दिनभर की भाग दौड़ के बाद रोहन की खूबसूरत शाम भी धीरे-धीरे गुज़र रही थी। वैसे आज का पूरा दिन सवालों में ही गुज़र गया। अच्छी बात ये हुई कि रोहन की माँ उसके पास थीं और शायद वो सवाल भी जिनके बीच एक लंबी उम्र बितायी थी रोहन ने। माया जिसके बगैर सांस ले पाना भी रोहन के लिए मुश्किल हो जाया करता था, आज वही माया एक ख़्वाब बनकर रह गयीं थी। वैसे आज का दिन रोहन के लिए उसकी मां ने ख़ास बना दिया था। हेमलता जिनकी तबीयत ख़राब थी उसके बावजूद रोहन के बर्थडे पार्टी की सारी तैयारियों की जिम्मेदारी उनके ही हाथों में थी। घर आते ही बबलू को रोहन की मां ने बाज़ार भेज दिया था… वो जानती थी घर पर औरत न हो तो घर, घर जैसा नहीं लगता। घर में सब कुछ होने के बाद भी कोई न कोई कमी रह ही जाती है। वहीं दूसरी और सिगनल पर छोटी सी बच्ची से फूल लेकर रोहन को फिर से माया याद आ गई थी। हमारी यादें, करीब आने के लिए हमसे इजाज़त नहीं मांगती… वो तो बेधड़क हमारी दिलों दिमाग पर दस्तक दे देती हैं। इन सब के बीच रोहन घर जल्दी पहुंचना चाहता था...उसे डर था कि मां परेशान हो रही होगी और मां का परेशान होना रोहन को बिल्कुल पसंद नहीं था। रोहन क़रीब रात के 8 बजे घर पहुंचा। अन्दर घुसते ही उसे लगा ही नहीं कि वो इसी घर में रहता है। घर की रौनक बढ़ गई थी… शायद रोहन की माँ उसको एक बार फिर से खुश देखना चाहती थी जैसे वो बचपन में हुआ करता था। रोहन ने घर में घुसते ही बबलू को आवाज लगाई...
रोहन - बबलू इधर आना…
रोहन की आवाज़ ने उसकी मां की आंखों में रोशनी भर दी। रोहन का घर आ जाना उन्हें कितनी खुशी दे रहा था, बता पाना मुश्किल था क्यूंकि काफ़ी सालों के बाद वो अपने बेटे रोहन का जन्मदिन मना रही थी। कभी वक्त ने मौका नहीं दिया तो कभी हालात ने चुप करा दिया। उनके बेटे के लिए ख़ास दिन मानो कुछ सालों से ये दिन कभी खास रहा ही न हो… जबकि रोहन की मां के दिल से पूछें तो इस दिन से बड़ा और कोई ख़ास कोई दिन होता ही नहीं है। जब पहली बार रोहन की मां ने उसको गोद में लिया था तो दुनिया भर की खुशियां एक तरफ और ये ख़ुशी एक तरफ थी… रोहन के आने से उनकी दुनिया ही बदल गई थी, मानो उन्हें इस खुशी के अलावा और कोई ख्वाहिश ही नहीं थी….
मां (हेमलता)- आ गया रोहन… देख न तेरी पसंद की मैं ख़ुद बनाना चाहती थी लेकिन ये कंचन जानबूझकर मुझे डॉक्टर के पास ले गई… सारा टाइम वहीं निकल गया…
रोहन - कोई बात नहीं मां! क्यूं परेशान हो रही हो??
मां (हेमलता)- वाह! आज मेरे बेटे का बर्थडे है और मैं खीर भी न बनाऊं…. मैंने कहा था कंचन से मैं ठीक हूं, लेकिन यह लड़की मेरी सुनती कहां है… तू इसे समझा, अगर ये ऐसा करेगी, तो मैं इसके साथ नहीं रहूंगी…
रोहन की मां का नाराज़ होना किसी को बुरा नहीं लगा… रोहन जानता था कंचन ने जो भी किया वो सही था कंचन सामने खड़ी हेमलता जी की बातों पर मुस्कुरा रही थी कंचन को मुस्कुराता देख हेमलता जी का गुस्सा भी कहीं गुम हो गया, काश ज़िंदगी की परेशानियां भी इसी तरह गायब हो जाती…पास खड़ी कंचन से हेमलता जी ने पूछा…
मां (हेमलता)- बस मुस्कराती ही रहोगी या पता करोगी कि केक कब तक आएगा….
रोहन - बबलू कहां है मां?? वो दिख नही रहा..
मां (हेमलता)- आता होगा… केक लाने भेजा है… वो भी तो लाटसाहब है… 4 बार बोले तब एक बार सुनता है…अरे तेरे दोस्तों का क्या हुआ??? तूने इन्वाइट किया है ना… कब तक आएंगे सब??
रोहन - मां रुको भी, एक साथ कितने सवाल कर रही हो… अभी तो मैं आया हूं… आ जायेंगे सब.. डॉन्ट वरी..आप आराम करो… कंचन और बबलू सब देख लेंगे…
मां (हेमलता)- हां हां.. सबको जानती हूं मैं, कौन क्या-क्या कर सकता है.. तू जल्दी से हाथ मुंह धो ले, मैं कुछ खाने को ले आती हुं… बबलू ने बताया तू सुबह से भूखा है…
हेमलता जी रोहन के बर्थडे पर ऐसे ही परेशान रहती जैसे पहली बार उसका बर्थडे सेलब्रैट कर रही हों। उनकी कोशिश यही रही कि वो क्या करे, जिससे उनका बेटा खुश हो जाए। वो जानती थी, उसके पापा का साथ न होना रोहन को कितना तकलीफ़ देता है। वो इसी कोशिश में लगी रहती कि रोहन को कभी उसके पापा की कमी न खले…20 साल पहले रोहन के पापा घर से निकले थे और फिर कभी लौटकर नहीं आए। कहां गए?? किसी को कुछ पता नहीं। कई महीनों तक रोहन की मां पुलिस स्टेशन के चक्कर लगाती रहीं और यूं ही देखते-देखते 20 साल निकल गए। रोहन के पापा इस दुनिया में हैं भी या नहीं, ये कोई नहीं जानता ओर न ही रोहन ने कभी अपनी मां से ये सवाल किया। आज भी उसकी मां माथे पर सिंदूर लगाती हैं, शायद इस उम्मीद में कि किसी दिन रोहन के पापा लौट आए। अब तो रोहन को उसके पापा की शक्ल भी याद नहीं…और अगर वह आज सामने आ भी जाएं, तो शायद रोहन उन्हें पहचान नहीं पायेगा। काफ़ी छोटा था रोहन, जब उसके पापा कहीं गुम हो गए या फिर यूँ कहें उन्हें अकेला छोड़ कर कहीं चले गए। अब तो रोहन ने इस बात को लेकर सोचना भी बंद कर दिया था कि उसके पापा ज़िंदा भी हैं या नहीं…रोहन और उसकी माँ बात कर ही रहे थे कि तभी बबलू अंदर आया और बोला..
बबलू - भईया… विवेक भईया का फ़ोन आया है… वो आ रहे हैं…
विवेक की आदत है जब वो घर पर आता तो रोहन को नहीं बल्कि बबलू को कॉल करता, ताकि उसे मालूम हो कि रोहन क्या कर रहा है। उसके बाद ही वो घर पर आता। रोहन अपने कमरे में जा चुका था। हॉल में हेमलता जी के साथ बबलू कुछ काम करवा रहा था। तभी विवेक कुछ लोगों के साथ वहां आ गया… विवेक के साथ आए लोग बबलू को बर्थडे विश करने लगे , हेमलता को ये काफ़ी अजीब लगा और उन्होंने ने कहा
मां (हेमलता)- अर्रे क्या कर रहे हो तुम लोग ?.. आज बबलू का बर्थडे नहीं है.. रोहन, मेरे बेटे का बर्थडे है…
विवेक को समझने में देर नहीं लगी कि यहां सब कुछ गड़बड़ हो गयी और उसको अब रोहन से कोई नहीं बचा सकता… हेमलता जी ने रोहन को कमरे से बुलाते हुए कहा..
मां (हेमलता)- रोहन तुम्हारे दोस्त आ गए हैं... नीचे आजा बेटा । वैसे बड़े अजीब दोस्त हैं तेरे तुझे पहचानते भी नहीं ?? पक्का ये तुम्हारे ही दोस्त हैं न???
रोहन कमरे से नीचे आ चुका था और जब तक वो समझने कि कोशिश करता तब तक विवेक ने बात को संभालते हुए हेमलता जी के सामने आकर कहा…
विवेक - आंटी जी, ये लोग रोहन सर के ही दोस्त हैं…ये तो बस सर को छेड़ने के लिए ऐसा नाटक कर रहे हैं क्योंकि रोहन सर तो कभी अपने बर्थडे पर तो छोड़ो घर पर भी नहीं बुलाते तो इन सब ने ये छोटा सा मज़ाक प्लान किया था…
मां (हेमलता)- अच्छा ये बात है.. तभी मैं कहूं, ये सब क्यूं विश कर रहे हैं…
विवेक ने बात संभाल ली थी और पार्टी शुरू हो गई। ऐसे दोस्तों के साथ जो रोहन के दोस्त नहीं थे, जिनसे रोहन आज पहली बार मिल रहा था। बबलू और विवेक के अलावा कोई इस बात को कोई जानता था। इतना ज़रूर है कि बीच-बीच में कंचन को शक होता कि अगर ये लोग रोहन सर के दोस्त हैं, तो एक अजनबी की तरह क्यूं मिल रहे हैं? खैर रोहन की बर्थडे पार्टी अच्छी रही, घर का माहौल थोड़ा बदल गया था। रात 12 बजे तक सारे मेहमान चले गए…जाते वक्त विवेक ने कहा…
विवेक - मीटिंग का क्या करना है??? आज रहने देते हैं क्योंकि आंटी भी आई हैं और आज आपका बर्थडे भी है…
रोहन - वो तो ठीक है, लेकिन काम छोड़ नहीं सकते… तुम्हे तो अच्छी तरह मालूम है, हमें कहां-कहां पैसे देने है, वरना बहुत प्रॉब्लम हो जाएगी…
विवेक - आई नो सर, लेकिन एक दिन अवॉइड किया जा सकता है… आप भी थोड़ा रेस्ट कर लीजिए , फिर देखते हैं क्या करना है…
रोहन - नहीं यार! कुछ न कुछ तो करना होगा…
ऐसा क्या था, जिसके लिए रोहन परेशान हो रहा था? उसे क्यूं और किसे पैसे देने थे? यह अब भी राज़ बना रहा। विवेक अपनी बातें ख़त्म कर फ़ैसला रोहन पर छोड़ कर वहां से चला गया। रोहन की मां भी सोने चली गई। कंचन अपने कमरे में थी और बबलू घर में फैली सारी चीज़ों को समेट रहा था। रात में न सोने की जैसे रोहन को आदत पड़ चुकी थी। आसमान में बादल छाए थे। कभी-कभी बादलों से चांद निकल आता और आस पास सब कुछ साफ-साफ दिखने लगता और जैसे ही चांद बादलों में छिपता चारों तरफ अंधेरा छा जाता और यही अंधेरा रोहन के दिल-ओ-दिमाग पर छाया रहा। थोड़ी देर के बाद विवेक का मैसेज आया…उसमें लिखा था ' क्या करना है सर '? रोहन ने जवाब दिया 'मीटिंग फिक्स करो, आई एम रेडी ‘
विवेक का चंद मिनटों बाद वापस मैसेज आया 'मीटिंग फिक्स्ट, ऑल द बेस्ट’ रोहन छत से नीचे उतरा और सीधे अपनी कार निकाली…
कार कोठी के कैंपस से बाहर निकल गई। अपने कमरे की खिड़की से रोहन की कार को बाहर जाता देख कंचन को अजीब लगा और वो सोचने लगी कि इतनी रात को रोहन आखिर जा कहां रहा है? वो भी बिना बताए? ये कौन स काम था जो रोहन सिर्फ रात में ही करता था? इन सवालों के जवाब ढूंढते-ढूंढते कंचन सो गई।
क्या कंचन जान पाएगी रोहन का सच?
क्या रोहन अपने राज़ को राज़ रख पाएगा?
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