एपिसोड 5 - एक चेहरे की तलाश

"ऐ, ये क्या कर रहे हो? वह लेटर मुझे वापस दे दो।" मेल्विन ने जग्गू के हाथ से वह लेटर छिनने की कोशिश करते हुए कहा। 

“गर्लफ्रेंड... लवलेटर... अरे वाह अंकल!” जग्गू ने कहा, “किस्मत भी क्या गजब चीज है। सुबह तेरे साथ थी, अब मेरे साथ है।“

जग्गू ने उस लेटर के टुकड़े-टुकड़े करके चलती ट्रेन की खिड़की से बाहर फेंक दिया। मेल्विन और पीटर के देखते रह गए थे। मेल्विन दौड़कर ट्रेन की खिड़की के पास पहुँचा तो था लेकिन उसके हाथ न कुछ आना था और न कुछ आया।

"वह लेटर किसी लड़की का नहीं, एक मरे हुए बूढ़े बाप का था। यह तुम लोगों ने ठीक नहीं किया।" पीटर ने गुस्से में कहा। जबकि मेल्विन चुपचाप खड़ा था।

इससे पहले की पीटर का गुस्सा फूट जाता मेल्विन ने उसे शांत रहने का इशारा किया।

"देख, हमारा मामला बराबर हो गया। अब न तुम्हें मुझसे कुछ लेना देना है और न मुझे तुम दोनों से। चल सतपाल।" ट्रेन की स्पीड धीमी होते ही जग्गू सतपाल को लेकर ट्रेन से नीचे कूद गया।

"तुमने उससे कुछ कहा क्यों नहीं?" पीटर ने मेल्विन की ओर देखते हुए पूछा, "अब तुम कैसे जान पाओगे कि उस लेटर में क्या लिखा था?"

"मुझे नहीं पता पीटर!" मेल्विन ने उदास होते हुए कहा, "मैं उस गुजर चुके बूढ़े शख्स को नहीं जानता था और न मैं उसके बेटे को जानता हूँ। यह दोनों अपनी जिंदगी के कौन से गड़े मुर्दे उखाड़ने वाले थे, मुझे नहीं मालूम और न अब मैं उसे जानना चाहता हूँ पीटर।"

"क्या पता वह अपनी जिंदगी के नहीं, बल्कि तुम्हारी जिंदगी के कोई राज खोलना चाहते थे।" पीटर के मन में ख्याल आया, "अगर उस मरते हुए बूढ़े पिता ने अपने बेटे को अपनी आखिरी ख्वाहिश बताकर ये लेटर तुम तक पहुँचाया था, तो जरूर इसमें उसका नहीं तुम्हारा कोई फायदा रहा होगा।"

मेल्विन ने पीटर की बात सुनकर भी उसे कोई जवाब नहीं दिया। तब पीटर ने कहा, "खैर, जैसा तुम ठीक समझो मेल्विन।" 

उसे दिन घर लौटने पर भी मेल्विन के दिमाग से वह लेटर नहीं निकला। पीटर की आखिरी बात उसके दिमाग में बार-बार गूँज रही थी। वह अपने आसपास एक अदृश्य जाल जैसा महसूस करने लगा था। एक ऐसा जाल जिसके अंदर वह धीरे-धीरे कैद होता जा रहा था।

"आखिर मेरे साथ ये हो क्या रहा है?” मेल्विन अपने आप से बड़बड़ाता हुआ बोला, "एक तरफ माँ मेरा इंतजार कर रही है और एक तरफ वो लड़की है जिसकी हँसी मुझे हर पल हर जगह सुनाई देती है। इतना सबकुछ कम था कि यह लेटर वाला मामला और हो गया। मैं तो उस घनश्याम को जानता भी नहीं। पता नहीं मैं कभी जान भी पाऊँगा कि नहीं। आखिर घनश्याम के पिता मुझसे क्यों मिलना चाहते थे और उन्होंने उस लेटर में क्या लिखकर भेजा था।"

पूरी रात मेल्विन इन्हीं ख्यालों में डूबा रहा। अगली सुबह उसकी नींद एक बार फिर अपनी माँ के फोन की घंटी की आवाज सुनकर खुली।

"उठ गए बेटा?" फोन उठाते ही मेल्विन की माँ ने फोन की दूसरी तरफ से पूछा।

"हाँ माँ, बस अभी-अभी उठा। चाय-नाश्ते के बाद नहाने जा रहा था कि आपका फोन बज उठा।" मेल्विन ने झूठ बोलते हुए कहा। रोज-रोज वो ये नहीं कह सकता था कि वो फोन की घंटी की आवाज सुनकर ही उठा है। इससे माँ को बुरा लगता।

"क्या बनाया था आज नाश्ते में?" मेल्विन की माँ ने पूछा तो मेल्विन एक नया झूठ बोलने के लिए कुछ देर रुक गया।

"वह मैंने आज…।" मेल्विन ने अटकते हुए अभी इतना कहा ही था कि उसकी माँ ने बीच में ही टोकते हुए कहा, "एक और झूठ बोलने की जरूरत नहीं है बेटा। तुम्हारी आवाज सुनकर ही मैं समझ गई थी कि तुम अभी-अभी जगे हो। अभी 6 नहीं बजे हैं। आज मैंने तुम्हें 6 बजने से पहले ही फोन कर दिया। अब तो मेरी ये रोज की आदत बन चुकी है। सुबह होते ही सबसे पहले तुम्हें फोन करके बात करना। दिन भर तुम ऑफिस में व्यस्त रहते हो और शाम को थके-हारे घर लौटने हो इसलिए मैं सुबह के इस समय तुम्हें फोन करती हूँ। मैं जानती हूँ, इस वक्त या तुम सो रहे होते हो, या फिर जल्दी-जल्दी काम निपटाकर ऑफिस निकलने की तैयारी करते हो। लेकिन मैं क्या करूँ, मुझे तुमसे आखिर बात तो करनी ही है बेटा।"

"सॉरी माँ। मैं झूठ नहीं बोलना चाहता था। दरअसल, मैं तुम्हें या बताकर दुखी नहीं करना चाहता था कि मैं अभी-अभी उठा हूँ। जहाँ तक तुम्हारे फोन करने की बात है तो हर रोज तुमसे बात करके मुझे अच्छा लगता है माँ। दिन की शुरुआत तुमसे बात करके होती है, इससे अच्छा और क्या हो सकता है।"

"माँ से बातें करना ही अच्छा लगता है या उससे मिलने का भी कोई इरादा है तुम्हारा?" इस बार मेल्विन की माँ ने पूछा, तो मेल्विन को माँ की आवाज कुछ कमजोर मालूम हुई। वो घबरा गया।

"माँ, तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न? तुम्हारी आवाज कुछ कमजोरी-सी लग रही है। क्या तुम्हें बुखार है माँ?"

मेल्विन की बात सुनकर उसकी माँ कुछ देर के लिए खामोश हो गईं। मेल्विन को यह समझते में देर नहीं लगी कि उसकी माँ सचमुच बीमार है।

"कल रात में सिर बहुत भारी-भारी सा था। तेल-मालिश करके सोई थी, लेकिन अभी उठने के बाद भी सिर का दर्द गया नहीं है। थोड़ी हरारत-सी भी लग रही है।"

अपनी माँ की बात सुनकर मेल्विन मायूस हो गया। 

"इतने बड़े घर में मैं बूढ़ी आखिर अकेले ही तो रहती हूँ। कब तक मैं खुद को संभालूँगी बेटा? मुझे तो अब याद भी नहीं कि मैंने तुम्हें पिछली बार कब देखा था। क्या तुम सचमुच काम में इतने फँस गए हो बेटा कि मुझसे आकर मिलने की भी फुर्सत नहीं है तुम्हें?"

मेल्विन की स्थिति अब ऐसी हो गई थी कि वो अपनी माँ के सामने कोई नया बहाना भी नहीं बन सकता था। उसने अपनी माँ से एक बार फिर कहा, "माँ, तुमसे बढ़कर मेरे लिए कुछ भी नहीं है। मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ वो तुम्हारे लिए ही कर रहा हूँ। लेकिन अब और नहीं माँ। इस बार मैं तुम्हें वचन देता हूँ, मैं परसों की सुबह तुमसे फोन पर नहीं, बल्कि आमने-सामने बैठकर बात करूँगा।"

मेल्विन ने जब यह कहा तो उसकी माँ को एक आखिरी उम्मीद नजर आई। उसकी माँ ने आज हँसते-मुस्कुराते हुए कॉल कट किया था।

ऑफिस जाते समय मेल्विन के चेहरे पर भी चमक थी। वो ट्रेन में सफर कर रहे एक माँ-बेटे को देखकर-देखकर कागज पर उनका स्केच बनाता जा रहा था।

"मुझे तो लगा था कि आज तुम और भी परेशान देखोगे।" पीटर ने मेल्विन की तरफ देखते हुए कहा।

"क्यूँ पीटर, ऐसा क्यूँ कह रहे हो तुम?" डॉक्टर ओझा ने पूछा।

"कल शाम को घर लौटते वक्त वही चार लड़के फिर हमारे कंपार्टमेंट में घुस आए थे।" पीटर ने कंपार्टमेंट में मौजूद सबको कल की घटना के बारे में बताते हुए कहा, "कल एक बूढ़े आदमी ने मरते हुए आखिरी निशानी के तौर पर मेल्विन के लिए एक लेटर छोड़ा था। उसका लड़का वो लेटर लेकर मेल्विन के ऑफिस में आया था। लेकिन मेल्विन उस लेटर को पढ़ना ही भूल गया। उसे लेटर के बारे में यहाँ ट्रेन में चढ़ने के बाद ख्याल लाया। जब तक मेल्विन उस लेटर को खोलकर पढ़ता तब तक उन्हीं लड़कों ने वो लेटर मेल्विन के हाथ से छीनकर उसे फाड़ दिया। मेल्विन ये जान ही नहीं पाया कि उस लेटर में आखिर क्या लिखा था।"

"अरे मेल्विन, इतना सब कुछ हो गया और तुमने किसी को बताया भी नहीं। ऊपर से आज तुम खुश भी दिखाई दे रहे हो।" रामस्वरूप जी ने मेल्विन से कहा।

"जब मैंने वो लेटर पढ़ा ही नहीं तो फिर मैं दुख किस बात का मनाऊँ रामस्वरूप जी।" मेल्विन ने पेपर पर अपनी पेंसिल चलते हुए रामस्वरूप को जवाब दिया, "यह देखिए, आजकल के लड़के। इन्हें लगता है जैसे इन्होंने सारी दुनिया देख ली है।"

मेल्विन ने इतनी देर में एक हास्य से भरा स्केच बना लिया था। रामस्वरूप जी ने स्केच को देखते हुए कहा, "तुम भी कमाल हो मेल्विन। कोई भी मौका गवाते नहीं हो। हम यहाँ तुम्हारे बारे में बातें कर रहे हैं और इतनी देर में तुमने क्या खूब स्केच बना लिया। वाकई यह स्केच इस बात को साफ-साफ दर्शाता है कि आजकल के बच्चे अपने आपको कितने अकलमंद और होशियार समझने लगे हैं। वे हम बड़े-बुजुर्गों को अपने आगे कुछ समझते ही नहीं। वह वाकई कमाल कर दिया तुमने।"

बारी-बारी से सबने मेल्विन का वह स्केच अपने हाथ में लेकर देखा। 

तभी पीटर फिर बोल पड़ा, "अरे, एक बात तो मैं आप सबको बताना ही भूल गया!" 

"कौन-सी बात पीटर?" डॉक्टर ओझा ने पूछा।

"हमारे मेल्विन बाबू किसी लड़की की तलाश में है।" पीटर ने कहा। इससे पहले कि वह अपनी बात आगे कह पाता, उसे बीच में ही टोकते हुए रामस्वरूप जी ने पूछा, "क्या! मेल्विन शादी करने जा रहा है?"

"आपका आशीर्वाद रहा रामस्वरूप जी तो वह भी कर लेगा मेल्विन। लेकिन मैं फिलहाल मेल्विन की शादी की बात नहीं कर रहा हूँ। दरअसल हमारे ट्रेन में एक लड़की है जिस पर मेल्विन की नजर टिक गई है। अब मैं ये जिम्मेदारी ली है कि मैं मेल्विन की दोस्ती उसे लड़की के साथ कराऊँ।"

पीटर की बात सुनकर रामस्वरूप का लड़का लक्ष्मण हँसने लगा, “ये क्या मजाक चल रहा है। मेल्विन साहब, आपने अपनी उम्र देखी है। क्यूँ इस उम्र में आप अपनी बेइज्जती करवाना चाहते हैं?”

इससे पहले कि लक्ष्मण कुछ और कहता, रामस्वरूप जी ने उसे रोक दिया।

"यह तो तुमने बहुत हैरानी वाली बात कह दी पीटर। मेल्विन, किसी लड़की को छुप-छुपकर देख रहा है और हमें यह बात मालूम भी नहीं चली। आखिर यह सब कब से चल रहा है?" डॉक्टर ओझा ने मेल्विन से पूछा। 

"ऐसा कुछ भी नहीं चल रहा है डॉक्टर साहब जैसा आप सोच रहे हैं। बल्कि सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है। मेल्विन ने अब तक उस लड़की का चेहरा भी नहीं देखा है। वो नाम तक नहीं जानता। चेहरा तो मैंने भी नहीं देखा, लेकिन नाम तो कम से कम मेल्विन को जानकर रखना था। खैर, उसे ढूँढ़ने में मुझे वक्त नहीं लगेगा।" पीटर ने कॉन्फिडेंट के साथ कहा।

"वो कैसे?” डॉक्टर ओझा ने पूछा।

"मैंने अपनी लाइफ में इस तरह के प्रॉब्लम बहुत बार सॉल्व किए हैं डॉक्टर साहब। मैं अपने कॉलेज में कई दोस्तों की लव स्टोरी शुरू करने में उनकी मदद की है। एक टाइम में मेरे कॉलेज के दोस्त मुझे लव-गुरु कहकर बुलाते थे। ये तो फिर अपना मेल्विन है। मैं मेल्विन के लिए किसी भी हद तक जाकर उस लड़की की पूरी हिस्ट्री और ज्योग्राफी निकालकर लाऊँगा। अब मेरा मकसद उस लड़की और मेल्विन को एक करना है।"

"थम जाओ पीटर। तुम इसे कुछ ज्यादा ही सीरियस ले रहे हो। अगर अभी से इतनी हवाई उड़ान भरोगे तो खुद तो गिरोगे ही, साथ में मुझे भी लेकर गिरोगे।" 

उस दिन शायद मेल्विन की किस्मत अच्छी नहीं थी। वो और पीटर देर तक उस लड़की के आने का इंतजार करते रहे लेकिन वो नहीं आई। थक-हारकर मेल्विन ने कहा, "छोड़ो अब इंतजार करना। शायद वह आज नहीं आएगी।"

तभी डॉक्टर ओझा अपनी जगह से उठते हुए बोले, "ठीक है, मेरा स्टेशन आने वाला है। मैं चलता हूँ। मेल्विन, अगर वो लड़की दिख जाए और उसका नाम पता चले तो मुझे जरूर बताना। मेरी दुआएँ तुम्हारे साथ हैं।"

मेल्विन डॉक्टर ओझा की बात सुनकर मुस्कुराने लगा।

"थैंक यू डॉक्टर साहब। मेरी किस्मत शायद सचमुच अच्छी नहीं है। कल मैं नहीं आऊँगा। मैंने माँ से मैंने वादा किया है कि कल का दिन मैं उसके साथ ही बिताऊँगा।" मेल्विन ने जब यह कहा तो सब हैरानी से उसकी ओर देखने लगे।

"ये तुम क्या कह रहे हो मेल्विन। क्या तुम सचमुच इस कहानी को यूँ ही अधूरा छोड़कर माँ से मिलने जा रहे हो?" पीटर ने पूछा।

"यह कहानी तो चलती रहेगी पीटर। लेकिन माँ की तबीयत ठीक नहीं है। मैं उसे ऐसी हालत में अकेला नहीं छोड़ सकता।" मेल्विन ने पीटर को समझाते हुए कहा।

"तुम ठीक कह रहे हो मेल्विन। भला माँ से बढ़कर और कौन हो सकता है। ऊपर से वे बीमार हैं। तुम्हें उनसे मिलने जरूर जाना चाहिए। शायद लौटने के बाद तुम्हारी किस्मत चमक जाएँ।" डॉक्टर ओझा ने इतना कहा और ट्रेन के रुकते ही वे नीचे उतर गए।

"यह सब तो ठीक है मेल्विन, लेकिन क्या तुम वाकई कल के उस लेटर के पीछे का राज भी नहीं जानना चाहते?" पीटर ने एक आखिरी बार कोशिश करते हुए मेल्विन से पूछा।

"मेरा ऐसा कोई इरादा तो नहीं है पीटर। लेकिन तुम इतना ही परेशान हो रहे हो तो मैं एक बार कोशिश जरूर करूँगा। अगर घनश्याम मुझे कहीं भी दिखाई दिया तो मैं उसे पड़कर उसके पिता के बारे में और जानकारी जरूरी इकट्ठी करूँगा।"

क्या मेल्विन अपनी माँ को किया वादा पूरा कर पाएगा? क्या उस लड़की से मेल्विन की मुलाकात हो पाएगी? क्या उस लेटर का रहस्य मेल्विन के सामने खुल पाएगा?

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