कभी-कभी प्यार में लिए गए फैसले, न चाहते हुए भी, हमें उस राह पर ले जाते हैं जहाँ हर क़दम भारी महसूस होता है।
श्रेया ने संकेत के प्रपोजल को ठुकराने के फैसले को सही समझा था, लेकिन उसके दिल में अब भी सवालों का अंबार था। क्या वह ठीक कर रही थी? क्या उसने अपने प्यार को अपने सपनों और जिम्मेदारियों की भेंट चढ़ा दिया?
और संकेत... वह प्यार के उस पड़ाव पर खड़ा था जहाँ रास्ते तो कई थे, लेकिन उसकी मंज़िल कहीं खो गई थी।
उसके दिल में अब भी श्रेया के लिए प्यार था, लेकिन उसके परिवार की उम्मीदें उसकी फीलइंग्स पर भारी पड़ रही थीं।
श्रेय के घर में खामोशी छाई हुई थी। उसकी माँ किचन में काम कर रही थी। श्रेया अपने छोटे से कमरे में बैठी, अपने नोट्स के बीच खोई हुई थी, लेकिन उसकी आंखों में बेचैनी साफ़ झलक रही थी।
श्रेया का दिल और दिमाग़ एक जंग में थे। उसने संकेत को "ना" कहकर अपने परिवार को प्राइऑरटी दी थी। लेकिन अब, उसे लगने लगा था कि शायद उसने ख़ुद को और अपने प्यार को ठुकरा दिया।
तभी श्रेया की माँ उसके कमरे में आईं। उनकी आँखों में चिंता साफ़ झलक रही थी।
श्रेया की मॉम :
"श्रेया, पापा की तबीयत फिर से ठीक नहीं लग रही। डॉक्टर ने कहा है कि हमें उनकी दवाओं में बदलाव करना होगा। अब ये खर्चे और बढ़ जाएंगे।"
श्रेया:
"मां, आप चिंता मत करो। मैं किसी और ट्यूशन क्लास में भी पढ़ाने का काम देख लूंगी। हमें सब कुछ मैनेज करना होगा।"
श्रेया जानती थी कि उसकी जिम्मेदारियाँ अब और बढ़ने वाली थीं। उसके पापा कि हेल्थ दिन-ब-दिन खराब होती जा रही थी। उनकी आंखों में वह शर्मिंदगी और दर्द हमेशा साफ़ झलकता था, जो उन्होंने अपने बिजनेस के फैल होने के बाद से झेली थी।
लेकिन श्रेया, जो हर हाल में मज़बूत बने रहने की कोशिश कर रही थी, अब अपने ही सपनों से दूर होती जा रही थी।
दूसरी तरफ़ संकेत के घर में अलग ही माहौल था। उसने घर लौटते ही महसूस किया कि वह सिर्फ़ एक बेटा नहीं, बल्कि अपने परिवार के dreams और aspirations का एक मोहरा भी था।
संकेत की मॉम:
"संकेत, तुम्हारे पापा ने आज एक बहुत अच्छी ख़बर दी है। उन्होंने तुम्हारे लिए एक बहुत ही अच्छी लड़की देखी है। मिश्रा फैमिली की बेटी—संव्या। बहुत ही नामी फॅमिली है। अगले हफ्ते मिलने का प्लान है।"
संकेत के डैड:
"यह शादी हमारे बिजनेस को भी मज़बूत करेगी। मिश्रा जी की कंपनी के साथ पार्टनरशिप से हमें बहुत फायदा होगा। यह तुम्हारे और हमारे दोनों के लिए परफेक्ट मौका है।"
संकेत के चेहरे पर एक पल के लिए खामोशी छा गई। उसके दिल में जैसे एक गहरी चुभन हुई। वह जानता था कि उसके माता-पिता के लिए ये सिर्फ़ एक शादी नहीं, बल्कि एक बिजनेस डील थी।
संकेत:
"पापा... माँ, मैं इस बारे में सोचने के लिए थोड़ा वक़्त लेना चाहता हूँ और इतनी जल्दी क्या है? मैं तो अभी भी कॉलेज में हूँ।"
संकेत की मॉम:
"संकेत, इसमें जल्दी की क्या बात है? ये सब तुम्हारे लिए ही तो कर रहे हैं और देखो, हम सिर्फ़ सगाई की बात कर रहे हैं। शादी तो तभी होगी जब तुम अपनी पढ़ाई पूरी कर लोगे।"
संकेत:
"लेकिन माँ, सगाई और शादी... दोनों ही बड़ी बातें हैं। और... सगाई अभी? क्या ये ज़रूरी है?"
संकेत के डैड:
"संकेत, ये तुम्हारे और हमारे फ्यूचर के लिए बहुत ज़रूरी है। मिश्रा फैमिली के साथ हमारा एसोसिएशन सिर्फ़ बिजनेस तक लिमिटिड नहीं रहेगा। ये तुम्हारी ज़िन्दगी को और आसान बनाएगा।"
संकेत:
"पापा, मैं समझता हूँ कि मिश्रा फैमिली का नाम बड़ा है और ये बिजनेस के लिए अच्छा हो सकता है। लेकिन... क्या मुझे अपनी पढ़ाई पूरी करने तक का वक़्त नहीं मिल सकता? अभी तो मैं इस बारे में सोच भी नहीं रहा था।"
संकेत की मॉम:
"बेटा, हम तुम पर कोई प्रेशर नहीं डाल रहे। लेकिन देखो, मिश्रा जी की बेटी संव्या एक बहुत अच्छी लड़की है। संस्कारी है, पढ़ी-लिखी है और सबसे बड़ी बात, वह हमारी फैमिली में अच्छे से फिट हो जाएगी।"
संकेत:
"माँ, मैं ये सब समझता हूँ। लेकिन... क्या हमें इस बात की इतनी जल्दी करनी चाहिए? मैं चाहता हूँ कि जब मैं शादी के बारे में सोचूं, तब मैं ख़ुद भी पूरी तरह तैयार रहूँ।"
संकेत की मॉम:
"संकेत, इसमें इतनी बड़ी बात नहीं है। तुम अब भी अपने फैसले के लिए वक़्त ले सकते हो। हम बस सगाई कर लेंगे ताकि रिश्ता पक्का हो जाए और शादी तो बाद में होगी, जब तुम पढ़ाई ख़त्म कर लोगे।"
संकेत:
"माँ, सगाई का मतलब भी तो कमिटमेंट ही होता है और अगर मैं अभी ख़ुद को उस कमिटमेंट के लिए तैयार महसूस नहीं कर रहा तो?"
संकेत की मॉम:
"बेटा, ये कमिटमेंट तुम्हारी ज़िन्दगी को और बेहतर बनाएगा। तुम्हें देखना चाहिए कि ऐसी बातें सिर्फ़ तुम्हारे लिए फायदे की हैं। संव्या जैसी लड़की को ढूँढना आसान नहीं है और सगाई के बाद भी तुम्हारे पास सोचने का वक़्त होगा।"
संकेत के डैड:
"देखो संकेत, ये तुम्हारी ज़िन्दगी का सबसे इम्पॉर्टन्ट फ़ैसला है और हमें लगता है कि ये सही वक़्त है। परिवार और बिजनेस दोनों के लिए ये क़दम सही रहेगा। हम बस चाहते हैं कि तुम इसे एक सही नजरिए से देखो।"
संकेत ने अपने माता-पिता की बातों को ध्यान से सुना। उसके दिल में हलचल मची हुई थी। वह जानता था कि उसके परिवार के इरादे नेक हैं, लेकिन उसके दिल की सच्चाई कुछ और थी।
श्रेया की छवि उसके मन से एक पल के लिए भी नहीं हट रही थी। वह ख़ुद को दो दुनियाओं के बीच फंसा हुआ महसूस कर रहा था—एक तरफ़ उसका परिवार और उनकी उम्मीदें और दूसरी तरफ़ उसका प्यार।
संकेत:
मुझे थोड़ा वक़्त चाहिए। ये एक बड़ा फ़ैसला है। मैं इसे बिना सोचे-समझे नहीं ले सकता।"
संकेत की मॉम:
"ठीक है, संकेत। सोच लो, लेकिन ज़्यादा वक़्त मत लेना। मिश्रा फैमिली भी हमसे जवाब की उम्मीद कर रही है और हमें भी उनकी बातों का मान रखना होगा।"
संकेत ने सिर हिलाया, लेकिन उसके दिल में एक अजीब-सी बेचैनी थी।
क्या वह अपने परिवार की उम्मीदों के लिए अपने प्यार को भुला पाएगा?
या फिर, क्या उसे अपने दिल की बात कहने का साहस मिलेगा?
सवाल कई थे, लेकिन जवाब... वह वक़्त ही देगा।
संकेत की माँ इस रिश्ते को लेकर इक्साइटिड थीं। उन्हें इस बात का ज़रा भी अंदाजा नहीं था कि उनके बेटे के दिल में किसी और का नाम लिखा हुआ था।
संकेत वहाँ से उठा और अपने कमरे में चला गया। वह अपनी खिड़की के पास खड़ा होकर बाहर देखता है तब उसकी आंखों में एक अजीब-सा खालीपन नज़र आता है।
संकेत:
"श्रेया, तुमसे दूर होना कितना मुश्किल है। लेकिन क्या तुम भी मुझे मिस कर रही हो?"
संकेत के मन में सवालों का अंबार था। क्या वह अपने परिवार की उम्मीदों को ठुकरा सकता है? या फिर अपने दिल की आवाज़ को दबा सकता है?
ज़िंदगी की कशमकश में सिर्फ़ संकेत ही नहीं, श्रेया भी फंसी हुई थी।
वो सोच रही थी कि क्या उसे पढ़ाई छोड़ देनी होगी?
या फिर फॅमिली कंडिशन्स के बावजूद वह अपनी पढ़ाई जारी रख पाएगी?
क्या वह अपने सपनों को भी ज़िंदा रख पाएगी?
इन्हीं सब बातों में उलझी श्रेया की मुलाकात संजना से हुई.।
संजना:
"श्रेया, तुम ठीक लग नहीं रही हो। क्या हुआ? कुछ दिन से देख रही हूँ, तुम बहुत चुप-चुप-सी हो।"
श्रेया:
"संजना, मैं सोच रही हूँ... क्या मुझे कॉलेज छोड़ देना चाहिए? पापा की तबीयत और घर के खर्चे संभालने के लिए शायद यही सही होगा।"
संजना:
"क्या? श्रेया, ये क्या कह रही हो तुम? तुम्हारी पढ़ाई ही तुम्हारी सबसे बड़ी आपर्टूनिटी है। यही तुम्हारे और तुम्हारी फॅमिली के फ्यूचर को बदल सकती है।"
श्रेया:
" पर कैसे, संजना? घर की हालत हर दिन खराब होती जा रही है। पापा की दवाइयों का खर्चा, छोटे भाई की स्कूल फीस... माँ अकेले सब कुछ संभालने की कोशिश कर रही हैं।
अगर मैं भी नौकरी करने लगूँ, तो शायद उनकी परेशानी थोड़ी कम हो जाए। "
श्रेया के मन में चल रहे इस तूफान को समझ पाना आसान नहीं था। एक तरफ़ उसका परिवार था, जिनकी जिम्मेदारियाँ उसे हर रोज़ खींच रही थीं और दूसरी तरफ, उसके अपने सपने।
संजना:
" श्रेया, मैं जानती हूँ कि ये सब तुम्हारे लिए कितना मुश्किल है। लेकिन ज़रा सोचो... अगर तुम अभी पढ़ाई छोड़ दोगी, तो क्या तुम सच में अपनी फॅमिली की मदद कर पाओगी?
तुम अभी नौकरी कर भी लोगी, तो क्या वह तुम्हें उस मुकाम तक पहुँचाएगी, जहाँ से तुम अपने परिवार को एक बेहतर ज़िन्दगी दे सको? "
श्रेया:
"संजना, पर अभी तो घर में जो भी हेल्प हो सकती है, वही बहुत है। पापा... वह दिन-ब-दिन कमजोर होते जा रहे हैं और माँ... माँ हर दिन ख़ुद को थका रही हैं। क्या ये सब देखते हुए भी मैं सिर्फ़ पढ़ाई पर फोकस कर सकती हूँ?"
संजना:
" श्रेया, मैं समझती हूँ कि तुम्हारी जिम्मेदारियाँ बहुत बड़ी हैं। लेकिन सोचो, क्या ये हालात हमेशा ऐसे ही रहेंगे?
तुम्हारी पढ़ाई तुम्हें उस मुकाम तक ले जाएगी, जहाँ से तुम एक ऐसी ज़िन्दगी बना सकोगी, जहाँ तुम्हारे परिवार को इन परेशानियों का सामना न करना पड़े। "
संजना की बातों में गहराई थी। वह समझती थी कि श्रेया की मौजूदा मुश्किलें अस्थायी हैं, लेकिन अगर वह अपने सपनों से समझौता कर लेती है, तो इसका असर जिंदगीभर रहेगा।
संजना:
" श्रेया, आज तुम अपने परिवार के लिए सब कुछ कर रही हो। लेकिन कभी-कभी ये सोचना भी ज़रूरी है कि तुम्हारा ख़ुद का फ्यूचर क्या होगा।
तुम्हारे पापा, तुम्हारी माँ... वह भी यही चाहेंगे कि तुम अपनी पढ़ाई पूरी करो। क्योंकि सिर्फ़ एक अच्छी डिग्री ही तुम्हें उस मुकाम तक ले जाएगी, जहाँ तुम न सिर्फ़ अपने लिए, बल्कि अपने परिवार के लिए भी एक स्टैबल लाइफ बना सको। "
श्रेया:
"पर ये सब इतना आसान नहीं है, संजना। हर दिन नई चुनौतियाँ सामने आती हैं। क्या मैं अपने सपनों और अपनी जिम्मेदारियों के बीच बैलन्स बना पाऊंगी?"
संजना:
"तुम कर सकती हो, श्रेया। ये रास्ता मुश्किल ज़रूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं और याद रखो, आज नहीं तो कल, तुम्हें अपनी ज़िन्दगी की कमान ख़ुद संभालनी होगी। अगर आज तुम हार मान गईं, तो कल के लिए तुम्हारे पास कोई मज़बूत आधार नहीं होगा।"
संजना की बातें श्रेया के दिल में गूंजने लगीं। वह जानती थी कि संजना सही कह रही है।
उसकी पढ़ाई, उसके सपने... ये सिर्फ़ उसके नहीं थे। ये उसके परिवार की उम्मीदों का भी हिस्सा थे।
श्रेया:
"संजना, तुम सही कह रही हो। मुझे अपनी पढ़ाई नहीं छोड़नी चाहिए। पर कभी-कभी, इन जिम्मेदारियों का बोझ इतना बड़ा लगने लगता है कि मुझे समझ नहीं आता, क्या सही है और क्या गलत।"
संजना की बातों में सच्चाई थी। लेकिन श्रेया का दिल और दिमाग़ अब एक ऐसे दोराहे पर खड़े थे, जहाँ हर रास्ता मुश्किलों से भरा था।
वहीं संकेत आजकल अपने कमरे में अकेला बैठा रहता था, उस अंगूठी को देखते हुए जो उसने श्रेया के लिए चुनी थी। वह उसे घूरता रहता था, मानो उसी से इस मुश्किल का जवाब मांग रहा हो।
संकेत के मन में अब एक और सवाल उभरने लगा था। क्या वह अपने परिवार की उम्मीदों के लिए अपने प्यार को भूल सकता है? या फिर, क्या उसे अपने दिल की सुननी चाहिए?
उसने सोचा "शायद श्रेया सही थी। अगर अभी हमारे पास वक्त नहीं है, तो आगे क्या होगा?"
इस इनकार के बाद, संकेत और श्रेया दोनों अपने-अपने संघर्षों में उलझ गए थे।
दोनों ने एक-दूसरे से दूर होने का फैसला किया था, लेकिन उनके दिल अब भी एक-दूसरे के लिए धड़कते थे।
क्या श्रेया अपने परिवार की जिम्मेदारियों के बीच अपने सपनों को जिंदा रख पाएगी?
क्या संकेत अपने परिवार की उम्मीदों और अपने दिल की ख्वाहिशों के बीच संतुलन बना पाएगा?
और सबसे बड़ा सवाल—क्या ये दूरियां उनके रिश्ते को हमेशा के लिए बदल देंगी, या फिर ये प्यार किसी और राह से वापस अपनी मंज़िल तक पहुंचेगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिए... "कैसा ये इश्क है"।
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