोड़ा-थोड़ा पीछे छोड़ते हुए, एक मजबूत कदम उठाने के लिए तैयार हो गई।    

श्रेया के लिए यह फैसला आसान नहीं था। लेकिन उसे अब समझ आने लगा था कि खुद को strong बनाकर, वो अपने परिवार को और भी स्ट्रॉंग  बना सकती है।   

दूसरी तरफ मल्होत्रा मैन्शन यानि संकेत का घर, आज उम्मीद की रोशनी से जगमगा रहा था।  

  

संकेत को उसके पापा ने आज मिश्रा फैमिली को उनकी बेटी सान्या के साथ संकेत से मिलने के लिए बुलाया था।  

संकेत बड़े भारी मन से कमरे में दाखिल हुआ। वहाँ सान्या अपने पेरेंट्स के साथ बैठी है। वह एक सुंदर, पढ़ी-लिखी और कल्चर्ड  लड़की लग रही थी। लेकिन उसकी आँखों में भी वही फॉर्मैलिटी  झलक रही थी, जो संकेत महसूस कर रहा था।  

  

मिस्टर मल्होत्रा : 

"संकेत, ये सान्या है। बहुत ही होनहार लड़की है। हमें लगता है कि तुम दोनों एक-दूसरे के लिए परफेक्ट हो।"  

  

संकेत :  

"हेलो, सान्या।"  

  

सान्या :  

"हेलो, संकेत। मैंने आपके बारे में बहुत सुना है।"  

  

मिस्टर मल्होत्रा : 

संकेत सान्या को बाहर गार्डन में ले जाओ! वहाँ आप लोग आराम से आपस में बातें कर पाओगे!  

    

संकेत और सान्या गार्डन में आ गए। दोनों एक पगडंडी पर धीमे कदमों से चलने लगे।

  

संकेत : 

"तो, सान्या... क्या तुम्हें भी मुझसे मिलने-जुलने के लिए प्रेशर दिया गया है?"  

  

सान्या :  

"अगर मैं कहूँ कि ये मेरी पहली बार है, तो शायद झूठ होगा।"  

  

संकेत : 

"ये सब कितना अजीब है, ना? दो लोग जो एक-दूसरे को जानते तक नहीं, उन्हें अचानक कहा जाता है कि वो अपनी पूरी ज़िंदगी साथ बिताने के बारे में सोचें। और वो भी इसलिए, क्योंकि उनके परिवारों ने सोच लिया है कि ये उनके लिए सही होगा।"  

  

सान्या : 

"सही कहा। मैंने कभी नहीं समझा कि रिश्तों को ऐसे 'डील्स' की तरह क्यों देखा जाता है। प्यार और शादी तो दो लोगों के बीच का सबसे पर्सोनल  और गहरा रिश्ता होना चाहिए। लेकिन यहां, ये सब सिर्फ एक सोशल  और फाइनैन्शल डील  बनकर रह जाता है।"  

  

 

सान्या की आवाज़ में एक गहराई थी। वो बस संकेत से औपचारिक बातें करने नहीं आई थी। उसके शब्दों में उसकी अपनी सोच, अपने अनुभव और अपने दर्द की झलक थी।  

  

संकेत : 

"तुम्हें पता है, मेरे लिए ये सब कितना मुश्किल है। मेरे परिवार को लगता है कि इस शादी से हमारे बिज़नेस को फायदा होगा। वो सोचते हैं कि मैं उनके सपनों को पूरा करने के लिए इस रिश्ते को निभा लूंगा। लेकिन... मेरा सपना तो कुछ और है।"  

  

सान्या : 

"और वो सपना क्या है, संकेत?"  

  

संकेत :  

"प्यार। एक ऐसा रिश्ता, जहाँ कोई मजबूरी न हो, कोई प्रेशर न हो। बस, दो लोग जो एक-दूसरे को समझते हों, एक-दूसरे के लिए लड़ते हों और एक-दूसरे के साथ खुश रहें।"  

  

सान्या : 

"मैं समझती हूँ। सच कहूँ, तो मैं भी ऐसा ही कुछ चाहती हूँ। लेकिन यहाँ... ये सब कुछ अलग है। मेरे लिए भी ये सिर्फ एक ‘ड्यूटी’ है, जिसे निभाना है।"   

  

संकेत :  

"सान्या, क्या तुम्हारे पास कोई चॉइस नहीं है? क्या तुम सच में इस शादी को चाहती हो?"  

  

सान्या :  

"मेरी चॉइस? हां, शायद मेरे पास एक चॉइस है। लेकिन क्या मेरे परिवार को मेरी चॉइस की परवाह है? मेरे पिता को लगता है कि ये शादी उनके बिजनेस के लिए एक मजबूत कदम है। मेरी मां को लगता है कि ये मेरे लिए एक ‘परफेक्ट’ मैच है। और मैं? मैं बस उनकी उम्मीदों के तले दबती जा रही हूं।"  

  

सान्या के शब्दों में एक अजीब सी तकलीफ थी। वो भी संकेत की तरह अपने दिल की आवाज़ को दबा रही थी, अपने परिवार की उम्मीदों के तले। दोनों एक बेंच पर बैठ गए। कुछ पल की खामोशी रही, बस हवा की सरसराहट और पत्तों की हल्की आवाज़ सुनाई दे रही थी। लेकिन फिर..   

  

संकेत : 

"सान्या, मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूंगा। मेरे दिल में पहले से ही कोई और है। और सच कहूँ तो, मैं इस शादी के लिए कभी तैयार नहीं हो सकता।"  

  

सान्या : 

"संकेत, मुझे खुशी है कि तुमने ये सच मुझसे कहा। और तुम्हें भी पता होना चाहिए... मेरे दिल में भी कोई और है। लेकिन वो रिश्ता कभी वो मुकाम नहीं पा सका, जो मैं चाहती थी।"  

  

दोनों के दिलों में अलग-अलग कहानियाँ थीं। दोनों अपने-अपने सपनों, अपने प्यार के लिए लड़ना चाहते थे। लेकिन परिवार की उम्मीदों ने उन्हें इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया था।  

  

संकेत : 

"तो फिर? हम क्या करें? क्या हम अपने परिवारों के कहने पर इस रिश्ते को निभाएं, या अपनी खुशी के लिए लड़ें?"  

  

सान्या :  

"संकेत, मैं मानती हूँ कि परिवार का सम्मान करना हमारी जिम्मेदारी है। लेकिन खुद के साथ ईमानदार रहना भी उतना ही जरूरी है। मैं अपने परिवार को ये बात समझाने की कोशिश करूंगी। और तुम भी यही करो। शायद ये आसान नहीं होगा, लेकिन... एक झूठे रिश्ते को निभाने से बेहतर होगा कि हम सच्चाई के लिए खड़े हों।"  

  

संकेत : 

"तुम सही कहती हो, सान्या। हमें अपने परिवार से बात करनी होगी। उन्हें समझाना होगा कि रिश्ते सिर्फ फायदे के लिए नहीं बनाए जाते।"  

  

सान्या : 

"रिश्ते प्यार, अन्डर्स्टैन्डिंग  और ट्रस्ट  पर टिकते हैं। और अगर ये सब नहीं है, तो उस रिश्ते को जीने का कोई मतलब नहीं।"  

  

 

संकेत और सान्या ने अपने परिवार की इच्छाओं और अपने दिल की सच्चाई के बीच बैलन्स बनाने का फैसला किया। ये आसान नहीं होगा। लेकिन जो सही है, उसे करने के लिए साहस चाहिए।  

दोनों अंदर ड्रॉइंग रूम में पहुंचे तो मिस्टर मल्होत्रा ने उनसे तुरंत पूछा:  

  

मिस्टर मल्होत्रा :  

"तो, हम इसे फाइनल समझें? सगाई की तारीख तय कर देते हैं?"  

  

सान्या : 

"अंकल, मुझे लगता है कि हमें एक-दूसरे को थोड़ा और समय देना चाहिए। इस तरह का फैसला जल्दबाजी में नहीं लिया जाना चाहिए।"  

  

संकेत को पहली बार लगा कि सान्या जैसी लड़की, जो उसकी तरह ही अपने दिल की सुनती है, भी इस रिश्ते में घुटन महसूस कर रही थी। लेकिन उसकी ये राहत ज्यादा देर तक टिक नहीं पाई।  

मिस्टर मल्होत्रा ने जैसे तैसे बात संभालकर मिश्रा फॅमिली को विदा किया। लेकिन उसके बाद संकेत के पापा ने संकेत को एक लंबा चौड़ा लेक्चर दिया। उसे अपनी जिम्मेदारियों को समझने के लिए डाँट लगाई।  

श्रेया और संकेत, दोनों अपने-अपने संघर्षों में उलझे हुए थे। 

दोनों के पास फैसलों की एक लड़ी थी, लेकिन हर फैसला उनके प्यार को और दूर ले जा रहा था। 

क्या श्रेया अपने परिवार की मुश्किलों के बीच अपनी पढ़ाई को कायम रख पाएगी? 

क्या संकेत अपने परिवार की उम्मीदों के खिलाफ जाकर अपने दिल की बात कह पाएगा? 

और सबसे बड़ा सवाल—क्या उनके प्यार को ये दूरी और मुश्किलें खत्म कर देंगी, या फिर ये प्यार समय की हर परीक्षा पर खरा उतरेगा? 

जानने के लिए पढ़ते  रहिए... "कैसा ये इश्क है"। 

 

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