गुफ़ा का वो हिस्सा जिसमें आदित्य और बाकी लोग थे, वो हिलने लगा, दीवारें और रास्ते बदलने लगे… आदित्य और संध्या गलियारे तेज़ी में निकले तभी भागते हुए वहां श्रीधर और काव्या भी आ गए। सभी लोग हैरान थे कि हो क्या रहा है। काव्या को लगा कि गुफ़ा गिरने वाली है लेकिन ऐसा नहीं था। हृदय गुफ़ा बस करवट ले रही थी एक नए टेस्ट , एक नया पन्ना खोलने के लिए। लेकिन इस चक्कर में उन चार दोस्तों की जान पे बन आई। वे चारों भाग रहे थे, अपने बैग्स और सामान कन्धों पर टाँगे हुए बस भाग रहे थे - कभी यहाँ तो कभी वहाँ। वह लोग जैसे ही एक कोने में रुके तभी पीछे से एक बड़ा सा पत्थर रोल करता हुआ उनकी तरफ़ आया… पत्थर के लुढ़कने की कहीं कोई आवाज़ नहीं थी। सब अपनी जगह से फ़ौरन हट गए लेकिन संध्या दूसरी तरफ़ देख रही थी… आदित्य ने हाथ पकड़कर उसे अपनी तरफ़ खींचा और वो बाल-बाल बच गयी। लेकिन तभी अचानक, एक पल के लिए, वो बड़ा सा गोलाकार पत्थर रुक गया और वापस उन चारों की तरफ़ आने लगा। आदित्य समझ गया कि वो पत्थर लुढ़क नहीं रहा है… असल में वो उनको फॉलो कर रहा है, अटैक कर रहा है। चारों लोग अपनी जान बचाने के लिए फिर भागे। तभी एक ज़ोरदार धमाका हुआ!! आवाज़ सुनते ही श्रीधर, मानो जंग के मैदान में पहुँच गया हो। उसने फ़ौरन पीछे मुड़कर देखा। वो पत्थर अब मिट्टी हो चुका था। धूल का गुबार हटा तो संध्या और बाकी सबको अपने सामने रुद्र दिखाई दिया। सबके मन में एक ही सवाल था कि ये रूद्र अब कहाँ से आ टपका?
वो कुछ दूरी पर खड़ा था। रूद्र ने उन सबको अपनी तरफ़ आने का इशारा किया और मुड़ते हुए, सबके आगे-आगे चलता रहा। बाकी सब उसके पीछे। रूद्र उन चारों को गुफ़ा के अन्दर की तरफ़ लेकर जा रहा था… गुफ़ा के इस हिस्से में कोई हलचल नहीं थी। सब कुछ अपनी जगह पर ही था… तब रुद्र बोला…
रुद्र: गुफ़ा का वो हिस्सा जिसमें तुम अभी थे… वो हिस्सा अपना रूप बदल रहा था… कुछ कुछ समय बाद गुफ़ा में ऐसा होता है। तुम सबको सावधान रहने की ज़रुरत है। यहाँ जो जैसा दिख रहा है, वैसा कुछ भी नहीं है।
श्रीधर: Thanx ... काफ़ी जल्दी warn किया हमें।
आदित्य: हृदय गुफ़ा के रूप बदलने से पहले, वहां गलियारे में हमने एक कंकाल देखा… वो एक आदमी का कंकाल था। देखकर लग रहा था कि तकरीबन सौ-डेढ़ सौ साल पहले उस आदमी की डैथ हुई होगी।
रुद्र (रहस्यमय स्वर में): इस हृदय गुफ़ा के अन्दर ऐसे बहुत से कंकाल और ऐसे बहुत से राज़ हैं जो राज़ ही रहें तो अच्छा है। ये गुफ़ा वो नहीं है जो दिखाई देती है… अब तक तो तुम लोग समझ चुके होगे… हृदय गुफ़ा रहस्यमयी शक्तियों से भरी हुई है। यहाँ दोनों शक्तियां एक साथ रहती हैं… अच्छी भी और बुरी भी। ये तुम पर है कि तुम ख़ुद को किस तरफ़ रखते हो… कौनसा side लेते हो। । सही या गलत… अच्छा या बुरा… और सबसे ज़रूरी बात, जो तुम लोगों को अपने दिमाग में अच्छी तरह से बिठा लेनी चाहिए… यहाँ कोई अपनी मर्ज़ी से नहीं आता… और न ही अपनी मर्ज़ी से बाहर जाता है।
अपनी बात कहकर रूद्र एकदम से रुक गया। उसने चारों तरफ़ देखा फिर सामने की तरफ़ बने हुए एक पिलर पर उसने अपना हाथ रखा और तीन बार अपनी दो उँगलियों से उस पिलर पर tap किया। अगले ही पल पिलर से बायीं तरफ़ की दीवार पर एक सुनहरे रंग का दरवाज़ा बन गया। रुद्र ने दरवाज़ा खोला और अन्दर चला गया… सब काफ़ी हैरत में थे पर चुपचाप रूद्र के पीछे-पीछे अंदर चले गए। वहाँ एक कमरा था… एक बड़ा और खूबसूरत कमरा। सभी लोग हैरानी और ख़ुशी के साथ उस कमरे को देख रहे थे… वो कमरा, किसी 5 स्टार होटल के कमरे जैसा लग रहा था… वहाँ बेड से लेकर सोफा और टीवी से लेकर प्लेस्स्टेशन तक सबकुछ था। पूरे कमरे में सुनहरी रौशनी थी। रौशनी आ कहाँ से रही थी, ये किसी को समझ नहीं आया क्यूंकि कमरे में कोई लैंप या बल्ब नहीं थे। तभी संध्या ने रूद्र से सवाल किये, वो एक के बाद एक सवाल पूछती गई - ह्रदय गुफ़ा के बारे में… रूद्र के बारे में… वो गुफ़ा के अंदर आकर कहाँ गायब हो गया था... वो कैसा पत्थर था जो उनको चेस कर रहा था… उसने उस बड़े पत्थर को कैसे नष्ट किया... और उसे इस कमरे के बारे में कैसे पता चला? रूद्र ने संध्या को कोई जवाब नहीं दिया बस मुस्कुराता रहा। उसने सबको आराम से बैठने के लिए कहा और फिर उन्हें बताया कि ये हृदय गुफ़ा बहुत समय पहले बनी थी। रूद्र ने बताया कि इस गुफा में बड़े बड़े ऋषि-मुनी तपस्या किया करते थे। यहाँ पर यज्ञ हुआ करते थे। ये जगह रहस्मयी शक्तियों का केंद्र थी। यहाँ बहुत से ऐसे रास्ते हैं जो इस गुफ़ा को अलग अलग जगहों या अलग अलग दुनियाओं से जोड़ते हैं और सबसे अहम् बात ये है कि हृदय गुफ़ा के पास अपनी सोच है, अपना दिमाग है… अपना हृदय है। पहले यहाँ देवता आये तो उनके बाद यहाँ दैत्य भी आये… इस गुफ़ा ने सबको जगह दी… इसीलिए अब इस गुफ़ा में दोनों शक्तियां रहती हैं… ये गुफ़ा हमारे अन्दर झाँक सकती है… हमें कुछ भी दिखा सकती… हमें कहीं भी पहुंचा सकती है… हृदय गुफ़ा… एक मायाजाल है… एक ऐसा मायाजाल जिसकी शुरुआत कहाँ है और अंत कहाँ… ये कोई नहीं जानता। रूद्र ने जो कुछ भी बताया, वो सुनकर सब लोग शांत बैठे रहे… किसी को उसपर यकीन नहीं हुआ, सिवाय संध्या के। रुद्र अपनी जगह से उठा और दरवाज़े की तरफ़ जाते हुए बोला…
रुद्र: तुम लोग आराम करो… मैं कुछ देर बाद आता हूँ।
संध्या: रूद्र, तुमने हमारी जान क्यूँ बचाई?... और हमें ये सब क्यूँ बता रहे हो?... क्यूँ हमारी मदद कर रहे हो?
रुद्र: क्यूंकि… मैं आपका टूर गाइड हूँ संध्या जी… अपने हर टूरिस्ट को गुफ़ा के बारे में बताना, उनका ध्यान रखना और मदद के वक़्त पर उनकी मदद करना, यही मेरा काम है… और जो मदद कर सकते हैं उन्हें हमेशा ही मदद करनी चाहिए, मैं जितना जानता हूँ उतना रास्ता बताता हूँ, जो पूछते हैं उन्हें भी और जो नहीं पूछते उन्हें भी।
संध्या: हमारे साथ गुफ़ा में आने के बाद… तुम गायब कहाँ हो गए थे?
रुद्र: आप लोगों के लिए, ये कमरा तैयार कर रहा था… अब मैं चलता हूँ… कुछ देर बाद आता हूँ… और हाँ… एक बात और… जब तक मैं वापस ना आ जाऊं, इस कमरे से कोई भी बाहर मत निकलना। चाहे कुछ भी हो जाए, कमरे से बाहर मत निकलना।
चारों दोस्तों ने अपने बैग में रखे बिस्किट वगैरह खा के, सो गए। बिस्तर पर पड़ते ही सबको नींद आ गयी थी। कुछ देर बाद… एक बुरे सपने से श्रीधर की नींद खुली। वो घबराकर उठा, उसने देखा कि बाकी सभी चैन से सो रहे हैं तो उसने किसी को जगाया नहीं। टेबल पे रखा पानी पीकर श्रीधर कमरे में बनी खिड़की पर आकर बैठ गया। उसने गौर किया कि ये असली खिड़की नहीं थी, बस डिजाइन के तौर पर बनी हुई थी। दूसरी तरफ़ एक और खिड़की थी… उसपर सफ़ेद परदे लगे हुए थे। उन सफ़ेद पर्दों को हटाकर श्रीधर ने बाहर देखा। बाहर देखते ही उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा… बाहर जंग चल रही थी। श्रीधर ने देखा कि ये तो उसकी अपनी बटालियन थी। श्रीधर फ़ौरन ही कमरे से निकल गया। अब वो वापिस से जंग के मैदान में था। सब सोल्जर दुश्मन की तरफ आगे बढ़ रहे थे। कुछ ज़ख़्मी थे, फिर भी उनके हौंसले बुलंद थे। श्रीधर भी हाथ में हथियार लिए दुश्मन सेना की तरफ बढ़ रहा था। फिर श्रीधर अपनी जगह पर आ गया और उसने दुश्मन सेना पर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया। तभी पीछे से एक आवाज़ आई… ये श्रीधर का एक साथी सोल्जर था। उसने कहा कि आप ज़ख़्मी हैं मेजर … आप रेस्ट कीजिये, हम संभाल लेंगे। हम ये जंग जीत ही चुके हैं… दुश्मन उलटे पाँव वापस भाग रहा है।
श्रीधर: बहुत रेस्ट कर लिया सोल्जर , अब थोड़ा एक्शन हो जाए…
ये सुनते ही वो सोल्जर बोला कि आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना और देश के दुश्मनों को मार गिराना… ये मेरे लिए गर्व की बात है मेजर …
श्रीधर: फौज़ी की आँखों में गर्व होना ही चाहिए… ये गया एक और…
जंग जीतने के बाद, अगली सुबह… कैप्टेन अजय, मेजर श्रीधर से मिलने अस्पताल में आया। हॉस्पिटल के बेड पर मैगज़ीन पढ़ रहे श्रीधर ने जैसे ही कैप्टेन अजय को देखा, श्रीधर का चेहरा खिल गया। श्रीधर ने फ़ौरन ही अजय को गले से लगा लिया। अजय ने श्रीधर को बिस्तर पर वापिस बैठाते हुए कहा…
अजय: आपको गोली लगी है सर… आराम कीजिये… ऐसे उछल के बिस्तर से उठेंगे तो ठीक कैसे होंगे।
श्रीधर: तुम ठीक हो?... मैं कल रात से तुम्हें ढूंढ रहा था। मुझे फ़िक्र हो रही थी तुम्हारी, तुम जंग में कहीं दिखे नहीं। फिर मुझे गोली लग गयी और आँख खुली तो यहाँ था… डॉक्टर ने बताया कि तुम ही मुझे अस्पताल लेकर आये थे।
अजय: आप भूल गए सर, आपने ही तो मेरी ड्यूटी ज़ख़्मी सोल्जर्स को मेडिकल हेल्प देने के लिए लगा रखी थी। ताकि मैं जंग में होने वाले जान के खतरे से बचा रहूँ। आपको गोली लगी, तो मैं फ़ौरन ही आपको यहाँ ले आया।
श्रीधर: तुम मेरे लिए छोटे भाई जैसे हो अजय… आज तुमने मेरी जान बचाई है… मैं वादा करता हूँ जब तक मुझमें सांस है … तुझे कभी कुछ नहीं होने दूंगा। तुझ तक आने वाली हर मुसीबत और हर गोली को पहले मुझसे लड़ना होगा और ये एक मेजर का नहीं, बड़े भाई का वादा है।
उधर गुफा के अन्दर, उस आलिशान कमरे में बाकी सभी चैन से सो रहे थे, अचानक ही काव्या की नींद खुल गयी। श्रीधर को कमरे में न पाकर, काव्या परेशान हो गयी… उसने एक बार सोचा ज़रूर लेकिन आदित्य और संध्या को नहीं उठाया। श्रीधर को ढूँढने के लिए काव्या कमरे से बाहर निकल गयी।
काव्या: श्रीधर, श्रीधर कहाँ हो तुम?... मेरी आवाज़ सुन पा रहे हो… श्रीधर… श्रीधर।
श्रीधर का नाम पुकारते हुए काव्या गुफा के एक नए हिस्से में आ गयी। वहां उसे कुछ सीढियां दिखी। काव्या सीढ़ियों से नीचे उतर गयी। नीचे एक खुला हुआ आँगन था। काव्या ने मुड़कर पीछे देखा लेकिन वो सीढियां जिनसे वो नीचे उतरी थी, वो अब कहीं नहीं थी। एक अजीब से डर ने उसके दिल को जकड़ना शुरू कर दिया। आँगन के ठीक बीच में एक बहुत पुरानी मूर्ती थी… मिटटी की मूर्ती… काव्या की नज़र जैसे ही उस मूर्ती पर पड़ी, वो उसकी तरफ़ खिंची चली गयी। काव्या ने जैसे ही उस मूर्ती को छुआ… वो मिटटी की मूर्ती एक लड़की में बदल गयी… काव्या उसे हैरानी से देख रही थी क्यूंकि मूर्ती से इंसान बनी वो लड़की… वो हुबहू… काव्या ही थी।
इसके पहले कि काव्या कुछ समझ पाती, उस लड़की ने काव्या को छू लिया… और काव्या… मिट्टी की मूर्ती बन गयी…
मिट्टी में क़ैद काव्या का क्या हुआ? क्या वो सुरक्षित है?
कौन है ये नयी काव्या और क्या होगा अब असली काव्या का?
क्या वो फिर से इंसान बन पाएगी या मिट्टी की मूर्ती बनकर ही रह जायेगी?
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