अब तक मुझे सीईओ बने 2 हफ्ते पूरे हो चुके थे। इन 2 हफ्तों में मेरा रूटीन फिक्स था। सुबह घर से ऑफिस आओ, ऑफिस में अनीता मैडम, संजय सर और कुछ और लोगों से बच बच कर रहो और अगर कभी कहीं फंस जाओ तो भगवान से प्रार्थना करो कि शालिनी मैडम को प्रकट कर दें। इतने दिनों से मैंने कोई ढंग का काम नहीं किया था। ढंग का छोड़ो मैंने कोई काम भी नहीं किया था। इससे अच्छा तो मैं जनिटर ही था। पूरा ऑफिस मुझसे ही शुरू होता था और अब सनी से। हमारे देश के बड़े बड़े नेता कहते कहते थक गए कि "आत्मनिर्भर बनो, स्वावलंबी बनो।", लेकिन हमारे ऑफिस के सभी लोग अपनी मॉर्निंग टी के लिए भी जनिटर पर डिपेंडेंट रहते हैं। ये सब वर्क प्रेशर, वर्क प्रेशर करते रहते हैं। अगर एक दिन ऑफिस बॉय की ड्यूटी करने को बोल दें तो सब की गर्दनें कंधे में घुस जाएंगी। सोचता हूं, सनी के पास जाकर उसे एक जादू की झप्पी देकर बोलूं "एई सनी भाई, तुम बहुत मस्त काम कर रेहलो हो।" पर नहीं कर सकता, क्योंकि एक तो मैं संजू दादा नहीं हूं और दूसरा ये कोई मूवी नहीं है। पता नहीं कि सनी ही क्या क्या समझने लगे। लेकिन अब बहुत हो गया, हमारी बिरादरी पर ये अत्याचार नहीं होने दूंगा। ओह्ह एक सेकंड, अब मैं जनिटर नहीं हूं। यार एक तो बातों बातों में ये ही भूल जाता हूं कि मैं एक सीईओ हूं। सुबह उठकर सबसे पहले यही रट्टा मारना पड़ेगा कि मैं सीईओ हूं। पर इससे क्या फर्क पड़ता है, मैं मन, धन और... (पॉज) हां, बस मन और धन से अभी तक एक जनिटर ही था। बस, हो गया फैसला, मैं अपनी बिरादरी के लिए कुछ अच्छा काम करूंगा। हां, मैं 3 और ऑफिस बॉय को रिक्रूट करूंगा। समान वेतन पर, जिससे वर्कलोड भी बंट जाए और रुपये की भी तंगी न हो।
Employee 1: अब ये इमरजेंसी मीटिंग का क्या सीन है? क्या होगा इसमें।
Employee 2: लगता है और ज़्यादा काम आने वाला है.
नरेटर: सब यही सोच रहे थे कि मैं इस मीटिंग में क्या बात करूंगा... और मैं यही सोच रहा था कि मीटिंग में कैसे बात करूंगा? मेरे बोलते ही संजय कुछ न कुछ जरूर बोलेगा। उससे डील करना अपने आप में एक कंपनी चलाने के बराबर है। वैसे भी जो मुद्दा मुझे मीटिंग में रखना था उसके answer क्या क्या होंगे मुझे पहले से ही मालूम है... लेकिन मैं भी पीछे हटने वालों में से नहीं हूं। सब का मुंह बंद करने का तरीका पहले से ही सोच रखा है। वैसे भी कोई कितना भी बोले... करना तो इन्हें वही पड़ेगा जो मैं चाहूं, बस भगवान जी अनीता मैडम को संभाल लें। उनसे तो सच में डर सा लगने लगा है। पिछली रात तलवार और भाला लेकर मेरी गर्दन काटने को मेरे पीछे पड़ी थी। बस कहीं ये सपना सच न हो जाए।
संजय (बोर्ड आवाज): सीईओ साहब, 17.5 मिनट से सब बैठे हुए हैं मीटिंग में। कुछ बताएंगे कि आज ये मीटिंग किसलिए है? क्या है कि कुछ लोगों को काम करने की सैलरी मिलती है यहां पर।
रवि (घबराया हुआ): हां… वो… आज की ये मीटिंग… एक बहुत जरूरी बात के लिए रखी है… एक मिनट
रवि (घबराया हुआ): सनी रुको ज़रा… बात ये है कि… मैं चाहता हूं कि ऑफिस बॉय की भर्ती दोबारा हो।
संजय: लो कर लो बात, सीईओ सर ने पहला डिसीजन बिल्कुल अपनी लिमिट का ही लिया है... और शालिनी मैम कहती हैं कि आउट ऑफ द बॉक्स आइडियाज हैं इसके।
आज मीटिंग रूम का माहौल बिल्कुल देश की संसद की तरह हो गया था। बस कभी भी टेबल कुर्सी हवा में उछली जा सकती थी। मैं भी ऐसा होने पर टेबल के नीचे छुपने को बिल्कुल तैयार था क्योंकि कोई करे न करे पर इस संजय पर मुझे पूरा भरोसा था कि इसका निशाना मेरा ही सिर होगा, और फिर मेरे लिए भी अस्पताल में अतुल सर वाले बेड के बराबर में एक बेड बुक करा दिया जाता और मेरा नाम उनके नाम के बराबर में जुड़ जाता "2 सप्ताह का सीईओ" लिखकर। सोचो कितना अजीब लगता जब कोई पूछता कि कैसे मरा ? तो मेरे घरवाले बोलते कि कुछ नहीं ऑफिस बॉय की भर्ती करना चाहते थे इसलिए किसी ने हत्या कर दी।
लेकिन तभी सनी को पता नहीं क्या समझ आया वो रोने लगा, और रोते रोते बोला।
सनी (नरेटर की आवाज़ में... रोते हुए): मुझसे कुछ गलती हो गई क्या सर? प्लीज मुझे नौकरी से मत निकालिए मेरे घर में एक विधवा मां है। मेरी 3 कुंवारी बहनें हैं। सबका ख्याल मुझे ही रखना पड़ता है।
रवि: एक मिनट, एक मिनट। मेरा मतलब है कि मैं चाहता हूं सनी के ऑफिस में काम करते हुए, 3 और ऑफिस बॉय की भर्ती कराई जाए। (हकलाते हुए) सॉरी दो...दो...दो हां 2 और ऑफिस बॉय कि भर्ती वो भी same salary पर।
मेरे शब्द सबके सिर पर ऐसे गिरे जैसे अमेरिका की मिसाइल हिरोशिमा और नागासाकी पर। रूम में बैठे सब लोग मेरी तरफ ऐसे देखने लगे जैसे मैं अभी अभी चिता से उठकर वापस आया हूं या ये मुझे चिता पर लिटाना चाहते थे। दोनों में से कुछ एक ही मतलब हो सकता था उन नज़रों का लेकिन मैं भी अपने फैसले पर ऐसे ही अड़ा रहा जैसे छोटा बच्चा लॉलीपॉप देखकर बीच सड़क पर बैठ जाता है।
संजय: अब क्या janitor यूनियन बनाने की सोच रहे हैं आप। जो इतने ऑफिस बॉय चाहिए। आप तो कह देंगे, कंपनी का बजट तो मुझे मैनेज करना पड़ता है।
रवि (आत्मविश्वास से): संजय सर, बजट में कोई समस्या नहीं आएगी। हम कंपनी के बजट में कुछ भी extra expense नहीं करेंगे। बस जो extra खर्च हैं उन्हें कम कर देंगे। जैसे जब एम्प्लॉयी वापस घर जाता है तो कंप्यूटर ऑफ करना अनिवार्य होगा क्योंकि जब मैं ऑफिस बॉय था तो 40% कंप्यूटर सबके जाने के बाद मैं ऑफ करता था। हमारे ऑफिस का एसी हर समय 18 डिग्री पर रहता है जब कि हम सबको पता है कि 22 डिग्री पर भी कोई समस्या नहीं होगी। इससे बिजली का बिल इतना तो कम हो ही जाएगा जिससे हम 2 और ऑफिस बॉय को सैलरी दे सकें।
अय्यर : लेकिन सर, इस ऑफिस में हमेशा 1 ही ऑफिस बॉय रहा है।
रवि: अय्यर सर क्या आपको या आप में से किसी को पता है की हमारे ऑफिस के एक फ्लोर पर कितने लोग बैठते हैं?
अनीता: अगर हम ये सब सोचेंगे तो काम कब करेंगे रवि सर?
शालिनी: जेंटलमैन प्लीज़ हैव पेशेंस, एक बार मिस्टर रवि को अपनी बात तो रख लेने दो। क्या पता कुछ हमारे फायदे का ही हो। बोलो रवि।
मुझे पता था इसका जवाब किसी के पास नहीं होगा। होता भी क्यों किसे पड़ी है कि वो गिनती करे, जब तक उसे खुद उन सारे लोगों की चाय कॉफ़ी का ख्याल न रखना पड़े. मैंने फिर सबसे पूछा
रवि: बताइए भी !?
क्या आप से में से कोई भी नहीं जो ये बता सके कि एक फ्लोर पर लगभग कितने लोग बैठते हैं. कोई बात नहीं मैं बता देता हूँ. 325 लोग बैठते हैं. और इन लोगों की चाय कॉफ़ी की ज़िम्मेदारी सिर्फ एक जैनिटर पर. मुझे हैरानी है इस बात को पहले कभी किसी ने नहीं सोचा
सनी को एक एम्प्लॉयी को चाय या कॉफी देने में 10 –15 minute लगता है, अब अगर 3 ऑफिस बॉय होंगे तो सबका वर्कलोड बंट जाएगा और किसी के भी पास उसका ऑर्डर 5 मिनट में पहुंच जाएगा। 5 मिनट में आपका दिमाग भी फ्रेश हो जाएगा, और आपको चाय कॉफी भी मिल जाएगी।
मेरे तर्क का काउंटर किसी के पास भी नहीं था। मीटिंग रूम में सब शांत हो गए। अभी तक जो मेरी बात पर मेरी खिल्ली उड़ा रहे थे, अब वो मेरे आइडिया की तारीफ करने लगे। हाइपोक्रिसी की भी हद है। क्यों नहीं हो रही है तरक्की? बस इसलिए। इस लंबे चौड़े भाषण से मैंने सबको चुप करा दिया। वैसे इस हिसाब से तो मैं पॉलिटिक्स में बहुत नाम कमा सकता हूं।
मीटिंग रूम की चुप्पी को तोड़ते हुए एक ताली की आवाज सुनाई दी जो कि नो डाउट सनी ने ही बजाई थी। एक तो लोगों को सब्र नहीं है, पहले पता तो लगने दो कि सब कन्विंस हुए या नहीं। बेज्जती कर देते हैं यार ये लोग ऐसे... लेकिन उसकी तालियों के पीछे और लोगों की तालियां भी धीरे धीरे सुनाई देने लगीं। मैंने एक लंबी सांस ली। लगा जैसे मैं गंगा नहा लिया। मैंने अनीता मैडम की तरफ देखा तो वो मेरी विज्डम देखकर शॉक में चली गईं, जैसे उन्हें किसी ने बिजली के नंगे तार छुआ दिए हों। संजय की आंखें "शोले" जैसी हो गई थीं, "जय वीरू" वाली नहीं, जलने वाले शोले।
अगले दिन न्यूजपेपर में ऑफिस बॉय नीडेड का ऐडवर्टाइजमेंट छप गया। 2 नए लोग ऑफिस बॉय की पोजीशन पर आए और सनी ने उन्हें ट्रेनिंग दी। (सैड) यार ये मेरा काम था, ये सनी मेरी जॉब खा गया…hmmm
जानने के लिए पढ़िए अगला भाग
No reviews available for this chapter.