रोहन की मां हेमलता उसके साथ थीं, जिससे विवेक को ये लगने लगा था कि शायद रोहन की ज़िंदगी में कुछ दिनों के लिए ही सही, पर कुछ तो ठहराव आएगा। कहते हैं जिम्मेदारियों का बोझ इंसान को कभी रुकने नहीं देता, चाहे वह कितना भी थक हुआ हो। मजबूरी ही सही रोहन चलता गया एक ऐसी सड़क पर जहां खतरों के बादल हमेशा मंडराते रहे… फिर भी रोहन उन्हीं बादलों को चीरता हुआ अपनी जगह तलाशता रहा। कभी उसे मंज़िल मिलती तो कभी रास्ता खो जाता लेकिन किस्मत ने उसे हमेशा चलने के लिए मजबूर किया। रोहन वही कर रहा था, जिसे ना करने की उसने कसम खाई थी। रोहन रात में कब घर से निकलता ये बात बबलू के अलावा अब कंचन भी जान चुकी थी। वो बात और है कि कंचन ने रोहन से कभी कोई सवाल नहीं किए। रोहन को यही लगता रहा कि उसके काम के बारे में उसकी मां और कंचन कुछ भी नहीं जानते। सब कुछ वैसा ही चलता रहा, जैसे रोहन चाहता था और ऐसा आगे भी चलता रहता... अगर उस रात उसकी मां की तबीयत ख़राब नहीं होती।
कंचन - बबलू जल्दी कर… आंटी की तबियत बहुत ख़राब है। कुछ बोल भी नहीं रही हैं। मुझे तो डर लग रहा है… रोहन सर को कॉल करने की कोशिश कर रही हूं लेकिन लग नहीं रहा… तू अस्पताल फ़ोन कर और एम्बुलेंस बुला…
कंचन बार-बार रोहन को फ़ोन कर रही थी लेकिन उसका फ़ोन “नॉट रीचेबल” था। कंचन कोई भी गलती नहीं करना चाहती थी… इसलिए उसने बिना रोहन का इंतज़ार किए, हेमलता को अस्पताल ले जाने की तैयारी करने लगी। गुज़रता हुआ एक-एक पल हेमलता के लिए भारी था….
बबलू - अस्पताल में फ़ोन कर दिया है दीदी, एंबुलेंस आ रही होगी। आप मां जी को देखिए.. मैं रोहन भईया से बात करने की कोशिश करता हूं।
कंचन - बबलू एक काम कर, विवेक का नंबर है न तेरे पास? विवेक को कॉल कर! विवेक को ज़रूर पता होगा कि अभी रोहन सर कहां होंगे??
बबलू - जी दीदी, मैं विवेक भाई को फ़ोन लगाता हूं… लेकिन मुझे नहीं लगता उनको कुछ मालूम होगा।
कंचन - तुझे ऐसा क्यूं लगता है? विवेक को कुछ न कुछ तो पता होगा। वह रोहन सर के साथ होता है तो कुछ तो पता ही होगा... तुझे ज़्यादा दिमाग लगाने की ज़रूरत नहीं है… जैसा कह रही हूं, वैसा कर… फ़ोन लगा और पूछ उससे…
कंचन का बात करने का तरीका बहुत अजीब था, मानो वो रोहन का सच जानना चाहती थी। फिर भी बबलू की ज़ुबान से सच नहीं निकला जिसे वो दिल में दबाए बैठा था। थोड़ी देर में एम्बुलेंस आ गई। कंचन और बबलू दोनों हेमलता जी को लेकर हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े… जिस रोड पर एम्बुलेंस भाग रही थी वो काफी सुनसान रोड थी। कंचन की धड़कनें तेज़ थी और बीच-बीच में बबलू कंचन को संभालने की कोशिश कर रहा था कि तभी उसे विवेक का कॉल आया। विवेक ने बताया कि रोहन से उसकी बात नहीं हो पाई है लेकिन वो खुद अस्पताल पहुंच रहा है। उसने बबलू को सांत्वना दिया कि वह बिल्कुल नहीं घबराए। ये सुनकर बबलू को तसल्ली हुई। विवेक का इस समय साथ रहना बहुत बड़ी राहत थी। बबलू की बातें कंचन ने सुन ली थी और उसे बड़ी हैरानी हुई कि आख़िर रोहन है कहां ??? विवेक को कैसे नहीं पता, वह सोचने लगी। शायद विवेक कुछ छिपा रहा हो, कंचन को थोड़ा संदेह हुआ। थोड़ी ही देर में एम्बुलेंस अस्पताल पहुंच गई। रोहन की मां को ईमर्जन्सी में ऐड्मिट किया गया। डॉक्टर अपना काम कर रहे थे। विवेक वहाँ पहुँच चुका था। क़रीब दो घंटे तक सब की धड़कने तेज चलती रही थीं। अभी तक किसी भी डॉक्टर ने हेमलता जी के बारे में कुछ बताया नहीं। इंतज़ार करते हुए, वह सब अस्पताल में तरह- तरह के मरीजों को आते देख रहे थे।
करीब ढाई घंटों के बाद डॉक्टर ने बताया हेमलता जी ठीक हैं। स्ट्रेस की वजह से बेहोश हो गई थी। अभी उनको “अन्डर ऑबसर्वेशन” रखा गया है। किसी से भी मिलने की इजाज़त नहीं दी गई।
सबके जान में जान आई… ख़ास तौर पर कंचन ने इस वक्त गहरी सांस ली। जबसे वो हेमलता के साथ है कभी उन्हें हॉस्पिटल ऐड्मिट करने की नौबत नहीं आई। हां, जब भी उनकी तबीयत ख़राब होती तो डॉक्टर को दिखाने के बाद सब नॉर्मल हो जाता था, लेकिन इस बार बात काफ़ी बिगड़ गई थी।
सुबह के 5 बज चुके थे। नर्स ने कंचन से कहा - “आप जाकर पेशेंट से मिल सकती हैं"। विवेक और बबलू बाहर ही थे। आगे बढ़ते वक्त कंचन को ये सवाल परेशान करने लगा कि अगर हेमलता जी ने रोहन के बारे में पूछा तो वह क्या बताएगी? उनसे मिलने कंचन कि जगह रोहन क्यों नहीं आया? उसको कोई जवाब सूझ नहीं रहा था। वैसे कंचन को झूठ बोलना पसंद नहीं था और उसने सच कहा तो हेमलता जी की तबीयत और बिगड़ सकती थी। आख़िर वह करे तो क्या करे?? अन्दर जाकर देखा तो हेमलता जी की आंखें अब भी बंद थीं । वह धीरे से उनके पास गई और उनके सर पर हाथ रखा। हाथ रखते ही हेमलता जी की आंखें खुल गई… देखा तो सामने कंचन खड़ी थी।
हेमलता - रोहन कहां है?? उसे बुलाओ… कंचन मुझे अभी रोहन से मिलना है... उसे बुला दो प्लीज़ .
कंचन - आंटी अभी आप आराम कीजिए। डॉक्टर ने कहा है, आप बिलकुल ठीक हैं… रोहन सर आते ही होंगे।
हेमलता - बेटा मेरी बात समझो… मेरा रोहन से मिलना बहुत ज़रूरी है… उसने सब कुछ अकेले ही सहा है… अगर मुझे कुछ हो गया तो वो अकेला कैसे रहेगा???
कंचन - आंटी आपको कुछ नहीं होगा… बहुत जल्द आप ठीक भी हो जाएंगी।
ये सुनते ही हेमलता ने आंखें बंद कर ली और कंचन उनके पास ही बैठ गई। कमरे में चारों तरफ ख़ामोशी थी, बस मेडिकल मशीन की एक-आध आवाज़ छोड़कर। कंचन को अन्दर ही अन्दर रोहन पर गुस्सा आ रहा था, ये सोचकर कि उसकी मां अस्पताल में ऐड्मिट है और वो अभी तक यहाँ नहीं पँहुचा। आखिर ऐसा कौन सा काम है जिसे रात में ही किया जा सकता है? वो भी इतने सीक्रेट तरीके से? ये सोचते हुए कंचन ने हेमलता जी की ओर देखा - उनको नींद आ गई थी। दवाइयों का असर होगा। कंचन धीरे से उठकर बाहर आ गई। उसे आता हुआ देख विवेक आगे बढ़ा…
विवेक - रोहन सर से बात हो गई है.. वो थोड़ी देर में आ जाएंगे… उन्होंने डॉक्टर से बात कर ली है... चिंता की कोई बात नहीं है।
ये सुनकर कंचन को गुस्सा आया और वो सोचने लगी कि कैसा बेटा है रोहन? इस वक़्त जब उसकी मां को उसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, और वह महाशय गायब हैं!! इस वक्त रोहन को यहाँ होना चाहिए था। वो अपनी मां की फिक्र करता भी है या नहीं??? कैसा लापरवाह बेटा है! मैं ही इस तकलीफ़ को अकेले क्यूँ सहूँ??
फिर इसका जवाब भी उसे अपने-आप मिल गया। वह ऐसा करती है क्योंकि कंचन को पैसों की ज़रूरत है। यह बात वो जानती थी कि ये नौकरी वो पैसों के लिए कर रही है लेकिन कहीं न कहीं उसे हेमलता जी की बहुत फिक्र भी थी। यह बात वो कब का भूल चुकी थी कि हेमलता जी के यहां वो सिर्फ़ पैसों के लिए काम करती है। एक अलग ही रिश्ता बन गया था हेमलता जी और उसके बीच। क्या था वो रिश्ता??? रिश्ते बड़े अजीब होते हैं, जिनसे रिश्ता होता है वो अजनबी बन जाते हैं और कुछ अजनबीयों से अपनेपन का रिश्ता। इसी वजह से तो हेमलता जी की तबीयत बिगड़ते ही कंचन को पहली बार इतना गुस्सा आया था। कंचन समझदार लड़की है इसलिए उसने रोहन पर गुस्सा करना छोड़ हेमलता जी के बारे में सोचना बेहतर समझा। उसने डिसाइड किया कि वो हेमलता जी को लेकर यहां बिल्कुल नहीं रहेगी। अजनबी शहर है, कुछ पता भी नहीं। अपना शहर अपना ही होता है। मुश्किल के समय भी अपनों के बीच रहने की तसल्ली होती है। एक बार हेमलता जी अस्पताल से निकल जाएँ, कंचन उनको लेकर वापस अपने शहर चली जाएगी। कहां वो इस अजनबी शहर में अजनबी लोगों के साथ फंस गई है
एक घंटे के बाद रोह हॉस्पिटल पहुंच गयाा। डॉक्टर से मिलकर हेमलता जी का हाल जाना। कंचन ने उससे कोई बात नहीं की। विवेक हॉस्पिटल से जा चुका था और डॉक्टर ने बताया 24 घंटे तक हेमलता को हॉस्पिटल में रहना होगा। रोहन डॉक्टर से बात करके बाहर निकल ही रहा था कि तभी बबलू ने कहा..
बबलू - भईया, आप दीदी को घर ले जाइए… रात भर सोई नहीं हैं.. फ्रेश होकर अस्पताल आ जाएंगी… उसके बाद मैं भी घर चला जाऊंगा…
रोहन और कंचन दोनों घर की ओर निकल गए। रास्ते में दोनों के बीच एक अजीब सी चुप्पी थी। रोहन यह सोच रहा था कि वह माँ और कंचन को क्या जवाब देगा कि वह अस्पताल क्यों नहीं पहुँच? क्यों उसका फोन “अनरीचेबल” आ रहा था?
रोहन जहां माँ कि तबीयत के साथ-साथ ये सोच रहा था कि वो माँ और कंचन को क्या जवाब देगा जब उससे रात में घर पर न होने कि वजह पूछी जाएगी
वहीं दूसरी और कंचन अपने और हेमलता जी के वापस जाने के फैसले को और मज़बूत करती जा रही थी ।
क्या कंचन हेमलता को लेकर हमेशा के लिए वापस चली जाएगी ?
क्या रोहन, एक बार फिर उसकी किस्मत उसे अकेला कर देगी?
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