श्रेया मैडम ने तो बिना कुछ सोचे-समझे मुझे मुर्गा बनने का फरमान सुना दिया। वैसे भी उन्हें क्या, उन्हें तो बस एक घंटे इस ऑफिस में रहना होता है। इन दानवों के बीच रहना तो मुझे ही होता है। अजीब स्थिति है, मैडम को कुछ समझाना भैंस के आगे बीन बजाने जैसा लग रहा था, इसलिए मैं अपनी कुर्सी से धीरे-धीरे उठा और एक कोने में मुर्गा बन गया। मैं जैसे ही मुर्गा बना, ऑफिस का दरवाजा किसी ने खोल दिया। (एसएफएक्स: दरवाजा खुलने की आवाज)। मेरी आंखों ने जो मंजर देखा, उससे मेरी रूह कांप गई। मेरे ऑफिस में शालिनी मैडम आई थीं और उनके पीछे सीएफओ संजय राव थे। मुझे लगा कि मुर्गा तो मैं बन ही हुआ हूं, अब ये संजय राव मुझसे अंडा भी निकलवा ही लेगा। शालिनी मैडम ने मुझे देखा और तुरंत दरवाजा बंद कर दिया। सीएफओ संजय राव बाहर ही रह गए। भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि संजय मुझे नहीं देख पाया।

 

शालिनी: ये सब क्या हो रहा है?

श्रेया मैडम (उसकी ओर देखे बिना): आपके बेटे ने होमवर्क नहीं किया इसलिए सजा में है।

 

रवि: ये मेरी मम्मी नहीं हैं।

 

श्रेया मैडम: तो ये कौन हैं?

 

रवि: ये शालिनी मैडम हैं।

 

श्रेया मैडम: अच्छा, ये भी आपको पढ़ाती हैं लेकिन अभी तो मेरी क्लास का समय चल रहा है।

 

रवि: अरे ये कुछ नहीं पढ़ाती हैं। ये हमारी कंपनी की बहुत बड़ी इन्वेस्टर हैं।

 

शालिनी (जोर से): ओह्ह्ह, both of you shut up। रवि यहां आओ। 

 

 कदमों की आवाज। कान में बोलते हुए) 

 

ये सब क्या है? तुम इतनी बड़ी कंपनी के सीईओ होते हुए मुर्गा बने हुए हो?

 

रवि: अब टीचर को क्या फर्क पड़ता है कि स्टूडेंट सीईओ है या ganitor?

 

शालिनी: वो जो भी हो, तुम्हें थोड़ा सा भी आइडिया है कि संजय या किसी को भी इसके बारे में पता चल जाता तो तुम्हें कच्चा चबा जाते सब।

 

रवि: मालूम है मैडम, लेकिन श्रेया मैडम कुछ सुनने को तैयार ही नहीं हैं।

 

शालिनी: तुम हटो… मैं बात करती हूं। (धीमी आवाज) एक्सक्यूज मी, एक्सक्यूज मी मैम, देखिए, मैं समझती हूं, कि मिस्टर रवि आपके स्टूडेंट हैं, पर क्या है कि वो इस कंपनी के सीईओ भी हैं अगर किसी एम्प्लॉयी ने इन्हें ऐसे मुर्ग बने देख लिया तो इनकी इमेज पूरी खराब हो जाएगी।

 

 शालिनी मैडम, श्रेया मैडम को मेरी तरफ से सब समझाती रही। मैंने अभी-अभी कहा था कि ये मेरी मम्मी नहीं हैं, पर न जाने क्यों, मैं उनके पल्लू का एक कोना पकड़कर उनके पीछे छुपकर खड़ा हुआ उनके बच्चे जैसा ही फील कर रहा था। थोड़ी देर की चर्चा के बाद श्रेया मैडम मान गईं।

 

श्रेया: ठीक है, आज माफ कर रही हूं। पर आगे से अगर मेरा होमवर्क नहीं किया तो उल्टा लटका दूंगी... और मेरा 8 से 9 का टाइम फ्री हो गया है। अब मैं इसी बीच तुम्हारे घर पर ही पढ़ाने आऊंगी। तुम्हारे बेटे को भी तो पता चले कि उसका बाप पढ़ने में कैसा है।

 

हाए राम, ये श्रेया मैडम तो खतरनाक हैं। अब ये मेरे बेटे को मेरा रिपोर्ट कार्ड दिखाएंगी क्या? इनका बस चले तो मेरे बेटे के सीने पर बोल्ड और कैपिटल लेटर्स में लिखवा दे कि मेरा बाप अनपढ़ है। एक तो वैसे भी मेरी जिंदगी में कम समस्या नहीं थी जो मैंने खुद फोन करके एक और समस्या अपने सिर पर डाल ली। ये तो वही बात हुई कि खाने को नहीं है निवाला और ससुर ने भेजा साला।

 

श्रेया मैडम के जाते ही शालिनी मैडम ने संजय को अंदर बुला लिया (दरवाजा खुलने की आवाज)।

 

संजय: क्या हुआ मैम? आपने ऐसे दरवाजा बंद कर दिया जैसे अंदर रवि सर नहीं कोई मुर्गा बैठा हुआ हो।

 

रवि (हकलाते हुए): मु..मुर..मु… मुर्गा? मुर्गा क्यों होगा? हेहेहे (नकली हंसी)

 

संजय: चिल सर, मैंने तो बस यूं ही बोल दिया था। (हंसते हुए)

 

खौफ, भय, आतंक, डर उस पल पर चारों तरफ छाए हुए थे। संजय उस वक्त मुझे डर का ही एक रूप लग रहा था। संजय के हाथ में एक फाइल थी, जिसमें हर कर्मचारी का डेटा और वर्क प्रोग्रेस डॉक्यूमेंटेड था। उसने वो फाइल मेरे डेस्क पर रखी।


रवि: ये क्या है।

 

संजय: सर ये सारे एम्प्लॉयीज की फाइल्स हैं। अप्रेजल का टाइम है, पहले की तरह इस बार भी कंपनी के हेड को, मतलब सीईओ को, सारे एम्प्लॉयीज के वर्क को एक्जामिन करके उन्हें अप्रेजल देना है। अनफॉर्चुनेटली, अभी कंपनी के सीईओ आप हो, इसलिए आप ही देखिए। अगर कुछ समझ आये।

 

ये बोल कर संजय मेरे केबिन से खिसक लिया. ये संजय अगर सीएफओ न हो तो इसका करियर सास बनने में बहुत अच्छा चलता ।  हर बात पर भिगो-भिगो कर ताने मारता है... और ये इतनी मोटी फाइल मेरे डेस्क पर रख गया। अब होमवर्क करूं या ये फाइल का काम। अगर होमवर्क नहीं किया तो श्रेया मैडम खुद दुर्गा माता बन जाएंगी, और मुझ बेचारे को महिषासुर समझ लेंगी...  अगर ये काम नहीं हुआ तो कंपनी के सारे एम्प्लॉयीज हनुमान जी बनकर मेरी लंका लगा मतलब जला देंगे। 

 

मैंने देखा है अप्रेजल के टाइम पर सब बंदरों की तरह उछल-कूद करने लगते हैं। पहले ये फाइल का काम ही निपटा देता हूं। वैसे भी माता दुर्गा हो या माता चंडी, होती तो दयालु ही है, उन्हें तो समझा ही दूंगा...  लेकिन अगर ये मेरे सीने पर बैठने को उतारू हो गए तो मुझे कोई नहीं बचा सकता। एक सेकंड… जब मैं janitor था तब कभी मुझे कोई अप्रेजल नहीं मिला। मुझे ही क्या कभी किसी 4थ क्लास स्टाफ को कोई अप्रेजल नहीं मिला। इस बार की फाइल ज़रा देखू।

 

रवि (reading names): अनीता, अय्यर, संजय, मोहित, फैज, अंकिता… इस बार भी कोई 4th class स्टाफ का नाम नहीं है। मैंने ये नाम देखे और सनी को कॉल करके कहा 

 

 phone ringing in pantry 

 

रवि: सनी, ज़रा संजय सर को मेरे ऑफिस में भेजना।

 

संजय: आपने बुलाया??

 

रवि (अधिकारी स्वर में): हाँ संजय सर, कोई और फाइल भी है क्या ऐसी, जो आप देना भूल गए हो।

 

संजय: नहीं।

 

रवि: मतलब इस फाइल में ही कंपनी के सभी एम्प्लॉयीज के नाम हैं।

 

संजय (आत्मविश्वासी स्वर में): हाँ। कोई problem?

 

रवि: नहीं, नहीं। बस मुझे इसमें सनी, हैप्पी, रमेश का नाम नहीं दिखा।

 

संजय (अहंकारी स्वर में): क्योंकि हमारी कंपनी help स्टाफ को अप्रेजल नहीं देती।

 

रवि: help स्टाफ मतलब?

 

संजय: मेरा मतलब है किसी 4थ क्लास स्टाफ को।

 

रवि (चिढ़ाते हुए): क्यों, ये आपका 4थ क्लास स्टाफ कोई काम नहीं करता क्या?

 

संजय: करता है सर, उन्हें साफ़ सफाई, चाय कॉफ़ी पिलाना और डस्टिंग वगैरह के काम की अच्छी सैलरी आलरेडी कंपनी देती है. (taunting) आपको तो.... ये सब कुछ अच्छे पता ही होगा ना... सर!

 

रवि: बहुत अच्छे से पता है संजय सर. लेकिन जो आपको नहीं पता वो मैं आपको अभी बता देता हूँ. एक गरीब इंसान को पैसे की सबसे ज़्यादा ज़रुरत होती है. लेकिन बाकी सभी इंसानो की तरह एक गरीब इंसान भी अपने काम की तारीफ का हक़दार होता ही है. और अप्रैज़ल किसी इंसान की ज़िन्दगी में उसके काम की तारीफ करने जैसा काम ही करता है. करता है न.. संजय सर.

 

संजय: तो आपके हिसाब से अब कंपनी को इन फोर्थ क्लास हेल्पर्स को भी अप्रैज़ल देना चाहिए।

 

रवि: देना चाहिए नहीं। अब से कंपनी इस कंपनी के हर छोटे बड़े एम्प्लोयी को अप्रैज़ल उसकी परफॉरमेंस के हिसाब से ज़रूर देगी। और हाँ आपके परफॉरमेंस की फाइल भी मैं रेडी करवा रहा हूँ. इसलिए अभी से खूब मेहनत शुरू कर दीजिये संजय सर

 

इसके बाद तो संजय सर का मुँह देखने वाला था, मज़ा आया. लेकिन यार एक बात तो माननी पड़ेगी ki यार, एक तो समय-समय पर मेरे अंदर का भगत सिंह क्यों उठ खड़ा होता है, मुझे समझ नहीं आता। ये सबके फटे में टांग अड़ाने की आदत किसी दिन मुझे लंगड़ा करा के छोड़ेगी... और ये संजय उस दिन मुझे कोई बैसाखी भी नसीब नहीं होने देगा। अब जो भी हो इतने कॉन्फिडेंस में मीटिंग करने को बोला है तो बैक आउट भी नहीं कर सकता। हे प्रभु, कल अब बस तुम ही बचा सकते हो। न जाने जोश-जोश में मैं ये क्यों भूल जाता हूं कि मेरी गर्दन आदमखोरों के बीच में लटकी हुई है, जिस दिन किसी का जबड़ा मेरी गर्दन तक पहुंच गया मेरा तो राम नाम सत्य होना पक्का है। संजय के जाते ही मेरी टांगें कांपने लगीं। चलो इतने दिनों में कम से कम सबके सामने हिम्मत से खड़ा होना तो सीख लिया। ये संजय ज़रूर सबको कल होने वाली मीटिंग में मेरे खिलाफ भड़काएगा। क्या करू? बुखार का बहाना बनाकर छुट्टी मार लू? नहीं, नहीं, स्कूल वाले आइडियाज़ मत निकाल रवि, कुछ और सोच। हाँ, आइडिया… अब बस यही मुझे बचा सकता है और लोगों को समझा भी सकता है। 

 

रवि (जोर से): शालिनी मैडम… 

 

(तेज़ कदमों की आवाज़)।

 

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