एपिसोड 6 - मेल्विन का प्यार
"बेवकूफ है मेल्विन। फालतू में आप लोग उसे सिर पर बिठाए रहते हैं। भला ये कोई उम्र होती है लड़की के पीछे भागने की। इसलिए मैं उससे कभी बात नहीं करता।" रामस्वरूप जी के बेटे लक्ष्मण ने उनसे कहा तो रामस्वरूप जी मन ही मन मुस्करा उठे। एक उम्र के बाद इंसान में लोगों को परखने की खूबी आ जाती है। कुछ लोग ऐसे इंसान के मन में ख़ास जगह बना लेते हैं।
"तुमने अभी मेल्विन को जाना नहीं है लक्ष्मण। मैं जानता हूं मेल्विन को। उसका दिमाग हीरे का है और दिल सोने का। जितने अच्छे वो स्केच बनता है उतना ही अच्छा वो इंसान भी है।" रामस्वरूप जी ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा।
"अच्छा, तो यह कोई उम्र है लड़की देखने की? उस इंसान की हिम्मत तो देखिए, कैसे सबके सामने लड़की से अपनी दोस्ती बढ़ाने की बात करता है।"
"नहीं लक्ष्मण, तुम गलत समझ रहे हो। मेल्विन ने कभी भी उस लड़की के बारे में ऐसा कुछ नहीं कहा। वह एक आर्टिस्ट है। उसे हर एक चीज में आर्ट दिखता है। मैं जानता हूँ, उस लड़की में भी उसे और कुछ नहीं बल्कि एक आर्ट ही दिखा है जिसकी वजह से वो उसे लेकर इतना सीरियस है।"
"दरअसल आप लोग उसके साथ रहते-रहते इतने आदी हो चुके हैं कि अब उसकी कमियाँ भी आप लोग को खूबियाँ दिखती है।" लक्ष्मण ने कहा।
"अब मैं तुम्हें और क्या ही कहूँ बेटे। अब तुम हमारे साथ ही आने-जाने लगे हो तो एक दिन जरूर मेल्विन को समझ जाओगे।"
"देखते हैं वह दिन कब आता है। अब तक तो मुझे आप लोग का पूरा ग्रुप ही बेहद बचकाना और अजीब लगा।"
"जानते हो बेटा, तुम्हारी समस्या क्या है। तुम्हें सिर्फ काम करते हुए लोग पसंद आते हैं। काम के साथ जिंदगी जीते और मौज-मस्ती करते हुए लोग तुम्हें बेकार लगते हैं। तुम बैंक में मैनेजर तो हो गए बेटा लेकिन जिंदगी कैसे मैनेज की जाती है ये तुम नहीं सीख पाए। ये जो तुम इतना कम कौन बोलते हो लेकिन इतना सब कुछ सोचते रहते हो, यह तुम्हारी खूबी होनी चाहिए थी लेकिन यह तुम्हारी सबसे बड़ी खामी है।"
"मैंने कड़ी मेहनत की है और खुद को इस काबिल बनाया है तब मैं आज बैंक में मैनेजर के पद पर हूँ पापा। आप मुझे हमेशा गलत समझते हैं। मुझे मेल्विन या आपके किसी भी साथी से कोई जाति समस्या नहीं है। मैं तो सिर्फ अपना पॉइंट ऑफ व्यू आपको बता रहा था। उन्हें अब उम्र के साथ-साथ थोड़ी मैच्योरिटी भी दिखानी चाहिए। आपके ग्रुप में एक भी शख्स मेच्योर नहीं है। मैं बस आपसे यही कहना चाहता था।"
"एक आखिरी बात मुझसे भी सुन लो लक्ष्मण। अगर मैच्योरिटी का मतलब बचपन खो देना है तो हम और हमारे दोस्त बचकाने ही सही। देखना, एक दिन तुम भी इस बचकानी हरकतों और हँसी-मजाक को पसंद करोगे। तुम्हें अपने इस रवैये से नफरत हो जाएगी।" रामस्वरूप जी ने इतना कहा और फिर अपने केबिन में जाकर बैठ गए। बैंक में घुसते ही पिता और बेटे कैशियर और मैनेजर की भूमिका में आ गए थे।
इधर मेल्विन ऑफिस पहुँचते ही सीधे अपने बॉस के पास उनके केबिन में पहुँचा।
"सर, मैं कुछ दिनों के लिए अपनी माँ के पास जा रहा हूँ।" मेल्विन ने कहा, "माँ बीमार है, इसलिए अभी मैं लौटने के बारे में आपसे कुछ नहीं कह सकता। माँ के ठीक होते ही मैं वापस लौट आऊँगा। अभी सिर्फ इतना ही कह सकता हूँ।"
"ठीक है, मेल्विन। तुमने अपना काम समय पर करके मुझे दे दिया है। तुम छुट्टी के लिए काफी समय से रिक्वेस्ट कर रहे थे इसलिए मैं तुम्हें इस बार नहीं रोकूँगा। जाओ अपनी माँ का ख्याल रखो। मुझे उम्मीद है कि वे जल्दी ही स्वस्थ हो जाएँगी और तुम वापस काम पर लौट आओगे।"
मेल्विन को छुट्टी मिल गई थी। लेकिन उसे कहाँ मालूम था कि उसकी किस्मत में अभी अपनी माँ से मिलना नहीं लिखा था।
अगले दिन मेल्विन अपनी माँ से मिलने के लिए खुशी-खुशी घर से निकला। वो रेलवे स्टेशन पहुँचकर मीरा रोड-पालघर लोकल ट्रेन में चढ़ गया। ट्रेन की सीटी से पूरा स्टेशन गूँज उठा और फिर पटरी पर सरकते हुए ट्रेन आगे बढ़ने लगी।
तभी मेल्विन की नजर एक बूढ़े शख्स पर पड़ी। वह सिर पर बोझ उठाए ट्रेन की तरफ दौड़ रहा था। शायद उसे ट्रेन में चढ़ना था लेकिन आने में देर हो गई थी इसलिए ट्रेन पकड़ने के लिए उसने दौड़ लगा दी थी। दौड़ते-दौड़ते ही वो बूढ़ा आदमी लड़खड़ाकर प्लेटफार्म पर गिर गया।
"अरे, कोई बचाओ उन्हें।" मेल्विन ने जब ये देखा तो उसके मुँह से चीख निकल गई।
उस बूढ़े आदमी को बचाने कोई नहीं आया। मेल्विन ने फिर बिना सोच-विचार किए ट्रेन से बाहर छलाँग लगा दी। सही समय पर अगर मेल्विन ने उस आदमी को पकड़कर खींच न लिया होता तो वो ट्रेन के नीचे आ जाता।
"अरे अंकल, ये क्या कर रहे हैं आप?" मेल्विन ने लगभग डाँटते हुए उस बूढ़े आदमी से कहा, "अभी आप ट्रेन के नीचे आ जाते।“
मेल्विन ने देखा, वहाँ आसपास अच्छी-खासी भीड़ जमा थी लेकिन किसी ने भी आगे बढ़कर उस बूढ़े आदमी की मदद करना ठीक नहीं समझा। मेल्विन को गुस्सा तो आया लेकिन उसका ध्यान उस बूढ़े आदमी ने अपनी ओर खींच लिया।
"आ जाने देते बेटा। आज तो कम से कम इस जीवन से छुटकारा मिल जाता।" बूढ़े आदमी ने कहा।
"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप अंकल? भला इस तरह मरना भी कोई मरना होता है। और मरने की आपको इतनी जल्दी क्यों है। एक न एक दिन तो सबको जाना ही है फिर इतनी जल्दी किस बात की है आपको?" मेल्विन ने पूछा।
"बड़ी मुश्किल से टिकट के पैसों का इंतजाम हुआ था बेटा। मुझे अपने गाँव जाना है। 7 साल से मैंने अपने परिवार को नहीं देखा। अपनी पत्नी को नहीं देखा।" कहते-कहते उस बूढ़े आदमी की आँखों से आँसू बह निकले।
मेल्विन अब बात की गंभीरता को धीरे-धीरे समझने लगा था। उसने पूछा, "कहाँ है आपका गाँव अंकल?"
"आगरा।" बूढ़े आदमी ने कहा।
"आगरा!” मेल्विन ने हैरान होते हुए कहा।
"हाँ बेटा।" बूढ़े आदमी ने जवाब दिया।
"वह तो यहाँ से बहुत दूर है अंकल। वहाँ जाने के लिए आप इस लोकल ट्रेन में क्यों चढ़े थे?" मेल्विन ने पूछा।
"क्या यह ट्रेन आगरा नहीं जाती?" बूढ़े आदमी ने पूछा।
"नहीं। आपसे किसने कहा कि यह गाड़ी आगरा जाती है?"
"जिसने मुझे ये टिकट दिया उसी ने।" बूढ़े अंकल ने टिकट काउंटर की ओर इशारा करते हुए मेल्विन से कहा।
"क्या कहा उन्होंने आपसे?"
"उन्होंने कहा कि प्लेटफार्म नंबर 7 पर आगरा जाने वाली गाड़ी खड़ी है। वह गाड़ी बस खुलने ही वाली है इसलिए तुम्हें तुरंत दौड़कर जाना होगा। मैं यहाँ आया तो देखा कि एक गाड़ी खुल चुकी थी। मैं इस पर चढ़ने के लिए दौड़ रहा था।"
"शायद आपको कोई गलतफहमी हुई है अंकल। मेरे साथ चलिए। मैं आपको आगरा की गाड़ी में बिठा देता हूँ।"
मेल्विन ने कहा और उस बूढ़े आदमी को लेकर आगरा जाने वाली गाड़ी की ओर बढ़ गया। मेल्विन ने प्लेटफॉर्म पर लगे बड़ी स्क्रीन की ओर नजर उठाकर देखा, "अंकल, आगरा की ट्रेन आज शाम 7:00 बजे की है। इस समय सुबह के 7:00 बज रहे हैं। आपको 12 घंटे का इंतजार करना पड़ेगा।"
"12 घंटे का इंतजार। तब तक मैं यहाँ क्या करूँगा? मेरे पास तो इतने रुपए भी नहीं है कि मैं 12 घंटे का गुजारा कर सकूँ। अगर मैंने यहाँ और खर्च किया तो सफर में खर्च करने के लिए मेरे पास एक भी रुपया नहीं बचेगा।"
"अंकल, ये वक्त गुजारने में मैं आपकी मदद करूँगा। ठीक 7:00 बजे हम इसी प्लेटफार्म पर आ जाएँगे। अगर वो गाड़ी छूटी तो फिर आपको कल शाम 7:00 बजे ही दूसरी गाड़ी मिलेगी।"
"तुम मेरे लिए यह सब क्यों कर रहे हो बेटे? मैं तो तुम्हें जानता भी नहीं।"
"किसी की मदद करने के लिए उसे जानना जरूरी है क्या अंकल? आप मुसीबत में और आपको मदद की जरूरत है, बस इतना काफी होता है मदद करने के लिए।"
मेल्विन की बात सुनकर उसे बूढ़े आदमी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। उसने मेल्विन से पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है बेटा?"
"जी मेरा नाम मेल्विन है। मेल्विन फर्नांडीज। मैं एक कार्टूनिस्ट हूँ। आम लोगों की जिंदगी से खुशियाँ चुनकर उन्हें स्केच के रूप में ढालता हूँ।"
ये सुनकर वो बूढ़ा आदमी मुस्कुराने लगा, जैसे मेल्विन के परिचय ने उसकी पूरी जिंदगी उस बूढ़े आदमी के सामने खोलकर रख दी हो।
"इसलिए तुम इतने मिलनसार हो। दूसरों की मदद तुम अपना फर्ज समझकर करते हो। तुम्हारा तो काम ही दूसरों की जिंदगी में खुशी घोलना है। ईश्वर तुम्हें खूब तरक्की और खुशियाँ दे।" बूढ़े ने आशीर्वाद दिया तो मेल्विन के चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गई।
"मुझे माफ करना बेटे। मेरी वजह से तुम्हारी ट्रेन छूट गई। क्या तुम भी गाँव जा रहे थे?" बूढ़े आदमी ने मेल्विन से पूछा।
"हाँ अंकल, मैं भी अपने गाँव माँ से मिलने जा रहा था। मैंने माँ से वादा किया था कि आज का दिन मैं उसके साथ ही बिताऊँगा। लेकिन शायद मेरी किस्मत में ये नेक काम करना लिखा था।"
"मुझे ये जानकर दुख हुआ बेटे कि मेरी वजह से तुम अपनी माँ से नहीं मिल पाए।"
"कोई बात नहीं अंकल, आज नहीं तो कल मैं अपनी माँ से मिल ही लूँगा। लेकिन आज अगर मैं आपकी मदद करने नहीं आता तो पश्चाताप करके भी मुझे शांति नहीं मिलती। आपकी मदद करके मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने अपने पिता की मदद की है।"
"तुम्हारा ख्याल काफी अच्छा है बेटे। कोई किसी अजनबी के लिए इतना सोच सकता है, यकीन नहीं होता।"
"इसमें यकीन न करने वाली कोई बात नहीं है अंकल। भला दूसरों की मदद करने से ज्यादा आम बात और क्या हो सकती है। इससे हम खुद की भी तो मदद कर रहे होते हैं। अगर मैंने आपकी मदद की तो उससे भी बड़ी चीज तो मैंने पाई। आपकी मदद करने का सुख।"
"लेकिन अब तुम क्या करोगे मेल्विन बेटे? तुम अपनी माँ को किया वादा कैसे पूरा करोगे। अगर तुम आज अपनी माँ से नहीं मिले तो फिर मुझे बहुत बुरा लगेगा। शायद अपने गाँव जाने की खुशी भी मैं न मना सकूँ।"
"ऐसा मत सोचिए अंकल। जहाँ तक अपनी माँ से किए वादे को निभाने की बात है, तो माँ को मैं समझा दूँगा। लेकिन फिलहाल मैं आपको आगरा की गाड़ी में बिठाने से पहले यहाँ से कहीं नहीं जाने वाला।"
"नहीं बेटा, तुमने मुझे सही गाड़ी के बारे में बता दिया। मैं चढ़ जाऊँगा। मैं अब पहले ही अपने प्लेटफॉर्म पर जाकर बैठ जाऊँगा। ट्रेन का दरवाजा खुलते ही मैं उसमें बैठ जाऊँगा। तुम्हें मेरे साथ रुकने की जरूरत नहीं है।"
"मेरे लिए अपनी माँ से मिलना जीतना जरूरी है अंकल, उतना ही जरूरी आपका अपनी पत्नी से मिलना भी है। अगर साथ दिया है तो फिर बीच में छोड़कर नहीं जा सकता। आप मेरी फिक्र मत कीजिए। मैं तो बस में भी अपनी माँ से मिलने जा सकता हूँ। वो आखिर रहती हैं कितनी दूर है। यहाँ से तीन-चार घंटे का रास्ता है। लेकिन आपको तो शायद 30 40 घंटे लग जाए।"
उस बूढ़े शख्स ने फिर मेल्विन से कुछ नहीं कहा। बस मन ही मन मेल्विन के बारे में सोचता रहा। अपनी माँ से मिलने जाने का इरादा छोड़कर उसने एक बूढ़े निर्बल इंसान की मदद करने की सोची, ये देखकर ही उसकी आँखों में आँसू भर आए थे।
तभी जाने कहाँ से रामस्वरूप जी का बेटा वहाँ आ पहुँचा। उसने उस बूढ़े आदमी और मेल्विन के बीच की सारी बातें सुन ली थी।
"पापा, इसके बारे में ठीक कहते हैं। ये आदमी किसी और चीज से बना है। मैंने इसके बारे में न जाने क्या-क्या सोच लिया था। इस अजनबी बूढ़े के लिए अपनी माँ से मिलने जाने का इरादा छोड़ देना, ये सोच ही कितनी महान है। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ।“
लक्ष्मण चलकर मेल्विन के पास आ गया।
“अरे लक्ष्मण, तुम यहाँ!” मेल्विन ने हैरानी से पूछा।
“बैंक में मैनेजर हूँ मेल्विन बाबू, ड्यूटी टाइम में भी मौका मिल जाता है। एक-दो घंटे लेट चलता है। मैं यहाँ खड़े आप दोनों की बातें ही सुन रहा था। आप आखिर किस मिट्टी से बने हैं मेल्विन बाबू। महीनों की कोशिश के बाद आखिरकार आपको छुट्टी मिली थी। ऐसे में ट्रेन छोड़कर आप किसी और की मदद कर रहे हैं। वाकई आप कमाल हैं। मुझे मालूम नहीं था कि मेरी सोच आपके प्रति इतनी जल्दी बदल जाएगी। लेकिन मेल्विन, अब ये तो ठीक बात नहीं है कि आप अपनी माँ से किया वादा तोड़ दो। किसी की मदद करना बहुत अच्छी बात है लेकिन अपनी माँ से किया वादा तोड़कर किसी की मदद करना क्या ठीक है?"
लक्ष्मण ने मेल्विन से यह बात कहकर उसे परेशानी में डाल दिया था।
क्या मेल्विन अपनी माँ से किया वादा पूरा कर पाएगा? क्या वह आज अपने गाँव पालघर लौट पाएगा?
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