महाराजा वर्मा चतुराई से प्रिया के मन में शंका पैदा करने की कोशिश करते हैं, जिससे प्रिया के मन में अमर से दूर जाने के ख़याल उमड़ने लगते हैं.. तभी अमर प्रिया के पास आता है और उसे दिलासा देता है कि वो प्रिया के लिए पूरी कायनात से लड़ जाएगा। प्रेम में इतनी ताक़त होती है कि वो सीधे-साधे इंसान को भी बाग़ी बना सकता है, और यहाँ बाग़ी बन रही थी प्रिया। अपने पिता महाराज वर्मा का पत्र पढ़ने के बाद, प्रिया यह समझ चुकी थी कि उसके पिता अमर को कभी नहीं अपनाएँगे। अपने पिता का बर्ताव प्रिया को उलझनों में डाल रहा था, इसलिए वह अमर के बारे में चाहकर भी नहीं सोच पा रही थी। पर जिनके रास्ते किस्मत ने जोड़े रखे हों, वे साथ हों या नहीं, इससे क्या फर्क पड़ता है।।
प्रिया कुछ वक्त के लिए बेकल खिड़की पर बैठी हुई थी। कभी उसे अमर की चिट्ठी देना याद आता, तो कभी अपने पिता का पत्र। थोड़ी देर आँखें बंद करने के बाद, उसके मन में अचानक एक छवि उभर आई—उस औरत की, जिसका सिर घूँघट से ढका हुआ था। पर प्रिया ने इस बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। कभी-कभी कायनात हमें इशारे करती है, हमारे सही और गलत फैसलों के लिए, पर हम उन संकेतों पर भरोसा नहीं कर पाते। इस वक्त प्रिया के साथ भी यही हुआ।
ख़ैर! प्रिया की आँखों में जैसे ही वह छवि आई, उसने अपनी आँखें खोलीं और अपना प्रिय वाद्य, बाँसुरी लेकर बैठी और उसे बजाना शुरू किया। इंसान जब किसी से कुछ कह नहीं पाता, तब वह कला का सहारा लेता है। हालाँकि हमने कला को कोई ख़ास महत्व नहीं दिया है, पर कला ने उस व्यक्ति का साथ कभी नहीं छोड़ा जिसने कला को अपनाया हो। ठीक वैसे ही, प्रिया ने भी अपनी वेदना जाहिर करने के लिए संगीत चुना। जैसे ही उसने बाँसुरी बजानी शुरू की, उसकी तेज़ चल रही साँसें नियंत्रण में आने लगीं, उसका बेकाबू मन फिर से उसके बस में होने लगा, और उसने फिर से अपने अंदर अमर के साथ रहने की उम्मीद जगा ली।
वहीं दूसरी तरफ, अमर और प्रिया का प्यार एक-दूसरे के लिए उमड़ता देख, महाराजा वर्मा ने सैनिकों को प्रिया पर नज़र रखने को कहा। प्रिया का ध्यान जैसे ही इन गतिविधियों पर पड़ा, उसने सोचना शुरू किया कि वह व्यक्ति कौन हो सकता है जिसने महाराजा वर्मा को उसकी और अमर की मुलाकात की सूचना दी हो। बहुत सोचने पर भी ऐसा चेहरा प्रिया के ज़हन में नहीं आया जो उससे दगा करे। आखिरकार, बचपन से लेकर अब तक महल के छोटे-बड़े सभी लोगों ने प्रिया को लाड़ से ही रखा है। महल के कुछ सेवक तो प्रिया को 'लाडो' भी कहते हैं। प्रिया ने अपने इस ख़याल को आराम दिया और इस बात को भी कि वह नकाबपोश कौन हो सकता है।
दिन बीतते जा रहे थे और अमर और प्रिया का प्यार महाराजा वर्मा की आँखों में चुभने लगा था। इतना कि वह खुद भी नहीं समझ पाए कि कब उनका प्रिया के लिए प्यार नफरत में बदल गया। प्रिया और अमर का प्यार फूल जैसा था , जो तमाम नफरतों के बीच खिल रहा है, जिसकी खुशबू महल के चारों कोनों में महक रही था ।
सच्चा प्यार जब भी ज़िंदगी में दस्तक देता है, वह हमारे अंदर के सारे डर ख़त्म कर देता है। सिर्फ़ डर ही नहीं, बल्कि हमारी भीतर छुपी क्षमताओं को भी बाहर ले आता है। अमर का प्रेम प्रिया के अंदर की दबी हुई क्षमता को बाहर ले आया था। वह प्रिया, जिसकी आदत थी सारी बातें मन में रखना, वही प्रिया अब दुनिया से बगावत करने को तैयार हो चली थी। प्रिया खुद भी नहीं जान पाई कि वह कब अमर पर भरोसा करते-करते, खुद पर भरोसा करना सीख गई। अब तक महीनों बीत चुके थे। प्रिया और अमर कभी चिट्ठियों में बात करते, तो कभी सिर्फ एक-दूसरे को याद करके ही रह जाते। प्रिया अपनी चिट्ठियों में हमेशा अमर से मुलाकात की बात करती और अमर जवाब में अपनी भेजी हुई चिट्ठी में मोगरे का इत्र छिड़ककर भेजता और कहता,
अमर : “मैं जल्द ही आऊँगा तुम्हें लेने।”
इस खुशबू के साथ प्रिया अमर का इंतजार करने लगती, पर एक दिन प्रिया का इंतजार ख़त्म हुआ और अमर उससे मिलने आया। चोरी-छिपे उसकी खिड़की से, जैसे वह हर बार आया करता था। महल की बड़ी-बड़ी दीवारों को पार करना, सिपाहियों से बचना कभी आसान नहीं रहा था, पर प्यार में तो इंसान सात समंदर पार कर जाता है। इस लंबे इंतजार के बाद, जब प्रिया ने अमर को अपने सामने देखा, तो बिना एक पल गँवाए, वह अमर के गले लग गई। अमर ने कुछ कहने की कोशिश की, पर प्रिया ने उसकी बात काट दी और कहने लगी,
प्रिया : मुझे सुनने दो तुम्हारी दिल की धड़कनें, महसूस करने दो खुद को।"
यह सुनते ही अमर ने प्रिया को और भी ज़्यादा कस लिया अपनी बाँहों में और दोनों चुपचाप लिपटे रहे, जैसे मोती धागों से लिपटते हैं। अमर ने अपने हाथ से प्रिया के कंधे से उसके बाल हटाए और उसकी गर्दन पर अपने होठ रख दिए। तब प्रिया की साँसें और गहरी हो गईं और उसने और ज़ोर से अमर को पकड़ लिया। अमर ने धीरे से प्रिया का चेहरा उठाया, कुछ पल उसके होठों को देखा और फिर अपने होठ उसके होठों पर रख दिए। प्रिया के मन में उठी बेचैनियों की सारी लहरें अमर के स्पर्श से शांत हो गईं, जैसे नदी शांत हो जाती है समंदर से मिलने के बाद। प्रेम के इस क्षण को अपनी आत्मा में उतारने के बाद, जब अमर और प्रिया खिड़की में एक-दूसरे की बाँहों में बैठे थे, तब अमर ने कहा—
अमर : कितना सुंदर है?
प्रिया : क्या?
अमर : चाँद।
प्रिया : और मैं?
अमर : आप राजकुमारी, आप चाँद से भी ज़्यादा सुंदर हैं।
अमर की बात सुनकर दोनों हंसने लगे की तभी प्रिया ने परेशान होकर कहां, चलो निकल चलते है, यहाँ इन बंदिशों में मेरा दम घुटने लगा है, मैं अब और एक पल भी आपके बिना नहीं रहना चाहती . प्रिया की बात सुनकर अमर कुछ देर खामोश रहा , और फिर उसने कहां आज से ठीक 5 दिनों के बाद चंद्रग्रहण है . इस दिन हम दोनों के राज्यों में सैनिक कम मात्र में तैनात होंगे, मैं तुम्हें महल के बाहर वाले बेल पेड़ से लालटेन की रोशनी दिखाऊंगा, और तभी तुम महल के पीछे वाले रास्ते से निकल जाना उस दिन वहां सैनिको का जमावड़ा नहीं होगा... फिर हम दोनों साथ निकल जायेंगे, इस ठाट बाट वाली दुनिया से कोसो दूर, जहाँ पर कही सरल जीवन हो तुम हो मैं हूँ और हमारा संसार हो . अमर की बातें सुनकर प्रिया के चेहरे की खोई मुस्कान वापस लौट आई और वो जैसे अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करने के लिए उठी प्रिया ने महल की सब से पुरानी नौकरानी लज्जो अम्मा के पाँव देख लिए .
उस वक़्त प्रिया की आँखें फटी की फटी रह गई , तब प्रिय को समझने में एक पल भी नहीं लगा की महाराजा वर्मा का गुप्त चार कौन हो सकता है . प्रिया ने मन ही मन सोचा लज्जो अम्मा, ये तो वाही औरत है जिसने बचपन से लेकर अब तक हमें अपनी बेटी से ज्यादा प्यार दिया , हम पर अपनी जान लुटाई और आज हमारे ही पीठ पर वार कर दिया वो भी चंद सिक्को के लिए . जब प्रिया के कमरे की आवाज़ धीमी होने लगी तो लज्जो अम्मा वहाँ से चली गई . उनके जाने के बाद प्रिया ने अमर को लज्जो अम्मा वाला किस्सा सुनाया, जिसे सुनकर अमर दंग रह गया, और प्रिया को समझाते हुए बोला -
अमर : तुम्हे संदेह है भरोसा तो नहीं, अभी किसी से भी तुम्हारा कुछ भी कहना हमारे लिए मुसीबत खड़ा कर देगा.
इतना कहकर अमर वहाँ से निकल गया, इन पाँच दिनों में प्रिया के मन में तमाम भाव उमड़ रहे थे, कभी अमर के साथ की ख़ुशी के तो कभी पकड़े जाने का डर . जैसे तैसे वो दिन आ गया सब कुछ अमर के कहें मुताबिक़ चलने लगा, वाही प्रिया भी आश्वस्त हो गई की लज्जो अम्मा ने किसी से कुछ नहीं कहां है. परपर ये तो आप भी जानते प्यार कभी सीधे रास्ते से चलकर नहीं आता, उसमें इतने घुमाव होते है की कुछ लोग तो साथ ही छोड़ना ज्यादा पसंद करते है .
अब इन्हें कौन समझाए प्यार की मिसालें तो वहीं दी जाती है, जो आखरी सांस तक साथ देते है, वरना चंद पल साथ गुज़ारने को प्यार कहना प्यार पर कालीक डालने जैसा है. और अमर प्रिय का प्यार तो मिसाल बनने जा रहा था, जैसे ही प्रिया महल के पीछे वाले रास्ते पर पहुंची महाराजा वर्मा के आदेशानुसार वहां छुपे हुए सैनिको ने प्रिया का रास्ता रोक दिया.
प्रिया फिर से चौंक गई उसे समझ नहीं आ रहा था वो क्या करें ? उसके लिए एक तरफ कुआं था और दूसरी तरफ खाई, सैनिकों के हाथ लगने के बाद प्रिया ने खुद को उनके हवाले करने में देरी न की . और तब उसे ये स्पष्ट हो गया की लज्जो अम्मा ही वो औरत थी, जिसने महाराजा वर्मा को अमर और उसकी बातें बताई , उनका मिलना बताया. जिस्म का ठंडा पड़ जाना क्या होता है, ये बात प्रिया को उस दिन मालूम चली. प्रिया को इससे बड़ा धोख़ा और क्या मिलता, की उसकी लज्जो अम्मा ने ही उसका भरोसा तोड़कर , उसका सीना छल्ली कर दिया.
प्रिया उस वक़्त ज़िंदा लाश बन चुकी थी, वहीं अमर का कुछ पता नहीं चल रहा था, महाराजा ने अपने सैनिकों को चारो तरफ अमर को ढूंढने भेज दिया था . दो घंटे की छान बिन के बाद सैनिकों ने अमर को ढूंढ ही निकाला, वो प्रिया के कमरे में आ बैठा था . अमर चाहता तो भाग सकता था, लेकिन प्रिया के प्यार में और अपने वादे के मुताबिक़ वो साथ रहा प्रिया के. जब सैनिक उसे पकड़ कर महाराजा वर्मा के सामने लेकर आये , तब उसका शरीर तो थक चूका था मगर उसकी आँखों में प्रिया को साथ ले जाने की ज़िद थी.
क्या जीत जाएगा अमर प्रिया का प्यार या भारी पड़ेगा उस पर महाराजा वर्मा का अहंकार? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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