अपनी माँ की कसम मुझे अभी भी नहीं पता कि वो उस खाने का स्वाद था या इतनी खातिरदारी होने की खुशी लेकिन मेरा मन एक बात कह रहा था “है जन्नत यहां” (गाने की तरह जैसे जन्नत से)। और तब मुझे इन अमीर लोगों की एक समस्या समझ में आई, बेचारे न जाने कैसे इन छुरी कांटों से खाना खाते हैं। मुझसे तो सही से पकड़ी भी नहीं जा रही, तब मैंने सोचा कि हटाओ यार, जितना जज ये मुझे पिछले कुछ घंटों में कर चुके हैं उससे ज्यादा जज क्या ही कर लेंगे। मैंने चाकू चूरी एक तरफ रखकर खाना शुरू किया। तभी अनीता मैडम ने मुझे रंगे हाथ मेरा मतलब है गंदे हाथ पकड़ लिया।

 

Huhhh…These mannerless morons will lead the company now. I wonder where this company will go now? Ravi…aa Ravi sir… मीटिंग रूम में सब आपका वेट कर रहे हैं। जब आपका नाश्ता खत्म हो जाए आ जाइगा।.

 

रवि (एक सेकंड के लिए चुप, मुंह भरा हुआ और अजीब तरह से): हां चलो चलो, आता हूं मैं।

 

अनीता मैडम की बात का मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगा, लगता भी कैसे, जो कुछ भी उन्होंने कहा सब सिर से बाउंसर की तरह निकल गया। उनके जाने के बाद मैं अपने हाथ धोकर मीटिंग रूम की तरफ चल पड़ा। जैसे ही मैंने मीटिंग रूम का दरवाजा खोला। वहां बैठे सब लोगों ने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे मैं अपनी पैंट पहनना भूल गया हूं। उनकी आंखों के सीटी स्कैन से डार्कर मैंने जब अपनी तरफ देखा तब मुझे रियलाइज़ हुआ कि मैं नाश्ते की ट्रे साथ ही ले आया हूं। उस मोमेंट में लगा जैसे इसी जूस के ग्लास में नाक दबाकर मर जाऊं। तब्ही संजय राव की आवाज ने वहां फैले सन्नाटे को तोड़ा।

 

संजय राव: सीईओ सर को शायद खुद ही अभी तक बिलीव नहीं हो रहा है कि वो अब एक ऑफिस बॉय नहीं हैं, इतनी बड़ी कंपनी के सीईओ हैं। हैं न रवि… मेरा मतलब रवि सर।

 

 मन तो कर रहा था कि इस सीएफओ को किसी यूएफओ में बिठाकर ज्यूपिटर पर छोड़ आऊं। नहीं, नहीं, प्लूटो पर। हालांकि उन्होंने जो कुछ भी कहा था वो सच भी था मुझे खुद अभी तक इस सब पर विश्वास नहीं हो रहा था। लग रहा था जैसे ये सब बस एक सपना है। हां, खूबसूरत या डरवाना ये कहना मुश्किल है लेकिन इस समय तक एक बात मुझे समझ आ चुकी थी कि ये गधे सच में मुझे सीईओ मान चुके हैं इसलिए मैं किसी की भी खुजली का जवाब उंगली करके दे सकता हूं।

 

रवि (व्यंग्यात्मक रूप से): "संजय सर, खाने को फेंकना मुझे सिखाया नहीं है। क्या है कि सब इसी के लिए तो घिस रहे हैं… मैं… ये सब… और शायद आप भी, नहीं?" 

 

मुझे यकीन है अब तक संजय सर अपने दिमाग में मेरा मर्डर करके मेरी लाश को भी कहीं छुपा चुके होंगे। ऐसा सिर्फ मैं नहीं पर उनकी आंखें भी कह रही थीं जिन्हें वो हंसी से छुपा रहे थे। मुझे अब पूरा विश्वास हो गया था कि असली रवि आकर मेरी ये नई नौकरी खाएगा और पुरानी नौकरी ये जहरीला अजगर संजय राव। मैंने भी फिर वैसा ही सोचा जैसे सोचकर इस देश का 90% आदमी किसी समस्या से डील करता है और वो है “अब जो होगा सो देखा जाएगा” इसलिए फिर मैं चुपचाप एक कोने में जाकर खड़ा हो गया। मुझे कोने में खड़ा देखकर शालिनी मैडम ने सिंघानिया साहब की चेयर की तरफ इशारा करके बोला…

शालिनी: अब से यही तुम्हारी जगह है मिस्टर रवि। यहां आकर बैठो ताकि हम मीटिंग शुरू कर सकें।

 

बाइ गॉड यार, उस कोने से चेयर तक चलने में मुझे इतनी मेहनत करनी पड़ी जैसे ऑफिस के सभी लोगों की एक महीने की ग्रीन टी एक सांस में पीनी पड़ी हो पर खुद को संभालते हुए मैं जैसे तैसे चेयर तक पहुंचा।

 

इतनी टेंशन "हे भगवान" अब पता चला अतुल सिंघानिया के सारे बाल क्यों झड़ गए थे। आज पहली बार मेरे मन में उस इंसान के लिए सिम्पैथी आई थी। कुछ दिनों में मेरे बालों का भी राम नाम सत्य होना तय था। या तो टेंशन से या इन सब के जूतों से। क्योंकि रवि सिंघानिया आकर इन्हें सब कुछ बताएगा लेकिन फिर वही… हटाओ जो होगा सो देखा जाएगा।

 

एक बात तो बिल्कुल क्लियर हो गई थी जिसने भी ये कहावत कही थी वो पक्का अंधा ही होगा। क्योंकि इसके बाद जो होता है वो कभी किसी से नहीं देखा जाता।

 

खैर मैं चेयर पर बैठा ही था कि शालिनी मैडम फिर उठ खड़ी हुईं। मेरा मन तो किया कि इनकी कुर्सी को चेक कर लूं कहीं कोई कील वील तो नहीं निकली हुई है कि हर दो मिनट बाद उठ खड़ी होती हैं।

 

शालिनी: लेडीज़ एंड जेंटलमैन, हम यह मीटिंग करने जा रहे हैं ताकि हम अपने नए सीईओ मिस्टर रवि सिंह को हमारी कंपनी के काम, एथिक्स और टर्म्स से परिचित करा सकें,  लेकिन इससे पहले हमें अपने एक्स सीईओ लेट मिस्टर अतुल सिंघानिया के लिए 2 मिनट का मौन रखना चाहिए।

 सभी लोगों के शांत होते ही मेरे कानों में एक हंसी गूंज पड़ी। और ये हंसी उस बुढ़ौ अतुल की ही थी जैसे वो मुझसे कह रहा हो, क्यों भाई? कैसी लगी? आ गए स्वाद? (अभिषेक उपमन्यु स्टाइल)

 

2 मिनट के शांति के बाद शालिनी मैडम ने फिर बोलना शुरू किया।

 

शालिनी: अब हर डिपार्टमेंट का हेड एक एक करके अपने डिपार्टमेंट का काम और लोगों को इंट्रोड्यूस करे।

 

जिसका डर था वही हुआ। सबसे पहले अनीता मैडम खड़ी हो गईं।

 

अनीता (गुस्से से भरी आवाज में): गुड मॉर्निंग एवरीवन, (पॉज, गहरी सांसें) रवि सर, मैं अनीता मार्केटिंग डिपार्टमेंट की हेड हूं, हमारा काम एडवरटाइजिंग, मार्केट रिसर्च करना, मार्केटिंग स्ट्रेटजीज बनाना वगैरह है और मेरे डिपार्टमेंट में 17 लोग काम करते हैं। मेरे अलावा मेरे डिपार्टमेंट में दीपक, रोशनी, रोहित, अभिषेक, ऋषि…

 

बस फिर न जाने किसने क्या क्या बोला… मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया। एक बात तो पक्की थी सब इतने गुस्से में कुछ न कुछ बोल रहे थे जैसे उनके मुंह से शब्द नहीं मिसाइलें निकल रही हों, और उनके लिए मैं ही हिरोशिमा और मैं ही नागासाकी था।

 

इन सब से ऊपर जब सीएफओ संजय राव ने बोलना शुरू किया तब तो ऐसा लगा कि या तो भगवान से भी गलती हो सकती है या फिर इसे बनाने में 100% शैतान का हाथ है, और हाथ से भी ज्यादा उसकी जुबान। मैं भी इतने सालों से इन घोंचुओं को देखकर इतना तो सीख ही गया कि चाहे कुछ समझ आए या न आए पर सर हां में हिलाते रहो। इसलिए मैंने इतना सर हिलाया इतना सर हिलाया कि मेरा सर कार की डैशबोर्ड पर रखे बॉबलहेड टॉय की तरह हो गया।

 

अब आखिर में अय्यर साहब की बारी आई। 

 

अय्यर: हेलो… उम्म… मेरा नाम रमेश अय्यर है और मैं टेक्निकल डिपार्टमेंट लीड करता हूं। मेरा काम… मेरा मतलब… मेरे डिपार्टमेंट का काम ब्लॉकचेन मैनेज करना, गिट प्रॉपर रखना, साइबर सिक्योरिटी… और हां… बग्स चेक करना और उन्हें दूर करना भी मेरे डिपार्टमेंट का काम है ताकि कोई टेक्निकल एरर न आ जाए।

 

इसकी बोली सारी बातें मेरे सिर से ऐसे गुजरी जैसे ऑस्ट्रेलियन बॉलर की बाउंसर बैट्समैन के सिर से गुजरती हैं पर ये टेक्निकल एरर !! ये टेक्निकल एरर की बात तो रवि सिंघानिया के समय भी सामने आई थी। ओह हां !! मतलब यही है वो जिसकी वजह से मैं इस कुर्सी पर बैठा हूं जिसमें गेम्स ऑफ थ्रोन्स से भी ज्यादा चाकू चुभ रहे हैं। यही वो इंसान है जिसकी वजह से हमारे प्यारे बुढ़ौ भगवान को प्यारे हो गए। (नकली गुस्से में) तू देख अय्यर जिस दिन मैं वापस से ऑफिस बॉय बना उस दिन तेरी कॉफी में स्पेशल वाला जामालगोटा मिलाकर तुझे लूज मोशन कराऊंगा। फिर जैसे मैं इस कुर्सी पर बैठा हुआ फील कर रहा हूं न, तू वॉशरूम में बैठा फील करेगा।

 

3 घंटे चली इस मीटिंग में ये पता लगाना थोड़ा मुश्किल था कि इन तीन घंटों में इन्होंने मुझे पकाया ज्यादा है या सुनाया ज्यादा है। वो तो भला हो उस सनी का जो भागता हुआ आया और बोला कि… 

‘सर कोई मिस्टर जयदीप सरदेसाई आए हैं, मेरा इंटरव्यू लेने”

 

संजय राव: जयदीप सरदेसाई? ये तो इंडिया के टॉप बिजनेस जर्नलिस्ट हैं। इनका इंटरव्यू टॉप मैगजीन्स और हर न्यूजपेपर के पेज 3 पर छपता है।


मैंने सोचा "जयदीप सरदेसाई !! इतना बड़ा आदमी!!! मेरा इंटरव्यू !!… इतनी खुशी… (नकली रोना) इतनी खुशी….. मुझे आज तक नहीं हुई". लेकिन ये पूछेगा क्या ?

 

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