बरेली की तंग गलियों में अगली सुबह हलचल शुरू हो चुकी थी। सुनील के घर की खिड़की से सूरज की किरणें अंदर झांक रही थीं। खिड़की के पास सुनील का छोटा सा कमरा था। दीवारों पर चिपके SRK के पोस्टर्स उस छोटे से कमरे को खास बना रही थीं। बिस्तर के एक कोने में अब उसकी थिएटर की स्क्रिप्ट्स और किताबों का ढेर था। कमरे का हर हिस्सा सुनील के जुनून और सपनों की कहानी बयां कर रहा था। सुनील आज अलार्म बजने से पहले ही उठ चुका था। उसकी आंखों में नींद तो थी, लेकिन मन में एक अलग बचैनी थी। कल रात में आया धनंजय का फोन उसे अभी भी परेशान कर रहा था। उसने मन ही मन तय किया कि वो जल्दी से धनंजय से मिलने जाएगा और तैयार होते हुए उसने एक नज़र दीवार पर SRK के पोस्टर पर डाली, जो उसके लिए सबसे बड़े inspiration थे। सुनील ने अपने बिस्तर से उठते ही खिड़की खोली। ठंडी हवा का हल्का झोंका कमरे में आया और बाहर गलियों की चहल-पहल अब उसको भी सुनाई देने लगी। सुनील ने जल्दी-जल्दी तैयार होते हुए अपनी टेबल पर रखी एक किताब और पानी की बोतल बैग में डाली। आज उसे थिएटर ग्रुप तो जाना ही था, लेकिन उससे पहले उसे धनंजय से भी मिलना था,
सुनील : पता नही, धन्नो को भी कौन सी जरूरी बात बतानी है, कल फोन पर ही बता देता, पूरी रात इसकी वजह से ढंग से सो भी नही पाया।
धनंजय ने सुनील को मिलने के लिए पास की एक चाय की दुकान बुलाया था। सुनील जब चाय की दुकान पर पहुंचा, तो बरेली की सुबह अपने पूरे रंग में थी। सड़क के किनारे छोटी-छोटी दुकानों की कतारें थीं, लेकिन जिस दुकान पर सुनील जा रहा था, वो सबसे खास थी। यह दुकान बरेली के मशहूर चाय ठेलों में से एक थी—नाम था "राजू टी स्टॉल", लेकिन लोगों के बीच बस "राजू चायवाला" के नाम से मशहूर।
दुकान कोई बड़ी जगह नहीं थी, बस एक पुराना लकड़ी का ठेला, जिसके चारों ओर कुछ प्लास्टिक की कुर्सियाँ और लकड़ी की बेंचें रखी थीं। पर इसकी असली पहचान थी वहाँ की चाय और वो माहौल, जिसमें सुबह की ताजगी, मसालों की खुशबू और लोगों की गर्मागर्म बहसें घुली रहती थीं।
चाय के उबलते भगोने से उठती भाप में इलायची और अदरक की खुशबू घुलकर हवा में तैर रही थी। राजू, जो एक पतले-दुबले, घुंघराले बालों वाला आदमी था, बड़ी फुर्ती से काम कर रहा था। उसके हाथों की रफ्तार इतनी तेज़ थी कि वो एक पल में चाय छानता, दूसरे पल कुल्हड़ या गिलास में डाल देता और तीसरे ही पल पैसे समेट लेता। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, मगर कान खुले थे—हर तरफ की बातें सुनने को तैयार। सुनील ने आसपास नजर दौड़ाई। दुकान के पास कुछ बुजुर्ग अखबार पढ़ते हुए चाय की चुस्कियों में मगन थे, तो कुछ लड़के ज़ोर-ज़ोर से क्रिकेट और राजनीति पर बहस कर रहे थे। हर टेबल पर चाय के गिलास के साथ किसी न किसी कहानी का सिरा जुड़ा हुआ था। धनंजय ने सुनील को आते देखा तो दूर से ही जोर से आवाज़ लगाई,
धनंजय : अरे भाई, इधर आ! बड़ी खबर है तुझसे शेयर करनी है।
सुनील : क्या बात है? कल रात में कॉल क्यों किया था? सब ठीक तो है न?
धनंजय : हां हां, ले पहले चाय पी, फिर सुन बड़ी खबर।
सुनील : अब बता भी! ये सस्पेंस मार डालेगा।
धनंजय : यार, बरेली में बड़ा कंपटीशन होने वाला है। शहर का सबसे बड़ा थिएटर और आर्ट्स फेस्टिवल। और सबसे खास बात ये है कि एक्टिंग कैटेगरी में जो जीतेगा, उसे मुंबई जाने का मौका मिलेगा। वहां पर नेशनल लेवल पर ऑडिशन होगा। सोच, ये तेरे लिए कितना बड़ा मौका है! सलीम खान से मिलने का मौका।
सुनील : क्या सच में? ये तो मेरे सपने की पहली सीढ़ी हो सकती है। कब है ये कंपटीशन?
धनंजय ने अपनी जेब से एक पर्चा निकाला और उसे सुनील को थमाया
धनंजय : ये रहा पोस्टर। अगले महीने का इवेंट है, लेकिन रजिस्ट्रेशन इसी हफ्ते बंद हो रहे हैं। मैंने सोचा, तुझे फौरन बता दूं। तेरा नाम लिस्ट में जरूर होना चाहिए।
सुनील ने पोस्टर को बड़े ध्यान से देखा। उसमें बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था।
बरेली थिएटर फेस्टिवल 2024 – एक मौका आपके सपनों को उड़ान देने का! पोस्टर के नीचे इवेंट की तारीख और रजिस्ट्रेशन डिटेल्स दी गई थीं। सुनील ने धनंजय की तरफ देखा और मुस्कुराने लगा
सुनील : Thank you, यार। ये मौका मेरे लिए बहुत खास है। मैं तुरंत जाकर रजिस्ट्रेशन करूंगा। और जो भी हो, मुझे ये जीतना है।
धनंजय : मुझे पता था कि तुझे ये सुनकर जोश आ जाएगा। पर एक बात ध्यान रखना, तगड़ा कॉम्पिटीशन होगा। इस बार शहर के हर अच्छे थिएटर ग्रुप से लोग आ रहे हैं। तुझे अपने सबसे बेहतरीन परफॉर्मेंस देनी होगी।
सुनील : धनंजय, मुझे फर्क नहीं पड़ता कि मेरे सामने कौन है। मैं अपनी मेहनत पर यकीन करता हूं। और मुझे यकीन है कि मैं ये कर सकता हूं।
धनंजय : बस यही स्पिरिट बनाए रख। और हां, रजिस्ट्रेशन मत भूलना। बाद में मत कहना कि मैंने बताया नहीं।
धनंजय से मिलने के बाद सुनील अब सीधे ढाबे की ओर चल पड़ा। ढाबा शहर की हलचल से दूर एक शांत कोने में बसा था, जहां सुनील और रिया अक्सर मिला करते थे। यह जगह उनके लिए खास थी, क्योंकि यहां हर चीज में एक सादगी और अपनापन था।
लोग अपनी-अपनी बातों में मशगूल थे, और हर टेबल पर चाय के कपों की झंकार सुनाई दे रही थी, लेकिन सुनील का ध्यान सिर्फ एक ही ओर था—ढाबे के सबसे कोने में, जहां रिया हमेशा बैठा करती थी।
रिया वहीं बैठी थी, अपनी पसंदीदा कोने वाली टेबल पर। उसकी उंगलियों में एक किताब थी, और उसकी नजरें उसमें डूबी हुई थीं। उसकी काली घनी जुल्फें हल्की हवा में लहरा रही थीं, और सूरज की सुनहरी रोशनी उसके चेहरे पर गिरकर उसे और भी खूबसूरत बना रही थी।
जैसे ही सुनील की नजर उस पर पड़ी, उसके कदम रुक गए। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। वह सोचने लगा, "काश यह लम्हा किसी फिल्म का हिस्सा होता, तो बैकग्राउंड में ‘तुझमें भगवान दिखता है’ जैसे गाने की धुन बजती।" सुनील को अपनी इस सोच पर खुद ही हंसी आ गई, लेकिन अगले ही पल उसने महसूस किया कि यह तो उसकी जिंदगी का सबसे खूबसूरत सीन है।
उसने गहरी सांस ली और खुद को थोड़ा शांत किया।
सुनील : सुनील, यह तेरा मौका है। हीरो की तरह दिखना है, जैसे सलीम खान फिल्म में करते हैं, रिया!
रिया : अरे, तुम आ गए? मैं सोच ही रही थी कि तुम अब तक क्यों नहीं आए।
सुनील : हां, मैं तो बस तुम्हें ही देख रहा था... मेरा मतलब, तुम्हारा इंतजार कर रहा था।
रिया : अच्छा, तो चलो पहले चाय पीते हैं। मुझे पता है, तुम बिना चाय के ढाबे का मजा नहीं लेते।”
सुनील ने एक कुर्सी खींची और रिया के सामने बैठ गया। उसकी नजरें रिया की हर छोटी-छोटी हरकत को देखने लगीं—कभी वह अपनी जुल्फें पीछे करती, कभी अपनी उंगलियों से मेज पर हल्की थाप देती। सुनील के लिए यह लम्हा किसी जादू से कम नहीं था।
चाय के कप सामने आते ही रिया ने सुनील की ओर देखा
रिया : तुमने कुछ कहा नहीं। क्या बात है, सुनील? आज इतने शांत क्यों हो?
सुनील : कुछ खास नहीं... बस सोच रहा हूं, कि यह जगह, यह लम्हा, और... तुम... सब कुछ इतना परफेक्ट कैसे हो सकता है?
रिया : परफेक्ट? अरे, ये सब तो बहुत आम है। वैसे सुनील! इतना खुश क्यों लग रहा है? कहीं फिर से कोई फिल्मी ख्वाब तो नहीं देख लिया?
सुनील : फिल्मी ख्वाब नहीं, रिया, ये असली मौका है! आज कुछ बहुत बड़ा पता चला है। देखो ये।
उसने अपनी जेब से पोस्टर निकाला और रिया के सामने रख दिया। पोस्टर पर बड़े अक्षरों में लिखा था।
बरेली थिएटर फेस्टिवल 2024 – अपने सपनों को उड़ान दें। रिया ने पोस्टर को ध्यान से देखा, उसकी भौहें हल्के से उठी
रिया : ये क्या है, सुनील? लगता है, कोई बड़ा इवेंट है।
सुनील : बिल्कुल! बरेली का सबसे बड़ा थिएटर फेस्टिवल। और जो एक्टिंग में जीत हासिल करेगा, उसे मुंबई जाने का मौका मिलेगा। नेशनल लेवल पर ऑडिशन! सोचो, ये मेरे सपने की पहली सीढ़ी हो सकती है। फिर मेरा सलीम खान से मिलने का सपना पूरा हो जाएगा।
रिया : सुनील, ये तो वाकई बड़ी बात है। मुझे पता था कि तुम्हारी मेहनत एक दिन रंग लाएगी। लेकिन तुमने रजिस्ट्रेशन कर लिया?
सुनील : नहीं, अभी नहीं। पर मैं आज ही करने वाला हूं। और मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है। ये सफर लंबा है, रिया, लेकिन जब तुम साथ होती हो, तो दिल में मेरे कुछ कुछ होता है।
रिया : सलीम खान के डायलॉग्स का सहारा लेना बंद करो। तुम्हें अपने सपने के लिए खुद मेहनत करनी होगी। मैं तो सिर्फ तुम्हें सही राह दिखा सकती हूं।
सुनील (अंदाज में) : रिया, तुम्हारी बातों में हमेशा वो ‘दिल से’ वाली गहराई होती है। लेकिन मैं वादा करता हूं, मैं इस मौके को गंवाने नहीं दूंगा। ये फेस्टिवल मेरे लिए एक बड़ा मौका है। इससे मैं साबित कर सकता हूं कि मैं गलत नहीं हूं, मेरे सपने भी असली है।
रिया : सुनील, मुझे पता है कि तुम्हारे पास टैलेंट है। लेकिन इस बार तुम्हें अपने हर कदम को बहुत सोच-समझकर चलना होगा। ये सिर्फ एक परफॉर्मेंस नहीं है, ये तुम्हारे सपने की नींव है।
सुनील : तुम सही कह रही हो, रिया। लेकिन कभी-कभी डर भी जोश को बढ़ा देता है। जैसे वो हॉकी वाली फिल्म का कोच बनकर सलीम खान ने कहा था—‘ये 60 मिनट तुम्हारी जिंदगी के सबसे खास पल बन सकते हैं, वैसे ही ये फेस्टिवल भी मेरी जिंदगी का सबसे खास पल है।
रिया : लेकिन सुनील, सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ जोश नहीं, प्लानिंग भी चाहिए। तुमने सोचा है कि इस बार तुम्हारी तैयारी कैसी होगी? कौन-सा रोल चुनोगे? किसके खिलाफ कॉम्पिटीशन होगा?
सुनील : रिया, मुझे फर्क नहीं पड़ता कि मेरे सामने कौन है। चाहे वो ‘देवदास’ की पारो का दर्द हो या फिर डर का जुनून, मैं हर किरदार को अपने दिल से निभाऊंगा। और मैं जानता हूं कि ये मौका मेरे लिए ही है।
रिया : तुम्हारा ये आत्मविश्वास मुझे हमेशा अच्छा लगता है। लेकिन याद रखना, अगर तुम हार भी जाओ, तो ये मत भूलना कि हारना भी सीखने का हिस्सा है। सलीम खान ने भी अपनी फिल्म में कहा था कभी-कभी कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है।
सुनील : रिया, तुम हर बार मुझे हिम्मत देती हो। तुम्हारा सपोर्ट मेरे लिए ‘ओम शांति शांति ओम’ के उस फाइनल सीन की तरह है, जहां हर सपना पूरा होता है। मैं वादा करता हूं, इस बार मैं जीतकर ही लौटूंगा।
रिया : तो फिर जाओ, रजिस्ट्रेशन करवाओ। और हां, तैयारी के लिए मुझे बुलाना मत भूलना। मैं तुम्हारी सबसे बड़ी supporter बनूंगी
सुनील (मजाक में) : रिया, तुम्हारे बिना मेरी प्रैक्टिस अधूरी है। तुम मेरी ‘दिलवाले’ वाली सिमरन हो, जो मुझे हर बार वापस ट्रैक पर ले आती है।
रिया : तुम सबसे पहले सलीम खान की फिल्मे देखना कम करो।
शाम हो चुकी थी, ढाबे से निकलते वक्त सुनील ने आसमान की तरफ देखा। फिर उसने मन ही मन कहा,
सुनील : रिया सही कहती है। ये मेरा पहला कदम है। और मैं इसे अपनी पूरी ताकत से जीतूंगा। क्योंकि आखिर में, ‘डर’ फिल्म में सलीम खान ने भी कहा था मैं किसी से डरता नहीं। क्योंकि मैं अपने सपनों से प्यार करता हूं।
रिया : क्या सोच रहे हो?
सुनील : बस ये कि सपनों की ओर पहला कदम हमेशा सबसे मुश्किल होता है। लेकिन मैं तैयार हूं, रिया। क्योंकि मैं सलीम खान से इस बार मिलकर रहूंगा। लेकिन अगर इस बार भी लास्ट टाइम की तरह मेरा सपना सपना ही रह गया तो?
इस बार सुनील के चेहरे पर आत्मविश्वास और आंखों में मुंबई जाने के सपने तो थे, लेकिन उसके साथ ही उसकी आंखो में एक डर भी था? अब आगे क्या होगा? क्या इस बार उसका सपना पूरा हो पाएगा? ये जानने के लिए सुनिए हमारा अगला एपिसोड।
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