कभी गुलाब जामुन को रसगुल्ले के बीच में रखा हुआ देखा है? अजीब लगता है न? बस कुछ ऐसा ही हाल था मेरा जैसे हिंदी मीडियम इंसान का इन सब इंग्लिश मीडियम लोगों के बीच में। सबकी बात करने का स्टाइल, खाने पीने का स्टाइल, कपड़े पहनने का स्टाइल, इन शॉर्ट, मैं इन सबके बीच... घोड़ों की रेस में दौड़ रहे एक लंगड़े घोड़े की तरह लगता था।
आखिर कितनी ऑफिस पार्टियों में मैं पेट खराब होने का बहाना देकर बच सकता था। कभी न कभी तो मुझ जैसी बकरी को इन कसाईयों के हाथ लगना ही था। इसलिए वो दिन आने से पहले ही मैंने ये सब सीखने का सोचा। सबसे पहला काम था सब की तरह बोलना सीखना, मतलब हाई-फाई इंग्लिश सीखना। मैंने तुरंत अंकित की इंग्लिश टीचर को फोन लगा दिया।
रवि (फोन पर): हैलो…
श्रेया मैडम (फोन पर): हैलो
रवि (फोन पर): हां श्रेया मैडम, मैं अंकित का पापा बोल रहा हूं।
श्रेया मैडम (फोन पर): अच्छा, अच्छा। जी अंकित क्लास में बहुत अच्छा कर रहा है। मुझे लगता है इस बार वो टॉप करेगा।
रवि (फोन पर): नहीं, नहीं, मैंने उसकी रिपोर्ट पूछने के लिए फोन नहीं किया।
उस दिन पहली बार मुझे पता चला कि मेरा बेटा पढ़ाई में अच्छा खासा है। मैं उस बेचारे को बिना बात के पीट देता था। तो क्या हुआ, मेरा बापू तो मुझे आते जाते कूट देता था। वैसे भी ये आजकल के चोचले मुझे समझ नहीं आते, अरे परवरिश तो हमारे जमाने में होती थी। बच्चा हंस रहा है, पीट दो, बच्चा रो रहा है, पीट दो। बच्चा बाहर घूम रहा है, पीट दो, बच्चा घर पर ही रहता है, पीट दो और फिर अपने यार दोस्तों के पास जाकर गर्व से बताओ आज बेटे को कूट दिये। क्या किये? कूट दिये, उसी के घर में, अम्मा के सामने। क्या किये? कूट दिये (गैंग्स ऑफ वासेपुर स्टाइल)।
रवि (फोन पर): जी वो मैंने ट्यूशन लगवाने के लिए फोन किया था।
श्रेया मैडम (फोन पर): पर अंकित को तो ट्यूशन की कोई जरूरत नहीं है।
रवि (फोन पर): नहीं, नहीं, अंकित के लिए नहीं, अपने लिए।
श्रेया मैडम (फोन पर): आपको?
रवि (फोन पर): अरे बोला न मुझे ही चाहिए। आप इंग्लिश पढ़ाओगी मुझे या नहीं?
श्रेया मैडम (फोन पर): ठीक है। लेकिन मैं बस 4 से 5 तक ही फ्री हूं। मैं उस समय में आपके घर आ जाऊंगी।
यार मैं इंसान हूं या फुटबॉल। जिस तरफ भी जाना चाहो वहां से लात पड़ जाती है। अब 4 बजे तो मैं ऑफिस में होता हूं, ये घर पहुंचकर क्या करेंगी? और किसी समय ये फ्री नहीं हैं। चलो ऑफिस में ही बुला लेता हूं वैसे भी यहां खाली बैठा बैठा बोर ही हो जाता हूं।
रवि (फोन पर): नहीं, घर पर नहीं। मैं आपको एड्रेस बताता हूं आप यहां आजाइए।
चलो अब एक प्रॉब्लम का तो राम नाम सत्य होगा। वैसे भी मैंने ये नोटिस किया हुआ है, अगर आप इंग्लिश में कुछ उल्टा सीधा भी बोलते हो तो लोगों को अच्छा लग ही जाता है।
अगले दिन 4 बजे श्रेया मैडम ऑफिस पहुंच गईं।
ऑफिस के बाहर, फाउंटेन साउंड आदि
वॉचमैन: किसे मिलना है आपको?
श्रेया मैडम: रवि सिंह से।
वॉचमैन: क्या काम है?
श्रेया मैडम: उन्हें इंग्लिश पढ़ाने आई हूं।
वॉचमैन (हैरान): क्या ??!!!
15 मिनट की बहस के बाद वॉचमैन ने मुझे कॉल करके सब बताया और मैंने श्रेया मैडम को अंदर भेजने को बोल दिया। एक बात और, आदमी छोटा हो या बड़ा लेकिन उसका पेट छोटा सा ही होता है, कोई बात उसके पेट में नहीं रुकती। न जाने उस वक्त वॉचमैन से सुपरमैन कैसे बन गया, मैडम को मेरे ऑफिस तक पहुंचने से पहले ही ये बात ऑफिस के हर इंसान के कानों तक पहुंच गई कि मैंने इंग्लिश सीखने के लिए अपने बेटे की इंग्लिश टीचर को ट्यूशन के लिए बुलाया है।
लेकिन कहते हैं न कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, इसलिए मैंने रेस्पेक्ट पाने के लिए अपनी सेल्फ रेस्पेक्ट का वड़ा पाव बनाकर खा लिया।
श्रेया मैडम मेरे ऑफिस में आते ही शुरू हो गई।
आय्यें… अब ये क्या नई चीज चल गई है मार्केट में। जब से ये सोशल मीडिया आया है तबसे ऐसा कुछ न कुछ होता ही रहता है। मैं कुछ नहीं समझ पाया, इसलिए मैं चुपचाप अपनी जगह पर खड़ा रहा।
श्रेया मैडम: देखिए, सबसे पहले जब कोई आपके सामने आए तो उसे ग्रीट किया जाता है। जैसे अगर सुबह का समय हो तो गुड मॉर्निंग बोल जाता है। दोपहर में गुड आफ्टरनून, शाम में गुड ईवनिंग और सोने से पहले गुड नाइट। समझे।
हुह… ये तो हम रोज करते थे स्कूल में एक सॉन्ग की तरह जब भी मैडम या सर क्लास में आते थे। “गूूड मॉर्निंग माडम” ऐसे। पर इसे ग्रीट करना कहते हैं ये किसी ने नहीं बताया। मुझे तो लगा, जैसे पहले के समय में राजा लोग जब दरबार में आते थे, तो उनसे पहले एक लंबा सा डायलॉग बोला जाता था, ये ग्रीटिंग वाला सॉन्ग भी वही है। खैर, ये तो बहुत ईजी है।
रवि: गुड मॉर्निंग… नहीं, नहीं… गुड आफ्टरनून।
श्रेया मैडम: गुड, बैठो, आपने कभी इंग्लिश पढ़ी है पहले?
रवि: नहीं।
श्रेया डम: ठीक है तो हम शुरू से शुरू करते हैं।
और फिर हमने शुरू से शुरू किया। शुरुआत में मेरी हालत बस टाइट ही थी लेकिन समय के साथ मेरी हालत एयर पैक डिब्बे की तरह टाइट हो गई थी। यार ये इंग्लिश कितनी कन्फ्यूजिंग है। किसने बनाया है इस लैंग्वेज को? वर्ड एक ही है, लेकिन मतलब अलग। सन मतलब बेटा भी और सन मतलब सूरज भी। अरे, कोई अलग वर्ड देदो न। वरना काहे कि रिच लैंग्वेज? हां नहीं तो। चलो, ये भी मैंने सहन कर लिया, लेकिन मुझे ये साइलेंट लेटर का कॉन्सेप्ट समझाओ कोई। अगर किसी लेटर को बोलना ही नहीं है तो उसे उस वर्ड में लगाया ही क्यों? अगर नाइफ में के को बोलने की जरूरत ही नहीं तो हटा दो न यार। और जब मैं ये question पूछता तो श्रेया मैडम का पारा सातवां आसमान छूने लगता। मैडम आपने ही तो बोला था कि जो समझ न आए पूछ लेना, मैंने पूछ लिया। तो किस बात की गुस्सा? ऐसे ही बातों को सहते सहते मैं एक वीक तक इंग्लिश की classes लेता रहा। फिर एक दिन:
श्रेया मैडम: कल मैंने जो होमवर्क दिया वो कम्प्लीट हुआ?
रवि: हां मैडम कर लिया। मगर कॉपी लाना भूल गया।
स्कूल की चाहे सारी बातें भूल चुका हूं, पर ये अभी तक याद था कि अगर होमवर्क नहीं किया हो तो कॉपी लाना भूल जाओ।
श्रेया मैडम: लेकिन मैंने तो आपको वर्ड मीनिंग याद करने को बोला था। कॉपी की कोई जरूरत ही नहीं उसमें।
हे प्रभु, हरि राम कृष्ण जगन्नाथ प्रेमानंदी ये क्या हुई। एक दम से इन्होंने वक्त पलट दिया, जज्बात दिए, दुनिया पलट दी। ये तो इन्होंने नो बॉल पर सिक्सर मार दिया। अब क्या करूं? मैंने तो कुछ याद ही नहीं किया है। बिना रुके मैडम ने मुझसे वर्ड मीनिंग सुनना शुरू कर दिया। हर question मैं पास करना चाहता था। हर question मेरी तरफ आता कोई दुश्मन की गोली जैसा लग रहा था जिसका कोई answer मेरे पास नहीं था। गुस्से से आग बबूला होकर मैडम ये बिल्कुल भूल गई कि ये उनकी क्लास नहीं एक सीईओ का ऑफिस है और जो उनके सामने है वो 8वीं क्लास का बच्चा नहीं एक कंपनी का सीईओ है।
श्रेया मैडम (गुस्से में): चलो मुर्गा बनो…
रवि (डरते हुए): अरे मैडम…
श्रेया मैडम (गुस्से में): keep quite । होमवर्क नहीं करोगे तो सजा तो मिलेगी ही।
रवि: पर मैडम मेरी…
श्रेया मैडम (गुस्से में): मुर्गा बनो एल्स लीव द क्लास।
अरे लीव द क्लास का क्या मतलब है ये मेरा ऑफिस है भी… मैं यहां से कैसे जाऊं। मैडम कुछ सुनने को राजी ही नहीं थीं। आखिर में मुझे मुर्गा बनना ही पड़ा। वो तो भला हो आर्किटेक्ट का जिसने ग्लास को ऐसा बनाया था जिससे पार कुछ नहीं दिखे। मैं मुर्गा बना ही था कि तबी केबिन का गेट खुला और जो नजारा मैंने देखा मेरी आत्मा को परमात्मा से मिलने के लिए वही काफी था।
मुझे लगा जैसे किसी ने मेरे सबसे डरावने सपने को रियलिटी का रूप देकर मेरे ही सामने लाकर खड़ा कर दिया है।
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