एपिसोड 09 - 25 करोड़ का झूठ
“नहीं मां, वह रघु नहीं हो सकता। क्योंकि मेरे ऑफिस में कोई पालघर के किसी शख्स को ढूंढ़ते हुए आया था। जबकि आप कह रही हैं कि वो मेरा नाम लेकर मुझे ढूंढ़ते हुए यहां आया था। फिर ये दोनों शख्स एक ही कैसे हो सकते हैं?”
“लेकिन यह तुम्हें क्यों ढूंढ रहे हैं बेटे?” मेल्विन की मां ने पूछा।
“मैं ये तो नहीं जानता मां, लेकिन इसके पीछे कोई जरूर कोई सच्चाई छुपी हुई है। भला एक पिता अपनी मरते वक्त मुझे वो लेटर देने की बात क्यों कहता।”
“जब तक तुम्हारे पिता जिंदा थे, तब तक मैं उनके जीने के तरीके को लेकर परेशान थी। अब मरने के बाद भी वे मेरा पीछा नहीं छोड़ रहे हैं।”
“लेकिन तुम इसमें पापा को क्यों दोष दे रही हो मां? उनकी लाइफ का इन सबसे क्या लेना देना?”
“बेटे, जब मेरा इन सबसे कुछ नहीं लेना देना है, तुम्हारा इसे कुछ लेना देना नहीं है, तो इसके बाद तुम्हारे पापा ही बचे न, जिनका इन सबसे से कुछ लेना देना हो सकता है। अब ये तो समय ही बताया था कि आखिर क्या राज है।” मेल्विन की मां ने कहा।
उस दिन मेल्विन और उसकी मां की बातचीत अधूरी छूट गई।
घर पहुंचकर मेल्विन अपनी मां की हर संभव मदद करने की कोशिश करने लगा था। उसने अपनी मां की दुकान भी संभालनी शुरू कर दी थी। वो बहुत जल्द अपनी माँ और अपने घर की रूटीन में आ गया।
दूसरी तरफ अपने–अपने काम को जा रहे पीटर, डॉक्टर ओझा और राम स्वरूप जी मेल्विन के बिना ट्रेन में कुछ सुना सुना महसूस कर रहे थे।
“चलो, आखिरकार मेल्विन अपनी मां से मिलने घर पहुंच ही गया। उन दोनों का मिलन हो ही गया।” डॉक्टर ओझा ने कहा।
“मेलविन की मां की ख्वाहिश भी पूरी हो गई।” रामस्वरूप जी ने कहा।
“आप लोगों का तो मुझे नहीं पता लेकिन मैं मेल्विन को आज बहुत मिस कर रहा हूं।” पीटर ने कहा। आज पीटर सचमुच कुछ परेशान दिखाई दे रहा था।
“मेलविन तुम्हारा सबसे खास दोस्त है, यह तो हम सब जानते हैं लेकिन उसके बिना तुम्हारी ये हालत हो जाएगी ये तो हमने नहीं सोचा था।” रामस्वरूप जी ने कहा।
“नहीं–नहीं, मुझे लगता है पीटर की परेशानी कुछ और है।” लक्ष्मण ने पीटर की ओर गौर से देखते हुए कहा, “बताओ पीटर, क्या बात है?”
“ऐसी कोई बात नहीं है लक्ष्मण। मैं पीटर को अच्छी तरह से जानता हूं। यह मेल्विन के अलावा ज्यादा किसी से बातचीत नहीं करता। इसके धंधे भी आजकल ऐसे हो रखे हैं कि मेल्विन की जरूरत इसे हर समय पर पड़ती ही है। जानते हो, एक बार क्या हुआ था।” रामस्वरूप जी ने इतना कहकर पीटर की ओर देखा।
लक्ष्मण को अब इस बातचीत में इंटरेस्ट आने लगा था। उसने पूछा, “क्या हुआ था पिताजी?”
“उस दिन मेल्विन किसी वजह से नहीं आया था। पीटर की एक आदमी से लड़ाई हो गई थी। मेल्विन उस दिन होता तो शायद इसकी इतनी धुलाई नहीं होती लेकिन उन चारों ने मिलकर इसी बहुत धुलाई कर दी थी। तब से पीटर इतना भड़का हुआ रहता है। आज मेल्विन नहीं है, तो इसकी सांस फिर अटकी हुई है।”
रामस्वरूप जी की बात सुनकर लक्ष्मण हंसने लगा। डॉक्टर ओझा के चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गई थी।
“मेलविन को देखकर लगता तो नहीं कि गुंडों से भिड़ने में पीटर से आगे है।” लक्ष्मण ने कहा।
“मेलविन लड़ाई–झगड़ा नहीं करता लक्ष्मण!” डॉक्टर ओझा ने कहा, “उसके पास सीरियस सिचुएशन को भी हैंडल करने का आर्ट है।”
लक्ष्मण ने जब ये सुना तो कुछ देर सोच में पड़ गया।
“आज डरने की कोई बात नहीं है पीटर। मेल्विन आज यहां नहीं है तो क्या हुआ, मैं तो हूं। मेरे रहते हुए तुम्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है। वैसे तुम क्या काम क्या करते हो पीटर?” लक्ष्मण ने पीटर से पूछा।
“शेयर बाजार में सट्टा लगता है पीटर। हालांकि उसने हमें अपने काम के बारे में ज्यादा कभी कुछ बताया नहीं, लेकिन उड़ते उड़ते हम लोगों को खबर मिल ही जाती है।” डॉक्टर ओझा ने बताया।
“मैं शेयर बाजार में सट्टा नहीं लगता डॉक्टर साहब। बल्कि शेयर बाजार का मास्टरमाइंड हूं मैं। कब शेयर बाजार चढ़ेगा और कब शेयर बाजार धड़ाम से नीचे जाएगा, इन सब की खबर रहती है मुझे। इसे एक स्पेशल टैलेंट कहते हैं जो आम आदमी के समझ के बाहर है। खासकर सरकारी तंत्र इसे नहीं समझ पाती।” पीटर ने अपनी बढ़ाई करते हुए कहा।
“तुम शायद इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की ओर इशारा करना चाहते हो पीटर।” लक्ष्मण ने कहा, “सच में ये एक टैलेंट है पीटर। कोई और तुम्हारी बात को समझे या न समझे लेकिन मैं शेयर बाजार के उतार चढ़ाव के फेर में लगे लोगों को अच्छी तरह जानता हूं। तुम वाकई बहुत अच्छा काम करते हो पीटर। तुम में टैलेंट है। लेकिन इसमें डर भी अक्सर रहता होगा?” लक्ष्मण ने आखिर में पूछा।
“शुरू–शुरू में जो इस फील्ड में आते हैं उन्हें जरूर डर रहता होगा। लेकिन एक एक्सपीरियंस आदमी कभी नहीं डरता। मैंने बड़े-बड़े लॉस झेले हैं तो उससे भी बड़ा फायदा मुझे हुआ है।” पीटर ने बताया।
“इधर की बात सही है।” रामस्वरूप जी ने कहा, “इस फील्ड में इसे 12 साल हो चुके हैं। इतना वक्त काफी होता है अपने फील्ड में मझने के लिए।
अभी पीटर ने इतना कहा ही था कि ट्रेन के रुकते ही पसीने से तरबतर एक आदमी हाथ में सूटकेस लिए हुए ट्रेन में चढ़ा।
“पीटर, गजब हो गया।” वो आदमी हांफता हुआ पीटर से बोला।
“अरे राजेश, तुम यहां।” पीटर हड़बड़ाता हुआ बोला, “सब ठीक तो है?”
“नहीं पीटर, बड़ी मुश्किल से जान बचाकर भागा हूं।” राजेश नाम के उसी आदमी ने कहा।
“किससे जान बचाकर भाग रहे हो? आखिर हुआ क्या है राजेश?” पीटर में परेशान होते हुए पूछा।
“मेरे इस सूटकेस में 25 करोड़ के हीरे हैं। इनकम टैक्स वाले यहां तक आ चुके हैं। मुझे डर है कि कहीं वे भी इस ट्रेन में ना घुस आए हो।” डरते डरते राजेश ने पीटर के कानों में धीरे से जाकर कहा।
“क्या!” पीटर के होश गुम हो चुके थे, “25 करोड़ का हीरा तुम्हारे इस सूटकेस में है? क्या तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है। और तुम मेरे पास क्यों आए राजेश? तुम्हारे साथ मैं भी लपेटे में आ जाऊंगा। इससे पहले कि इनकम टैक्स तुम्हारे बदन की खाल उतार कर तुम्हारी तलाशी ले, तुम इस हीरे से छुटकारा पा लो। इसे अभी ट्रेन के बाहर फेंक दो राजेश।” पीटर ने गुस्से में राजेश को समझाया। उसकी आवाज इतनी धीमी थी कि लक्ष्मण और डॉक्टर ओझा तक ही उसकी बात पहुंच सकी। उन दोनों ने हैरानी से एक–दूसरे की तरफ देखा।
“क्या बात है पीटर? कौन है ये?” रामस्वरूप जी ने पूछा।
“पिताजी, ये पीटर का साथी है। अपने साथ कुछ इलीगल डायमंड लेकर फरार है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट इसके पीछे पड़ी हुई है।” लक्ष्मण ने बताया तो कई और लोगों के कानों में यह बात पहुंची।
“आहिस्ते बोलो लक्ष्मण। तुम तो हमें मरवा ही दोगे। अगर सच में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट इस ट्रेन में चढ़ चुकी है तो फिर हमें कोई नहीं बचा सकता।” पीटर ने कहा।
“हमें नहीं पीटर, तुम दोनों को।” लक्ष्मण ने कहा, “तुम दोनों ये खेल खेल रहे हो। हम तुम्हें नहीं जानते।”
पीटर में लक्ष्मण की बातों की ओर ध्यान नहीं दिया। उसने राजेश से पूछा, “कुल कितने लोग तुम्हारे पीछे पड़े हैं?”
“5 से 7 लोग हैं। सब सिविल ड्रेस में है। जाने कहां से उन्हें खबर मिल गई कि मैं अपने साथ इतना कीमती हीरा लेकर घूम रहा हूं।” राजेश ने बताया।
“तुमने मेरे पीछे आकर बहुत बड़ी गलती कर दी है राजेश। मैं वैसे ही उनकी नजरों में रहता हूं। मैंने ये सब धंधे छोड़ दिए हैं। मैं कम कमाता हूं लेकिन ईमानदारी से कमाता हूं। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने मुझ पर कभी हाथ नहीं डाला। लेकिन आज तुम्हारी वजह से लगता है मेरी भी खाल उतारी जाएगी।” पीटर डरा हुआ था।
पीटर ने इतना कहने के साथ ही राजेश के हाथ से सूट केस ले लिया था। अभी पीटर ने राजेश का सूटकेस हाथ में लिया ही था कि 5-7 आदमियों ने कंपार्टमेंट में घुसते ही उन दोनों को घेर लिया। पीटर ने झट से राजेश का सूटकेस अपने पीछे छुपा लिया।
“मिस्टर पीटर एंड राजेश चौधरी। हमारे डिपार्टमेंट को आप दोनों की काफी समय से तलाश थी। आप दोनों बाल बाल बच रहे थे। लेकिन आज नहीं।” उनमें से एक ने कहा, “आपके हाथ में जो सूटकेस है उसकी मुझे तलाशी लेनी है।”
पीटर ने इतना सुनते ही राजेश को उसका सूटकेस वापस दे दिया था।
“सर, लेकिन ये मेरा सूटकेस नहीं है।” पीटर ने अपने दोनों हाथ ऊपर करते हुए कहा।
“वो हम पता लगा लेंगे।” एक दूसरे ऑफिसर ने कहा फिर अपने साथियों को आदेश देते हुए बोला, “इन दोनों की पूरी तलाशी लो। मुझे हर आदमी वो चीज चाहिए जिसकी तलाश हम कर रहे हैं।”
एक तरफ एक ऑफिसर सूटकेस की जाँच करने लगा और दूसरी तरफ दो ऑफिसर पीटर और राजेश की तलाशी लेने लगे। देखते ही देखते कंपार्टमेंट में हंगामा मत चुका था। तमाशा देखने वालों की भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी। राजेश के सारे कपड़े उतरवाकर उसकी तलाशी ली गई। लेकिन न तो उसके पास कुछ मिला और न ही सूटकेस में ऐसी कोई भी चीज थी जैसा राजेश कह रहा था।
“क्या सचमुच तुम्हारे पास कोई कीमती चीज नहीं थी राजेश?” एक ऑफिसर में पूछा, “हमें पक्की खबर मिली है कि तुम 25 करोड़ का हीरा लेकर अपने साथ चल रहे हो। पीटर, कहीं तुमने तो वो हीरे नहीं छुपाए?”
“ये क्या बात कर रहा है सर आप? अगर मेरे पास 25 करोड़ का हीरा होता तो मैं मुंबई की लोकल ट्रेन में नहीं खड़ा होता।” पीटर ने कहा।
“तुम्हारी चालाकी को मैं अच्छी तरह से जानता हूं पीटर। लेकिन टैक्स की चोरी हम भी नहीं होने देंगे।” एक अधिकारी ने पीटर को धमकाते हुए कहा, “अब जल्दी से बताओ कि वो हीरा कहां है, इससे पहले कि मैं तुम्हारे भी सारे कपड़े उतरवा दूं।”
लोग घूर –घूरकर राजेश और पीटर को देखने लगे थे।
पीटर बौखला उठा। उसने कहा, “सर, मैं अभी अपने कपड़े उतारकर आपको दिखा देता हूं। सारा झमेला ही खत्म हो जाएगा।” इतना कहकर पीटर ने सचमुच अपनी पैंट की बेल्ट खोलने शुरू कर दी थी। इससे पहले कि वो पैंट खोलकर उसे नीचे खिसका देता, राजेश ने कहा, “मैं आपको वो हीरे देता हूं सर।”
ट्रेन के अंदर अच्छा–खासा हंगामा हो चुका था। अगले स्टेशन पर ट्रेन रुकी तो वे ऑफिसर राजेश को लेकर वहां से चले गए। पीटर ने पसीना पोंछते हुए लंबी-लंबी सांस लेनी शुरू कर दी।
“लक्ष्मण, तुम भी फेकने में माहिर हो। मेल्विन की जगह लेने की बात कर रहे थे तुम। लेकिन तुम तो मुझे आज सीधे फांसी पर ही लटकाने का प्लान कर चुके थे। तुम्हारे मुंह से एक शब्द नहीं निकला।” पीटर ने कहा।
“तुम इतना डर क्यों रहे हो पीटर? तुमने टैक्स की कोई चोरी तो नहीं किया न। जिसने की थी उसे इनकम टैक्स वाले उठाकर ले गए। तुम बेवजह ही इस झमेले में फंस रहे थे। अगर सचमुच तुमने कोई जुर्म किया होता तो मैं जरूर बोलता। लेकिन तुम तो बिल्कुल साफ निकले।” राजेश ने अपनी सफाई देते हुए कहा।
“अगर आज मैंने अपने कपड़े उतार दिए होते तो मेरी इज्जत तो जाती ही, साथ ही जो दुर्गति मेरी होती है वो मैं ही जानता हूं। वो तो अच्छा हुआ कि राजेश ने अपना गुनाह सही समय पर कुबूल कर लिया।” पीटर ने कहा।
“क्या तुम भी अपने साथ कोई कीमती चीज लेकर सफर कर रहे हो पीटर?” डॉक्टर ओझा ने पूछा।
पीटर ने अपने आसपास देखा। लोगों का ध्यान अब इस ओर से बिल्कुल हट चुका था। पीटर ने धीरे से उन्हें बताया, “हम अक्सर कीमती चीज यूं ही सामने रखकर घूमते हैं। ताकि किसी को हम पर शक न हो। आज मैं अपने साथ इतनी बड़ी रकम लेकर चल रहा था कि राजेश को तो वो यूं ही छोड़ देते और उसके बदले मुझे पकड़ लेते।” पीटर ने इतना कहा और सब हैरान होकर उसकी ओर देखने लगे।
“अब तुम फेंक रहे हो पीटर!” लक्ष्मण ने कहा, “तुम सिर्फ अपनी बढ़ाई करने के लिए ऐसा कह रहे हो।”
“तुम्हारा ऐसा सोचना लाजमी है मेरे दोस्त!” पीटर ने कहा, “लेकिन अफसोस मैं तुम्हारी तरह नहीं सोचता।”
पीटर की बात सुनकर डॉक्टर ओझा और रामस्वरूप जी डर गए। दोनों हैरानी से एक–दूसरे की ओर देखने लगे।
“पीटर, ये तुम क्या कह रहे हो?” डॉक्टर ओझा ने कहा, “टैक्स की चोरी अपने देश को धोखा देने जैसा होता है। बल्कि ये धोखा ही हुआ। अगर तुम सचमुच टैक्स की चोरी कर रहे हो तो ये तुम्हारे हक में अच्छी बात नहीं है।”
“ये झूठ बोल रहा है डॉक्टर साहब!” लक्ष्मण ने कहा।
“ठीक है तो सुनो…” पीटर ने इतना कहा और फिर सब उसकी तरफ देखने लगे।
आखिर पीटर कौन सी कीमती चीज लेकर कंपार्टमेंट में सफर कर रहा था? क्या उसके पास सचमुच कोई बहुत कीमती चीज थी? क्या इनकम टैक्स वाले पीटर पर भी रेड करने वाले हैं?
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