बबलू की नज़र जैसे ही जीप में बैठे लोगों से मिली, उसने तुरंत कहा, “तुम लोग यहां क्या कर रहे हो”। यही सवाल गाड़ी से उतर कर, एक 24 साल के नौजवान लड़के ने किया। इससे पहले बबलू कुछ और बोल पाता, लगभग उसी उम्र के दूसरे लड़के ने कहा, “सुबह से घर से बाहर हो और हमसे पूछ रहे हो, हम यहां क्या कर रहे है। यह बताओ आप यहां क्या कर रहे हो”?

यह दोनों लड़के बबलू के चचेरे भाई थे। उन्हें बबलू के पापा ने ढूंढने के लिए भेजा था। बबलू ने अपनी बगल में खड़े रोहन से बड़ी ही आहिस्ता से कहा, “यह तो अच्छा हुआ मैंने सिगरेट को पहले ही फेंक दिया, अगर यह लोग देख लेते तो पिता जी से शिकायत लगा देते, बहुत बड़े चमचे हैं उनके, यह दोनों”।

रोहन दोनों लड़कों को जानता था। उनमें एक का नाम बंटी और दूसरे का नाम राकेश था। तभी बंटी ने कहा, “इस तरह खुसुर पुसुर क्यों कर रहे हो, जो भी कहना है ज़ोर से कहो”, राकेश ने भी सिर हिलाकर बंटी का साथ दिया। रोहन ने अपने दोस्त को सपोर्ट करते हुए कहा, ‘’यह तुम लोगों के बारे में कुछ नहीं बोल रहा।''

इस बात के जवाब में राकेश ने तुरंत कहा, “अब जो भी बोलना, ताऊ जी के सामने बोलना, सुबह से तुम कहाँ थे, ताऊ जी ही पूछेंगे”। वह दोनों बबलू से ज़्यादा छोटे नहीं थे, अपने ताऊ के बहुत ज़्यादा चहेते थे। उसकी वजह यह थी कि वह अपने ताऊ की हर बात मानते थे। वैसे तो बबलू भी अपने पिता का आदर्श बेटा था मगर एक दो बार दोनों के विचारों में भेद होने की वजह से उन लोगों में दूरी हो गई।

तभी बंटी ने कहा, “अब क्या, आपको साथ में चलने के लिए आमंत्रण देना होगा”। बबलू ने उनके साथ जाने से साफ मना कर दिया। इससे पहले रोहन उसे समझाता, बबलू ने उसका हाथ पकड़ा और आगे की तरफ चलने लगा। यह देखकर बंटी और राकेश को गुस्सा आ गया। बंटी ने गुस्से में जीप के बोनट पर एक ज़ोरदार मुक्का मारा और कहा, “अब इनके नखरे उठाओ, यह भी किसी नवाब से कम नहीं है ”।

इधर बबलू बिना कुछ कहे रोहन के साथ चले जा रहा था तो उधर मटरू अपनी दुकान पर राजू और उसके साथियों का आने का इंतज़ार कर रहा था। जैसे ही उसने उन्हें अपने सामने देखा, उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने खुश होते हुए कहा, “तोड़ आए, उस बबलू की हड्डी पसली, अब आगे से परेशान नहीं करेगा”। मटरू की बात का उन लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया।

वह तीनों चुपचाप अपने सर को नीचे किए हुए मटरू के सामने खड़े थे। उनकी खामोशी मटरू को खटक रही थी। वह बोले जा रहा था और तीनों पत्थर की मूर्ति की तरह खड़े थे। उनके कुछ ना बोलने पर मटरू को और ज़्यादा गुस्सा आने लगा। उसने ज़ोर से मेज़ पर हाथ मारा और चिल्लाया, “तुम लोगों ने मुझे चू…”। वह कहते कहते रुक गया। उसने अपने गुस्से वाली सांस को छोड़ा और फिर कहा, “क्यों मुझे गाली देने पर मजबूर करते हो, मैंने तुमसे जो पूछा है उसका जवाब दो, तुम लोगों ने उसे मारा या नहीं”।

तीनों के पास जवाब तो था मगर वह उसे कहते हुए डर रहे थे। वह ऐसे एक दूसरे को कोहनी मार रहे थे जैसे अपनी बात को दूसरे पर धकेल रहे हो। असल में वह मटरू के गुस्से से बचना चाहते थे, तीनों को चुपचाप देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह गूंगे हो। वहीं, दूसरी तरफ बबलू, रोहन के साथ जीप की दूसरी दिशा में चले जा रहा था, थोड़ी दूर चल कर रोहन ने कहा, ‘’क्यों अपने भाईयों को परेशान कर रहे हो, जाओ उनके साथ।  वैसे भी घर पर सब इंतज़ार कर रहे होंगे। अगर वह बिना तुम्हें लिए घर गए तो अंकल उन पर ख़्वाह-मख़्वाह भड़केंगे।''

यह बात सुनकर बबलू हंसने लगा। उसे हंसता देख रोहन को बड़ा अजीब लगा। इससे पहले रोहन कुछ कहता, बबलू ने हंसते हुए कहा, “तुम इन्हें नहीं जानते, एक नंबर के ढीठ है,। जब तक मुझे जीप में बैठा ना ले, यहां से जाने वाले नहीं। देखना अभी जीप में बैठेंगे और मेरे पीछे आने लगेंगे”। रोहन ने पीछे मुड़ कर देखा तो बिल्कुल ऐसा ही हुआ। बंटी और राकेश जीप में बैठे और बबलू के पीछे आने लगे। तभी रोहन ने कहा, ‘’अरे हां यार, यह तो हमारे पीछे ही आ रहे है।''

यह सुनकर बबलू ने दबी आवाज़ में कहा, “अभी आगे आगे देखते जाओ, इन्हें अभी बहुत कुछ करना है”। बबलू की यह सब नाटक बाज़ी अपने भाईयों को परेशान करने के लिए थी। वह बड़े होने का कुछ ज़्यादा ही फायदा उठा रहा था। उसे यह सब करना अच्छा लग रहा था मगर रोहन की नज़र में यह थोड़ा गलत था। उसने तुरंत कहा, ‘’अब यह सब नाटक करना बंद कर दो, रात भी बढ़ रही है, मुझे सुबह काम पर भी जाना है।''

यह सुनकर बबलू ने रोहन की तरफ देखा और कहा, “वहां तुम थोड़ा लेट भी जाओगे तो चलेगा, मैंने अंकल के मैनेजर से बोल दिया है, उनके साथ अपनी अलग सेटिंग है”। तभी पीछे से बंटी की आवाज़ आई, “अरे भैया, घर चलो भी, अब क्या आपके पैर पड़ जाए”। यह सुनकर बबलू तो हंस रहा था मगर रोहन...  उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। उसने बबलू का हाथ पकड़ा और उसे वहीं रोक दिया।

उधर राजू और उसके साथियों  की ख़ामोशी ने मटरू के गुस्से में और ज़्यादा उबाल ला दिया था। उसने गुस्से में कहा, “तुम्हारे चुप रहने से तो यही लग रहा है कि तुम इस काम में नाकाम हो गये”। तभी रंगा ने कहा, “हाँ बॉस, वह क्या है ना…”। उसके इतना कहने पर ही मटरू गुस्से में और आग बबूला हो गया।

वह गुस्से में अपनी जगह से उठा और रंगा के पास जाकर उसका कॉलर पकड़ लिया। यह देखकर राजू ने अपने मन में कहा, “लोग कॉलर के पीछे क्यों पड़े रहते है, जिसे देखो कॉलर ही पकड़ लेता है”। मटरू ने रंगा का कॉलर छोड़ा तो बिल्ला का कॉलर पकड़ लिया। राजू को लगा अब उसकी बारी है, वह थोड़ा पीछे हट गया।

मटरू ने गुस्से में रंगा का भी कॉलर छोड़ दिया। वह वापस मेज़ के पास आया और अपने दोनों हाथों को उस पर टिका दिया। एक हुंकार भरते हुए उसने कहा, “गलती मेरी ही थी, मुझे यह काम किसी और को देना चाहिए था, खैर कोई बात नहीं, अब मुझे इसके लिए किसी और को चुनना होगा”।

यह सुनकर रंगा आगे बढ़ा और कहा, “बॉस हमें एक मौका और दे दो, इस बार हम आपको मायूस नहीं करेंगे”। रंगा के बाद बिल्ला भी आगे बढ़ा और कहने लगा, “अगर पुलिस वाले नहीं आते तो हमने उसके हाथ पैर तोड़ दिए होते”। दोनों की बातें सुनकर मटरू उनकी तरफ मुड़ा और देखने लगा, फिर उसने अपनी जेब से फोन निकाला और एक नंबर डायल कर दिया। वहीँ दूसरी तरफ जैसे ही सुषमा अपने कमरे में गई तो उसने देखा कि हरि टांगो को फैला कर सो रहा है। उसने अपने पति के  पैरों को ठीक किया और उसके ऊपर एक पतली चादर को डाला और कहा, ‘’नवाब साहब ऐसे सो रहे हैं जैसे बहुत थक गए हो। अरे, काम तो हमने भी किया है।''

यह कहकर सुषमा ने जैसे ही कमरे में अपनी नज़रों को दौड़ाया तो उसे थोड़ा फैलावा सा लगा। उसने एक एक सामान को सही जगह पर रखा और कपड़े बदलने चली गयी। उधर रोहन ने जिस तरह से बबलू का हाथ पकड़कर उसे रोक दिया था, बबलू को लगा जैसे वह गुस्से में है। रोहन ने तुरंत कहा, ‘’तुम यह सब नाटक बंद करो और घर जाओ, प्लीज। घर पर प्रिया भी मेरा इंतज़ार कर रही होगी।''

यह सुनकर इससे पहले बबलू कुछ कह पाता, उसे अपने पैरों पर किसी के हाथ महसूस होते है। वह तुरंत अपने पैरों की तरफ देखता है तो बंटी, उसका छोटा भाई उसके पैरों में पड़ा है। वह कब जीप से उतर कर बबलू के पैरों में पड़ गया था, दोनों को पता ही नहीं चला।

पीछे से राकेश ने आवाज़ देते हुए कहा, “बबलू भाई, अब आपको और क्या चाहिए, कहो तो मैं भी तुम्हारे पैर पड़ता हूँ”। जैसे ही राकेश उसके पैर पकड़ने के लिए झुका तो रोहन ने तुरंत उसे रोका और कहा, ‘’कोई ज़रुरत नहीं है पैर पड़ने की, यह तुम लोगों के साथ जा रहा है।''

इस बार रोहन ने बबलू को ज़बरदस्ती हाथ पकड़कर उसे जीप में बैठा दिया। यह देखकर बंटी और बबलू को बड़ी राहत मिली। उन्होंने जैसे ही मुस्कुराकर रोहन को थैंक्स कहा, रोहन ने कहा, ‘’तुम कहो तो इस बार बबलू के हाथों को बाँध दूँ।''

यह सुनकर बबलू ने तुरंत कहा, “इसकी ज़रूरत नहीं है, कोई और भी है जो मेरा इंतज़ार कर रही होगी, उसकी वजह से तो मुझे जाना होगा”। रोहन भी जीप में बैठ गया। उसका घर उनके रास्ते में ही पड़ना था। जैसे ही बंटी ने जीप को स्टार्ट किया तो उसके सामने एक गाड़ी आकर रुकी। उस गाड़ी की लाइट ने आगे बैठे बंटी और राकेश को आँखे बंद करने पर मजबूर कर दिया था।

 

आखिर यह गाड़ी किसकी थी? वह उनके सामने आकर क्यों रुकी?

वह कौन था जो घर पर बबलू का इंतज़ार कर रहा था?

मटरू ने फ़ोन पर किसका नंबर डाइल किया था?

क्या बबलू और उसके भाइयों पर कोई नयी मुसीबत आने वाली थी?

 

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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