"ये वाला सर्वेंट तो दो दिन भी नहीं टिका" साक्षी गर्दन झटकाते बोली
सार्थक उसकी ओर देखता है - "कौन सी नई बात है ये साक्षी....यहां पर ऐसा ही होता है, कोई दो दिन टिकता है तो कोई चार दिन, ज्यादा से ज्यादा दस दिन भी टिक जाता है, पर सर्वेंटस बदलते रहते है खन्ना विला में, हमें तो शुक्र मनाना चाहिए, हम घरवाले है वरना माहिर खन्ना हमको भी यहां से भगा दे।"
साक्षी गैस बंद कर दूध गिलास में डालती है - "हमें भी निकाल दे माही, पर बहन जीजू मिलते नही है ना सर्वेंटस जैसे।"
सार्थक हंस दिया - “हम्म ये तो सही कहा…..कि तभी सार्थक के हाथ में थोड़ा सा कांच लग गया, उसने “आह” किया कि साक्षी फट से उसके पास चली आई - ”सार्थक तुम ठीक हो?"
साक्षी को अपने सामने बैठा देख, अपने हाथों को उसके द्वारा टटोलते देख, उसके चेहरे पर खुद के लिए परवाह देख सार्थक मुस्कुराने लगा…साक्षी उसकी ओर देखते फिर बोली - "सार्थक कहां पर लगा है.....बोलो ना सार्थक?"
"तुम नाराज थी ना मुझसे?" सार्थक बोला…
ये सुनते ही साक्षी उसके हाथ छोड़ नीचे से उठ गयी, सार्थक भी खड़ा हो गया - "मैं ठीक हूं, हल्का सा चुभा पर लगा नहीं!"
साक्षी कुछ नहीं बोली, वो वापस स्लेव की ओर जाने लगी कि सार्थक ने उसे पीछे से बाहों में भर लिया, साक्षी बिना बोले ही खुद को उससे छुड़ाने लगी, सार्थक ने पकड़ कस ली और चेहरा साक्षी के कंधे पर टिका लिया - "नाराजगी दूर करने के लिए क्या करूं?"
"छोड़ दो मुझे" साक्षी बेरूखी से बोली…
सार्थक आह भरता है - "सॉरी जानेमन, जान ना मांगो, तुम्हें छोड़ा तो कुछ नहीं बचेगा अपुन के पास!"
सार्थक की इस बात पर साक्षी को हंसी आ गयी, सार्थक उसी पल उसे अपनी तरफ घुमा लेता है - "हंसी तो फंसी!"
साक्षी उसी पल उसे खुद से दूर धकेल देती है - "इतनी आसानी से नहीं मिस्टर अग्निहोत्री कांच उठा दिया, पोछा भी लगाकर ही आना!" बोल
साक्षी वहां से चली गयी।
सार्थक कमर से हाथ टिकाते - “जानेमन आपके लिए हम पोछा तो क्या कुछ भी लगा सकते है, वैसे पोछा है कहां (इधर उधर देखते) हां वो रहा” बोलते सार्थक मोप स्टिक की ओर बढ़ गया।
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【मिश्रा हाऊस】
पिहू, सविता जी प्रकाश जी के साथ आंगन में बैठी थी, अयाना किचन में सबके लिए चाय बना रही थी, पिहू अयाना को आवाज देती है - "अयू दी एक चाय की प्याली के लिए कितना तड़पाओगी कब से इंतजार करवा रहे हो, इतना वक्त लगता है क्या चाय बनाने में, चाय उबाल रही हो या चाय उगा रही हो?"
तभी अयाना किचन से आ गयी - "आ गयी क्यों गला फाड़ रही हो पिहू?"
प्रकाश जी - "अपनी मम्मी की नकल उतार रही है, आजकल सविता चाय के लिए चिल्लाती नहीं है ना तो बस वहीं कमी पूरी करने की कोशिश कर रही है।"
पिहू - "और क्या....मेरी तो कोशिश की कद्र ही नहीं है!"
सविता जी दोनों की ओर देखते - "चाय आ गयी है चाय पियो....अयाना चाय दो इनको तो मुझे परेशान करना बंद करे।"
प्रकाश जी - "अरे हमने कब परेशान किया?"
पिहू - "हां मम्मी…कब परेशान किया और हमारी क्या मजाल जो हम सविता मिश्रा जी को परेशान करे।"
"रूक तू!" कहते सविता जी चेयर से उठी कि "अयू दी बचाओ" बोलते पिहू अयाना के पीछे जा खड़ी हुई, सविता जी कुछ बोलती अयाना बोल पड़ी - "हमारी मां को, मामा जी की राजश्री जीजी को पिहू की प्यारी बुआ को तो वापस नहीं लाया जा सकता पर हमारी मामी जी, मामा जी की बीवी को और पिहू की मम्मी…"
पिहू बीच में बोल पड़ी - "खुंखार मम्मी बोलो अयू दी!"
अयाना ने पिहू को घूरा और फिर सविता जी से बोलती है - "हमारी मामी तो वापस आ सकती है ना, समझ रहे हो ना मामी जी आप हमारी बात, हम सब इंतजार कर रहे है, आप गुमसुम से अच्छे नहीं लगते….हमे पहले वाली ही सविता मिश्रा चाहिए ये नया वाला रूप पंसद नही आया।"
पिहू - "यस, डोंट लाईक!"
प्रकाश - "हम्म बिल्कुल अच्छा नहीं है ये रूप, रौद्र रूप ही जचता है तुम पर सविता…मतलब उदास सी अच्छी नही लगती।"
सविता जी तीनों की ओर देखते हैं - "पहले जो थी वो भी पंसद नहीं थी तुम लोगों को तब भी मुझसे शिकायत रहती थी और अब भी शिकायत..."
वो आगे बोलती कि अयाना बोल पड़ी - "पहले वाली की आदत है हमे, नयी आदत नहीं लगानी, प्लीज मामी!"
पिहू - "हां मम्मी, माना कि मुझे नयी मम्मी चाहिए पर इसी शक्ल में नहीं, तो पहले वाली चलेगी, सो अपडेट होने की जरूरत नहीं है।"
ये सुन सविता जी अयाना को साईड कर - "हटो इसे तो मैं बताती हूं...." बोल सविता जी पिहू के पीछे भागने लगी, पिहू उनको इधर उधर दौड़ाने लगी....सविता जी उस पर चिल्ला रही थी और पिहू जानबूझकर उनको गुस्सा दिला रही थी। ये देख अयाना प्रकाश जी मुस्कुराने लगे, अयाना की तो आंखें ही छलक उठी, प्रकाश जी पास आकर उसके कंधे पर बाह डाल लेते है, अयाना उनके सीने से सिर टिका लेती है।"
थोड़ी देर में सविता जी हांफने लगी, ये देख पिहू उनके पास चली आई और कान पकड़ते "सॉरी मम्मी एंड मिस यू!" बोल सविता जी के गले लग गयी, सविता जी उसके सिर पर पहले तो थप्पड़ लगाती है और फिर प्यार से उसके सिर को चूम लेती है।
पिहू सविता जी का हाथ पकड़ उन्हें अयाना और प्रकाश जी के पास ले आई - "आ गया पुराना रूप वापस।"
सविता जी ने उसे घूरा और प्रकाश जी से बोली - "जीजी की बहुत याद आती है, मुझे अच्छा नहीं लगता जी उनके बिना।"
प्रकाश जी उनका चेहरा हाथों में भर - "समझता हूं पर सविता ये तो तुम भी जानती हो समझती हो ना…हम जीजी के जाने के दुख से उभरेगें नहीं तो हमें और तकलीफ होगी, जीजी हमको देख रही है हम खुश रहेगें तो उनको भी खुशी होगी, बहुत तकलीफ सहकर गयी है जीजी हमें उनको और तकलीफ नहीं देनी।
अयाना - "हां मामी.....वैसे तो मां हमेशा हमारे साथ है पर इस वक्त वो जहां भी है वो बस यही चाहती है हम खुश रहे ना कि उदास।"
पिहू - "यस....हम खुश बुआ खुश!"
सविता जी - "तुम बहुत खराब हो अयाना"
ये सुनते ही अयाना ने प्रकाश जी पिहू की ओर देखा तो पिहू अयाना की बाह पकड़ते हुए बोली - "क्यों मम्मी, अयू दी ने क्या कर दिया जो इनको आप खराब बोल रहे हो?"
सविता जी अयाना को घूरते हैं - "इसकी मां, इनकी जीजी, तेरी बुआ....मेरी....मेरी कुछ नहीं थी क्या वो?"
ये सुनते ही अयाना ने हाथ में पकड़ी ट्रे पिहू को पकड़ाई और फट से कान पकड़ लिए - "आपकी तो ननद, सहेली सब थी मां, सॉरी, पता है उनको बहुत मिस करते हो आप, हम लोग तो फिर भी बाहर चले जाते है सबसे ज्यादा कमी तो आपको ही खलती है उनकी, जानती हूं मामी...."
वो आगे बोल पाती कि सविता जी उसके हाथ नीचे कर उसे गले लगा लेती है और उसका सिर सहलाते बोलती है - "तुम बिल्कुल राजश्री जीजी की ही परछाई हो अयाना सबका दुख दिखता है अपना नहीं, सबकी परवाह है तुम्हें, किस पर क्या बीत रही है सब खबर है और कोशिश भी कर रही हो सबको खुश रखने की पर हम भी जानते है बेटा तुम पर क्या गुजर रही है, हमारी कुछ थी वो तो तुम्हारी तो सब थी।"
अयाना की आंखों से आंसू बहने लगे, वो रो ही पड़ी, सविता जी उसे संभाल रही थी, ये देखकर जहां प्रकाश जी पिहू की आंखें नम हो गयी वहीं दोनों खुश थे अयाना सविता जी को साथ देख, सविता जी की अयाना के प्रति परवाह प्यार देख जो वो ज्यादा दिखाती नहीं है पर आज वो खुद को नहीं रोक पाई….थी तो मामी पर एक मां की तरह अयाना को उन्होनें कसकर अपने सीने से लगा लिया।
तभी पिहू जोर से बोली - "असभंव!"
ये सुनते ही सविता जी अयाना अलग होकर उसे हैरानी से देखती है तो वो फिर बोल पड़ी - "पापा मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा, कभी नहीं सोचा था ऐसा भी देखने को मिलेगा, मम्मी अयू दी को लाड़ करेगी....भई क्या दिखा रहे हो आदत नहीं है हमें ऐसा देखने की....बहुत असंभव दृश्य देख लिया आज तो, मैं सपना तो नहीं देख रही, हटाओ हटाओ ये (मंद मंद हंसते) सब यहां नहीं चलेगा!"
तभी अयाना पिहू के गाल पर हल्की प्यार भरी चपत लगा देती है, सविता जी पिहू की ओर देख - "जोर से लगाओ?"
पिहू बतीसी दिखाते - "नहीं लगाएगी दी है, मम्मी नहीं!"
तभी प्रकाश जी सविता जी के कंधे पर अपनी बाह डालते बोले - "पिहू तुम्हारी मम्मी अयाना से प्यार भी करती है, फिक्र भी करती है खरगोश की, क्यों सविता सही कहा ना?"
सविता जी अयाना की ओर देखते - "दुश्मन नहीं हूं मैं इसकी, आप सब समझते है वो बात अलग है।"
अयाना पिहू के हाथ से चाय की ट्रे लेकर चाय का कप लेकर सविता जी की ओर बढा देती है - "कोई दुश्मन नहीं समझता मामी, हमारी मामी बहुत प्यारी है हम से बहुत प्यार करते है जानते है हम..…लीजिए चाय पीजिए!"
सविता जी चाय का कप नहीं लेती है वो चेयर पर बैठ गयी - "ठंडी चाय मैं नहीं पियूंगी, जाओ फिर से बनाकर लाओ....सबके लिए चाय!"
अयाना कप की ओर देखते - "फिर से?"
सविता जी - "हां फिर से और जल्दी!"
"जी" बोल अयाना मुस्कुराते किचन की ओर चल दी वहीं पिहू प्रकाश जी हाईफाई करते हंस पड़ते है।
पिहू - "मुबारक हो पापा, आपकी बीवी मेरी मम्मी, अयू दी की मामी अपने वाले अवतार में आ ही गयी।"
प्रकाश जी - "हां बेटा, अब सविता….सविता लग रही है!"
सविता जी मुस्कुरा दी तभी पिहू कमर से हाथ टिकाते बोली - "पापा कहीं हमने अपने पैर पर कुल्हाड़ी तो नहीं मार ली?"
सविता जी - "क्या बोली?" कि पिहू वहां से किचन की ओर भाग गयी, प्रकाश जी हंस पड़े, पर जब देखा सविता जी घूर रही है उन्हें तो वो हंसी रोक कुर्सी पर जा बैठे और फट अखबार खोलकर सामने कर लिया, ये देखकर सविता जी मंद मंद हंसने लगी।"
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पिहू भागी किचन में आई तो आयना उसकी ओर देख बोली - "क्या करके आई हो?"
पिहू हंस दी - "कुछ नहीं कुछ भी तो नहीं"
"इतनी भोली तुम हो नहीं, मामी को छेड़कर आई हो ना?"
"जब पता है तो पूछ क्यों रहे हो?"
"बी केयरफुल पिहू, मामी जी अपने असली रूप में आ चुके है, पिटाई हो सकती है।"
"हां ये तो है अयू दी, वैसे अच्छा था ना मम्मी ना डांटते थे ना ही मारते थे, हमें ही पता नहीं क्या हो गया था अच्छी मम्मी अच्छी मामी देखी न गयी, अब फिर से हमारी बैंड बजेगी।"
"बस कर पिहू मामी जी ने सुन लिया तो अभी के अभी शुभारंभ हो जाएगा, फिर मैं भी बचाने नहीं आऊंगी तुम्हे।"
"ऐसा तो होने से रहा, मुझे मार पड़े और आप ना आओ अपनी पिहू की हिफाजत करने, एनीवेज चाय फिर से बनानी पड़ रही है कैसा लग रहा है?" पिहू अयाना के कंधे पर बाह डालते बोली….
अयाना कपों में चाय डालते - "बहुत अच्छा।"
पिहू चाय की ओर देखते - "फिर से बनाई है?"
अयाना कपों को ट्रे में रखते - "नहीं तो, गर्म की है फिर से!"
पिहू कपों की ओर देखते - "मम्मी ने फिर बनाने को कहा था ना?"
अयाना ट्रे उठाते - "ठंडी चाय नहीं पीनी थी मामी जी को अभी तो बनाई थी ये चाय तो कर ली गर्म समझ लो फिर ही बनाई है, चलो अब!".......और दोनों बाहर चली आई, बाहर आते ही अयाना ने तीनों के (प्रकाश जी, सविता जी, पिहू के) हाथों में चाय के कप पकड़ दिए।
सविता जी - "तुम्हारी चाय कहां है?"
अयाना - "मेरा मन नहीं था चाय पीने का, तो मैनैं अपने लिए नहीं बनाई।"
पिहू - "जब मन हो अयू दी बता देना आपके लिए मैं बना दूंगी।"
ये सुन अयाना मुस्कुराते उसके गाल पर हाथ रखती है कि तभी डोर बेल बजी, सब दरवाजे की ओर देखते है, सविता जी पिहू से - "जाकर देखो पिहू कौन आया है?"
पिहू जाने लगी कि अयाना ने रोक दिया - "तुम चाय पिओ मैं देखती हूं" बोल अयाना वहां से चली गयी, अयाना ने दरवाजा खोला तो सामने सागर जी खड़े थे, उनको देखते ही अयाना के चेहरे का रंग बदल गया - "मिस्टर जोशी!"
वो "अयाना बेटा" कहते अपना कदम अयाना की ओर बढ़ाते उससे पहले ही अयाना ने उनके मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया और खुद दरवाजे से पीठ लगाकर आखें मूंद खड़ी हो गयी, अयाना की इस हरकत पर मिस्टर जोशी को गुस्सा आ जाता है और वो उसी वक्त वहां से वापस चले जाते है।
अयाना आखें मूंदे मन ही मन खुद से - "मैं आपके पास कभी नहीं आऊंगी मिस्टर जोशी, अपने घर अपने परिवार को कभी नहीं छोड़ूगी, अगर लगता है आपको आप मुझे यहां से ले जाएगें मेरे अपनों से दूर कर देगें तो आप गलत है बहुत गलत।"
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【खन्ना विला】
डिनर के बाद माहिर हॉल में इधर से उधर चलते अपने मैनेजर अनुज से बात कर रहा था - "ओह तो सनाया लूथरा को मुझसे पर्सनैली मिलना है।"
"यस सर, मैने बोला कल ही तो मिले थे सर आप से ऑफिस में, तो कहती मुझे अकेले में मिलने है" आगे से अनुज बोला
ये सुन माहिर तिरछा मुस्कुरा दिया - "ये ख्वाहिश सनाया लूथरा की कभी पूरी नहीं होगी, एनीवेज उसे इग्नोर करो, जो काम कहा है मैने तुमसे तुम वो करो!"
"ओके सर" अनुज ने कहा तो माहिर "ओके" बोल फोन कट कर देता है, तभी रियान ने उसे आवाज दी - "मामू!"
माहिर रियान की ओर देखता है जो सिढियों के पास हाथ बांधे खड़ा था, माहिर उसके पास आया तो रियान उससे बोला - "आपकी अर्जेट कॉल हो गयी?"
माहिर रियान का सिर सहलाते - "यस....चैंप हो गयी!"
"पेटिंग करने चले?"
"या....लेस्ट गो!"
और दोनों सिढियो से होते ऊपर एक बड़े से रूम में चले आए, जो पेटिंग रूम था, जहां दोनों पेटिंग करते थे...रूम की वॉल्स पर अलग-अलग तरह की बहुत अच्छी पेटिंग्स फ्रेम लगी हुई थी यानि माहिर रियान की पहले की बनाई पेटिंग्स फ्रेम में लगवाकर दीवारों पर लगाई हुई थी, पेटिंग रूम भी बहुत प्यारा था और सारी पेटिंग्स उसे कलरफुल बनाये हुई थी।
आगे जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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