यह दिन सारी जिंदगी याद रहेगा, आज समझ आया कि कॉर्पोरेट में काम कर रहे इंसान को मजदूर क्यों बोला जाता है। अजीब सी फीलिंग थी, कभी-कभी लगता था कि यह सब जल्दी से खत्म हो जाए और जिंदगी फिर से नॉर्मल हो और फिर सुबह के नाश्ते, जूस और इतनी बड़ी गाड़ी में ऑफिस आने-जाने की सुविधा याद करके लगता कि यह भी बुरा तो नहीं है। शायद यह मेरे कुत्ते के गले की हड्डी जैसी हो गई थी जो न निकलती बन रही थी न ही उगलती। यही सब माइंड में चल रहा था तब हैप्पी की आवाज सुनाई दी।
उसने मुझसे कहा "आज तुस्सी पूरे फॉर्म में थे सर, रिपोर्टर बाउंसर पर बाउंसर मार रहे थे पर त्वाडे जवाब सेहवाग पाजी ते छक्के नाल स्टेडियम से बहार।"
मैंने सोचा यार कल तक तो यह हैप्पी, हैप्पिली मुझे रवि बोला करता था। मैं गाड़ी में पीछे क्या बैठा, भाई मेरा मुझे इज्जत देने लग गया। मुझे फील हुए गुरु की पैसे में ताकत तो होती है, दोस्त से भी इज्जत दिला देता है पैसा। लेकिन हैप्पी है तो अपना दोस्त ही, मैंने भी कह दिया,
“ओए हैप्पी ये क्या सुबह से सर सर लगा रखा है, पहले तो तेरे मुंह से गाली के बिना बात नहीं निकलती थी और अब सीधा सर।” इसके जवाब में हैप्पी ने कहा, (नरेटर की आवाज) हैप्पी: पहले तुस्सी एक ऑफिस बॉय थे और अब कंपनी के सीईओ। सनु सदी नौकरी प्यारी है सर।
ठीक है अगर ऐसा है तो, कंपनी के सीईओ का ऑर्डर है तू अब भी मुझे रवि ही बोलेगा। वरना समझ ले क्या कर सकता हूं अब मैं।
(नैरेटर की आवाज) हैप्पी: ठीक है सर।
नरेटर: दोबारा बोल।
(नरेटर की आवाज) हैप्पी: रवि… ठीक है रवि। (मुस्कराते हुए)
हैप्पी ने ऑफिस के साथ मेरी जिंदगी के बुरे दिनों में मेरा खूब साथ दिया था। मैं और हैप्पी हमेशा साथ ही लंच करते थे। लेकिन अब काफी कुछ बदल गया है। मैंने हैप्पी से बोला “अच्छा सुन… महिंदर और राजू को सर ही बोलने देना। बहुत मजे लेते थे… अब मेरी बारी आएगी।”
किसी महापुरुष ने बहुत अच्छा कहा है हर कुत्ते का दिन आता है। शायद मेरे दिन भी आ गए थे। कब तक के लिए यह कहना थोड़ा मुश्किल था। बचपन में गांव में एक पंडित ने कुंडली देखकर बोला तो था कि इस बच्चे के भाग्य में राज योग है। बहुत पैसा आएगा इसके पास। और अब देखा जाए तो पैसा तो भले अभी न आया हो लेकिन यह राज योग कब तक रहेगा कहना मुश्किल था।
अपने मोहल्ले में गाड़ी के घुसते ही मोहल्ले के बच्चे गाड़ी को घेरकर ऐसे खड़े हो गए जैसे मधुमक्खी के छत्ते पर मधुमक्खियां चिपकी होती हैं। और मुझे ऐसा लगा जैसे मैं उनकी रानी मधुमक्खी हूं। (अवाकवर पॉज) सॉरी राजा मधुमक्खी। हैप्पी ने जैसे तैसे उस मधुमक्खी के छत्ते से गाड़ी निकाली और बच्चे साथ में गाड़ी के पीछे पीछे दौड़ने लगे।
मैं घर पर पहुंचा तो देखा मेरे घर पर मेरे ससुराल वाले पहले से धावा बोल चुके हैं। मतलब आज तो घर पर ऑफिस से भी ज्यादा टाइट माहौल होने वाला था, क्या है कि मैं भले ही ऑफिस का सीईओ बैंकर शेर हो गया हूं, लेकिन घर पर माता शेर पर सवार हो ही जाती हैं।
हमारी शादी पर एक रसगुल्ले के लिए फूफा जी ने जो तांडव किया था उसके डर से मैं तुरंत बराबर वाली दुकान से रसगुल्ले लेकर ही घर में घुसा।
सुमन (उत्साह): लो ये भी आ गए। देखो जी कौन कौन आया है आपसे मिलने।
(रवि): hmm वहीी देख रहा हूं। ये लो रसगुल्ले लाया हूं फूफा जी के लिए।
एक सवाल पूछना था, ये कुछ भी लेते टाइम झूठ मूठ का मना करना ज़रूरी है क्या? जैसे फूफा जी ने बोला "अरे बेटा इसकी क्या ज़रूरत थी?" ज़रूरत थी खड़ूस, आज के दिन के ड्रामा का कोटा ऑफिस में ही पूरा हो चुका है, अब अगर घर पर किसी ने ड्रामा किया तो हाथ की नस काट कर, जहर पी लूंगा वो भी पंखे से लटक कर।
खैर, इतना कुछ कहना था मुझे पर जब मुंह खुला तो एक बहुत ही फेक सी हंसी ही निकली। बिल्कुल फूफा जी जैसी। (शॉक ऑफ रियलाइजेशन के साथ) "ओह माय गॉड!!! मैं फूफा जी जैसा बन जाऊंगा।" अगर ऐसा है तो रवि सिंघानिया अभी आकर मुझे फांसी पर लटका दे। तबी साला बोला... अरे नहीं नहीं... मैं गाली नहीं दे रहा हूं, एक्चुअली मेरी बीवी का भाई भी आया था न इसलिए... वो साला विनोद बोला।
वैसे भी उसे गाली देना गाली की बेज्जती है। हां तो साला बोला "जीजा जी अब तो आप बड़े आदमी हो गए हो, हम लोगों को भूल तो नहीं जाओगे न?" मैंने भी तपाक से बोल दिया "अपनी बुरी किस्मत कभी कोई भूल सकता है क्या?" बस मैंने ये नहीं गौर किया, कि मेरी बात खत्म होने से पहले पूरे घर में शांति फैल गई थी "वो... वो... तो मेरी सबसे बुरी किस्मत होगी न अगर आप सब को भूल जाऊंगा तो। हेहेहेहे (फेक लाफ)" उफ्फ यह तो सच में बहुत क्रेजी हो गया था।
मौत को छू कर टक्क (Tuck साउंड फ्रॉम माउथ) से वापस (नवाज़ुद्दीन स्टाइल से किक)। लेकिन आज एक बात अलग सी थी, सब के तेवर ज़रा बदले बदले लग रहे थे। सब मुझे कुछ ज्यादा ही प्यार और रेस्पेक्ट दे रहे थे। हमेशा मुझे काटने को आते मेरे ससुर जी तो जैसे मेरे फैन, एसी, कूलर सब बन गए थे। मेरे मन में "क्या से क्या हो गए देखते देखते" का रिपीट टेलीकास्ट होने लगा।
(हैप्पी टोन) एक बात बताऊं अच्छा भी बहुत लग रहा था। वो क्या कहते हैं हां आउट ऑफ द वर्ल्ड फीलिंग आ रही थी। तबी मुझे ध्यान आया कि मेरा बेटा दीपक, वो कहां है?
(रवि): सुमन, अंकित कहां है?
सुमन: वो तो बाहर अपने दोस्तों के साथ खेलने चला गया। मैं कहती रही कि मामा और नाना आ रहे हैं तेरे, लेकिन वो रुका ही नहीं। आप ने ही सर पर चढ़ा रखा है।
रवि (नकली गुस्से में): हां हां, इस बार देखना आएगा तो डाटूँगा, अरे इतने लोग घर पर आए हैं और वो अकेला चला गया।
चलो कोई तो सही समय पर घर से निकल लिया, पर नालायक मुझे भी बता देता।
सुमन: सुनिए आप बैठ जाओ मैं खाना लगा देती हूं। आज आपका फेवरेट मटन बनाया है।
ये सुनकर मैंने फिर से चेक किया, मैं सच में अपने ही घर आया हूं न? आखिरी बार मटन कब खाया था शायद याद भी नहीं। रोज लौकी, टिंडे और बैंगन खिलाने वाली औरत ने बिना हाथ पैर जोड़े मटन बनाया है। जिंदगी हो तो ऐसी वरना… (बोलते बोलते रुककर गला साफ करने का साउंड)। हां तो क्या कह रहा था मैं। हां… इन सब का ऐसा बिहेवियर देखकर लगा कि चाहे ऑफिस में कुछ भी हुआ हो पर ये सब ऐसे ही चलते रहने चाहिए । सच तो ये ही है कि जिस दिन रवि सिंघानिया आएगा ये सब भी फिर बैक टू नॉर्मल हो जाएंगे। चलो, ये सब तो बाद की बातें हैं अभी तो मटन और रोटी पर कॉन्सेंट्रेट करूं। मैंने जैसे ही थाली के सामने बैठकर पहला निवाला तोड़ा सुमन बोल पड़ी…
सुमन: अरे… रुको रुको, पहले खाना पूरा तो परोस लेने दो।
रवि: अब क्या बचा है?
मेरे सवाल के जवाब में सुमन बस मुस्कराई और किचन की तरफ चली गई। मैं कुछ समझ पाता उससे पहले ही (पॉज, शॉकिंग्ली) नहीं, यह हो ही नहीं सकता, मैं नहीं मानता, पिंच कर पिंच कर… (दर्द) आउच्छ। मेरी बीवी एक भगोने में मटर पनीर और एक प्लेट में अच्छे से सलाद लेकर आई है। यार मेरी शादी इसी औरत से हुई थी क्या? तो अब तक मैं जिसके साथ रहता था वो कौन थी? या यह कौन है? मुझे पता होता यह सब मिल जाएगा तो मैं कमल के फूल वाला सपना पैदा होने से पहले ही देख लेता।
खाना खाकर मैं हाथ धोकर उठा।
सुमन: खाना कैसा बना है?
नैरेटर: (नकली रोने की आवाज) अरे बस कर पगली रुलाएगी क्या? यार यह भी सही है, एक टेक्निकल एरर इतना कुछ कर सकता है। जिस अय्यर को सुबह मैं भर भर के कोस रहा था उसे अब मैं भर भर के दुआएं देने लगा।सब के जाने के बाद हम सोने के लिए लेटे। तभी सुमन ने बोला
सुमन (बहुत खुश होकर): सुनो जी, आज मैं बहुत खुश हूं।
रवि (नींद में बोलते हुए): क्यों, तुम्हारे मायके वाले आए इसलिए?
सुमन: नहीं, जी आप को इतनी बड़ी नौकरी मिल गई है ना, अब हम एक बड़ा सा घर लेंगे, गाड़ी लेंगे, नौकर चाकर रखेंगे…
बस फिर मेरे कानों ने सुनना बंद कर दिया। और मेरी सारी खुशी एक सुनामी में बह गई। सपने यह देख रही है, नींद मेरी उड़ रही है। अब क्या करूं? कैसे बताऊं कि कुछ दिनों में लंदन से वो बाप का बेटा आ जाएगा फिर इस जॉब को तो क्या पुरानी जॉब का भी कुछ नहीं पता। जितने प्यार से इसने आज मुझे मटन, पनीर और खीर खिलाई है उतने ही गुस्से में यह मुझे खाने में जहर खिला देगी। हे भगवान, अब क्या करूं?
जानने के लिए पढ़िए अगला भाग
No reviews available for this chapter.