ऑफिस बॉय से सीधा सीईओ बनाने के बाद पहले ही दिन ऑफिस में मेरे लिए गरमा-गरम नाश्ता करवा कर इन ऑफिस वालों ने सभी को बुलाकर एक दरावनी मीटिंग करवाई। और अब ये भी कम था कि मेरा इंटरव्यू लेने टीवी का एक बहुत बड़ा जर्नलिस्ट मुझसे मिलने आया।

 

हे प्रभु हे हरिराम कृष्णा। ये कहां फंस गया मैं। हलांकि मैं इस बात से डरा हुआ होने के साथ ही मन ही मन थोड़ा सा खुश भी था। आप ही सोचो, जिस आदमी को जिंदगी भर दिवाली की सोनपापड़ी समझा गया हो उसे अगर काजू कतली जैसी इज्जत मिले, तो उसे कितनी खुशी होगी। बस कुछ वही हाल मेरा था।

 

पर ये संजय तो जैसे कसम खाकर बैठा था कि मुझे खुशी नसीब ही नहीं होने देगा। अभी खुशी के दो पल ही बीते थे कि संजय राव ने मुझे खुशी के बागीचे से निकालकर, डर के रेगिस्तान की गरम-गरम रेत में फेंक दिया।

 

संजय राव (नकली खुशी के साथ व्यंग्य): जयदीप सरदेसाई, इंट्रेस्टिंग, कॉन्ग्रैचुलेशन्स सर। वह तो इंडिया के टॉप बिजनेस जर्नलिस्ट्स में से एक हैं। उनके इंटरव्यू हर बड़ी मैगज़ीन और हर न्यूज़पेपर के पेज 3 पर आते हैं। पर जयदीप सरदेसाई से हमारे रवि सर बात कैसे करेंगे। मेरा मतलब… उन्हें आपकी स्पेशल कॉफी की रेसिपी जानने में कोई इंटरेस्ट नहीं है, कंपनी के लिए आपके प्लांस और ऐक्शन्स के बारे में जानना है। और हां, वह सवाल भी… इंग्लिश में ही पूछेंगे।

 

जानता था, मैं पहले से ही जानता था कि ये संजय सुधर ही नहीं सकता था। न जाने कौन सा जहर इसने अपने गले में स्टोर कर रखा है, जो हर बार ये मुझ पर उगलता रहता है। सच बताऊं तो ये संजय राव मेरी लाइफ का दुशासन बन चुका था, चीर हरन को हमेशा तैयार!!

 

मीटिंग रूम में एक बार फिर 2 मिनट का सन्नाटा। मुझे लगा ये सन्नाटा इन सभी ने मेरी मैय्यत पर एडवांस में ही रख लिया है। मुझे मेरी 13वीं पर सभी लोग खाना खाते हुए दिखने लगे। तब भी ये संजय पक्का यही बोलेगा कि सब्जी में पनीर तो दिख ही नहीं रहा।

लेकिन फिर सन्नाटे को चीरती हुई आवाज अनीता वर्मा की थी।

 

अनीता: See, looking at what’s been happening recently, it seems that this Jai Singh might take advantage of our company's situation to boost his reputation लेकिन अच्छी बात यह है कि हम पांचों के अलावा बाहर का कोई भी इंसान इस स्थिति के बारे में नहीं जानता है। और मुझे लगता है कि यह अच्छा है।

 

"हां लेकिन अब कर भी क्या सकते हैं। क्योंकि उनसे मिलना तो पड़ेगा ना!" एकदम से सभी लोगों ने मुझे घूरकर देखा, वो चौंक गए कि क्या वाकई मुझे अनीता की इंग्लिश में बोली हुई बात समझ आई थी। जबकि मुझे उसकी बात का सिर-पैर कुछ समझ नहीं आया था। मैंने तो बस यूं ही बोल दिया। क्योंकि एक तरफ तो मैं यह सोचकर खुश था कि मेरा भी इंटरव्यू होगा, टीवी पर आऊंगा, अखबार में मेरी फोटो छपेगी, वगैरह वगैरह, लेकिन वहीं फिर मेरी हालत यह सोचकर खराब हो रही थी, कि आखिर इतने बड़े जर्नलिस्ट के सवालों का मैं जवाब क्या दूंगा। तभी रमेश ने कहा 

रमेश: You’re right Anita, इस समय हमें अपनी आपसी समस्या को साइड में रखकर एक साथ कुछ सोचना होगा। For the sake of the company. 

 

अनीता मैडम तो देवमानुस निकली यार। उस समय मुझे लगा कि जैसे इन दोनों महान आत्माओं की इस कंपनी में ज़रुरत ... ज़रुरत से ज़्यादा है

बाकी सब लोग भी उनकी बातों से सहमत थे। संजय राव भी।

 

शालिनी (चिंतित आवाज़ में लेकिन स्थिर): सनी, तुम जाओ और उन्हें कॉन्फ़्रेंस रूम में बिठाओ, हम मिस्टर रवि को लेकर वहीं आते हैं।

 

 ये बोलकर शालिनी कपूर मेरी तरफ़ मुखातिब हुईं। जैसे बकरे की बलि चढ़ाने से पहले हर कोई उसे देखने आता है वैसे ही सब मुझे घेरकर खड़े हो गए। इस समय मेरा दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था कि पूरी दुनिया को इलेक्ट्रिसिटी प्रदान कर सकता था।

 

शालिनी (शांत आवाज़ में): घबराओ मत, इस इंटरव्यू में मैं भी तुम्हारे साथ रहूँगी... लेकिन उन्हें इंटरव्यू तुम्हारा करना है। इसलिए तुम्हें सावधान रहना होगा।

अब इन्हें कौन समझाए कि यही तो डर है, कि सबके सामने मेरी इज्जत की भजिया बनेगी। तभी अनीता मैडम ने अपने दिमाग के सारे घोड़े दौड़ाकर बोला।

 

अनीता (कड़क आवाज में): हमने जो कुछ भी अभी तुमसे बोला वो तो तुम्हें समझ आ ही गया होगा।

 

 रवि (डरकर): क्या बोला?

 

अनीता: अरे…  वही सब टेक्निकल टर्म्स जो अभी मीटिंग में बोले गए थे। याद हैं न वो? जैसे… ब्लॉकचेन, गिट, साइबर सिक्योरिटी, बग्स, टेक्निकल  वगैरह।

 

रवि: हं… हां… हां… हां, याद हैं।

 

अनीता: लेकिन ये जय सिंह तुमसे बस कुछ टर्म्स सुनकर ही चुप नहीं हो जाएगा। इसलिए तुम्हें पूरा कॉन्फिडेंस रखना पड़ेगा।

 

कैसे कैसे लोग रहते हैं यार यहां (विजय राज स्टाइल)? मुझे एक बात बताओ अगर मुझे इतनी आसानी से ये सब कुछ समझ आ ही जाता तो मैं सच में सीईओ नहीं होता? क्यों इन लोगों को मुझे बैठाकर ये सब समझाने की जरूरत पड़ती?

 

संजय राव: अगर किसी भी सवाल का जवाब समझ न आए तो नेक्स्ट बोल देना। ठीक है?

 

मैंने भी डरते हुए हां में सिर हिला दिया। तभी  रमेश अय्यर ने कहा कि हर सवाल पर तो नेक्स्ट नहीं कह सकते न? किसी का जवाब तो देना होगा। उसका कहना भी ठीक था।

अब तक मुझे पक्का विश्वास हो चुका था कि बुढ़ऊ ने मुझे जल्दी अपने पास बुलाने की पूरी तैयारी करी हुई है, बस किसी भी समय मेरा भी उपर का टिकट कटने वाला है। मैंने मन ही मन सोचा, बुढ़ऊ जिस दिन तू मुझे उपर मिल गया न, तुझे देसी घी में फ्राई करके खाऊंगा बिना डकार मारे।

 

ये सोचना ही था कि तभी नाश्ते की वजह से पेट में कुछ हरकत हुई और मुझे डकार आ गई। (बड़ी डकार की आवाज)

 

अनीता (गुस्से में): Shalini ma’am I am sorry but I don’t think that this will work. I mean look at him, look at his behaviour. It’s ridiculous, disgusting. यह वहां इंटरव्यू के बीच में डकार......

 

शालिनी (शांत आवाज में): अनीता !! Behave तुमने अभी कहा था कि हमें ये साथ में करना होगा।

 

अनीता (गुस्से में): लेकिन मैम..

 

शालिनी (थोड़ा परेशान और तनावग्रस्त): प्लीज अनीता... हमारे पास अभी इसके लिए समय नहीं है। और मिस्टर रवि, प्लीज  आपको अच्छे से बिहेव करना ही होगा। मीडिया के सामने कुछ भी उल्टी सीधी हरकत हमारी पूरी कंपनी की रेपुटेशन खराब कर सकती है।

(शालिनी सबको बताएगी कि इंटरव्यू में वो भी साथ होंगे)

 

मैंने पानी पीने के लिए जैसे ही ग्लास मुंह से लगाया, वैसे ही अय्यर को न जाने क्या हुआ, वो टेबल पर चढ़कर चिलाया।

 

अय्यर (उत्साहित): I have an idea...  जब भी रवि को... आई मीन रवि सर को जवाब देने में समस्या हो वो पानी पी लें, और यह हमारा कोडवर्ड होगा जिसे समझकर, शालिनी मैम उस सवाल का जवाब दे दें।

 

शालिनी: हां, ब्रिलियंट Idea अय्यर। ठीक है रवि?

 

 अब मरता क्या न करता? मैंने हां बोल दिया। तभी सनी फिर अंदर आया। यह बताने कि सब तैयार हैं। मैंने उसको अलग ले जाकर मेरे पास पानी की पूरी एक क्रेट रखने का बोल दिया।

 

शालिनी मैडम, अनीता मैडम, संजय सर और अय्यर मुझे लेकर कॉन्फ़्रेंस रूम की तरफ़ चल पड़े। वो आगे आगे तेजी से चले जा रहे थे लेकिन मेरे पैर कांपते रहे थे। लगा जैसे अभी लकवा मार जाएगा। कसम से बता रहा हूं, इस होनी को टालने का मेरे पास कोई बहाना नहीं था।

 

जयदीप: हैलो मिस्टर रवि, इट्स नाइस टू मीट यू।

 

 जय सिंह ने मेरी तरफ़ हाथ बढ़ाया। मेरी आंखों के आगे अंधेरा वैसे ही छा रहा था और बाकी कुछ कसर उस कैमरामैन ने पूरी कर दी थी। मैंने बहुत हिम्मत जुटाकर उसका हाथ कसकर पकड़ लिया। मेरे हैंडशेक का तरीका उसे थोड़ा पसंद आया। अब उसे कौन बताए, मैंने खुद को खड़ा रखने के सहारे के लिए उसका हाथ पकड़ा था।

 

हम दोनों जैसे ही बैठे उसने बातें शुरू कर दीं, मुझे समझ आ गया था, भले ही आज मैंने कोट पैंट पहनी हो, पर आज यह मेरी धोती ही खोलकर मानेगा।

 

जयदीप: मिस्टर रवि, मैं एक हिंदी पत्रकार हूं, इसलिए मैं अक्सर यही चाहता हूं कि मैं इंटरव्यू भी हिंदी में ही लूं, अगर आपको कुछ भी समझने में कहीं कोई समस्या आए, तो फील फ्री टू आस्क।

मैं पागल हूं क्या जो मैं तुमसे हिंदी का मतलब इंग्लिश में पूछूं, अरे मैं तो वो इंसान हूं जो हिंदी का मतलब फिर हिंदी में पूछ लेता हूं, वैसे भी यह इंग्लिश विंग्लिश मेरे बस की बाहर की बात है। चलो इसने खुद ब खुद मेरी एक बहुत बड़ी परेशानी दूर कर दी।

 

जयदीप: तो मिस्टर रवि, मैंने इससे पहले कभी आपके बारे में न तो सुना और न ही किसी अखबार या बिजनेस पेज के आर्टिकल में देखा और अब आपका नाम अचानक से इतनी बड़ी कंपनी के हेड के रूप में सामने आया। अभी तक आप क्या करते थे?

 

रवि: इसके पहले ही सवाल से मुझे समझ आ गया कि गुरु, आज तो मेरी धोती यह खोलकर ही मानेगा! लेकिन फिर मुझे याद आया कि मेरी पहली मीटिंग में ही मुझे लोगों ने अपना परिचय दिया था। मैंने बोला।

वो... वो आपकी गलती नहीं है, अक्सर हम बस उन्हें ही देखते हैं, जिसका चेहरा काम के साथ बाहर आता है लेकिन कोई भी काम एक आदमी से ही नहीं होता, उसके पीछे भी काफी लोग होते हैं। कितने ही इंजीनियर्स, रिसर्चर्स, मार्केटिंग पर्सन्स होते हैं जो एक टीम में काम कर रहे होते हैं। मेरा मानना तो यह है कि एक कंपनी में ऑफिस बॉय और वॉचमैन का काम भी बहुत जरूरी होता है। हां यह बात और है कि इन सभी को लोग नहीं जानते। बस ऐसा समझ लीजिए कि मैं भी एक ऐसा ही चेहरा था जो हमारे रेस्पेक्टेड अतुल सर के पीछे रहकर हर तरह से उनकी मदद करने की कोशिश करता था।

 

जयदीप: इंप्रेसिव, पर इससे पहले आपकी कोई वर्क प्रोफाइल तो होगी न? आप किस पोस्ट पर थे और किस कंपनी में?

 

ओह्ह्हो, यह तो पूरा निचोड़ रहा है, क्या करूं नेक्स्ट बोलूं या पानी पी लूं? नहीं, मम्मी ने सिखाया है कि मुश्किलों का सामना डटकर करना चाहिए। एक तो मम्मी की सीखें ही किसी दिन मारवा न दें। न जाने कहां से ऐसे मुहावरे लाकर मुझे सुना देती थीं। खुद के साथ कभी ऐसा नहीं हुआ होगा न। अगर होता तो समझ आती असलियत।

 

रवि: मैं, मैं सर को चाय बनाकर पिलाता था।

 

जयदीप (कन्फ्यूज़्ड): चाय बनाता था? मतलब?

 

रवि (कवर अप): मेरा मतलब है… मैं चाय बनाते बनाते उन्हें इंपॉर्टेंट प्रॉब्लम्स के सॉल्यूशंस सजेस्ट करता था। दरअसल मुझे चाय बनाना, पीना और पिलाना तीनों ही काम बहुत अच्छे लगते हैं।

 

जयदीप (हंसते हुए): ओह्ह, तो आप एक एडवाइजर और एक चाय वाले  हैं। यह तो काफी रेयर कॉम्बिनेशन है। तो अब कंपनी का रोल... क्या होगा? यहां सब चाय बनाते हुए ही काम करेंगे क्या? या कंपनी ही चाय बेचना शुरू कर देगी?

 

अच्छा, मेरी फिरकी लेने की कोशिश कर रहा है। एक बार गांव में मास्टर जी ने ऐसे सवाल पूछकर फिरकी लेने की कोशिश की थी, रात में उनके पजामे में बड़ा मेंडक डाल दिया था। अब यहां मेंडक तो नहीं है, इसलिए बातों से ही काम चलाना पड़ेगा।

 

"हमारे रेस्पेक्टेड पीएम पहले चाय बेचते थे। उनके पीएम बनने के बाद क्या पूरा देश चाय बेचने लगा है? जहां तक मुझे मालूम है, आप भी अभी यहां चाय नहीं बेच रहे रिपोर्टिंग करने आए हैं। वैसे ही स्विफ्टेक अब तक जो कर रही थी वही करेगी, जैसे करती थी वैसे ही करेगी, और हमारे ऑफिस के काबिल लोगों की मदद से और अच्छा करेगी।"

 

एक बार फिर कमरे में हंसी गूंजी, पर इस बार एक अंतर था, जय सिंह मुझ पर नहीं, मेरी बातों से खुश होकर हंस रहा था। पूरे दो घंटे चले इंटरव्यू में, जयदीप हर बॉल यॉर्कर डाल रहा था मेरा विकेट गिराने के लिए, और मैं हर बॉल पर हेलीकॉप्टर शॉट खेल रहा था। जब डिफेंस करने का मन होता तब पानी पी लेता था। आखिर में जिसका डर था जयदीप ने वही सवाल पूछ लिया।

 

जयदीप: सर आपका कंपनी को लेकर क्या विजन है? क्या बदलाव लाएंगे आप? कैसे इतनी बड़ी पोस्ट पर काम करेंगे?

 

अब क्या बोलूं? …क्या करूं। कैसे बताऊं, कि जिसकी जिंदगी में सब मिलकर जहर घोलने में लगे हों, उसके पास क्या ही विजन होगा? वैसे भी जो थोड़ा बहुत विजन था, वो तो तेरे कैमरामैन की फ्लैश ने पहले ही बंद कर दिया। अब क्या विजन? जब कुछ समझ नहीं आया तो मैंने पानी का एक घूंट पी लिया। फिर भी कोई बीच में नहीं बोला, उस समय बस एक ही सुपर पावर चाहिए थी...  मिस्टर इंडिया वाली , बस कुछ भी कर के यहाँ से गायब हो जाऊँ।

इसी टेंशन में मैंने पानी की पूरी बोतल एक बार में खाली कर दी। जैसे उसमें पानी नहीं, अंग्रेजी हो... शायद पहली बार में किसी ने देखा नहीं था। इसलिए इस बार शालिनी मैडम आगे बढ़ीं।

 

शालिनी: एक्चुअली, मिस्टर रवि का मानना है कि पहले वो छोटी छोटी प्रॉब्लेम्स को जड़ से खत्म करने के लिए काम करेंगे, क्योंकि यही वो प्रॉब्लेम्स होती हैं जो नेग्लेक्ट होने पर बहुत बड़ी हो जाती हैं, और हर चीज स्टेप बाय स्टेप हो तब ही बेस्ट रहती है जिसका आउटपुट भी सबके लिए बेनिफिशियल रहता है। इन द एंड, वी, द फैमिली ऑफ स्विफ्टेक जस्ट वांट टू से दैट मिस्टर रवि इज नॉट अलोन, वी ऑल आर ऑलवेज हियर टू हेल्प हिम। थैंक यू सो मच फॉर योर टाइम। नाउ वी हैव टू गो।

 

उफ़ उस दिन ऐसा लगा जैसे यमराज जी से आंखमिचौली खेलकर वापस आया हूं। बाल बाल बचा। घर वापस जाते हुए सोच रहा था कि कैसे पिछले थोड़े से समय में सब कुछ बदल गया था। जैसे किसी ने जादू कर दिया हो। बस यह पता चलना बाकी था कि यह नॉर्मल जादू है या काला जादू।

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