एक मुहावरा है, बकरे की अम्मा आखिर कब तक खैर मानेगी? आज मेरी हालत भी ऐसी ही एक बकरे की तरह हो गई थी, जिसकी कभी भी बाली चढ़ने वाली है। और अपनी अम्मा को मेरा मतलब जो मुझे बचा सकता था उसे मैंने खुद ही कसाईयों की टीम में कर दिया था, यानी अब मैं जिस तरफ भी जाऊं लाठी पड़नी तय थी। वो कहते हैं न भगवान जब मारता है तो कोई जगह नहीं मिलती छुपने की। फिर मैंने सोचा कि जब मारना ही है तो अच्छे से रेडी होकर क्यों न मारा जाए। मैंने एक अच्छा सा सूट उठाया और रेडी हुआ। रेडी होकर जब मैंने खुद को वॉशरूम के मिरर में देखा, सच में यार खुद से प्यार हो गया। वो कहते हैं न "यू आर नॉट अग्ली, यू आर जस्ट पुअर।", बिल्कुल सही कहते हैं। इन महंगे कपड़ों में मैं किसी बॉलीवुड के हीरो से कम नहीं लग रहा था। जब तक मैं वॉशरूम से वापस ऑफिस तक पहुंचता मुझे एक और मनहूस चेहरा दिख गया। समझे? नहीं? अरे हमारे सीएफओ संजय साहब।
संजय (व्यंग्य): रवि सर, आज बचने का कौनसा तरीका सोचा? आज तो आपको मीटिंग लीड करनी पड़ेगी। और अब तो क्लाइंट भी इंटरनेशनल है ऑफिस बॉय सनी नहीं इसलिए अंग्रेजी में बात करनी पड़ेगी। मुझे विश्वास है सर, आप अच्छे से सब कुछ हैंडल करेंगे, आफ्टर ऑल यू आर द सीईओ। ऑल द बेस्ट।
देखो, अगर इंसान की शकल अच्छी न हो तो उसे बात अच्छी करनी चाहिए और अगर वो इतना भी न कर पाए तो कम से कम चुप तो रहता ही है और एक ये इंसान… ये इंसान तीनों में से कुछ भी नहीं करता पर आज इसने न चाहते हुए भी मेरी एक मदद कर ही दी।
ओह्ह्ह थैंक यू संजय सर, क्या आइडिया दिया है आपने?
संजय (परेशान): क्या, क्या आइडिया दे दिया मैंने?
रवि: अभी आपने मुझे याद दिलाया न कि मैं इस कंपनी का सीईओ हूं, और सीईओ किसी को भी कुछ भी ऑर्डर दे सकता है, आपको भी है न ? तो सीईओ की हैसियत से मैं आज अपना पहला ऑर्डर आपको देता हूं। आज की मीटिंग आप लीड करेंगे। आप तो अंग्रेजी भी फर्राटेदार बोलते हैं।
संजय (डरा हुआ): मैं... मैं कैसे? मैंने तो कुछ prepration भी नहीं की है। इतने शॉर्ट टाइम में ...
रवि (आधिकारिक आवाज): तो जाइए prepration करिए, समय कम है। मुझे मीटिंग में कोई मिस्टेक नहीं चाहिए। वरना थोड़ी-थोड़ी अंग्रेजी मैं भी सीख रहा हूं, (कुछ याद करते हुए) क्या सीखा था कल... हां यू आर फायर्ड।
मैं डैम श्योर हूं अगर संजय सर को उस समय 3 मर्डर माफ होते तो वो तीनों बार मेरा ही मर्डर करते... पर अब मैं उस चिकने घड़े की तरह हो चुका था जिस पर अब किसी बात का असर नहीं होता। इसलिए मैं उनका रिप्लाई सुने बिना ही वहां से निकल लिया। वैसे भी कुछ ढंग का तो उस मुंह से सुनना इम्पॉसिबल सा ही है। वहां से निकलकर मैं सीधे शालिनी मैडम के पास माफी मांगने जा रहा था तभी बीच में अय्यर आ गया।
अय्यर (टेंस्ड): सर, सर मीटिंग कुछ समय में शुरू होने वाली है। और सिस्टम के प्रोग्राम में कोई समस्या आ गई है। यह ठीक से काम नहीं कर रहा है।
रवि (हड़बड़ाहट में चलते हुए): हां तो सही करिए ना।
अय्यर (टेंस्ड): सर वही तो प्रॉब्लेम है। फिक्स कैसे करूं समझ नहीं आ रहा । मुझे लगता है उसकी प्रोग्रामिंग में कुछ फॉल्ट आया है।
हां तो ये सब मुझे क्यों बता रहे हैं आप।
अय्यर (चलते हुए रुक जाता है): क्योंकि आप बॉस हैं।
रवि (रिफ्लेक्स एक्शन): कब बना?
अरे यार एक तो शायद मैं ये कभी याद नहीं कर पाऊंगा कि अब मैं ही सीईओ हूं। न जाने कौनसा वो मुहूर्त था जब मैं सीईओ बना।
एक काम करो सिस्टम को पीछे से दो लगाओ।
जब कॉफी मशीन नहीं चलती थी तब मैं यही करता था तो वैसे ही चलने लगती थी। न जाने अय्यर ने मेरी बात का क्या मतलब निकाला। वो चीखता हुआ बोला।
अय्यर (बहुत उत्साहित): Wow…. ब्रिलियंट सर, आप जीनियस हैं। मैं उस प्रोग्राम में पीछे एक कोडिंग करना भूल गया था जिससे उसे इंटरनेट सपोर्ट नहीं मिल रहा था। मैं अबी करता हूं, आप अमेजिंग सर हैं।
पता नहीं मैं क्या बोल देता हूँ और लोग क्या समझ लेते हैं यार... बस कैसे भी कर के मेरी सीईओ-गिरी चल रही है. देखो कितने दिन चलती है.
ये सब सोच ही रहा था की मेरी नज़र शालिनी मैडम पर पड़ी. मुझे उनसे सॉरी कहना था.
रवि (पछतावे की आवाज): मैडम सॉरी। प्लीज मुझे माफ कर दीजिए।
शालिनी: कोई बात नहीं। तुम जाकर मीटिंग की तैयारी करो।
रवि (पछतावे की आवाज): मैडम आप गुस्सा तो नहीं हो?
शालिनी: नहीं, अभी ये सब तुम्हारे लिए नया है ये सब गलतियां हो जाती हैं। पर आगे से ध्यान रहे।
रवि (आराम से और खुश): थैंक यू मैडम। थैंक यू।
शालिनी: अब जाओ और अय्यर से बोल दो कि कुछ समझा दे। मीटिंग में आलू जैसे बैठा नहीं रहना होगा। बोलना भी पड़ेगा।
एक बात तो है, शालिनी मैडम स्वीट, सपोर्टिंग और अंडरस्टैंडिंग चाहे जितनी भी हो लेकिन उन्हें एक्जांपल देना नहीं आता। ये क्या एक्जांपल हुआ आलू जैसा? अरे स्टैचू जैसा बोल दो, डमी जैसा बोल दो पर नहीं उन्हें तो आलू जैसा ही बोलना है... लेकिन कुछ भी कहो मेरे सिर पर से एक बहुत भारी बोझ कम हो गया था। इसलिए मैं भी वापस जाने के लिए मुड़ा। फिर शालिनी मैडम को यूँ ही छेड़ने का मन हो गया तो मुड़ कर पूछ लिया....
रवि (हिचकिचाहट): मैडम… मतलब… वो… क्या अतुल सर भी आलू की तरह.......
शालिनी (इरिटेटेड लेकिन गुस्से में नहीं): गेट आउट।
रवि (घबराकर): ओके… ओके मैडम… मैं जाता हूं… सॉरी…
मुझे ख़ुशी थी कि मैं शालिनी मैडम से इस तरह से बात कर सकता हूँ, और उनका मुझे गेट आउट कहना, सीईओ के लिए नहीं बल्कि रवि सिंह जैसे नए लड़के के लिए ही है. आखिर मुझे उनसे अब हर रोज़ काफी कुछ सीखना भी तो है. शी इस लाइक माय गुरु।
लेकिन उन्होंने मुझे मीटिंग के लिए बोल कर मेरी टेंशन बढ़ा दी थी. तो मैं सीधा अय्यर सर के ऑफिस में पहुंचा।
रवि (डरा हुआ): अय्यर सर, प्लीज मुझे बचा लीजिए। मैं ये मीटिंग नहीं कर पाऊंगा। मैं कैसे करूंगा? मुझे तो कुछ मालूम भी नहीं है। मैं वहां क्या बोलूंगा? क्या समझूंगा? क्या डील करूंगा? ये मीटिंग कैंसिल करा दीजिए। कुछ भी करा दीजिए मुझे बचा लीजिए।
अय्यर (चिंतित): डॉन्ट… डॉन्ट वरी सर, हम मिलकर कोई सॉल्यूशन ढूंढते हैं।
आज हम दोनों ने दिमाग के घोड़े इतनी तेज़ दौड़ाए कि अगर कोई इन घोड़ों पर बेटिंग करता तो एक ही बेट में मिलियनेयर हो जाता। थोड़ी देर सोचने के बाद अय्यर सर बोले।
अय्यर: हां… आइडिया मीटिंग में आप बिल्कुल शांत रहना। मैं बोल दूंगा कि आपने एक्स सीईओ की मेमोरी में मौन व्रत रखा है। आप बस बात जो भी करो इशारों में करना। जो कुछ भी बोलना होगा मैं बोल दूंगा।
वाह क्या आइडिया निकाला है। मैं कुछ बोलूं नहीं और ये ऑफिस वालों के सामने कुछ बोल नहीं पाता तो ऑफिस के बाहर के लोगों के सामने क्या ही बोलेगा। इस मीटिंग की तो आज ढंग से लगने वाली है। ये तो वही बात हुई… अंधों में काना राजा... इसलिए इस आइडिया को मैंने वैसे ही ड्रॉप कर दिया। जैसे क्रिकेट मैच में पाकिस्तानी फील्डर बैट्समैन के कैच ड्रॉप करते हैं। मैं ये सब सोच रहा था कि तभी सनी ने अंदर आकर बताया कि मिस्टर चिंग आ चुके हैं। शालिनी मैम ने मुझे कॉन्फ़्रेंस रूम में बुलाया है। मैं उठा तो मेरे पैरों ने मेरा साथ देने से मना सा कर दिया, मेरी आंखों के सामने न जाने कैसे कैसे डरावने सीन आने लगे बिल्कुल राम गोपाल वर्मा की मूवी के जैसे। इतना डर तो तब भी नहीं लगा था जब बचपन में मम्मी बोलती थीं कि घर आओ कुछ बात करनी है। मुझे अपनी ज़िंदगी भर के पाप याद आ गए। न जाने किस पाप की सज़ा थी ये। जो भी हो, पर अब जाना तो था ही... इसलिए मैं धीरे धीरे कदमों से आगे बढ़ा और कॉन्फ़्रेंस रूम में घुस गया। एक तो फिर वही नज़रें। मन में आया यार 100 200 एक्स्ट्रा लेलो पर हर एंट्री पर ऐसे देखना बंद कर दो... लेकिन ग़लती उनकी नहीं थी, मैं खुद अपनी हर एंट्री पर मेक श्योर करता भी था कि सबकी आंखें मुझ पर जम जाएं और बिलीव मी इट वॉज़ नॉट फॉर गुड रीज़न्स।
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