एपिसोड 8 - घर वापसी

"बुरे इंसान क्यों?" मेल्विन के बॉस ने पूछा।

"क्योंकि अक्सर रहस्यमय इंसान बुरे ही होते हैं सर। मैं अपने पिता पर दोष नहीं मढ़ रहा हूँ। ये मेरा नजरिया है उनके प्रति।" मेल्विन ने कहा।

"इसे दोष मढ़ना ही कहते हैं मेल्विन। तुम अपने पिता पर दोष ही मढ़ रहे हो।" मेल्विन के बॉस ने कहा।

मेल्विन कुछ रूककर बोला, “ये तो नज़रिये की बात है, सर और ये एक दिन में तो बनता नहीं।”

"सर, क्या आपके पिताजी जिंदा है?" बॉस की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न आने पर मेल्विन ने पूछा।

"नहीं।" मेल्विन के बॉस ने कहा, "उनकी मृत्यु 7 साल पहले ही हो चुकी है।"

"आपके पिता क्या करते थे सर?" मेल्विन ने पूछा तो उसके बॉस ने तुरंत कहा, "तुम मेरे पिता के बारे में जानकर अपने पिता के बारे में अंदाजा लगाना चाहते हो मेल्विन?"

"हाँ, आपने बिल्कुल सही समझा है सर।" मेल्विन ने कहा, "कितनी अजीब बात है। इतने साल तक हम रोज मिलते रहें लेकिन पर्सनल बातें हमने कभी शेयर नहीं कीं। अब बताइए, आपके पिता क्या करते थे?"

"जिस ऑफिस में इस वक्त तुम खड़े हो कभी वे यहाँ के बॉस हुआ करते थे।" 

"मतलब, वे भी एडिटर थे।" मेल्विन ने कहा, "क्या इसके अलावा वे और कुछ नहीं करते थे?"

"जहाँ तक मेरी जानकारी है, नहीं। वे इस ऑफिस को संभालने के अलावा और कोई काम नहीं करते थे।" मेल्विन के बॉस ने कहा, "अब इन सब बातों की ओर ध्यान देना छोड़ो और काम पर फोकस करो मेल्विन। मैं पिछले कुछ दिनों से महसूस कर रहा हूँ तुम्हारा दिमाग कई तरह की दूसरी चीजों में उलझा हुआ है। मैं नहीं जानता कि वे चीजें तुम्हारे जिंदगी में कितना महत्व रखते हैं। लेकिन अगर उससे तुम्हारा काम खराब हो रहा है तो वे जरूर तुम्हारे लिए अच्छा नहीं है।"

"मैं समझ गया सर। आप सही कह रहे हैं। मेरी माँ भी ठीक ही कह रही है। मेरे दोस्त भी सही कहते हैं। मुझे हर किसी की बात मानकर कुछ दिन के लिए मुंबई छोड़ ही देना चाहिए। शायद मेरे लिए सबसे अच्छा यही है।" मेल्विन इतना कहकर केबिन से बाहर चला गया।

मेल्विन ने अपने बॉस से बातें करते हुए मन ही मन कई फैसले ले लिए थे। इनमें से पहला फैसला तो यही था कि वो अब और अपने दिमाग पर जोर नहीं देगा और सबकुछ छोड़कर कुछ दिनों के लिए माँ के पास रहने चला जाएगा।

शाम को जब मेल्विन वापस घर लौट रहा था तब ये बात उसने पीटर को भी बताई।

"क्या!" पीटर हैरान होते हुए मेल्विन से कह रहा था, "क्या तुमने पक्का इरादा कर लिया है मेल्विन?"

"इसमें पक्का करने जैसा कुछ भी नहीं है पीटर। आखिर तुम सब भी तो यही चाहते थे कि मैं हर हाल में माँ से मिल आऊँ। ऑफिस में बॉस भी यही कह रहे थे। मैं अपने काम पर कंसंट्रेट नहीं कर पा रहा हूँ पीटर। एक ब्रेक ले लेना ही मेरे लिए अच्छा रहेगा।"

“तुम्हारी उदासी का एक कारण तो यहीं है। क्या उस लड़की से मिले बगैर उससे दूर जा पाओगे तुम?” पीटर ने पूछा।

“माँ से बढ़कर तो नहीं है पीटर।” मेल्विन ने कहा, “मैं तुम्हारी बात समझ रहा हूँ। लेकिन काम पर फिर से फोकस करने के लिए मेरा ब्रेक लेना जरूरी है।”

“वो तो तुम...।” पीटर ने अभी इतना कहा ही था कि मेल्विन ने उसकी बात काटते हे कहा, “यहाँ रहकर ब्रेक नहीं ले सकता। मुझे इस माहौल से कुछ दिन के लिए दूर जाना है।”

मेल्विन की बात सुनकर पीटर का चेहरा उदासी से झुक गया। उसने पूछा, "कितने दिन के लिए जा रहे हो?"

"ज्यादा नहीं, बस एक हफ्ते के लिए। तब तक माँ की तबीयत भी शायद ठीक हो जाए।" मेल्विन ने कहा फिर उसकी नजर पीटर के उदास चेहरे की ओर गई, "तुम क्या सोच रहे हो पीटर?"

"मेल्विन, पहली बार तुम्हारे बिना ट्रेन में सफर करूँगा। समझ में नहीं आता कि वो ढाई घंटे कैसे कटेंगे।" पीटर ने कहा और फिर ट्रेन की खिड़की से दूर देखने लगा।

मेल्विन के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कुराहट आ गई थी। ये मुस्कुराहट पीटर की बात सुनकर उसके चेहरे पर आई थी।

"डॉक्टर ओझा, रामस्वरूप जी और लक्ष्मण तो होंगे ही तुम्हारे साथ।" मेल्विन ने पीटर को सांत्वना देने की कोशिश करते हुए कहा, "आखिर वे भी हमारे उतने ही अच्छे साथी हैं जितना कि हम दोनों एक-दूसरे के।"

"वो बात नहीं है मेल्विन। तुम होते हो तो ढाई घंटे कैसे निकल जाते हैं पता भी नहीं चलता। डॉक्टर ओझा और रामस्वरूप जी कोई मेरी उम्र के लोग थोड़ी हैं। हाँ, लक्ष्मण जरूर मुझसे छोटा है। लेकिन उसका मिजाज मुझसे काफी अलग है। एक तुम ही सच्चे दोस्त हो जिससे जितनी चाहे बातें कर लो लेकिन बातें खत्म नहीं होतीं। तुम्हें पता नहीं मेल्विन, काम पर भी मैं तुम्हारी खूब चर्चा करता हूँ। जितना मैं तुम्हारे बारे में जानता हूँ, मेरे ऑफिस में काम कर रहे मेरे दोस्त भी तुम्हारे बारे में उतना ही जानते हैं।"

"अब तुम इमोशनल अत्याचार कर रहे हो पीटर। ऐसा करो, तुम भी अपने ऑफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ले लो। मैं तुम्हें अपनी माँ से मिलव देता हूँ।" मेल्विन ने कहा तो पिटर मुस्कुराने लगा, "परेशान होने की जरूरत नहीं है। मेरे पीछे तो मेरे लिए काफी कुछ कर सकते हो पीटर।" मेल्विन ने इतना कहा और फिर चुप हो गया।

पीटर समझ गया कि मेल्विन के कहने का क्या मतलब है।

"नहीं मेल्विन, मैं यहाँ तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं करने वाला। अब जो भी होगा तुम्हारे आने के बाद ही होगा। डॉक्टर ओझा ने कहा था न कि अपनी माँ से मिलकर आओ। शायद तुम्हारी किस्मत चमक उठे। देखते हैं, उनकी बातों में कितनी सच्चाई थी। हाँ, जब तुम वापस आओगे तो मैं उस लड़की की कहानी तुम्हें जरूर सुनाऊँगा। अगर कुछ बताने लायक हुआ तो।"

"ठीक है, ठीक है।" मेल्विन ने हँसते हुए कहा।

“वैसे तुम्हारा काम कैसा चल रहा है पीटर।” मेल्विन ने पूछा, “शेयर बाजार में अब तो तुम्हारी धाक जम गई होगी।“

“जितना बड़ा ये फील्ड है मेल्विन, उतना ही यहाँ रिस्क रहता है। जरा सी चूक हुई तो सबकुछ डूब जाता है।” पीटर ने कहा, “आजकल तो रिस्क और भी बढ़ गया है।”

“कैसा रिस्क?” मेल्विन ने पूछा।

“है कुछ। इस पर बात न ही करें तो अच्छा है। कहते हैं अपनी ही जुबान लग जाया करती है।” पीटर ने कहा तो मेल्विन ने दोबारा नहीं पूछा।

इस बार कोई बाधा नहीं आई थी। अगले दिन मेल्विन सुबह की गाड़ी पकड़कर पालघर पहुँच चुका था। मेल्विन की माँ उसे देखकर बहुत खुश हुई थी। मेल्विन की माँ एक साठ बरस की बूढी औरत थी। उनके सिर के ज्यादातर बाल सफेद पड़ चुके थे। सफेद साड़ी पहने और होंठों पर मुस्कुराहट लिए वो मां अपने बेटे को कई महीनों बाद देख रही थी। मेल्विन का मकान पक्का था। इतना बड़ा तो था ही कि 10 लोग बड़े सुख से उसमें रह सकते थे। लेकिन मेल्विन की माँ की किस्मत में शायद बड़ा परिवार नहीं था, जो वे अकेली उस बड़े से घर में रहती थीं।

"मेल्विन, मेरे बेटे। "आँखों में आँसू लिए मेल्विन की माँ ने कहा, "इन आँखों ने तो अब तुम्हें देखने की उम्मीद ही छोड़ दी थी। मुझे लगा था, अपने पिता की तरह तुम भी अब वापस नहीं आओगे। मेरे बेटे, तुमने मुझे बहुत इंतजार करवाया। मेरी आँखों से तो अब आँसू भी सूख चुके हैं।" 

"ऐसा मत कहो माँ। अगर तुम ऐसी बातें करोगी तो मुझे बहुत दुख होगा। मुझे तुम पर गर्व होता है माँ। तुमने कितने अच्छे से अपनी दुकान को संभाल रखा है।" मेल्विन ने अपने घर के बाहर ही लगे ठेले की ओर देखते हुए कहा।

मेल्विन की माँ फलों का दुकान लगती थी।

"मुझे आज भी याद है, तुम हर रोज मुझे डंडा लेकर दुकान से भगा देती थी। मैं तुम्हारे फल चुराकर खा लिया करता था न। तुम मुझे बिजनेस करना भी सिखाती थीं। हिसाब करना सिखाती थीं। ताकि मैं तुम्हें छोड़कर काम करने के लिए कहीं बाहर न चला जाऊँ।"

मेल्विन ने जब बचपन की बातें याद करते हुए अपनी माँ से कहा तो वे भी पुरानी यादों में खो गईं।

"फिर भी तुम काम करने के लिए शहर चले ही गए। मेरा सिखाना तुम्हें कोई काम नहीं आया। एक माँ ये कभी नहीं चाहती कि उसका बेटा उसे छोड़कर उससे दूर रहे। पति के जाने के बाद तो बिल्कुल भी नहीं।"

"अब और उदास होने की जरूरत नहीं है माँ। मैं आ गया हूँ तो अब जब तक तुम चाहोगी मैं यहीं रहूँगा। तुम्हारे इस बड़ी-सी दुकान को संभालूँगा। अपने बचपन को इन छुट्टी के दिनों में फिर से याद करूँगा।" मेल्विन ने इमोशनल होते हुए कहा, "कहीं तुम फिर मुझे अपनी दुकान से भगा तो नहीं दोगी माँ?"

"कैसी बातें करता है मेल्विन? मैं तुम्हें क्यों दुकान से भगाऊँगी। अब तुम आ गए हो मैं चैन से तुम्हें देखूँगी और सारी यादें अपने दिल में समेटकर रखूँगी। अब न जाने फिर कभी तुम मुझे जिंदा देख भी सकोगे या नहीं।" मेल्विन की माँ ने उदास होते हुए कहा।

"खबरदार माँ, जो तुमने फिर ऐसी बातें की तो। मैं अभी वापस चला जाऊँगा। मैं यहाँ ये सब बातें सुनने के लिए नहीं आया।" मेल्विन ने गुस्सा होते हुए कहा।

"अच्छा चल, नहीं करूगी ऐसी बातें। चल जल्दी से हाथ-मुँह धो ले। मैं तेरे लिए खाना लगाती हूँ।"

उस दिन मेल्विन की माँ ने मेल्विन की खूब खातिरदारी की। घर में सब कुछ वैसा ही हुआ जो मेल्विन ने कहा। उसकी पसंद का खाना बना, उसके लिए शाम को चाय बनी और फिर रात में एक अंग्रेजी फिल्म लगी। मेल्विन की माँ ने उसके लिए पीने का इंतजाम भी किया था।

"तुम तो मेरी ऐसी सेवा कर रही हो माँ जैसे मैं कोई मेहमान हूँ।" मेल्विन ने कहा।

"हाँ तो, मेहमान ही तो हो।" मेल्विन की माँ ने कहा, "जो कुछ दिनों के लिए आता है उसे मेहमान ही तो कहते हैं। और अगर तुम मेहमान न भी होते, तब भी इससे कम खातिरदारी नहीं करती तुम्हारी। एक माँ को अपने बेटे के लिए कुछ भी करना अच्छा लगता है। मैं तो फिर भी बदनसीब हूँ जो मुझे यह मौका कभी-कभी ही मिलता है।" इतना कहते-कहते मेल्विन की माँ फिर रोने लगी थी।

मेल्विन समझ गया कि माँ को पिताजी की याद सताने लगी है।

उसने अपनी माँ से पूछा, "माँ, पता है, मेरे बॉस क्या कह रहे थे?"

"क्या कह रहे थे?"

"वे बता रहे थे कि उनके पिता और पापा एक जमाने में दोस्त हुआ करते थे। मैं उस ऑफिस में 17 सालों से काम कर रहा हूँ माँ, लेकिन ये बात अब जाकर मुझे पता चलीं। मुझे बहुत गुस्सा आया लेकिन मैं अपने बॉस से कुछ कह नहीं सका। माँ, आखिर पापा मेरे बॉस के पिता के दोस्त कैसे हो सकते हैं? क्या तुम वाकई पापा के बारे में कुछ भी नहीं जानती?"

मेल्विन के पिता का जिक्र होते ही उसकी माँ चुप हो गई। उनके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वे इस बारे में कोई भी बात करना नहीं चाहतीं।

"अचानक आज अपने पापा की याद कैसे आ गई तुम्हें मेल्विन?" मेल्विन की माँ ने बातचीत की दिशा मोड़ने की कोशिश करते हुए पूछा।

"अचानक याद नहीं आई माँ। में उन्हें हमेशा ही याद करता हूँ। पिछले दिनों मेरे साथ कुछ ऐसी घटनाएँ हुई जिससे मैं पापा को याद किए बिना ना रह सका।"

"कैसी घटना?" मेल्विन की माँ ने घबराते हुए पूछा।

"मेरे ऑफिस में एक अजनबी आदमी आया था। वह कई दिनों से मेरे ऑफिस के आसपास चक्कर लगा रहा था, लेकिन मुझसे मिल न सका। मरते-मरते उसने अपने बेटे के हाथ मुझे एक लेटर भिजवाया था। वो लेटर मेरे हाथ तो आया लेकिन मैं उसे पढ़ नहीं पाया। जब से बॉस ने पापा के जिक्र किया है तब से मैं उस लेटर वाली घटना को पापा के साथ जोड़कर देख रहा हूँ। न जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है कि उस लेटर में जरूर पापा का जिक्र था।"

मेल्विन की बात सुनकर उसकी माँ गहरे ख्यालों में डूब गई।

"क्या सोच रही हो माँ?" मेल्विन ने पूछा।

"मेल्विन, करीब 1 महीने पहले तुम्हें ढूँढ़ते हुए एक आदमी यहाँ भी आया था।" मेल्विन की माँ ने बताया तो मेल्विन की आँखें हैरानी से बड़ी हो गईं।

"क्या? मुझसे मिलने कोई यहाँ आया था? कौन था वो माँ? क्या कह रहा था वो?" मेल्विन ने एक साथ कई सवाल पूछे। 

"वो अपना नाम रघु बता रहा था। कह रहा था कि उसका तुमसे मिलना बहुत जरूरी है। मैंने उसे तुम्हारे ऑफिस का पता दिया था। कही वही तो तुमसे मिलने के लिए तुम्हारी ऑफिस नहीं आया था?"

कौन था ये रघु? क्या यही वो शख्स था जिसने मेल्विन को लेटर भिजवाया था? क्या मेल्विन की जिंदगी में कुछ ऐसा घटित होने वाला है, जिसकी उसे बिल्कुल खबर नहीं?



 

 

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