एपिसोड 7 - जिसे देखा नहीं, जिसे जाना नहीं

"अपना ख्याल रखना अंकल।" शाम 7 बजे की गाड़ी में उस बुजुर्ग आदमी को बिठाते हुए मेल्विन ने कहा "ये गाड़ी सीधे आगरा कैंट में रुकेगी।"

मेल्विन ने अपना फर्ज समझते हुए उस बूढ़े आदमी की मदद तो कर दी थी लेकिन उसके कानों में अभी लक्ष्मण की कही बातें बार-बार गूँज रही थी, "किसी की मदद करना अच्छी बात है मेल्विन, लेकिन अपनी माँ से किया वादा तोड़कर किसी की मदद करना क्या ठीक है?" 

सुबह जब मेल्विन की माँ का फोन आया था तब उन्होंने मेल्विन को समझाते हुए कहा था, "इतना भी क्या परेशान होना मेल्विन? अगर तुम अपना वादा निभाने के लिए उस बूढ़े आदमी को यूँ ही छोड़ देते तो मुझे ज्यादा दुख होता। मेरी फिक्र मत करो। मेरी तबीयत पहले से अब ठीक है। तुम्हें देखने का बहुत मन था लेकिन अब मैं कुछ दिन और तुम्हारा इंतजार कर लूँगी। मुझे तुम पर गर्व है बेटा। तुम सच में मेरे बेटे हो।"

"नहीं माँ, तुम्हें ज्यादा दिन इंतजार करने की जरूरत नहीं है। मैं कल की ट्रेन पकड़कर तुम्हारे पास आ रहा हूँ। "मेल्विन ने इरादा करते हुए कहा। 

अपनी माँ की इन्हीं बातों को सोचकर मेल्विन को तसल्ली मिली थी। लेकिन वो अभी लक्ष्मण और अपनी माँ के विचारों के बीच उलझा हुआ था।

मेल्विन अगले दिन जब ट्रेन में चढ़ा तो सब उसे देखकर हैरान हुए।

"अरे मेल्विन, तुम घर नहीं गए?" रामस्वरूप जी ने मेल्विन से तुरंत पूछा। पीटर और डॉक्टर ओझा का भी यही हाल था। तब लक्ष्मण ने कहा, "मैं जानता हूँ, मेल्विन घर क्यों नहीं गया।“ लक्ष्मण ने जब ये कहा तो रामस्वरूप जी उसे देखते रह गए।

"तुम कैसे जानते हो?" उन्होंने लक्ष्मण से पूछा।

"क्योंकि मैं कल कुछ देर मेल्विन के साथ ही था।" लक्ष्मण ने बताया, "कल एक बुजुर्ग की मदद करते हुए मेल्विन की ट्रेन छूट गई थी। मेल्विन ने एक अजनबी की मदद करने के लिए अपनी माँ से किया वादा तोड़ दिया। मेल्विन की माँ ने इन्हें समझाया कि वे कुछ दिन और उसके लिए इंतजार कर सकती है। मेल्विन ने फिलहाल अपने घर जाने का इरादा पोस्टपोंड कर दिया है।"

"ये मैं क्या सुन रहा हूँ मेल्विन। तुम कितने महीने से छुट्टी के लिए परेशान थे। अब जब तुम्हें छुट्टी मिल गई तब तुमने खुद ही जाना कैंसिल कर दिया?" पीटर ने हैरान होते हुए मेल्विन से पूछा, "कहीं इसके पीछे वही लड़की तो नहीं?"

"यह क्या बकवास कर रहे हो पीटर?" डॉक्टर ओझा बिगड़ते हुए बोले, "मेल्विन तुम्हारी तरह नहीं सोचता।"

"मैंने कब कहा कि मेल्विन मेरी तरह सोचता है। मैं तो बस यह कह रहा हूँ कि मेल्विन प्यार में है। अब तक मैं समझता था कि मेल्विन को किसी के साथ की जरूरत है। ऐसा साथ जो उसे हमसे नहीं मिल पा रहा। लेकिन यह लक्षण साथ पाने का नहीं, बल्कि प्यार का है।"

"क्या! प्यार!" लक्ष्मण ने हँसते हुए कहा, "नहीं मेल्विन, बहुत मुश्किल से मुझे तुम्हारी समझदारी पर यकीन हुआ है। इस उम्र में अब प्यार-व्यार के चक्करों में अब मत पड़ना। यह वक्त तो मेरा और मेरे उम्र के लड़कों का है।"

"प्यार की उम्र कब से होने लगी मैनेजर साहब?" पीटर ने पूछा, "जिस उम्र में सच्चा प्यार मिल जाए, वही उम्र प्यार की होती है। आप लोगों को मेरी बातों पर यकीन हो या न हो, लेकिन मुझे इस बात का पूरा यकीन है कि मेल्विन प्यार में है। भला जिस लड़की को इसने देखा नहीं, जिसका यह नाम तक नहीं जानता, उसके लिए अपनी माँ से किया वादा तोड़कर मेल्विन यहाँ क्यों रुका। मैं मानता हूँ कि अपनी माँ की बात मानकर ही मेल्विन यहाँ रुका है। लेकिन सिर्फ माँ की बात मानना ही एकमात्र वजह नहीं है।"

"नहीं पीटर, तुम गलत हो। ऐसी कोई बात नहीं है। एक जरूरी काम छोड़कर मैं जा रहा था, जिसे पूरा करने का मौका मेरी माँ ने मुझे दिया। और शायद उस अजनबी अंकल ने भी।" मेल्विन ने अपने बचाव में कहा।

"मेल्विन, वह देखो, क्या तुम इस लड़की की बात कर रहे थे?" तभी एकाएक पीटर ने प्लेटफॉर्म की ओर इशारा करते हुए पूछा। मेल्विन तुरंत बाहर देखने के लिए खिड़की से झाँकने लगा।

"लो कर दी मैंने अपनी बात साबित।“ पीटर ने हँसते हुए कहा, “वहाँ कोई नहीं है मेल्विन। मैं तुम्हारे प्यार की परीक्षा ले रहा था। जिस उतावलेपन और लालसा भरी नजर से तुमने खिड़की के बाहर देखा है, उसे देखकर कोई भी कह सकता है कि तुम जबरदस्त प्यार में हो दोस्त।"

मेल्विन कुछ न बोला। लेकिन वहाँ मौजूद सब मेल्विन पर हँसने जरूर लगे थे। मेल्विन को शर्मिंदगी महसूस हुई। साथ ही उसे यह भी लगने लगा था कि कहीं न कहीं पीटर सही है।

"लेकिन क्या इस तरह प्यार में पड़ जाना भी ठीक है मेल्विन? मेरा मतलब, जाने वह लड़की फिर तुम्हें कभी दिखे या न दिखे; और तुम उसके लिए इतने सपने सजाकर रख रहे हो। मुझे लगता है कि तुम्हें सीरियस होने से पहले उस लड़की से एक बार मिल लेना चाहिए।"

"मैनेजर साहब, मैं भी तो आखिर यही चाहता हूँ। लेकिन वो लड़की कहीं गायब हो गई तो भला मेल्विन क्या कर सकता है।" पीटर ने मेल्विन का साथ देते हुए कहा।

इससे पहले कि लक्ष्मण कुछ और कहता, पीटर ने फिर कहा, "मेल्विन, शायद जिसे तुम ढूँढ़ रहे थे वो आ गई।" इस बार जब पीटर ने ये कहा तो उसकी बातों पर किसी ने गौर नहीं किया। सबको यही लगा कि पीटर फिर मजाक कर रहा है।

"मेल्विन, सचमुच वहाँ कोई लड़की तो है।" डॉक्टर ओझा ने कहा। ट्रेन की भीड़ में लड़कियों की एक टोली बगल वाले कंपार्टमेंट में आकर खड़ी हो गई थी। मेल्विन ने फिर झट से उस ओर देखा। तब तक उस लड़की ने अपना मुँह दूसरी तरफ कर लिया था।

"मैंने देखा उसे।" रामस्वरूप जी ने कहा, "मेल्विन, शायद वो भी कोई क्रिश्चियन लड़की है। उसके गले में क्रॉस जैसा कुछ है।"

"मैंने नहीं देखा।" मेल्विन ने उदास होते हुए कहा।

"कैसे देखोगे। जब मैंने कहा देखने को तब तो तुमने मेरी बात पर यकीन नहीं किया।" पीटर ने मेल्विन से नाराज होते हुए कहा, "कहो तो मैं बातचीत शुरू करने के लिए कोई तिकड़म लगाऊँ।"

"मेल्विन, इसे रोक लो। मुझे इस आदमी पर बिल्कुल भी यकीन नहीं है।" लक्ष्मण ने कहा, "लड़की से भला इस तरह बात करने कौन जाता है।" 

"हर काम नियम और कायदे से नहीं होता मैनेजर बाबू।" पीटर ने कहा, "ये दिल का मामला है। दिमाग का यहाँ कोई काम नहीं है।"

"दिल का काम दिमाग से और दिमाग का काम दिल से न करो तो सब गड़बड़ हो जाता है।" रामस्वरूप जी ने कहा, "पीटर, मैं यहाँ लक्ष्मण की बातों से सहमत हूँ। अगर मेल्विन ही पहल करे तो सही रहेगा। वो लड़की कोई 16 या 18 बरस की नहीं है। उसकी जिम्मेदारियाँ और अपना स्टैंड भी कुछ होगा। क्या पता वो परिवार वाली लड़की। शादीशुदा हो। क्रिश्चियन लड़कियों को देखकर तो ये सब मालूम कर नहीं सकते। और जरा आहिस्ते बात करो। उस तक हमारी आवाज पहुँच सकती है।"

रामस्वरूप जी ने सबसे जरूरी बातों की ओर सबका ध्यान खींचा था।

“मेरे मन में भी कुछ ऐसे ही ख्याल आ रहे थे रामस्वरूप जी।” डॉ. ओझा ने कुछ सोचते हुए कहा, “ये पहले से जान लेना जरूरी है।”

"मेरे ख्याल से ये न तो इस तरह की बात करने लायक जगह है और न ही किसी को करनी चाहिए। मैं कोई पहल नहीं करने वाला। हाँ, दोस्ती करने का इरादा मैं अब भी रखता हूँ, लेकिन इस तरह सोच-समझकर, साजिश करके नहीं। "

"साजिश करके।" पीटर ने हैरान होते हुए कहा, "ये तुम क्या कह रहे हो मेल्विन? देखो, तुम्हें इस बारे में कोई आईडिया नहीं है इसलिए हम तुम्हें सिर्फ अपनी एडवाइस दे रहे हैं। हर लड़की अलग तरह से इंप्रेस होती है। और हर लड़की इंप्रेस होने के बाद ये जाहिर होने दे ये भी जरूरी नहीं। अगर सोचने में वक्त जाया करोगे तो फिर आगे बढ़ते-बढ़ते तुम्हें कई साल लग जाएँगे।"

"आधी उम्र यूँ भी तुम्हारी निकल चुकी है मेल्विन। अगर तुम किस्मत के भरोसे बैठोगे तो फिर मुझे तो यह नामुमकिन लगता है।" लक्ष्मण ने कहा।

मेल्विन का दिमाग इस समय काम करना बंद कर चुका था। वो लक्ष्मण और पीटर की बातों में पूरी तरह उलझन चुका था। अंततः डॉक्टर ओझा ने मेल्विन से कहा, "मेल्विन, कोई जोर जबरदस्ती नहीं है। मैं जानता हूँ इस समय तुम्हारे दिल में कैसे-कैसे ख्याल आ रहे होंगे। अपने दिल की सुनो और किसी की नहीं। अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हें अभी पहल करनी चाहिए तो फिर कुछ भी सोचने की जरूरत नहीं है। और अगर तुम्हें लगता है कि ये पहल करने का सही समय नहीं है, तो फिर सही वक्त का इंतजार करो। अगर तुम्हारी किस्मत में वो लड़की होगी तो हर हाल में वो तुम्हें मिलेगी। अगर नहीं होगी तो दुनिया की कोई कायनात तुम दोनों को मिला नहीं सकती।"

"ये हुई न कायदे की बात। सुनने में थोड़ी फिल्मी जरूर लगती है लेकिन सच्चाई यही है।" रामस्वरूप जी ने कहा।

कुछ देर बाद जब ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी तो उसी के साथ वो लड़की भी ट्रेन से नीचे उतर गई। मेल्विन को बस इस चीज का मलाल रह गया कि वो न तो उस लड़की का चेहरा देख सका और न ही उसका नाम जान सका।

"बहुत ही बुरी शुरुआत हुई है मेल्विन।“ पीटर ने कहा, "कितने दिनों के बाद तो वो दोबारा दिखी थी लेकिन न तो तुमने उसका चेहरा ही देखने की कोशिश की और न ही उसका नाम जानने की।"

मेल्विन कुछ न बोला। वीटी स्टेशन आते ही वो चुपचाप ट्रेन से नीचे उतर गया।

उस दिन भी मेल्विन ऑफिस में बेचैन रहा। उसके हाथ से कोई भी ढंग का काम नहीं हुआ। तंग आकर उसके बॉस ने मेल्विन को अपने केबिन में बुलाया, "छुट्टी लेकर भी तुम ऑफिस में आए हो मेल्विन। अगर कोई परेशानी है तो तुम घर पर रहकर आराम कर सकते हो। मैं कम से कम तुमसे इस बात की उम्मीद नहीं करता कि तुम्हारे कामों में इतनी कमियाँ आए। तुम्हें देखकर जूनियर कार्टूनिस्ट भी लापरवाही कर रहे हैं। इस तरह कैसे चलेगा मेल्विन?"

"आई एम सॉरी सर।" मेल्विन इतना ही कह सका।

"तुम एक काबिल आर्टिस्ट हो मेल्विन। अगर मैं इस वक्त तुम्हें डाँट लगाऊँ तो क्या अच्छा लगेगा? आज के दौर में तुम उस पोजीशन पर नहीं हो जहाँ मैं तुम्हें डाँट सकूँ। तुम्हें 17 साल से यहाँ काम कर रहे हो। हम दोनों के पिता कभी दोस्त हुआ करते थे। सच कहूँ तो मैं तुम्हारी आर्ट की इज्जत करता हूँ। मैं खुशनसीब हूँ कि मुझे तुम जैसा आर्टिस्ट मिला है। इसलिए मैं तुम्हें चाहकर भी डाँट नहीं सकता। लेकिन साथ ही तुमसे ये भी उम्मीद करता हूँ कि तुम ऐसा कोई काम भी नहीं करोगे मेल्विन।"

"1 मिनट सर, क्या कहा आपने?" मेल्विन हैरान होते हुए बोला, "क्या आपके पिता मेरे पिता को सचमुच जानते थे?"

मेल्विन ने जब यह सवाल पूछा तो उसके बॉस अपना माथा सहलाने लगे। उनके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें जो बात नहीं करनी चाहिए थी, वो उन्होंने कह दी थी।

"हाँ मेल्विन।" मेल्विन के बॉस ने कहा, " हमारे बीच एक प्रोफेशनल रिश्ता कायम रहे इसलिए, मैं तुम्हें यह बात नहीं बताना चाहता था। लेकिन आज तुमने मुझे यह कहने के लिए मजबूर कर दिया।"

"लेकिन मैं अब भी ये बात समझ नहीं पा रहा हूँ कि मेरे पिता और आपके पिता एक-दूसरे के दोस्त कैसे हो सकते हैं सर? क्या आपको उन दोनों की दोस्ती के बारे में कुछ मालूम है? जैसे, वे कहाँ मिले और किन परिस्थितियों में मिले?"

"तुम ये सब क्यों पूछ रहे हो मेल्विन? तुम्हारे पिता को गुजरे तो काफी वक्त हो चुका है।" मेल्विन के बॉस ने पूछा।

"हाँ, जब मैं बहुत छोटा था तभी पिताजी गुजर गए थे। ये बात माँ को भी नहीं पता कि उनकी मौत कैसे हुई। बचपन से तरह-तरह की बातें सुनी है लेकिन मैंने कभी उन बातों पर यकीन नहीं किया। सर, आज आपने मेरे पिता का जिक्र करके मुझे एक और परेशानी में डाल दिया है। जिस सच्चाई से अब तक मैं दूर भगाने की कोशिश कर रहा था वो सच्चाई अब मुझे उतनी ही जोर से अपनी और खींच रही है।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" मेल्विन के बॉस ने हैरान होते हुए पूछा।

"मेरे पिता की जिंदगी और रहस्यों से भरी थी सर। कहते हैं कि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी बड़ी ठाठ से गुजारी थी। उनके इस अंदाज को पसंद करने वाले बहुत कम लोग थे। लेकिन जो भी थे बड़े वफादार और ठोस इरादे वाले लोग थे। मैं अपने पिता के बारे में हमेशा यही सोचता हूँ कि क्या वे एक अच्छे इंसान थे या फिर एक बुरे इंसान।"

मेल्विन की बात सुनकर उसका बॉस उसे हैरानी से देखने लगा था। 

आखिर मेल्विन के पिता की क्या कहानी थी? मेल्विन को ऐसा क्यों लगता था कि उसके पिता एक बुरे इंसान भी हो सकते थे? क्या मेल्विन अपनी बीती जिंदगी में उलझ जाएगा या फिर वो भविष्य की ओर नया कदम रखेगा? 

Continue to next

No reviews available for this chapter.