बबलू अपने चचेरे भाईयों के साथ जाने के लिए राजी हो गया और जीप में बैठ गया, साथ में रोहन भी बैठ गया क्योंकि  उसका घर रास्ते में ही पड़ता था। बस, जीप स्टार्ट ही करी थी कि सामने  एक और गाड़ी आकार ऐसे रुकी कि headlights से बन्टी और राकेश की आँखें चौंधिया गईं। सामने वाली जीप में बैठे लड़के ने लाइट चमकाने  के साथ साथ हॉर्न को इतनी ज़ोर से बजाया कि दोनों भाईयों को आंखों को बंद करने के साथ ही अपने कानों पर भी हाथ रखने पड़ गए। इस तरह अचानक से अपने सामने जीप को देख कर रोहन थोड़ा टेंशन में आ गया। उसे लगा कहीं राजू अपने साथियों के साथ तो नहीं आ गया। उधर राकेश ने बड़ी ही आहिस्ता से कहा, “इन्हें भी अभी ही आना था”। जीप की आवाज़ में राकेश की आवाज़ दब गई थी। किसी को कुछ सुनाई नहीं दिया। जीप को देखकर बबलू के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उनके कहा, “मुझे घूमने के लिए मना करते हो और अपने दोस्तों को देखते नहीं”। रोहन की समझ के कुछ नहीं आया। उसने तुरंत सवाल किया, ‘’तुम किसके बारे में बोल रहे हो। आखिर यह सामने जीप क्यों है? यह जीप में बैठे हुए लड़के कौन है?''

यह सुनकर बबलू हंसे जा रहा था। उसने आगे बैठे बंटी के कंधे पर हाथ मारा और कहा, “अपने दोस्त को बोलो कि अपनी जीप का हॉर्न बंद करे”। बंटी के कुछ बोलने से पहले ही जीप की लाइट और हॉर्न बंद हो गया था।

वह जीप आगे चलकर उनके बराबर में आकर रुक गई। उस जीप में बंटी के दोस्त बैठे हुए थे। जैसे ही उन्होंने बंटी के साथ बबलू को बैठे हुए देखा तो सिर्फ हाथ से इशारा किया और आगे चले गए। तभी रोहन ने कहा, ‘’आखिर यह मामला क्या है? कौन थे यह लड़के? कुछ बताओगे भी, या ऐसे ही इशारे चलते रहेंगे।''

यह सुनकर बबलू ने कहा, “यह हमारे भाईयों के दोस्त थे।  यह अपने दोस्तों के साथ रात भर घूमते फिरे तो कुछ नहीं, हम अपने दोस्त की मदद करे, तो सबको बुरा लगता है। बबलू की बात पर राकेश ने कहा, “भैया ऐसा कुछ नहीं है जैसा आप सोच रहे है, वह तो बस हाय…  हेलो… कहने के लिए आए थे”। आगे कुछ कहे बिना बंटी ने जीप को स्टार्ट कर दिया। तभी रोहन ने कहा, ‘’अंकल अगर पूछे तो बोल देना कि मैंने रूम शिफ्ट किया है, इसीलिए बबलू सारा दिन मेरे साथ था।''

बंटी ने “हां” में सर हिलाया और सामने देखने लगा। थोड़ी देर बाद अपर्णा निवास आ गया। रोहन जीप से उतर गया। वह लोग अपने घर की तरफ चले गए। वहीं दूसरी तरफ मटरू ने अपने दो और साथियों को फोन किया था। उसने फोन को अपनी जेब में रखा और कहा, “अगली बार दो लोग और तुम्हारे साथ होंगे”।

यह सुनकर तीनों ने राहत की सांस ली। मुस्कुराते हुए रंगा ने कहा, “ठीक है बॉस, अगली बार हम आपको निराश नहीं करेंगे”। उसे मुस्कुराता देख मटरू को और ज़्यादा गुस्सा आ गया। उसने कहा, “तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान तभी अच्छी लगेगी, जब तुम लोग काम को सही से अंजाम दोगे”।

यह सुनकर सभी ने तुरंत अपने सिर को नीचे झुकाया और वहां से चले गए। उनके जाने के बाद मटरू ने गुस्से में अपने हाथों को मसलते हुए कहा, “बबलू ने गलत आदमी से पंगा ले लिया, मैं इन्हें छोडूंगा नहीं, इनसे बदला तो लेकर रहूंगा”।

उधर जैसे ही रोहन अपने कमरे में पंहुचा तो प्रिया की जान में जान आयी। उसे सही सलामत देखकर राहत की सांस ली। रोहन ने उसे सारी बात बताई। उसकी बात सुनकर उसे और ज़्यादा टेंशन होने लगी। उसने कहा, ‘’बबलू भैया को थोड़ा ज़्यादा अलर्ट रहना होगा। मैं तो कहती हूँ, उन्हें इस बारे में अपने घर वालों को भी बता देना चाहिए।''

 

रोहन : (तसल्ली देते हुए) बबलू और उसके भाई, अच्छे खासे रसूख वाले लोग है, मटरू उसका बाल भी बांका नहीं कर सकता।

नए घर में पहली रात थी। नींद जल्दी से आने वाली नहीं थी। दोनों ने आपस में बहुत सारी बातें की। बातों बातों में कब दोनों को नींद आ गई, पता ही नहीं चला।

अगली सुबह जैसे ही अपर्णा की आंखे खुली तो सबसे पहले उसके कानों में आरती की आवाज़ आई।

 

“ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे… भक्त जनों के संकट,  दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे… ॐ जय जगदीश हरे, ॐ जय जगदीश हरे… स्वामी जय जगदीश हरे, भक्त ज़नो के संकट दास ज़नो के संकट, क्षण में दूर करे… ॐ जय जगदीश हरे” )

उन्होंने इतनी प्यारी आवाज़ अपने घर में पहले कभी नहीं सुनी थी। एक पल के लिए तो उन्हें लगा कि वह कोई सपना देख रही हैं, मगर थोड़ी देर बाद विश्वास हो गया कि सो कर उठ चुकी हैं । उन्होंने जैसे ही उठने के लिए अपने ऊपर से चादर को हटाया तो आरती के बोल उनके कान में पड़े।

 

(“जो ध्यावे फल पावे दुःख बिन से मन का, स्वामी दुख बिन से मन का… सुख सम्पति घर आवे, सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का… ॐ जय जगदीश हरे…”)

आरती के यह बोल सुनकर उनके चेहरे पर एक अलग ही सुकून नज़र आ रहा था। वह अपने आप को रोक नहीं पाईं, बेड से उठकर चप्पल पहनी और उस आवाज़ की तरफ चल दी जिसने उनका मन जीत लिया था। उन्होंने अपने कमरे से बाहर निकलते हुए कहा:

 

अपर्णा : (संतुष्टि के साथ) यह आवाज़ सुषमा की नहीं हो सकती। पड़ोस में भी आज से पहले मैंने आरती के लिए इतनी प्यारी आवाज़ नहीं सुनी।

यह कहकर उनका ध्यान ऊपर वाले कमरे की तरफ गया। वह धीरे धीरे कदमों से चलकर सीढ़ियाँ चढ़ती हुई कमरे के सामने खड़ी हो गई। कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था। उन्होंने देखा प्रिया ने कमरे में एक छोटा और सुंदर सा मंदिर बना रखा था। तभी आरती की आवाज़ आई।

 

(“मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी… स्वामी शरण गहूं किसकी, तुम बिन और ना दूजा, तुम बिन और ना दूजा, आस करूँ जिसकी… ॐ जय जगदीश हरे” )

अचानक प्रिया की नज़र अपर्णा पर पड़ी, उन्हें देख कर प्रिया खामोश हो गई। प्रिया को लगा जैसे उसने अपर्णा को डिस्टर्ब कर दिया हो। प्रिया के हाथ में आरती की थाली थी। तभी उन्होंने कहा, ‘’रुक क्यों गई, आरती को पूरा करो।''

तभी प्रिया ने प्यारी सी मुस्कान के साथ आरती को शुरू कर दिया। वह भी उस के पीछे खड़े होकर आरती में शामिल हो गई।

(“तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरियामी, स्वामी तुम अंतरियामी… पार ब्रह्म परमेश्वर, पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी… ॐ जय जगदीश हरे” )

उसने पूरी श्रद्धा के साथ आरती की और आरती की थाली को अपर्णा के सामने कर दिया। उन्होंने दोनों हाथों से थाली में जल रही आग के ऊपर से हाथों को किया और अपने सर पर फेर लिया। तभी प्रिया की नज़र रोहन की तरफ गई। उसने कहा, ‘’रात को सोने में थोड़ी देरी हो गई थी, इसीलिए यह अभी तक सो रहे है।''

अपर्णा ने ममता भरी नज़रों से देखा और अपने हाथों से उसके गालों को छूकर प्यार किया। प्रिया के चेहरे पर तुरंत मुस्कान आ गयी। उसने कहा, ‘’तुम्हारी आवाज़ बहुत प्यारी है। तुम्हारे मुंह से आरती सुनकर मन प्रसन्न हो गया।''

यह कहकर अपर्णा उसके कमरे से चली गई। जैसे ही वह नीचे आईं तो उनकी नज़र सुषमा पर पड़ी। सुषमा उनके लिए किचन में चाय बना रही थी। ज़्यादातर वह सुबह की चाय उनके कमरे में ही पंहुचा देती थी मगर आज उन्हें हॉल में देखकर वह चौंक गई। उसने कहा, ‘’दीदी, लगता है आज आप जल्दी उठ गईं?''

अपर्णा : (खुश होते हुए) हाँ सुषमा, आज सुबह उठकर बहुत अच्छा लगा। तुम आज नाश्ते में आलू के पराँठे बनाना। उन्हें बोल देना कि आज नाश्ता हमारे साथ ही करे।

यह कहकर वह अपने कमरे में चली गई। सुषमा ने “हां” में सिर तो हिला दिया था मगर वह सोच में पड़ गई थी। अब दीदी की बात को तो वह टाल सकती नहीं थी, ऊपर गई और प्रिया को नाश्ते की दावत देकर आ गई। थोड़ी देर में सभी ने मिलकर गरम गरम आलू के पराठे खाए। नाश्ते के बाद जैसे ही अपर्णा ने रोहन के टिफिन को पैक करने को कहा तो प्रिया बोल पड़ी, ‘’दीदी इसकी ज़रूरत नहीं है। हमने आपके साथ नाश्ता किया। यह बड़ी बात है।''

अपर्णा जानती थी कि घर को सेट करना आसान काम नहीं है। दो से चार दिन तो लगते ही है। वह नहीं चाहती थी कि उनके रहते प्रिया को कोई परेशानी हो। उधर वह भी यही सोच रही थी कि शुरू शुरू में उसकी वजह से उन्हें कोई दिक्कत ना आये। तभी सुषमा ने कहा, ‘’आज रोहन भाई का काम पर पहला दिन है। पहले दिन टाइम पर जायेंगे तो अच्छा है।''

पहले दिन लेट पहुंचने का अनुभव रोहन का रह चुका था, इसके लिए उसने अपनी नौकरी भी गवाई थी। प्रिया भी उस दर्द से वाक़िफ थी, इसीलिए उसने मना करने पर  ज़्यादा ज़ोर नहीं दिया। रोहन तैयार होने के लिए अपने कमरे में चल गया तो सुषमा उसके लिए टिफिन पैक करने के लिए किचन में। अब हॉल में प्रिया और अपर्णा ही थी। प्रिया ने कहा, ‘’हमने आपको बेवजह परेशान कर दिया।''

अपर्णा : (मुस्कान के साथ) इसमें परेशानी की क्या बात है बेटा, अब तुम इस घर में रहते हो। इस घर के सदस्य बन गए हो।

यह बात प्रिया को बहुत अच्छी लगी। प्रिया ने कुछ अपनी बातें अपर्णा से शेयर की, तो कुछ बातों को कहकर अपर्णा ने अपने मन को हल्का किया। उधर सुषमा ने रोहन के लिए टिफिन तैयार कर दिया था। अब रोहन के आने का इंतजार हो रहा था। तभी दरवाज़े की बेल बजने की आवाज़ आई।

 

इतनी सुबह दरवाज़े पर कौन आया होगा?

मटरू के दो और भरोसेमंद लोग कौन थे?

आखिर मटरू बदला लेने के लिए क्या करेगा?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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