कोई और हो न हो, लेकिन sunny मुझसे बहुत खुश था। मेरे आने पर अच्छा नाश्ता और जूस के साथ मुझे बिना बोले मिल जाता था। मेरे ऑफिस पहुंचते ही कार के पास आकर मुझसे मेरा बैग ले लेता था। एक बार तो अपनी पत्नी के हाथ की मिठाई लाकर अपने हाथों से मेरे मुंह में डाल दी। कहना नहीं चाहिए, लेकिन मुझे लगा कि बागबान के सल्लू भाई की तरह मेरी तस्वीर उसने मंदिर में न लगा रखी हो। खैर, मैंने तो बस वही किया था जो मुझे सही लगा।
जब लोगों ने मेरे idea में अपना प्रॉफ़िट देखा तो वे लोग भी खुश हो गए। एक दिन शालिनी मैडम बहुत गंभीर सी हालत में मेरे केबिन में आईं। नहीं, नहीं, वो मेडिकल वाली गंभीर नहीं, इमरजेंसी वाली गंभीर। हां, तो वो आईं और मुझसे बोलीं।
शालिनी: good work रवि, ऑफिस के सारे लोग तुम्हारे इस फैसले से काफी खुश हैं। देखो, मैंने तुमसे कहा था तुम कर लोगे बस थोड़ा सीखना पड़ेगा।
कोई ऑफेंस नहीं, लेकिन इन्हें कोई समझाए यार ऑफिस बॉय की भर्ती और पूरी कंपनी को अच्छे से चलाना कितना अलग है। अगर कोई भी आकर मेरे मुंह पर 4 टेक्निकल टर्म फेंककर मार दे तो मेरे 32 में से 32 दांत जमीन पर आ जाएंगे। एक तो मैं वैसे भी इस टेंशन से ओवरकम नहीं हो पा रहा था और ये समय-समय पर आकर अपनी मोटिवेशनल स्पीच शुरू कर देती थी।
एक और बात, यार हम लड़कों को एप्रीसिएशन हैंडल करना क्यों नहीं सिखाया जाता? हम अनकम्फर्टेबल क्यों हो जाते हैं एप्रीसिएशन मिलने पर, आज तक समझ नहीं आया। शालिनी मैडम फिर बोलीं।
शालिनी: अच्छा, मुझे हैप्पी ने बताया तुम्हारे घर के बारे में। काफी मेल-जोल है तुम्हारे मोहाले में।
रवि: हां मैडम वो तो होगा ही। रुपये नहीं होते तो लोग आपस में बकैती काट लेते हैं… मेरा मतलब है आपस में बात ही कर लेते हैं।
शालिनी: (फेक लाफ) काफी भीड़भाड़ वाला एरिया होगा।
रवि: हां मैडम सो तो है।
शालिनी: गलियां भी काफी पतली सी होंगी। गाड़ी ले जाने के समय प्रॉब्लम होती होगी।
अच्छा अच्छा अच्छा, अब आई न मैडम पॉइंट पर। यही सोचू अब तक मैडम इतना गोल-गोल क्यों घूम रही हैं। ये मुझसे गाड़ी छीनना चाहती हैं। पर ये तो गलत है यार, या तो पहले गाड़ी भेजते ही नहीं। अब जब अच्छा लगने लगा तो छीन रहे हो। आप ही बताओ, ये तो वही बात हुई न कि लड्डू मुंह तक लाकर छीन लो। ये तो चीटिंग है।
रवि: नहीं नहीं मैडम, काफी आराम से जाती है। वापस भी आराम से आती है। नो प्रॉब्लम।
शालिनी: पर हैप्पी बोल रहा था कि बच्चे भी हर बार गाड़ी को घेर लेते हैं। तो उसे बहुत प्रॉब्लम होती है।
सत्यनाश हो इस हैप्पी का। पाजी पाजी करके सड्डी( in punjabi ) लगा दी। अरे सैलरी बढ़ानी थी तो मुझे बोल देता, मैं करवा देता आखिर सीईओ हूं कंपनी का इतना तो कर ही सकता हूं। पर इसने तो सीधे सुप्रीम कोर्ट में ही अर्जी दाल दी। कितना ही समय लगता था? 5 मिनट की जगह 15 लग जाते थे बस..। लेकिन हर दिन चंदू की फेमस जलेबी भी तो खिलाता था। क्या ज़माना आ गया है, रिश्वत में भी ईमानदारी नहीं है। अब तो फिर से साइकिल की चेन टाइट करनी पड़ेगी।
रवि (फास्ट रैंटिंग): मैडम अब मुझसे गाड़ी वापस मत लो। मैं गली के बाहर अपना टिफिन लेकर खड़ा मिल जाऊंगा पर प्लीज मुझे गाड़ी से आने दो। मेरी बीवी पूरी गली में गाती फिरती है कि मैं बड़ी वाली गाड़ी से ऑफिस जाता हूं। अब अगर साइकिल से आऊंगा तो बहुत हंसी बनेगी। प्लीज मैडम प्लीज।
शालिनी: अरे चुप्प्प्प (चीखती हुई)!! जैसे ही लगता है कि तुम सीख रहे हो वैसे ही कोई न कोई इस तरह की हरकत कर देते हो। पूरी बात तो सुन लिया करो। तुमसे गाड़ी वापस नहीं ली जा रही, तुम्हें नए घर में शिफ्ट कराया जाएगा, वो भी कंपनी की तरफ से। शाम को डीलर तुमसे मिलकर तुम्हें घर दिखा देगा।
रवि (खुशी से): ओ तेरी, मैं तो समझा था कि गाड़ी गई पर यहां तो गंगा ही उल्टी बह रही है। अगर सीईओ बनने वाले को ये सब मिलता है, तो एक दो ताने और सुना दो मैं सब सह लूंगा। (अपने सपनों में) हाये, मेरा भी एक बड़ा घर होगा, उसमें नहाने के लिए टब होगा, टब में गुलाब की पंखुड़ियां डालूंगा, उससे नहाते समय खुशबू आएगी। एक कुत्ता पालूंगा, कुत्ते का अलग घर होगा। (नकली रोने की आवाज में) आज मां अगर जिंदा होती तो खुशी से दोबारा मर जाती। और सुमन… सुमन तो खुशी से पागल ही हो जाएगी। अंकित भी बहुत खुश होगा। यही सब सोचते सोचते मैं शाम होने का इंतजार करने लगा। यार जब तुम घड़ी को देख देखकर समय काटते हो तो घड़ी की सेल कमजोर हो जाती है क्या? आगे ही नहीं बढ़ती। मन तो कर रहा था कि घड़ी की सुई घुमाकर छुट्टी की घंटी बजा दूं। पर क्या करूं ऑफिस में डिजिटल वॉच लगी है, वो भी हॉल में सबके सामने, और मेरा हाथ भी वहां तक नहीं पहुंचता। आज पहली बार अपना कद कम होने का दुख हुआ।
शाम को घर पहुंचते ही डीलर भी आ गया। मैं, सुमन और अंकित तुरंत उसके साथ घर देखने पहुंच गए। यार, क्या बावल घर था। भगवान की कसम, मैंने कभी सपने में भी इतना अच्छा घर नहीं देखा था। सुमन का भी वही हाल था, इसलिए वो बोली, हाय राम, देखो जी, कितना बड़ा घर है? और ये देखो, बालकनी कितनी बड़ी है? इसके सामने अपना घर तो मुर्गी के दड़बे जैसा है। अब मैं ब्रोकर के सामने थोड़ा कूल बनना चाहता था, आखिर मैं एक सीईओ हूं। इसलिए मैंने बहुत नॉर्मल होकर बोला, अच्छा है।
देखो बात ये है, कि ये औरतें बहुत अच्छी होती हैं पर इन्हें ब्रेक लगाना सच में नहीं आता। स्कूटी तो ये पैर लगाकर रोक देती हैं पर जुबान पर तो पैर लगाया नहीं जा सकता, यही हाल मेरी बीवी का हो गया था नया घर देखकर। वो फिर से तपाक से बोली, अच्छा नहीं, बहुत अच्छा है। जमीन देखी इस घर की कितनी चिकनी है। इस पर तो फिसल फिसलकर चल सकते हैं, और एक अपने घर की जमीन, हल्की सी रगड़ लग जाए तो पूरे शरीर से खाल गायब।
माना घर बहुत अच्छा था, पर ये औरतें न कहीं भी चलू हो जाती हैं। अरे, किसी बहार वाले के सामने बेज्जती करना अच्छा लगता है क्या? ये सुमन इससे पहले मेरे अपने घर पर इस डीलर के सामने ही जेसीबी चलवा दे... मैंने घर की डील ओके करी और वहां से वापस आ गया।
अगले दिन हमें शिफ्ट करना था। मैं वापस आकर अपने घर का एक एक कोना देखने लगा। "वहां बापू दारू पीकर मुझे पीटता था। और वहां... वहां वो उल्टी करता था। उस कोने में मां मुझे पकड़कर मारती थी। यार तब रियलाइज हुआ मैं इस घर के लगभग हर कोने में पिटा हूं। यही सोचते सोचते आंख लग गई।
अगले दिन ऑफिस पहुंचा तो सीधा शालिनी मैडम के ऑफिस में दंदानता हुआ घुस गया।
शालिनी: अरे आओ आओ रवि, कैसा लगा फ्लैट?
रवि (कॉन्फिडेंट): अच्छा था मैडम। (पॉज) मैडम मैं उस घर में नहीं रह सकता।
शालिनी: क्या हुआ? अभी तो तुम कह रहे थे कि फ्लैट अच्छा था।
रवि: हां मैडम, अच्छा था, चिकना भी था। पर अगर बड़ा घर लेना है तो अपने पैसे से ही लूंगा। कंपनी ने वैसे भी बहुत कुछ दे दिया है।
शालिनी: तुम समझ नहीं रहे हो रवि, अब तुम्हें एक सीईओ की तरह ही रहना होगा, ऑफिस में भी और ऑफिस से बाहर भी। अगर हमारा सीईओ किसी ऐसी वैसी जगह पर रहेगा, तो हमारी कंपनी की क्या रेप्युटेशन रह जाएगी?
यार एक तो ये रेप्युटेशन, रेप्युटेशन बोल बोलकर कुछ भी करवा लेती हैं। हां नहीं तो, (शालिनी की नकल करते हुए) रवि रेप्युटेशन खराब हो जाएगी ठीक से चलो, रवि रेप्युटेशन खराब हो जाएगी ठीक से बैठो, रवि रेप्युटेशन खराब हो जाएगी ठीक से खाओ। एक दिन बोलेंगे रवि रेप्युटेशन खराब हो जाएगी सांस मत लो। मतलब कुछ भी? पर मैंने सोच लिया था कि जिस घर में मैं सबसे ज्यादा पिटा हूं उससे निकलूंगा तो तब ही, जब अपने रुपयों से कोई घर खरीदूंगा।
रवि: मैडम आप सोचिए, मार्केट में कंपनी की रेप्युटेशन कितनी अच्छी हो जाएगी जब कंपनी का सीईओ अपनी खुद्दारी की वजह से एक छोटे से घर में रह रहा है... और उसने घर कंपनी के रुपयों की बदौलत नहीं, बल्कि अपने रुपयों से नया घर खरीदा।
अब जब अपना ही तीर खुद को लगा तो हो गया न मुंह बंद। मैं ये ऑफर को लात मारकर खुद को हीरो समझने लगा। पर सच्चाई तो ये थी कि मेरी आत्मा भी डर से थरथर कांप रही थी क्योंकि अब तो घर जाकर सुमन को ये बताना था कि मैंने नए घर के लिए मना कर दिया।
रवि (टेंस्ड): हे भगवान, न जाने कब तक अब खाने में फिर से टिंडे खाने पड़ेंगे?
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