सच कहूं तो ज़िंदगी पूरी रोलर कोस्टर राइड जैसी हो गई है, कभी ऊपर तो कभी नीचे। कब कौन सा मोड़ एक झटके में आपकी दशा और दिशा बदल दे, कुछ भी पता नहीं। पिछली रात न जाने कब नींद आई और सुबह उठकर जब अख़बार देखा तो आँखों पर यक़ीन ही नहीं हुआ। ये वही अख़बार है जिसे मेरे पढ़ने के बाद या तो खाने की थाली के नीचे लगा देते थे, या मेरे बेटे की किताब का कवर बना देते थे, या फिर रद्दी में बेच देते थे। अख़बार की रद्दी में भी रद्दीवाले भैया से 2 रुपये के लिए मोलभाव करना पड़ जाता था। लेकिन शायद आज के बाद ये अख़बार मेरे घर पर हमेशा संभाल कर रखा जाने वाला था। क्योंकि आज के अख़बार के बिज़नेस वाले पेज पर मेरी ही फोटो छपी थी। ऐसा पहली बार हुआ था। जब ये बात घरवालों को पता चली तो वे भी खुश हो गए। हेडलाइन छपी थी "रवि सिंह, स्विफ्टटेक सॉल्यूशन्स के नए सीईओ"। वाह क्या बात है।
मेरे ऑफिस जाने का समय हो गया था। फिर वही चमचमाती हुई ऑफिस की गाड़ी खड़ी थी। लेकिन मैंने साइकिल उठाई। नहीं भाई, घमंडी आदमी नहीं हूं। दूध लेने जाना होता है रोज़। तभी हैप्पी आया, उसने कहा कि दूध वो खरीद लाएगा और मुझे जल्दी तैयार होने को कहा। उसने बताया कि आज ऑफिस में चीन से कुछ लोग आएंगे किसी पुरानी डील के बारे में मीटिंग करने के लिए।
ये सुनकर मेरी आँखों के आगे चाँद, तारे और पूरा सोलर सिस्टम नाचने लगा। माना मैं हर प्रोडक्ट चीन का इस्तेमाल करता हूँ, मगर ये तो डायरेक्ट चीन से ही कॉन्टैक्ट करवा रहे हैं। अभी तक तो बस ऑफिस में ही मेरी इज्जत उछाली जा रही थी, पर अब मेरी इज्जत के फजीते इंटरनेशनली उड़ने वाले थे। ऑफिस का रास्ता मुझे श्मशान का रास्ता लगने लगा। तभी एक भ्रम ज्ञान की अनुभूति हुई कि एक टेंशन को भूलने का सबसे अच्छा रास्ता है दूसरी टेंशन अपने सिर पर रख लो। पहली टेंशन ऐसे भागेगी जैसे भगवान को देखकर भूत। इन्हीं सब ख्यालों में उलझा हुआ मैं ऑफिस पहुँचा।
जब ऑफिस में एंटर हुआ तो सब मुझे ऐसे देखने लगे जैसे हॉस्पिटल के डेथ बेड पर लेटे आदमी को उसके घरवाले आखिरी बार देखते हैं। मैं जैसे-तैसे अनीता मैडम के ऑफिस के सामने तक पहुँचा। तभी अनीता मैडम ने फिर से अपने चांदी रूप में आते हुए कहा,
अनीता: "ओह, सॉरी सर, असल में हमें नहीं पता था कि इस ऑफिस में अब यूनिफॉर्म अनिवार्य कर दी गई है। कल से हम भी यही एक जोड़ी कपड़े रोज़ पहन कर आया करेंगे।"
देखा! कल यही अनीता मैडम मुझे इंटरव्यू में बचाने के लिए आइडियाज़ दे रही थीं और आज ये फिर सबके सामने गुस्सा कर रही हैं। पंकज भाई सही कहते हैं कि "वो स्त्री है, कुछ भी कर सकती है।" अजीब है यार, एक तो खुद ही जबरदस्ती सीईओ बना दिया और अब खुद ही मुझे ढोल की तरह बजाए जा रहे हैं। मुझे तो नहीं बनना था सीईओ वीईओ। किसी और को बना दो। कौन सा उस बूढ़े की आत्मा वापस आ जाएगी।
खैर, वहाँ से निकलकर मैं अपने नए केबिन में जाकर बैठ गया। एक तो इतनी बड़ी ऑफिस में मेरे लिए करने को कुछ काम नहीं था, इसलिए मैंने सोचा खाली बैठने से अच्छा है सफाई ही कर लूं। मैंने कपड़ा उठाया और ऑफिस की सफाई करने लगा। मैं टेबल साफ कर रहा था कि शालिनी मैडम अंदर आ गईं।
शालिनी (हैरान): "अरे रवि! ये क्या कर रहे हो?"
"सफाई!"
शालिनी (थोड़ी चिढ़कर): "छोड़ो इसे, छोड़ो। तुम्हें समझ नहीं आता क्या कि अब तुम इस कंपनी में ऑफिस बॉय नहीं, बल्कि इस पूरी कंपनी के सीईओ हो।"
"पर मैडम, मुझे तो बस यही काम आता है।"
शालिनी: "तो सीईओ का काम सीखो। और तब तक प्लीज ये सब मत करो। (रुककर) अच्छा, चलो अब सबसे पहले अपना ये कोट उतारो।"
क्.. क्... क्क्क्... क्या कहा आपने”
मतलब मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गई। मैं जानता हूँ मैडम के पति नहीं है, मैं भी दिखने में ठीक ठाक हूँ, पर मैं उस तरह का आदमी नहीं हूँ। मैं अपनी बीवी से बहुत प्यार करता हूँ। और मेरी पत्नी सुमन भी तो मुझसे बहुत प्यार करती है. मैं उसके सामने क्या मुँह लेकर जाऊंगा। लेकिन एकदम से आज शालिनी मैडम को हुआ क्या। क्या मेरे सीईओ बनते ही इन्हे मुझसे प्यार-व्यार हो गया है क्या।
शालिनी: "अरे उतारो, क्या हुआ? देखो, इसमें शर्माने की कोई बात नहीं है। हर कोई ये करता ही है।"
आज समझ आया कि लोग कॉरपोरेट लाइफ को गाली देते हुए भी... कभी छोड़ते क्यों नहीं हैं। मैंने डरते हुए पूछा
“हर… हर… हर कोई?”
शालिनी: "हाँ। हर कोई. चलो अब जल्दी करो हमारे पास टाइम बहुत कम है. "
"मतलब अतुल सर भी?"
शालिनी: "हाँ, कभी-कभी वो मुझसे भी हेल्प ले लेते थे। आखिरकार, हम दोस्त थे।"
"नहीं, ये सब सुनने से पहले मेरे कान क्यों नहीं फट गए? सब कुछ तबाह क्यों नहीं हो गया? अरे मुझे चक्कर आ रहे हैं।"
(अक्षय कुमार मीम स्टाइल) शायद शालिनी मैडम को समझ नहीं आ रहा था कि वो मुझे लाइफटाइम ट्रॉमा दे रही हैं। अब वो मेरे पास आकर मेरा कोट खोलने लगीं। मैं हड़बड़ाते हुए एक सांस में बोला,
'मैडम… मैडम… मैडम, मैं उस तरीके का आदमी नहीं हूँ। मुझे ये सब नहीं करना। मेरी शादी हो चुकी है और मैं एक पतिव्रता… मेरा मतलब पत्नीव्रता आदमी हूँ।'
ये सुनते ही शालिनी मैडम थोड़ा पीछे हटीं। मुझे लगा समझ गईं, पर उन्होंने मुझे ऐसे घूरा कि मुझे यमराज का भैंसा साक्षात दिखने लगा।
शालिनी (गुस्से में): 'तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है? मैं यहाँ तुम्हारे लिए कुछ नए कोट के ऑप्शन लेकर आई थी, जो तुम आज की मीटिंग में पहन सको। और तुमने सोचा कि मैं… छी… मेरे अभी इतने भी बुरे दिन नहीं आए हैं।'
माना मैं पागल हूँ, पर ये बुरे दिन वाली बात बोलनी ज़रूरी थी क्या? मतलब डांटने का तरीका कुछ ज़्यादा ही कैजुअल नहीं है? अभी तक जो कुछ भी हुआ वो एक तरफ और इस पल की एंबैरेसमेंट एक तरफ। आज लगा कि जिस UFO में बिठाकर संजय सर को प्लूटो भेजना चाहता था, आज उसी UFO से मैं खुद को किसी दूर की गैलेक्सी में फेंक आऊं। अब देखो, कोई भी नॉर्मल इंसान इस सिचुएशन में दो काम करेगा – या तो वो सच में माफी मांगेगा या चुपचाप इस सिचुएशन को सह लेगा।
पर अब तक ये तो समझ आ ही गया होगा कि मैं नॉर्मल तो नहीं हूँ। इसलिए मैंने वो किया जो कभी किसी ने अपने सबसे बुरे सपने में भी नहीं सोचा होगा। मैंने अपनी शर्मिंदगी को एक नकली हंसी से छिपाने की कोशिश की।
रवि (नकली हंसी): 'मैं… मैं तो मजाक कर रहा था, मैडम।'
शालिनी (गुस्से में): 'उफ़्फ़… बस चुप हो जाओ। ये कुछ सूट्स हैं, इनमें से कोई एक पहन कर मीटिंग के लिए आ जाना।'
शालिनी मैडम के ऑफिस से निकलने के साथ-साथ मेरी आत्मा भी मेरे शरीर से निकलती हुई दिखाई दी। एक यही तो थी जो मुझे बचाते आ रही थी। अब मेरी हालत वैसी हो गई थी जैसी एक लंगड़े से उसकी बैसाखी छीनने के बाद हो जाती है।
मेरा मन कर रहा था कि ऑफिस की विंडो से कूद जाऊं। पर नहीं कर सका, क्योंकि ऑफिस ही ग्राउंड फ्लोर पर था, तो कूदने का फायदा क्या होता? फांसी लगाने के लिए पंखा नहीं मिला, क्योंकि पूरे ऑफिस में सेंट्रलाइज्ड एसी फिट था। न ही जहर खा सकता था, क्योंकि मार्केट की हर चीज़ में अब मिलावट तो होती ही है। जहर में भी होगी। क्या फायदा, बस पेट खराब होगा, मरूंगा तो नहीं।
मुझे अहसास हुआ कि आज के समय में सुसाइड के ऑप्शन्स तेजी से खत्म होने लगे हैं। और शायद मेरी किस्मत में इस मीटिंग के दौरान हार्ट अटैक से ही मरना लिखा है। क्योंकि इस बार तो शालिनी मैडम भी मेरा साथ नहीं देंगी।
बोला था न, एक टेंशन को भूलने का सबसे अच्छा रास्ता है दूसरी टेंशन अपने सिर पर रख लो।
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