विक्रम हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो गए हैं. आरव उन्हें लेकर घर लौट आया है. शर्मा परिवार के घर का जो दरवाजा कभी बंद नहीं होता था वो आज बंद है. अनीता ने डोर बेल बजाई. फिर भी कुछ मिनटों तक दरवाजा नहीं खुला. फिर माया ने दरवाजा खोला और विक्रम अंदर का नज़ारा देख कर दंग रह गए. बॉस दादी ने ढोलकी पर हाथ जमाये हैं, चेतन ने बांसुरी पकड़ी है, रचना ड्रम सेट कर के बैठी है और कौशिक के पास किबोर्ड है. विक्रम को देखते ही सब बजाना शुरू करते हैं और उनके बजाते ही बैकग्राउंड से गाना शुरू होता है..
कबीर- लौट आये दादू हॉस्पिटल से घर
अब नहीं मुझे किसी बात का डर
रोज़ सुबह मैं दादू साथ वाक पर जाऊंगा
उनके ही साथ साथ daliya खिचड़ी खाऊंगा
अब नहीं होने दूंगा उनको बीमार मैं
बिमारियों से लड़ने के लिए हो गया तैयार मैं
अब मुझे नहीं है किसी बात का डर
मेरे ब्रेव दादू हॉस्पिटल से लौट आये घर
ये कबीर ने दादू के लिए वैलकम सॉंग तैयार किया था. सॉंग पूरा होने के बाद वो दादू को भाग के गले लगा लेता है और रोने लगता है. सब लोग बच्चों के लिए तालियां बजाते हैं. विक्रम कबीर को चुप कराते हैं और उसे शाबाशी dete hain. कबीर ने अपने दादू के घर लौटने पर पूरा घर सजाया tha. उसने तो शाम में पार्टी भी रखी thi. ये सब उसने अपनी पॉकेट मनी से किया tha. पोते का खुद के लिए ये प्यार देख कर विक्रम की आंखें भर आती हैं. विक्रम दादा जी और दादी के पैर छूते हैं. सबसे गले मिलते हैं. विक्रम दादा जी को कहते हैं..
विक्रम- बड़ा चुन के नाम रखा है आपने इसका, एक वो कबीर थे जो दोहे लिखते थे और अब हमारा कबीर है जो सांग्स लिखता भी है और गाता भी है.
विक्रम की बात पर पूरा घर ठहाकों से गूँज uthta है. बच्चे धमाचौकड़ी मचा रहे the. एक के बाद एक मेहमान विक्रम से मिलने आ रहे the. कुछ देर neeche hall mein बैठने के बाद विक्रम को आराम करने के लिए कमरे में भेज दिया गया. कबीर उनसे खूब बातें करना चाहता tha लेकिन अभी उसे मना कर दिया गया. दादा जी विक्रम का हाल chaal लेने आये मेहमानों से बात cheet कर रहे the. आरव भी वहीं बैठा tha. इसी बीच उसे एक फोन आता है. जिसके तुरंत बाद वो बिना किसी को कुछ बताये वहां से निकल जाता है.
माया उसे जाते हुए देखती है. उसे ये अजीब लगता है कि इधर पापा हॉस्पिटल से लौटे हैं घर में मेहमान आ रहे हैं और आरव ये सब छोड़ कर बिना बताये कहीं चला गया. वो एक दो बार आरव को फोन भी करती है लेकिन वो फोन नहीं उठाता. घर में बहुत काम है उसे अनीता बार बार आवाज़ दे रही thi. मजबूरी में उसे किचन में जाना पड़ता है. वो किचन में भी यही सोच रही thi कि आखिर आरव कहाँ गया होगा. फिर वो उससे किया वादा याद करती है और ये कह कर मन समझा लेती है कि शायद कोई ज़रूरी काम से वो बाहर गया होगा.
राहुल अपने papa के साथ विक्रम ko dekhne आया है. वो उनकी रिपोर्ट्स देख कर बहुत खुश है. वो बताता है कि ऐसे केस में बहुत कम पेशेंट्स होते हैं जो इतनी जल्दी रिकवर कर जाते हैं. वो कहता है कि विक्रम की विल पॉवर बहुत स्ट्रांग है. इस पर दादा जी अपने बेटे की तारीफ शुरू कर देते हैं. निशा भी उनके पास बैठी हुई है. वो राहुल से शादी के बारे में बात करना चाहती है लेकिन phir usey lagta है कि ये वक्त ऐसी बात के लिए ठीक नहीं है. दादा जी राहुल के पापा को फॅमिली समेत शाम की पार्टी के लिए इनवाईट करते हैं. वो बताते हैं कि ये पार्टी कबीर ने दी है जहाँ उसके फ्रेंड्स और अपनी फैमिली ही रहेगी. राहुल के पापा और राहुल को ये सुन कर अच्छा लगा कि वो अपनी फैमिली पार्टी में उन्हें इनवाईट कर रहे हैं.
Shaam ko बच्चों के साथ मिल कर बॉस दादी भी पूरी बच्ची बनी हुई thin. बेटे के हॉस्पिटल से ठीक हो कर लौट आने की उन्हें इतनी ख़ुशी है कि वो भूल ही गयी ki उन्हें हाई शुगर है. वो बच्चों से लेकर खूब चोकलेट खा रही thin. अनीता उन्हें बार बार डांट रही thi लेकिन आज बॉस दादी किसी की सुनने वाली नहीं.
राहुल और उसके पापा चले गए aur phir अनीता की कुछ सहेलियां आई. Mrs. बत्रा aaj ये पार्टी मिस karne wali thin क्योंकि आज उन्हें किसी रिश्तेदार के यहाँ शहर से बाहर जाना पड़ा. अनीता अपनी सहेलियों से बात कर रही thi. निशा अपने कमरे में जा कर लेट गयी. माया सुशीला के साथ किचन में शाम की पार्टी की तैयारी में लगी हुई thi.
दादा जी टहलते हुए बाहर निकलते हैं, वो आज Vikram ke sahi salaamat ghar lautne ki ख़ुशी के मारे ek jagah बैठ नहीं पा रहे. घर में ऐसा माहौल बहुत दिनों बाद देखने को मिला है shayad isliye. लेकिन उनकी ख़ुशी उस समय फीकी पड़ जाती है जब वो सामने गेट पर एक मेहमान को देखते हैं. ये राजेश है. हाथ में फूलों का गुलदस्ता लिए वो में गेट पर खडा है. वो अंदर नहीं आ रहा, वहीं से हाथ हिला रहा tha.
दादा जी को देख कर वो अंदर की ओर aata है. दादा जी गुस्से में baahar bane servants रूम की तरफ आने का इशारा करते हैं. वो उन्हें डरा हुआ देख कर बहुत खुश tha. दोनों servants रूम में मिलते हैं. पिछली बार की तरह ही वो इस बार भी अपने पिता के पैर छूने के लिए झुकता है लेकिन दादा जी पीछे हो जाते हैं. वो फूलों का गुलदस्ता mez पर रखते हुए कहता है..
राजेश- “भाई इतने दिन बाद ठीक होकर लौटा है तो मैंने सोचा मिल कर आता हूँ. अंदर चलूँ क्या? सबसे मुलाक़ात भी हो जाएगी.”
ये Rajesh की मीठी सी धमकी thi. वो कहना चाहता tha कि वो अभी सबसे मिल कर सारे राज़ खोल देगा. दादा जी उसको बहुत ही गुस्से से dekhte हैं. वो कहते हैं…
दादा जी- राजेश क्यों हमारी जिंदगी में ज़हर घोल रहा है? कम से कम अपने बाप का तो लिहाज कर..
राजेश- बाप का? किसी का भी लिहाज क्यों करूं मैं? जिस परिवार ने मुझसे सब कुछ छीन लिया उसका लिहाज क्यों करूं मैं? अभी तो आपने kuch देखा kahan है. मुझे मेरा हिस्सा चाहिए नहीं तो इस परिवार को इतने हिस्सों में तोडूंगा कि फिर कभी जुड़ नहीं पाएगा. भईया की हालत हो देखते हुए मैंने तरस खा कर इतना इंतज़ार कर लिया. मगर अब नहीं कर सकता. आज से ठीक दसवें दिन मुझे मेरा हिस्सा चाहिए वरना इस परिवार को टूटता देखने के लिए तैयार रहना आप सब.
दादा जी- ये सब कर के तुझे क्या मिलेगा? मेरी बात मान यहाँ से चला जा. तुझे नहीं पता कि ये परिवार किन हालातों से गुजर रहा है.
राजेश- मुझे सब पता है. आप लोगों के आपसी झगडे से लेकर फैक्ट्री पर 50 करोड़ का कर्जा सब पता है मुझे. मगर उससे मुझे क्या? वो कर्जा मैंने नहीं लिया ना. मैं जब सब छोड़ कर गया था तब इतना नुक्सान भी नहीं हुआ था जितना आपके प्यारे बेटे ने कर्जा ले लिया. फिर भी उससे इतना प्यार और मुझसे नफरत.
दादा जी- क्योंकि तू हमें बर्बाद कर के गया था और विक्रम ने ये लोन अपने वर्कर्स को आबाद करने के लिए लिया था. तुझमे और उसमें यही फर्क है. वो सही कर के भी अफ़सोस करने से नहीं घबराता और तू गलत कर के भी बेशर्मों की तरह उसे सही बताता है.
राजेश- जिसे आप महानता maan रहे हो ना वो बेवकूफी है. बिजनेस में ऐसे इमोशनल फूल्स की कोई जगह नहीं. मुझे ये बिजनेस दे दो और देखो कि इसे कहाँ से कहाँ ले जाता हूँ.
दादा जी- एक बार दे कर देख लिया था. अब कुछ भी हो जाए ये गलती नहीं करूँगा. रही हिस्से की बात तो उस पर बात जरूर होगी बस सही टाइम आने दे. अभी तू यहाँ से चला जा. कहे तो तेरे आगे हाथ जोड़ दूं, पैर पकड़ लूं तेरे.
राजेश- अरे नहीं इतना भी नीच नहीं हूँ कि बाप को हाथ पैर जोड़ने पर मजबूर करूं. आप pareshan हो मैं उसी में खुश हूँ. बाकी आखिरी बार कह रहा हूँ अपना सही टाइम आप अपने पास रखिये, मुझे दस दिन में अपना हिस्सा या बिजनेस दोनों में से कुछ एक चाहिए. ये फ़ाइनल है, वरना इस परिवार के…
राजेश अपनी बात पूरी कर पाता इससे पहले कबीर wahan aa gaya. वो दादा जी से बॉस दादी की शिकायत करने आया था. राजेश ने उसे देखते ही अपने चेहरे के गुस्से को मुस्कराहट में बदल लिया वो उसके पास गया और उससे हेल्लो हाय करने लगा. कबीर ने पूछा कि वो कौन हैं जिस पर उसने बताया कि वो उसके दादू के दोस्त हैं. उनका हाल chaal पूछने आये थे. कबीर ने राजेश को शाम की पार्टी के लिए भी इनवाईट किया. जिसके जवाब में उसने कहा…
राजेश- मैं ज़रूर aata बेटा लेकिन तुहारे दादा जी की वजह से नहीं आ सकता. क्योंकि उनहोंने मुझे एक बहुत बड़ा काम दिया है. मुझे उसे पूरा करना है. मैं किसी दिन आऊंगा और फिर हम आइसक्रीम खाने चलेंगे.
राजेश जितना वक्त इस घर में था दादा जी की टेंशन उतनी ही बढ़ती जा रही थी. राजेश ने अपनी घडी में टाइम देखा और कबीर को बाय बोल कर जाने लगा. उसने दादा जी के हाथ में फूलों वाला गुलदस्ता दिया और कहा कि ‘याद से भईया को दे देना.’ दादा जी उसे जाते देखते रहे. उन्हें उस पर बहुत गुस्सा आ रहा था मगर वो कुछ bhi नहीं कर सकते थे.
बॉस दादी कबीर को ढूंढते हुए servants रूम में आ गयी थी. Unhone दादा जी की आँखों का पीछा किया तो उन्हें राजेश की जाती हुई पीठ दिखी. वो दादा जी के चेहरे से समझ गयीं कि ये उनका छोटा बेटा राजेश था मगर वो कुछ बोलीं नहीं. वो चाहतीं तो उसे आवाज़ दे कर कम से कम सालों बाद उसका चेहरा देख सकती थीं लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. अगर एक माँ अपने बेटे ka चेहरा ना देखना चाहे तो आप समझ सकते हैं कि us bete ke प्रति maa ke मन में कितनी गहरी नफरत होगी.
राजेश ने baahar निकलते ही फोन चेक किया तो आरव की 4 मिस्ड कॉल्स थीं. वो गाडी में बैठा और आरव को फोन लगाया. उसने आरव को फोन कर के ये कहा था कि वो कहीं फंसा हुआ है. प्लीज़ उसे आ कर पिक कर ले. बहुत ज़रूरी है. इसीलिए आरव सब छोड़ कर जल्दबाजी में bhaaga था मगर राजेश के बताये पते पर पहुँचने पर उसे वो वहां नहीं मिला. उसने कई बार राजेश को फोन किया मगर rajesh ne phone uthaya nahin. अभी राजेश ने फोन कर के usse कहा कि उसे कोई दोस्त मिल गया था वो उसी के साथ वहां से निकल आया है.
दरअसल राजेश कुछ देर के लिए आरव को घर से दूर भेजना चाहता था जिससे कि वो उसके घर जा कर अपने पिता को धमका सके. उसका मकसद पूरा हो गया था. आरव को राजेश पर गुस्सा तो आया मगर वो अभी अपने फायदे के लिए कुछ बोल नहीं पाया. आरव के मन mein ये भी चल रहा था कि कहीं राजेश उसे बेवकूफ तो नहीं बना रहा लेकिन फिर वो सोचता कि उसे ऐसा कर के क्या ही मिलेगा. उसके परिवार के राज़ बता कर वो साबित कर चुका था कि वो फेक नहीं है.
आरव वापस घर लौट आया था. अब घर में वो रौनक नहीं दिख रही थी. दादा जी चिंता में थे, बॉस दादी में भी सुस्ती आ गयी थी. Aarav apne room mein aagaya, jahan maaya pehle se thi. Maya ki aankhon mein usey kayi sawal dikh rahe the, jinse wo zyada der bhaag nahin sakta tha.
क्या राजेश सच में इस परिवार को तोड़ने में कामयाब हो जायेगा? क्या आरव वक्त रहते राजेश का प्लान जान पायेगा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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