एसएचओ के सवाल ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे, जबकि रोहन जवाब देते-देते थक चुका था। अतीत के कई पन्ने खुल चुके थे, जिन्हें सालों तक रोहन ने की सालों खोले नहीं थे। उसके पापा का ज़िक्र सालों बाद हुआ था। शाम के 6 बज चुके थे जब एसएचओ कर्मवीर ने रोहन को जाने के लिए बोला… पुलिस स्टेशन के चक्कर में उसे याद ही कहां रहा कि आज उसका बर्थडे है और मां ने घर पर उसके दोस्तों को खाने पर बुलाया है और ये भी रोहन को किसी मुसीबत से कम नहीं लगा… क्योंकि इस शहर में कहने को तो बहुत से लोग थे, जो रोहन को जानते थे लेकिन कोई रोहन के दिल के करीब नहीं था…रोहन के पुलिस स्टेशन से बाहर आते ही विवेक का फ़ोन आया…

 

रोहन - हां विवेक बताओ???

 

विवेक - रोहन सर कहां हो आप?? बहुत टेंशन हो रही है… कब से फ़ोन ट्राई कर रहा हूं, लेकिन आपका फ़ोन नोट रीचबल आ रहा है…

 

रोहन  - तू भी एसएचओ की तरह बोलते जा रहा है… सुनेगा तब तो मैं बताऊंगा कहां हुं?? किस हाल में हुं…

 

विवेक - सॉरी सर …. टेंशन में बोलता जा रहा था, ख़ैर आप बताइए…

 

रोहन - अभी-अभी पुलिस स्टेशन से निकला हूं…. एसएचओ ने सवाल पूछ-पूछ कर मेरा दिमाग ही ख़राब कर दिया… बहुत स्मार्ट है एसएचओ… मुझे बातों में उलझा रहा था…

 

विवेक - आगे बताइये सर, क्या हुआ??  

 

रोहन - अबे.. मैं कोई कहानी सुना रहा हूँ, जो इतना इन्टरेस्ट लेकर सुन रहा है… . मेरी फटी पड़ी है और तुझे मजा आ रहा है…  

 

विवेक - क्या हो गया सर आपको… आप तो बात बात पर नाराज़ हो रहे हैं… मैं समझ सकता हूँ आप टेंन्शन में हैं पर सर मैं जानता हूं आपको हर सिचूऐशन से निकलना बखूबी आता है…  

 

कभी-कभी इंसान को ख़ुद पर कम लेकिन दूसरों पर ज्यादा भरोसा होता है… विवेक का यह कहना कि ‘आप मुसीबत से निकल सकते हो ‘ रोहन को सुकून दे गया था…  गहरी सांस लेकर रोहन ने फिर से कहा…  

 

रोहन - अभी तो मैंने एसएचओ को उलझा दिया है, लेकिन एसएचओ है बहुत तेज़, कोई न कोई रास्ता निकाल कर मुझे पूछताछ के लिए बुलाएगा…  

 

विवेक - एसएचओ ने पूछा क्या??  

 

रोहन - पवन चौहान की ज़मीन की वजह से मुझपर शक कर रहा है… तू तो सारी सच्चाई जनता है…वैसे मुझे अलर्ट रहना पड़ेगा… मेरी एक गलती मुझे ले डूबेगी…

 

विवेक - हाँ सर , आई नो…  

 

इन दोनो की बातें अभी चल ही रही थी कि तभी कंचन का फ़ोन आया… कंचन को रोहन बता चुका था की उसे घर आने में देर होगी… उसके बावजूद कंचन के बार-बार फ़ोन आने से रोहन को गुस्सा आ गया…  रोहन ने विवेक का फ़ोन होल्ड पर डालकर कंचन से बात की…

 

रोहन - कंचन मैंने कहा है न काम ख़त्म होते ही घर आ जाऊंगा… मुझे बार-बार फ़ोन करके डिस्टर्ब मत करो…आई विल कॉल यू ।  

 

कंचन - सर एक मिनट सुनिए … मैं जानती हूं, आपका काम बहुत ज़रूरी है, पर मैंने आपको ऐसे ही फ़ोन नहीं किया है… मैं आंटी को लेकर डॉक्टर के पास आई हूं… आंटी की तबियत थोड़ी ख़राब हो गई थी…

 

रोहन - तुमने मुझे पहले क्यूं नहीं बताया… तुम कहां पर हो??? मैं अभी आता हूं…

 

कंचन - कोई बात नहीं सर … आप अपना काम फिनिश कीजिए.. आंटी अब ठीक हैं… मेडिसिन लेकर हम भी घर पहुंचते हैं… अगर आपका काम हो गया हो तो आप भी घर आ जाइए..

 

यह कहते हुए कंचन चुप हो गई… कंचन काफ़ी समझदार लड़की है .. उसे अच्छी तरह मालूम है किस वक्त क्या कहना चाहिए। पूरी बात जानने के बाद रोहन को थोड़ा अजीब भी लगा… शायद इस तरीके से उसे कंचन से बात नहीं करनी चाहिए थी।  कंचन का फ़ोन कट गया था लेकिन दूसरी तरफ विवेक अब भी होल्ड पर था… रोहन ने जैसे ही कंचन का फ़ोन काटा तो याद आया विवेक लाइन पर है…

 

रोहन - सॉरी यार… मां की तबियत थोड़ी ख़राब हो गई थी ये बताने के लिए कॉल किया था कंचन ने… एक काम कर, रात में मेरे घर पर आ जा…

 

विवेक - रात में.. घर पर.. क्यूं सर???

 

रोहन - तू भी एसएचओ की तरह सवाल जवाब बहुत करता है… तेरी अच्छी दोस्ती हो सकती है एसएचओ से…

 

विवेक - सर , जब आपसे दोस्ती हो गई, तो फिर किसी से भी हो सकती है….

 

रोहन  - इसका मतलब मैं इतना ख़राब आदमी हुं…

 

विवेक - रोहन सर आप फिर से शुरू हो गए…मेरे कहने का मतलब है आप भी तो मेरे दोस्त हो….

 

रोहन  - मक्खन लगाना छोड़ो… आज मेरा बर्थडे है और मां ने मेरे दोस्तों को खाने पर बुलाया है…

 

रोहन ने विवेक से बात करते-करते ही कार स्टार्ट कर दी.. और आज रात की प्लानिंग विवेक से डिस्कस करने लगा।  आज का दिन रोहन लिए काफ़ी मुश्किल था। पहले काव्या फिर उसकी मां और कंचन का आना, उसका जन्मदिन और एसएचओ कर्मवीर से मुलाकात बहुत मुश्किल से गुज़रा था उसका आज का दिन लेकिन फिर भी आज रोहन काफ़ी दिनों के बाद थोड़ा अच्छा महसूस कर रहा था शायद उसकी माँ का साथ होना उसे थोड़ा सुकून दे रहा था।

 

विवेक  - हैप्पी बर्थदे सर … सब हो जाएगा, डॉन्ट वरी…

 

रोहन  - तुम संभाल लोगे न.. मां को कुछ पता नहीं चलना चाहिए…

 

विवेक  - क्या कहते हो सर.. शायद मेरे टैलेंट पर आपको शक हो रहा है… मां जी को कुछ पता नहीं चलेगा…

 

रोहन  - रियली ... थैंक्स यार … इतना सब कुछ एक साथ चल रहा है दिमाग में…. मैं क्या करूं.. समझ ही नहीं आ रहा। बस आज तू संभाल ले भाई…

 

विवेक  - सर,  आप क्यूं परेशान हो रहे हो… जब विवेक है साथ, तो टेंशन की क्या है बात… आप मुझे ये बताओ, रात की क्या प्लैनिंग है?? आज भी सब कुछ सेट कर चुका हूं, बस आप हां बोलो..

 

विवेक के इस सवाल ने फिर से रोहन को उलझा दिया।  रोहन के लिए रात रास्ता रोकती भी है और रास्ता खोलती भी है… लेकिन आज वह कुछ नहीं चाहता था. आज वो अपनी मां के साथ वक्त बिताना चाहता था। मां से खूब सारी बातें करना चाहता था। ज़ोर-ज़ोर से बच्चे की तरह रोना चाहता था, मां की बनाई खीर को बड़े चाव से स्वाद लेकर खाना चाहता था।  सारी प्लानिंग को भूलकर सुकून भरी रात गुज़ारना चाहता था।  पुलिस स्टेशन से निकलने के थोड़ी देर बाद सिग्नल पर रोहन की कार रुकी… एक 12- 13 साल की बच्ची ने कार की विंडो पर अपना हाथ रखा।  उसके दूसरे हाथ में गुलाब के फूल थे… बच्ची बड़ी प्यारी लग रही थी… रोहन ने शीशा नीचे करके पूछा…

 

रोहन  - क्या हुआ बच्चे???

 

बच्ची- भईया फूल लो.. बहुत ताज़े हैं.. खुशबू बहुत अच्छी है… आप ले लो न फूल, अपनी गर्लफ्रेंड के लिए…

 

रोहन  - तुझे कैसे पता मेरी गर्लफ्रेंड है???

 

बच्ची - आजकल तो सबके पास गर्लफ्रेंड होती है… मैं जानती हूं भईया…

 

रोहन को इस बच्ची की बातें न जाने क्यूं  बहुत अच्छी लगी या उसका मूड अच्छा था… उसने मुस्कुरा कर उस प्यारी सी बच्ची से कहा…

 

रोहन  - दे दो फूल…

 

बच्ची ने कहा.. 
बच्ची - 10 रुपए खुल्ले देना भईया..

 

यह सुनकर रोहन को फिर हंसी आ गई… उसने 500 रुपए का नोट निकलकर उसे दे दिया…

 

बच्ची - भईया मैंने कहा न, मेरे पास खुल्ले नहीं हैं…

 

रोहन  - रख लो.. मुझे चेंज नहीं चाहिए…

 

बच्ची - नहीं भईया… मेरी मां मुझे डांटती है… मैं नहीं ले सकती 10 रुपए के बदले 500 रुपए का नोट  

 

तब तक ग्रीन लाइट हो चुकी थी… पीछे की कार ने हॉर्न बजाना शुरू किया…

रोहन  - अभी रख लो, आगे का अड्वान्स समझकर

 

रोहन अपनी कार लेकर आगे बढ़ गया उसने कार के शीशे से देखा तो  वह लड़की वहीं खड़ी दिखाई दी शायद उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। गुलाब का फूल अपनी खुशबु बिखेर रहा था उस खुशबू को रोहन आपनी सांसों में महसूस कर रहा था और उसे महसूस हुआ माया का साथ… दरअसल माया को गुलाब बहुत पसंद थे… रोहन यह बात जानता था… इसलिए तो माया से मुलाकात का मतलब साथ में गुलाब होना चाहिए… अगर रोहन कभी गुलाब ले जाना भूल जाता तो माया का मासूम चेहरा लटक जाता..

 

माया  - कैसे हो रोहन मेरे लिए गुलाब भी नहीं ला सकते…

 

रोहन - अरे यार! रास्ते में कई जगह ढूंढा, पर गुलाब कहीं नहीं मिला… मैं क्या करता बताओ…

 

माया - क्या करता… तुमने ढूंढा ही नहीं होगा… बहाना बना रहे हो.. जैसे मैं तुम्हें जानती नहीं हुं क्या…

 

रोहन - सॉरी बाबा! अगली बार साथ में गुलाब होगा ही प्रॉमिस…

 

माया - जानती हूं, तुम बस मेरा दिल रखने के लिए कह रहे हो… तुम लड़के हम लड़कियों की छोटी छोटी खुशियों की कद्र ही कहां करते हो.. रोहन मेरे सपने बड़े नहीं खुशबूदार हैं, बिल्कुल गुलाब की तरह…

 

रोहन - तुम्हें तो फ़िल्मों में काम करना चाहिए…कहां तुम MBA के चक्करों में पड़ गई हो…. फिल्मों में काम करो…. क्या समझी…

 

माया - मुझे जो करना है, मैं वो कर रही हूं…तुम एक काम करो आंखें बंद करो…

 

रोहन  - यह कैसा बचपना है माया… तुम जानती हो मुझे यह सब पसंद नहीं…

 

माया - कहा न, बंद करो..

 

रोहन - लो, बंद कर ली आंखें…

 

रोहन की आंखें जैसे ही बंद हुई माया उसके गले लग गई और ज़ोर से रोहन को पकड़ लिया, शायद पहली बार दोनो इतने करीब आए थे… सब अचानक हुआ था… रोहन को बिल्कुल समझ में नहीं आया लेकिन माया का यूँ अचानक क़रीब आना उसे भी अच्छा लगा

 

रोहन - क्या बात है?? बहुत प्यार आ रहा है…

 

माया - थोड़ी देर कुछ मत कहो रोहन… मुझे यह सब महसूस करने दो… शायद यह वक्त दुबारा मिले न मिले…

 

वाकई उस दिन माया सच कह रही थी… शायद उसे भी आने वाले वक्त का एहसास हो गया था। ये नजदीकियां हमेशा-हमेशा के लिए दूरियों में तब्दील होने वाली थी… रोहन के जेहन में माया के करीब होने का एहसास अब भी खुशबू बिखेर रहा था

 

कौन है माया ?

क्यों रोहन को रह रह कर माया का ख़याल बेचैन कर रहा था?

क्या हुआ था माया और रोहन के बीच? 

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