डिसक्लेमर: "यह केस वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है, लेकिन इसमें प्रस्तुत सभी पात्र और घटनाएं पूरी तरह से काल्पनिक हैं। किसी भी वास्तविक व्यक्ति, स्थान, या घटना से कोई समानता मात्र एक संयोग है।"

 अंधेरा घना था. धनबाद की इन गहरी खदानों में सन्नाटा इतना भारी था कि वो किसी बड़ी मुसीबत का संकेत दे रहा था. अरविंद सिंह और उसकी टीम जो फैंटम की सच्चाई जानने के लिए खदान के अंदर गए थे. अब उस खदान के अंदर फंस चुके हैं. चारों ओर सिर्फ अंधेरा और अजीब सी ठंडी हवा, जो उनकी हड्डियों में डर घोल रही थी. मेसीव केव इन के कारण पूरी की पूरी टीम एक ही जगह पर फंस कर रह गयी है.

अरविंद जो की टीम को लीड कर रहा था, ने अपने चारों तरफ देखा. और गहरी सांस लेकर हिम्मत बांधते हुए कहा...

अरविन्द : "यहां से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा,"

वो जानता है की ऐसे सिचुऐशन में किसी की भी हालत ख़राब हो सकती है. उसने अपनी टीम को समझाते हुए बोला...

अरविन्द : "हम सबको शांत रहना होगा. डर को हावी मत होने दो."

फैंटम का डर अरविंद देख चुका था. मज़दूरों के गाँव के गाँव खौफ़ में डूबे हुए थे. अरविंद के लिए फैंटम कोई और था. लेकिन डर तो टीम के चेहरे पर साफ दिख रहा था. माहौल ऐसा था कि कभी भी जान जा सकती थी. सभी लोग हमेशा के लिए इस काली कोठरी में बंद भी रह सकते है. डर ने टीम को अपनी गिरफ़्त में ले लिया था. भोला और मीना ख़ुद को संभालनें की कोशिश कर ही रहे थे. भोला हिम्मत वाला तो था, मगर फैंटम के नाम से ही हिम्मत हवा हो जाती. तभी उस गहरे सन्नाटे को चीरते हुए हल्की-हल्की फुसफुसाहटें सुनाई देने लगीं. ये आवाज़ें अंधेरे में कहीं से आ रही थीं, जैसे कोई उन पर नजर रख रहा हो.

डॉ. मीना देसाई, जो एक वैज्ञानिक सोच रखने वाली पैरनोर्मल एक्टिविस्ट  थीं. अपने दिमाग में उस पल को समझने की कोशिश कर रही थीं. "क्या ये सच में फैंटम हो सकता है?" उसके मन में सवाल उठ रहा था. मीना डरी हुई तो थी, मगर उसे यहाँ से सबूत भी लेकर जानें थे. उसके हाथ में एक छोटी टॉर्च थी. उसके लिए फैंटम को देखना डरावना नहीं था. बल्कि रास्ता बंद हो जाना से उसको परेशानी थी. क्योंकि मुमकिन है की ये रास्ता कभी ना खुले.

भोला जी अपनी कैप लाइट से रास्ता बनाने की कोशिश कर रहा था. उसनें ऐसे माहौल का बहुत बार सामना किया था. मगर उसे डर फैंटम से था. और अरविंद जिसे ये लगता था की ये सारे काम माइनिंग माफिया उन्हें डरानें के लिए कर रहे हैं. टीम के हर मेम्बर्स का नज़रिया अलग हो चूका था. लेकिन तभी, मीना की नज़र खदान की दीवार पर पड़ती है. दीवार में कुछ खुरदरा सा निशान था. मीना ने उसके पास जाकर गौर से देखा. एक पुराना आदिवासी चिन्ह वहाँ खुदा हुआ था. मीना ने निशान को पहचानते ही तुरंत कहा...

मीना : "यह चिन्ह... यह तो यहाँ की आदिवासी कहानियों से जुड़ा है. शायद ये हमें कुछ और बड़ा बतानें की कोशिश कर रहा हो"

भोला , जो इस खदान का सबसे अनुभवी मज़दूर था, अब तक चुप था. उसनें भी इस निशान को पहचान लिया था. खौफ़ उसके खून में दौड़ने लगा था. जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. उसकी ख़ामोशी टीम के बाकी लोगों के लिए और भी ज़्यादा बेचैनी पैदा कर रही थी. तभी ख़ामोशी को तोडते हुए अरविंद बोला...

अरविन्द: “मैं कह तो रहा हूँ. ये सब उन माफ़ियाओं का काम है. वो नहीं चाहते की खादान में कोई मज़दूर आये.”

टीम की सोच बदल चुकी थी. सभी अपनें सच को सच मान रहे थे. समय बीत रहा था और टीम के अंदर खलबली बढ़ती जा रही थी. अजीब सी आवाज़ें, दीवारों पर खुदे हुए आदिवासी सिम्बल और निकलनें का कोई रास्ता नहीं मिलनें से, हर कोई परेशान था. किसी को लगने लगा था कि यह सब फैंटम का खेल है, जबकि कुछ इसे अवैध माईन्स माफिया की साज़िश मान रहे थे. अरविंद ने सबको समझानें की कोशिश की, लेकिन अब डर और शक उनकी बातों से ऊपर हो चुका था. अरविंद ने महसूस किया की, टीम की यूनिटी ख़त्म हो रही है. तभी उसनें गंभीरता से कहा...

अरविन्द: "हमें एक साथ रहना होगा, तभी हम इस खदान से सुरक्षित बाहर निकल पाएंगे."

मीना जो अभी भी उस निशान के बारे में ही सोच रही थी. उसने चिन्ह को ध्यान से देखते हुए कहा...

मीना: "इसका कोई गहरा मतलब है. शायद ये उसी पुरानें आदिवासी क़बीले का निशान है. जिन्हें यहाँ से बेदखल कर दिया गया था. शायद फैंटम उन्हीं की आत्माओं का प्रतीक हो"

धनबाद की खदानें सिर्फ कोयले की कहानियों से नहीं भरीं, बल्कि यहां की धरती में आदिवासी समुदायों के संघर्ष और बलिदान की गहरी जड़ें भी हैं. इन खदानों के बनने से पहले यह इलाका हरे-भरे जंगलों और शांतिपूर्ण जीवन से भरा हुआ था, जहां सदियों से आदिवासी समुदाय रहते थे. इन समुदायों की संस्कृति, उनकी मान्यताएं और उनके प्रतीक प्रकृति के साथ गहरे रूप से जुड़े हुए थे.

ये आदिवासी प्रतीक उनके देवी-देवताओं, विश्वासों, और जीवन-मृत्यु के चक्र को दर्शाते थे. जिस प्रतीक की बात हो रही है, वो खास तौर पर "धरती के रक्षक" का प्रतीक माना जाता है. आदिवासियों का विश्वास था कि उनके पूर्वजों की आत्माएं इस धरती की रक्षा करती हैं, और जब भी कोई बाहरी व्यक्ति उनकी भूमि या संस्कृति को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है, तो ये रक्षक आत्माएं सामने आकर युद्ध करती हैं.

धनबाद में खनन शुरू होने से पहले एक प्रमुख आदिवासी नेता था. वो अपनें समुदाय की भूमि और जंगलों की रक्षा के लिए ब्रिटिश कोलोनीयल गोवर्नमेंट और माइनिंग कॉम्पनीज़ के ख़िलाफ़ खड़ा हुआ. वह न केवल एक योद्धा था, बल्कि अपनें समुदाय का नेता भी था. उसकी मान्यता थी कि जब तक ये प्रतीक जमीन पर अंकित रहेंगे, तब तक उनके पूर्वजों की आत्माएं उनकी रक्षा करती रहेंगी.

लेकिन जब माइनिंग कंपनियों ने इन ज़मीनों को जबरन हथियाना शुरू किया, तो आदिवासी नेता और उसके लोगों नें अपनी आखिरी लड़ाई लड़ी. उस लड़ाई में नेता की हत्या कर दी गई, और उसके बाद उसके समुदाय को जबरन उनकी धरती से बेदखल कर दिया गया. कहा जाता है कि उस नेता की आख़िरी इच्छा थी कि, वो निशान हमेशा इन खदानों की दीवारों पर बना रहे, ताकि उनकी आत्माएं इस खदान में काम करने वालों से अपना बदला ले सकें.

आदिवासी समुदाय का मानना है कि जिन खदानों में ये प्रतीक बना हुआ है, वहां उनके पूर्वजों की आत्माएं अब भी मौजूद हैं. यह फैंटम उन्हीं आत्माओं का प्रतीक है, जो खदानों के गहरे अंधेरे में जाग चुकी हैं. जब भी किसी ने उन आत्माओं को चुनौती दी है या उनकी भूमि पर अतिक्रमण किया है, तो फैंटम के रूप में उनकी उपस्थिति दर्ज हुई है.

यह प्रतीक केवल एक चिन्ह नहीं, बल्कि एक चेतावनी थी. ये बताती है कि इस खदान की गहराइयों में ना सिर्फ़ कोयला दफ्न है, बल्कि उन आत्माओं का क्रोध भी है, जिन्हें बेदखल कर दिया गया था. जो भी इस प्रतीक को अनदेखा करेगा, उसे इन आत्माओं के विरोध का सामना करना पड़ेगा.

यही कारण है कि जब डॉ. मीना ने खदान की दीवार पर उस आदिवासी प्रतीक को देखा, तो उसे एहसास हुआ कि ये सिर्फ एक पुराना सिम्बल नहीं, बल्कि उस फैंटम के पीछे छिपे गहरे रहस्य की चाबी है. अरविंद मीना की बात सुन तो रहा था. मगर उस बारे में कुछ सोच नहीं रहा था. उसे सब कुछ माफिया की कोई गंदी साज़िश लग रही थी.

अरविंद का विश्वास भी सही था. पत्रकारिता के दौरान उसनें माइनिंग माफिया को मज़दूरों की ज़िन्दगी के साथ खेलते देखा था. उसे पता है की माफ़िया अपनें काम को अंजाम देनें के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. अरविंद, मीना को झूठा साबित नहीं करना चाहता था. वो बस सच्चाई से काला पर्दा हटाना चाहता था. भोला को मीना की बात पर पूरा यकीन था. उसनें मीना की बात का सपोर्ट किया और कहा... “हां...इस बारे में तो मैं भी जनता हूँ”

भोला की बात पे कोई रिएक्शन आ पाता उससे पहले ही, अचानक खदान के अंधेरे से एक बेसुरी, भारी आवाज़ गूंजने लगी. ये आवाज़ इतनी डरावनी थी कि सबके दिलों की धड़कनें रुक सी गईं. उसकी आवाज़ कानों में इतना चुभ रही थी, जैसे कानों के पास कोई लोहे के नाख़ून से, दीवार को छील रहा हो. ऐसा लग रहा था जैसे अंधेरे में कोई बड़ा रहस्य छुपा हुआ है और वो किसी भी समय सामने आने वाला है. भोला ने अपनी बात कही और कहा… "ये वही है...ये फैंटम है. मेरी बात मानो यहाँ से भाग चलो"

वो लोग भागते भी तो कहाँ. अचानक से पूरी टीम में अफरा-तफरी मच गई. हर कोई उस अंधेरे की ओर भागने लगा, जहाँ से आवाज़ आ रही थी. लेकिन जैसे-जैसे वो आगे बढ़े, उन्हें एहसास हुआ कि शायद वो और ज्यादा अंदर फंसते जा रहे हैं.

उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी पिंजरे में बंद हों और किसी भी समय सामने से शेर हमला कर देगा. हर कोई अब ये सोचने लगा था—क्या यह सचमुच फैंटम है? क्या अब उनके पास बचने का कोई रास्ता नहीं? और तभी, खदान के एक कोने से वो गूंजती हुई गहरी आवाज़ फिर से सुनाई दी. अब सबको यकीन हो गया था. फैंटम उन तक पहुँच चुका है.

क्या ये फैंटम का साया है? क्या फैंटम उनके क़रीब आ चूका था? इन सवालों के जवाब जानने के लिए पढ़ते रहिए। 

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