huff… एक नया दिन, एक नई सुबह पर mental helath वही पुरानी, बिल्कुल बेकार। मुझे लगता है ये सीईओ बनने की जितनी भी सैलरी होगी वो सब तो थेरेपी सेशन में ही चली जाएगी। इससे अच्छा तो मैं जैनिटर की जॉब पर ही था। न कोई झंझट, न कोई टेंशन। बस ऑफिस पहुंचो, दो, चार सल्यूट मारो, लोगों को कॉफी दो और थोड़ी धूल वगैरह साफ कर दो। पर जबसे सीईओ बना हूं जैसे दुनिया भर की टेंशन्स को मेरा ही एड्रेस मिल चुका है, हर दिन कुछ न कुछ होता ही रहता है। अब आज का ही देखो, आज की मुसीबत को तो मैंने खुद इनविटेशन देकर अपने पास बुला लिया। आज की मीटिंग में तो शालिनी मैम भी नहीं हैं... और अनीता मैडम का पता नहीं कि किस तरफ लुड़क जाएं। आज तो मेरी गर्दन पर फांसी एक ऐसी रस्सी बंधी लगी हुई है जिसके चारों तरफ नुकीले कांटे भी लगे हैं। अगर फांसी से नहीं मारा तो septic से तो मर ही जाऊंगा। ऑफिस पहुंचते ही अपनी तैयारी कर लूंगा। ये लोग डेमॉन्स्ट्रेशन के बिना मानते ही नहीं तो मैं क्या करूं। इसी उधेड़बुन में कब हैप्पी आ गया और कब मैं गाड़ी में बैठकर ऑफिस पहुंचा पता ही नहीं चला। रास्ते में हैप्पी ने भी पूछ लिया कि आज किसी गहरी सोच में लग रहे हो। अब उसे कौन ही बताए कि आज का दिन उन सबका फ्यूचर डिसाइड करने वाला है। आज ऑफिस मुझे ऑफिस नहीं बल्कि wwe का फाइटिंग रिंग लग रहा था। जिसके एक तरफ अकेला मैं और एक तरफ 113 पहलवान मुझे कपड़े की तरह धोने को रेडी थे, वो भी बिना साबुन और पानी के। मैं जल्दी से अपने ऑफिस में घुस गया। तो लोग आपस में फुसफुसा रहे थे
रवि नकल करते हुए: अरे यार आज मीटिंग के दिन ही इस सनी को छुट्टी लेनी थी।
तभी दूसरे employee कि आवाज आती है (रवि फिर से नकल करता हुआ : पता नहीं आज सब कहाँ चले गए, कैब वाला भी छुट्टी पर है।
किसी ने तो ये तक भी कह दिया
“ये अपने नए बॉस रविि को मैनेजमेंट की ज़रा सी भी अक्ल नहीं है यार, सारे hlep स्टाफ को एक साथ छुट्टी दे दी। न ड्राइवर है, न कोई ऑफिस बॉय और न ही वॉचमैन। ”
हाँ, सब कुछ बिल्कुल प्लान के according चल रहा है। अब कभी भी वो संजय अपनी तुन्तुनी बजाते हुए मेरा ढोल बजाने आता ही होगा। वो यही सोच-सोच कर खुश हो रहा होगा, आज सबके सामने मेरी इज्जत का फालूदा होगा... लेकिन मैं भी सिंघम फैन हूँ ... भले ही उसके जितना पढ़ा-लिखा नहीं हूं पर इतनी आसानी से अपनी इज्जत अपने हाथों से नहीं निकलनेे दूंगा। वो अपने सिंघम भाऊ कहते हैं ना…
रवि: आता माझी सटकली। आता माझी सटकली।
मैं सोच ही रहा था कि किस तरह मीटिंग में सिंघम स्टाइल में राव को धूल चटवाऊँगा कि इतने में एक employee ने आकार कहा कि मीटिंग के लिए सब आ गए हैं। मैंने भी फुल confidence में कह दिया
Ravi: हाँ , हाँ चलो।
मीटिंग रूम में जाते हुए दिमाग में सब कुछ चेक करते हुए चल रहा था। धूल चेक। कॉफी चेक। ऑफिस चेक। एक तो ये लोग मेरे आते ही ऐसे खड़े हो जाते हैं जैसे बंदरों का झुंड किसी एक लंगूर को देखकर तितर-वितर हो जाता है। लेकिन यहां तो लंगूर खुद ये ही हैं, और इन सब लंगूरों के बीच मैं अकेला बंदर। कसम से, अगर किसी भी लंगूर ने अगर अपनी पूंछ घुमाकर मार दी तो मेरी बम भी बिल्कुल बंदर की तरह लाल हो जाएगी। खैर, मीटिंग तो शुरू करनी ही थी।
रवि: बैठ जाइए सब, सबको पता है आज की ये मीटिंग ४थ क्लास स्टाफ के अप्रेजल के लिए है। मैं चाहता हूं हमारे ऑफिस के वॉचमैन, ड्राइवर्स और ऑफिस बॉय्स को भी अप्रेजल मिले।
एम्प्लॉयी 1: सर, ऐसा किसी कंपनी में नहीं होता है। और अगर हम इस बार अप्रेजल देंगे तो हर बार उनकी एक्सपेक्टेशन्स बढ़ती जाएंगी।
रवि: बिल्कुल सही, और इसकी वजह से उनके काम करने की विल भी बढ़ती जाएगी। ताकि उनकी परफॉर्मेंस के हिसाब से उन्हें अप्रेजल मिले।
Employee 2: सर, अगर वो काम नहीं करेंगे तो उन्हें निकाला भी जा सकता है, बहुत लोग हैं ये काम करने के काबिल। अगर हम ये डर रखें तो भी काम अच्छा ही होगा।
रवि: अखिल, इस तरह से तो आपका काम भी काफी लोग कर सकते हैं। तो फिर आपको अप्रेजल देने की क्या जरूरत है? अगर आप कंपनी छोड़ोगे तो और आ जाएंगे... लेकिन आपने इस कंपनी को अपना समय दिया है। मेहनत की है आपने यहां। इसलिए आप हमारे लिए दोस्त की तरह हैं, जिसे हम नहीं छोड़ना चाहते।
संजय (परेशान): आप हम सबका तुलना हेल्प स्टाफ से कर रहे हैं? आपको हमारे काम और उनके काम में फर्क नहीं दिख रहा?
रवि: बिल्कुल दिख रहा है। आप सब से ही ये कंपनी चल रही है। लेकिन एक बात सोचिए आज जब ऑफिस गंदा था तो सब का मूड ऑफ क्यों हो गया? जब ऑफिस में कॉफी नहीं मिली तो काम करने का मन क्यों कम हुआ? आप सबका काम बहुत जरूरी है पर उसमें ये help स्टाफ भी सपोर्ट करता है। इसलिए हमें अप्रेजल उन्हें भी देना चाहिए।.
थोड़ी बहस के बाद कुछ लोग मेरी साइड आ ही गए। फिर थोड़ी और बहस के बाद बाकी लोग भी मेरी तरफ आ गए। जब 4th क्लास स्टाफ को अप्रेजल देना तय हो गया तो एक नए सवाल ने सभा में अंगद के जैसे पैर जमा लिया।
Employee 1: लेकिन उनको अप्रेजल कितना प्रतिशत देंगे?
Sanjay (गुस्से में): हमारे सीईओ सर ने वो भी सोच ही रखा होगा। हैं ना रवि जी? डायरेक्ट ऑर्डर दे दीजिए, मैं फाइल में ऐड कर दूंगा। वैसे भी डिस्कस करने का क्या फायदा, आपके ये अटपटे लॉजिक का तोड़ किसी के पास नहीं होता।
एक कहावत है ना, खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। बस संजय भी अभी उसी खिसियानी बिल्ली की तरह हो गया। वैसे संजय के चूहे बिल्ली के खेल में मजा सा आने लगा है। अब तो इसका उंगली करना इतना प्रेडिक्टेबल हो गया है, कि अगर ये उंगली ना करे तो कुछ ना कुछ अधूरा अधूरा सा लगता है।
संजय सर, अगर कोई बात आपके दिमाग में नहीं समाए तो जरूरी नहीं कि वो अटपटी ही हो, कभी-कभी वो सही बात भी होती है। (कवर अप) मेरा मतलब है वैसे भी इंसान का दिमाग कितना छोटा सा होता है, और आपके दिमाग पर तो कंपनी की कई प्रॉब्लम्स हैं, तो ये बात आप रहने ही दीजिए। (आत्मविश्वास से) वैसे... हां मैंने सोचा हुआ है पर आप लोगों की सहमति जरूरी है। आप सबको मालूम है कि आपको 20% अप्रेजल मिल रहा है तो help staff के लिए... 25% अप्रेजल।
मेरी बात सबको एटम बम की तरह लगी, जिसने हर तरह से तबाही मचा दी। कुछ लोगों के कानों से तो खून आने वाला था। पूरे रूम का माहौल एकदम से इमरजेंसी के समय हुए कत्लेआम जैसा हो गया। इस बार मैं बिल्कुल तैयार था, किसी के कुछ भी बोलने से पहले ही मैंने अपनी बात रख दी।
रवि: देखिए मुझे पता है कि आप सब क्या सोच रहे हैं। लेकिन एक बार ज़रा मेरी बात सुनिए। आपकी सैलरी 75000 से लेकर ढाई लाख तक की है। जिसका 20% भी इन सभी लोगों की सैलरी से बहुत ज़्यादा होगा। इन सभी की सैलरी ज़्यादा से ज़्यादा 20 हज़ार है। आप सभी के लिए 4 हजार चिल्लर की तरह है और अगर हम इन्हें अप्रेजल के नाम पर यह 4 हज़ार भी न दें तो हो सकता है कि ये चिल्लर हमारे ही मुंह पर मार जाए। (हंसते हुए) अब आप ही सोचिए चिल्लर की मार से सूजे हुए मुंह लेकर ऑफिस कैसे आया जाएगा।
किसी ने इंसानियत की वजह से, किसी ने चिल्लर से लगने वाली चोट के डर से मेरे साथ वाली गाड़ी पकड़ ली। एक बात बताऊं, या तो ये लोग बहुत अच्छे हैं या बहुत बेवकूफ। इनसे कुछ भी मनवाने के लिए बस तीन से चार घंटे ही बहस करनी पड़ती है। इस हिसाब से तो मैं इनसे कुछ भी करवा सकता हूं, चाहूं तो इनकी प्रॉपर्टी अपने नाम करवा लूं। ज़्यादा से ज़्यादा तीन की जगह ६ घंटे बहस करनी पड़ेगी। ठम जा रवि ठम जा…वन थिंग एट ए टाइम। एक सीईओ की कुर्सी ने तो लाइफ में तांडव मचाया हुआ है, सबकी प्रॉपर्टी अपने नाम की कोशिश में तो प्रलय ही आ जाएगी। अब देखना बस यह है कि जब यह बात ऑफिस में सबको पता चलेगी तो क्या भूचाल आएगा। मुझे लगता है कुछ लोग तो इस ऑफिस का shutter ही गिरा देंगे।
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